कुंभ पर तर्क का अंजाम पुलिस कार्रवाई!

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कुंभ मेले में अशांति और अफवाह फैलाने के कई लोगों पर आरोप लगे। आरोपों के तहत लोगों को गिरफ्तार भी किया गया। गिरफ्तार किए गये लोगों में एक नाम विवेक पवार का भी आता है। विवेक मध्यप्रदेश के मंडला जिले में बिछिया तहसील के निवासी है।

विवेक हार्ट आपरेशन के कारण विकलांगता का शिकार हो गए। लेकिन, इस स्थिति को उन्होंने अपनी कमज़ोरी नहीं बनने दिया। विकलांग होने के बावजूद उन्होंने अपने जीवन को सामाजिक कार्य की तरफ मोड़ दिया। उन्हें सामाजिक कार्य करते हुए 25-30 वर्ष हो गए। विवेक आज करीब 50 वर्ष के हैं। 

आज से कुछ दिन पहले उन्होंने फरवरी माह में कुंभ जैसी आस्था के अवसर पर व्यवस्थाओं को लेकर अपने फेसबुक साइट्स पर सवाल उठाए थे। फेसबुक पोस्ट पर उन्होंने कुंभ में जो लोग पाखंड फैला रहे हैं। नौटंकी और अव्यवस्थाएं कर रहे हैं उनको लेकर की थी। तब उनके ऊपर कानूनी कार्रवाई की गयी और उन्हें कुछ दिन जेल में रहना पड़ा। फिर, जमानत मिल गयी।

इस मामले में प्रशासनिक लोग और विधायक उनका हाल-चाल जानने आए। 

अनुविभागीय दंडाधिकारी बिछिया जिला मंडला के आदेश में दर्ज़ है कि, विवेक पवार‌ पर 11/02/2025 को बिछिया जिला मंडला में मामला दर्ज किया गया। 

मामला कुंभ आयोजन पर ऑनलाइन आक्रोश व परिशांति भंग करने पर धारा 129 (ई) बीएनएसएस के तहत दर्ज किया  गया। आदेश में आगे लिखित है कि, धारा 135 बीएनएसएस के तहत 25000 रूपए का छह माह का बंधक पत्र जमानत पेश करने और सदाचार बनाए रखने हेतु आदेश ज़ारी करती है। लेकिन, अनावेदक द्वारा जमानत पेश‌ करने से मना कर दिया तब अनावेदक उप जेल मंडला में न्याय अधिरक्षक में भेजा जाए। 

इस आदेश के बाद विवेक पवार को जेल‌ भेज दिया गया। वे 11 फरवरी से 17 फरवरी के बीच जेल में रहे। फिर उन्हें जमानत मिल गयी। 11 मार्च को विवेक की पेशी है। तब मामले का अपडेट आयेगा। 

ऐसा नहीं है कि, विवेक पहली दफा जेल गये हैं। इस बार से पहले भी वे 2 बार जेल जा चुके हैं। विवेक पवार की मां श्रीमती अनीता पवार एक सामाजिक कार्यकर्ता थीं। आदिवासी लड़कियों की आवाज उठाने के कारण उन्हें भी जेल जाना पड़ा था। 

विवेक के ऊपर हुई कार्यवाही और उनके जीवन कार्यों पर हमने मंडला बिछिया पहुंचकर संवाद भी किया। 

इस संवाद में वह खुद के ऊपर हुई कार्रवाई को लेकर बयां करते हैं कि, मैं धर्म विरोधी नहीं हूं। धर्म तो धारण करने वाला और आस्था का विषय है। हां लेकिन जो लोग धर्म को हानि पहुंचा रहे हैं। धर्म में पाखंडवाद फैला रहे हैं। उसका मैं विरोध करता हूं। आज धर्म की लोग ना सिर्फ गलत व्याख्या कर रहे हैं बल्कि धर्म में राजनीति का प्रवेश भी कर रहे हैं जो ठीक नहीं।

