सांप्रदायिक संगठनों के स्कूलों को बोर्ड से संबद्ध करने और वंचित समाज के बच्चों को बेदख़ल करने वाली है नई शिक्षा नीति

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“जब शिक्षा का अधिकार आया तो उसके प्रति एक कुलीन असंतोष था। जैसा विक्षोभ और असंतोष कुलीन समाज में मायावती और मुलायम सिंह सरकार के वक़्त था, जब मायावती मुख्यमंत्री की कुर्सी पर थीं। जब उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव ने अंग्रेजी की अनिवार्यता को खत्म किया था तब भी इस तरह का एक कुलीन विक्षोभ दिखाई पड़ा। यानि जब भी आप शिक्षा को निचले स्तर पर ले जाने की कोशिश करते हैं तो एक तरह का कुलीन विक्षोभ नज़र आता है।”- उक्त बातें अम्बेडकर यूनिवर्सिटी के प्रोफ़ेसर गोपाल प्रधान ने दूसरे अम्बरीश राय स्मृति-दिवस कार्यक्रम में कही। परिचर्चा का विषय था- ‘स्कूली शिक्षा पर गहराता संकट: जनअभियान की प्रासंगिकता’।

वर्तमान शिक्षा नीति और जातिवाद को परस्पर जोडते हुए प्रोफ़ेसर गोपाल ने आगे कहा कि जो जड़ जमायी हुयी जाति व्यवस्था है इसमें वो शिक्षा को भी वर्ण व्यवस्था का पुनरुत्पादन करने का एक साधन बनाना चाहते हैं। इसी वजह से शिक्षा के अधिकार के प्रति विक्षोभ था। अतः सरकार एक हद तक शिक्षा के अधिकार क़ानून को कमज़ोर करके नई शिक्षा नीति और नेशनल करीकुलम फ्रेमवर्क लेकर आयी।

नेशनल करीकुलम फ्रेमवर्क की राजनीति पर बोलते हुए उन्होंने कोविड काल में लिखी हेनरी गेरू की किताब पैंडेमिक पेडागॉजी का उल्लेख करते हुए कहा कि कोविड काल में जितनी भी निरंकुश सरकारें हैं वो शिक्षा के संस्थानिक ढांचे को नष्ट करके और एक खास तरह का पोपुलिस्ट, अतार्किक, आस्था और विश्वास पर निर्मित प्रचारमूलक पोस्टट्रुथ प्रोपागैंडा टाइप की एक पेडागॉजी लेकर समाज के सामने आयीं।

‘फ़ासिस्टों से जीवित लोगों को उतना बड़ा ख़तरा नहीं होता जितना बड़ा ख़तरा मृतकों को होता है’- वाल्टर बेंजामिन के इस कोट्स का उल्लेख कर प्रोफ़ेसर प्रधान ने कहा आज इतिहास और स्मृति के साथ सबसे बड़े घपले किये जा रहे हैं। जो वास्तविक स्मृतियां हैं उनको समाप्त करके सिथेंटिक स्मृतियां लोगों के दिमाग में प्रत्यारोपित की जा रही हैं। उन्होंने कहा कि यह सब व्यवस्थित रूप से एक ऐसी पीढ़ी को तैयार करने की योजना है जो इतिहास के बारे में वह सेंस लेकर आये जो सेंस वर्तमान सरकार नौजवानों के दिमाग़ों में प्रत्यारोपित करना चाहती है।

आरटीई फोरम के संस्थापक अम्बरीश राय के दूसरे स्मृति-दिवस पर रविवार को ऑनलाइन परिचर्चा कार्य्रकम आयोजित किया गया। परिचर्चा का विषय था- ‘स्कूली शिक्षा पर गहराता संकट: जनअभियान की प्रासंगिकता’। कार्यक्रम में प्रोफ़ेसर गोपाल प्रधान अम्बेडकर विश्वविद्यालय दिल्ली, डॉ सी रामकृष्णन शिक्षाविद् अध्यक्ष बीजीबीएस, प्रोफ़ेसर मुचकुंद दूबे पूर्व विदेश सचिव भारत सरकार, अध्यक्ष काउंसिल फॉर सोशल डेवलपमेंट नई दिल्ली, प्रो अनीता रामपाल शिक्षाविद् दिल्ली विश्वविद्यालय, गौतम बंदोपाध्याय राष्ट्रीय संयोजक आरटीई फोरम आदि ने अपनी बातें रखी। कार्यक्रम का संचालन मित्ररंजन ने किया।

स्कूली बच्चों के साथ आरटीई फोरम के संस्थापक अम्बरीश राय (फाइल फोटो)

भारत ज्ञान विज्ञान समिति के अध्यक्ष डॉ श्री राम कृष्णन ने नयी शिक्षा नीति और नेशनल करीकुलम फ्रेमवर्क पर केंद्र और राज्य के सम्बन्धों के द्वंद को रेखांकित करते हुए कहा कि केरल की सरकार पर केंद्र सरकार की समग्र शिक्षा स्कीम को थोपा जा रहा है। केंद्र की समग्र शिक्षा योजना के लिए राज्यों को फंड मिलता है। कुछ न कुछ पोलिसी के क्रियान्वयन की शर्तें रखते हुए केरल का शिक्षा फंड रोका जा रहा है।

उन्होंने विशेष ज़ोर देकर कहा कि आज साइंस के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है। डार्विन का हेरेडिटरी और इवोल्यूशन का चैप्टर किताब से निकाल दिया है। इसके ख़िलाफ़ कैसे जनांदोलन खड़ा करना है इस पर उन्होंने कहा कि ऑल इंडिया पीपल साइंस नेटवर्क और बीजेबीएस भी मिलकर काम कर रहे हैं। कई राज्यों में निजीकरण पर, स्कूल मर्जर पर और पाठ्यक्रम के साथ हो रहे खिलवाड़ पर कला जत्था के माध्यम से सवाल उठाये जा रहे हैं।

नयी शिक्षा नीति के खिलाफ़ जनांदोलन की ज़रूरत और प्रक्रिया को समझाते हुए उन्होंने आगे कहा कि नेशनल एजुकेशन पोलिसी के अंतर्गत जो स्टेट करीकुलम फ्रेमवर्क है और अपोजिशन पेपर्स है उस पर स्टेट लेवल पर और लोगों के लेवल पर ले जाकर चर्चाओं का आयोजन किया जा रहा है। उन्होंने बताया कि जल्द ही कालीकट में एक मीटिंग में 3 हजार लोग पर्चे और बातें पेश करेंगे कि शिक्षा में स्कूली शिक्षा पर जो प्रहार हो रहे हैं उससे राज्य कैसे जूझें और क्या रास्ता निकालें। इसी क्रम में 30 अप्रैल को दिल्ली में नेशनल एजुकेशन एसेंबली होगी।

वहीं दो साल से फोरम की सक्रियता में आयी कमी की रेखांकित करते हुए प्रो. मुचकुंद दूबे ने कहा कि आरटीई एक्ट जब आया उससे पहले वह लोग कॉमन स्कूल के लिए काम करते थे। बालमित्र शिक्षा जो होना था वो चुनौती आज भी है। इसका कारण प्रशासनिक के साथ साथ रिसोर्स का भी है। राज्य फोरम और राष्ट्रीय फोरम दोनों मिलकर जूझेंगें तो बेहतर क्रियान्वयन होगा और सरकार के ऊपर दबाव बन सकेगा।

शिक्षाविद् अनीता रामपाल ने शिक्षा के केंद्रीयकरण से नुकसान, भाषा, पाठ्यक्रम और बच्चों के ज्ञान को लेकर अपनी बात रखी। उन्होंने एनसीएफ-2005 का जिक्र किया, जो यह कहता है कि दुनिया के दूसरे देश भी 10 साल अच्छी गुणवत्ता की शिक्षा देते हैं। 10 साल का समय देते हैं। जब सबका एक कॉमन प्लेटफॉर्म हो। एक जैसा सिलेबस हो। उसमें समानता हो ताकि हर एक बच्चे को एकसमान मौका मिले।

मौजूदा शिक्षा प्रणाली में शिक्षकों की कमी को रेखांकित करके वो कहती हैं कि जब 6 विषय थे तब तो पर्याप्त शिक्षक नहीं हो पाते थे। अभी आप 16 विषय कर दिये और शिक्षकों के प्रशिक्षण और उनके एजुकेशन पर बात ही नहीं की। उन्होंने आगे कहा कि अब ये 16 कोर्स रख रहे हैं। इसमें एक इंटरडिसिप्लनरी अनिवार्य है। जिसमें अब बहुत सारे इंडियन नॉलेज सिस्टम के नाम पर रोज़ ब रोज़ कोर्सेस डाले जा रहे हैं।

असली ख़तरे की ओर इशारा करते हुए शिक्षाविद् अनीता रामगोपाल कहती हैं कि नेशनल करीकुलम फ्रेमवर्क यह भी कह रहा है कि सारे स्कूल तैयार नहीं होंगे सारे विकल्प देने के लिए इसलिए उन्हें रीजनेबल च्वाइस दिया जाएगा। यानि एक अकादमिक कोर्स, एक स्पोर्ट कोर्स और एक इंटरडिसिप्लनरी कोर्स जिसमें इंडियन नॉलेज सिस्टम के सहारे भी अब कोई भी स्कूल चला सकता है।