ऐसे ही मैंने कुंभ की अव्यवस्थाओं और कुंभ में जो लोग नाटकी स्थिति पैदा कर रहे थे उसको लेकर मैंने कुछ सवाल फेसबुक सोशल मीडिया साइट्स पर उठाए थे। जिनको लेकर मेरी ऊपर कानूनी कार्रवाई हुई। मुझे जेल भी जाना पड़ा। फिर, मुझे जमानत मिल गयी‌‌। 

विवेक कहते हैं कि, मुझे जेल भेजे जाने का यह पहला मामला नहीं है। इसके पहले मुझे वर्ष 2008/09 में बिछिया तहसील के कटंगा ग्राम पंचायत सरपंच-सचिव के कारनामों से त्रस्त ग्रामीणों और ग्रामसभा के अधिकारों के संघर्ष में संगठन के अन्य 7 साथियों के साथ जेल जाना पड़ा था। इस संघर्ष में जीत हमारी हुई थी। 

वर्ष 2008/09 से पहले में साल 2003 में जेल गया था। तब मेरी मां सामाजिक कार्यकर्ता श्रीमती अनीता पवार और मित्र राकेश शर्मा को भी जेल जाना पड़ा था। तब हम सबको इसलिए जेल जाना पड़ा था कि, बालाघाट जिले में आदिवासी समूह की बैगा बहनों के साथ हुए दुष्कर्म के मामले को हमने उठाया था।

विवेक पवार के कार्यों की तरफ हम गौर फरमाते हैं तब वह बतलाते हैं कि, हम आदिवासी, शोषित, वंचित समाज के अधिकारों, उन पर हो रहे अत्याचार की लड़ाई लड़ रहा हूं। हमने इस तरह के सामाजिक कार्य का आगाज़ अधिकारिक तौर पर वर्ष 2001 से जनसंघर्ष मोर्चा नामक संगठन बनाकर किया था।  

हमने जनसंघर्ष मोर्चा की स्थापना इसलिए की थी कि, निरंकुश व्यवस्था पर नियंत्रण ला सके। अन्याय के खिलाफ लड़ सके। लोगों को उनके अधिकार दिलाने के साथ जागरूक कर सकें। 

हमारी पहली लड़ाई उन ग्रामीण लोगों के लिए थी जिनको नक्सली के नाम पर परेशान किया जाता था। हमारे कार्य से एट्रोसिटी के मामले कम हुए। नक्सलियों और गांव‌ के बीच की घटनाएं कम हुई है।‌ मुझे नक्सली घटनाओं को लेकर काफी नाटकीय संलिप्तता नजर आती है। नक्सली घटनाओं में सिस्टम को पारदर्शिता लाना‌ चाहिए। 

आगे हमने कई साल विस्थापितों के अधिकारों की लड़ाई लड़ी। हालोन‌ सिंचाई परियोजना में विस्थापितों को जमीन का सस्ता मुआवजा दिया जा रहा था। ऐसे में हमने विस्थापन के मुद्दे को कई साल खींचा। मुद्दे को पुनर्वास नीति 2013 तक खींचते रहे। तब करीब 2000 परिवार को अच्छा मुआवजा मिल पाया। 

विवेक इसके आगे बताते हैं कि, हमने भू-अधिकारों के मामलों को भी प्रखरता से उठाया। तब सैकड़ों परिवारों को वनाधिकार के पट्टे मिले। वहीं, हमने मनरेगा के तहत भी काफी काम किया जिससे मनरेगा कार्य के अच्छे परिणाम सामने आये। इस काम के जरिए पंचायत स्तर पर लीडरशिप भी विकसित की। इसके साथ हमने 36 परिवारों को वन अपराध के मामलों से मुक्त करवाया। 

आगे हमने बंधुआ मजदूरों के अधिकारों की भी आवाज बुलंद की। हमने कई बंधुआ मजदूरों, लड़कियों, बच्चों को‌ छुड़वाया है। साथ में अधिकार दिलवाए। इस तरह के कई जनहितैषी कार्य किए। बीते कोरोना काल में हमने स्वास्थ्य कैंप लगाकर 2000 लोगों की स्वास्थ्य सुविधाओं का ध्यान‌ रखा।

हमारे द्वारा किए गये सामाजिक कार्यों से एक खास बदलाव जो‌ आया वह यह था कि, लोगों को सिस्टम का खौफ कम हुआ।