उन्होंने आगे कहा कि कई हायर सेकेंडरी लेवल के स्कूल जो पहले बोर्ड के साथ एफिलिएट भी नहीं हो सकते थे। अब वो इसके अंदर आ जाएंगे। फिर चाहे वो लो-कास्ट हों, या किसी धार्मिक, सांप्रदायिक संस्था से जुड़े हों। तो ऐरे-गैरे हर संस्था के लिए 12 वीं का सर्टिफिकेट बांटने का दरवाजा खोल दिया गया है।

प्रो अनीता आगे कहती है कि सरकार जो शिक्षा में गुणवत्ता और समता के अधिकार की बात कर रही है उसमें पूरी तरह से असमता, विभेद और विभेदीकरण है। यदि आप छात्रों को पहले ही निकाल देंगे जैसा कि दिल्ली में हो रहा है कि आठवीं तक के स्टूडेंट्स को लेवल टू नाम पर उनका इम्तेहान अलग लिया जा रहा है।

वो आखिर में कहती हैं कि स्टूडेंट्स को निकालने की कोशिश या उन्हें सतही नाम से कुछ बस ऐसा सर्टिफिकेट दे दो जो आपके मतलब का भी हो उस तरह के सोचने वाले क्रिटिकल कोर्स दीजिए ही मत। एक अकादमिक समझ, एक गंभीर समझ, एक समाज की समझ, एक लोकतंत्र की समझ वो दीजिए ही मत तो ये एक मॉडल है जो सरकार नेशनल करीकुलम फ्रेमवर्क के तहत थोप रही है।

ओपेन सत्र में आरटीई फोरम दिल्ली के सुरेंद्र सिंह ने आरोप लगाया कि दिल्ली का शिक्षा तंत्र बच्चों को बाल मज़दूरी की ओर ढकेल रहा है। कक्षा 9 और 11 में दिल्ली में जो 4 लाख बच्चे थे उनमें से डेढ़ लाख बच्चे फेल हो गये हैं। जो फेल हुए हैं उनको दोबारा से चांस देकर के कंपार्टमेंट देकर आगे निकाला जा सकता है। नहीं तो ये बच्चे पढ़ाई छोड़कर बाल मज़दूरी की ओर चले जायेंगे।

गुजरात कमेटी के मुजाहिद नफीस ने बताया कि ज्ञान शक्ति, ज्ञान सेतु, ज्ञान रक्षा के नाम पर गुजरात में स्कूल खोले जा रहे हैं। जो आरटीई का उल्लंघन करते हैं। इसको लेकर वो लोग लोगों तक लेकर जायेंगे और विधायकों के साथ बात करके सरकार के स्तर पर बात करेंगे। ज़रूरत पड़ी तो हाईकोर्ट में लेकर जायेंगे।

इससे पहले प्रो. गोपाल प्रधान ने अपनी बात की शुरुआत में अम्बरीश राय को याद करते हुए कहा कि आम तौर पर तमाम सामाजिक आंदोलनों के एजेंडे में शिक्षा नहीं होती है। कृषि संबंधित तमाम मांगे, मज़दूरों से संबंधित तमाम मांगे होती हैं लेकिन शिक्षा से संबंधित मांगे उनके एंजेंड में नहीं होती हैं।

उन्होंने कहा कि उनकी अम्बरीश राय जी की इस पर बात हुई थी। कि वो एक दस्तावेज तैयार करेंगे जिसे कम्युनिस्ट पार्टियों के भीतर शिक्षा संबंधी उनकी नीति के सिलसिले में उनसे बहस के लिए पेश किया जाएगा। क्योंकि जो परिवतर्नकारी आंदोलन है उनके पास अन्य तमाम मांगे और योजनाएं हैं लेकिन शिक्षा संबंधी कोई ठोस योजना या जो शिक्षण संस्थान हैं उनकी कोई गंभीर समीक्षा नहीं है।

आखिर में रघु तिवारी ने कार्यक्रम की समीक्षा करते हुए कहा कि कार्यक्रम में बातचीत में दो पक्ष सामने आये। एक यह कि नई शिक्षा नीति और नेशनल करीकुलम फ्रेमवर्क के नाम पर किस तरह से पूरे शिक्षा के ढांचे में परिवर्तन किया जा रहा है। और उसके पीछे की राजनीति क्या है।

(सुशील मानव स्वतंत्र पत्रकार हैं)

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