सामंतवादी सोच कमजोर हुई है। लोग अपने हक-अधिकार जानने-समझने लगे। अपने कार्य क्षेत्र के दायरे को लेकर विवेक कहते हैं कि, वैसे तो मैंने मध्यप्रदेश के कई इलाकों में कार्य किया। लेकिन, मुख्यतः मंडला, डिंडोरी और बालाघाट जिले में काम किया। 

आपके सामाजिक कार्य में विशेष रूप से क्या चुनौती आयी? इस सवाल पर विवेक कहते हैं कि,

25-30 वर्ष के कार्य अनुभव में मेरे ऊपर करीब 10-11 केस दायर किए गए। वहीं, मुझे इस बार को मिलाकर 3 बार जेल भी जाना पड़ा। हमें एक चुनौती इस एकजुटता की भी देखने को मिली। 

क्योंकि कई संगठन लोगों को जाति और धर्म के नाम पर गुमराह करते आ रहे हैं। ऐसे में कई मर्तबा ‌आम लोग अच्छाई-बुराई के बीच अंतर समझने में असफल हो जाते हैं। वहीं, एक चुनौती संसाधनों की कमी भी रही। इससे हमारे कुछ काम पर असर पड़ा। संसाधन हमारे पास होते तब कई कार्य और हम कर पाते‌। 

जब हमने यह सवाल किया कि,

विकलांगता पर आप क्या सोचते हैं कभी कार्य में विकलांगता मुश्किल बनी? तब विवेक कहते हैं कि, विकलांगता मेरे जीवन‌ का हिस्सा है। इसे मैं स्वीकारता हूं। हां विकलांग व्यक्ति पर लोग जिस तरह टिप्पणी करते वह दुखद होता है। लोग ऐसा मानते हैं कि, विकलांग व्यक्ति दया-धर्म पर जीता है। लेकिन मेरा मानना है विकलांग व्यक्ति सम्मान से अपने बलबूते भी जी सकता है। साथ-साथ वह आम नागरिकों के अधिकारों की लड़ाई भी लड़ सकता है। एक बात पर और में चिंतन करता हूं वह यह है कि, यदि मैं विकलांग ना होता तो और तेजी से लोगों के हक-अधिकारों के लिए लड़ पाता। 

आगे हमने सवाल किया कि, कोई विशेष विषय जिसको लेकर आपको लगता है काम करना जरूरी है? तब विवेक कहते हैं कि, मुझे लगता है कई विषयों पर कार्य किया जा रहा है। लेकिन पलायन एक ऐसा विषय है जिस पर कार्य करना‌ बहुत जरूरी है। आज जो पलायन की समस्या विकराल हो रही है। जिससे शहरों पर दबाव बढ़ रहा है।

मंडला जैसे जिले भी पलायन का शिकार हो रहे हैं। कोई भी संगठन पलायन के मुद्दे पर ना ढंग का कार्य कर पा रहा है ना ही विशेष रणनीति बना पा रहा है‌। पलायन को यदि नहीं रोका जा सकता तो हम किन लोगों के अधिकारों की लड़ाई लड़ेंगे? जिन लोगों के अधिकारों के लिए लड़ना है वे तो बेबसी में पलायन करके बड़े शहरों में जा रहे हैं। 

अंत में हमने यही पूछा कि, आपकी आगे की परियोजना क्या है? इस पर विवेक बतलाते हैं कि, हमने सोचा है कि, हम अब राजनीतिक जुड़ाव की ओर रूख़ करेंगें। राजनीति में अच्छे लोगों की दरकार है। वहीं, राजनीति समाज सेवा का एक अच्छा और सशक्त माध्यम भी हो सकता है।

मैं चाहता हूं कि, जनसंघर्ष मोर्चा के सदस्य की राजनीतिक समझ विकसित और प्रगतिशील हो। साथ में एक ऐसा आयोजन करने का भी प्लान हैं जिसमें मध्यप्रदेश के सभी सामाजिक कार्यकर्ताओं का जुड़ाव व वैचारिक मंथन हो सके।

(सतीश भारतीय मध्यप्रदेश के एक स्वतंत्र पत्रकार हैं)

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