नई दिल्ली। मणिपुर में जारी जातीय हिंसा को काबू करने की जद्दोजहद जवान और पुलिस के लिए काफी भारी पड़ रही है। अधिकारियों ने कहा कि मणिपुर के बिष्णुपुर जिले में एक हिंसक समूह के साथ मुठभेड़ में सेना के एक जवान सहित दो सुरक्षाकर्मी घायल हो गए।
राजधानी इम्फाल से लगभग 50 किलोमीटर दूर फौबाकचाओ इखाई क्षेत्र में गुरुवार सुबह गोलीबारी शुरू हुई जो देर रात तक चलती रही। जवानों और हिंसक समूह के बीच लगभग 15 घंटे तक संघर्ष जारी रहा, और फिर हिंसक गुट वहां से भाग खड़ा हुआ।
गोलीबारी के दौरान पास के तेरा खोंगसांगबी में एक घर में आग लग गई। उन्होंने बताया कि चूंकि दोनों पक्ष गोलीबारी में लगे हुए थे, पुलिस कर्मियों ने भीड़ को तितर-बितर करने के लिए हस्तक्षेप किया।
घायल मणिपुर पुलिस कमांडो की पहचान 40 वर्षीय नामीराकपम इबोम्चा के रूप में हुई है। एक पुलिस अधिकारी ने कहा, मोर्टार विस्फोट में उनके दाहिने पैर और दाहिने कान पर छर्रे लगे हैं। उन्होंने बताया कि सेना का जवान कुमाऊं रेजिमेंट का है लेकिन अभी तक उसकी पहचान नहीं हो पाई है।
पुलिस अधिकारी बताते हैं कि, “इलाके में उड़ाए गए ड्रोन में फुटेज कैद हुए हैं, जिसमें हिंसक समूह के अपने कुछ साथियों को ले जा रहे हैं। लेकिन यह अभी तक स्पष्ट नहीं है कि कार्रवाई में वे विद्रोही घायल हुए या मारे गए हैं।”
लगभग तीन महीने पहले मणिपुर में कुकी और मैतेई समुदायों के बीच जातीय हिंसा भड़क उठी थी, तब से अब तक 160 से अधिक लोग मारे गए हैं और सैकड़ों घायल हुए हैं।
मैतेई समुदाय की अनुसूचित जनजाति (एसटी) दर्जे की मांग के विरोध में पहाड़ी जिलों में ‘आदिवासी एकजुटता मार्च’ आयोजित किए जाने के बाद 3 मई को हिंसा भड़क उठी थी।
मणिपुर की आबादी में मैतेई लोगों की संख्या लगभग 53 प्रतिशत है और वे ज्यादातर इम्फाल घाटी में रहते हैं, जबकि आदिवासी, जिनमें नागा और कुकी शामिल हैं, 40 प्रतिशत हैं और मुख्य रूप से पहाड़ी जिलों में रहते हैं।
सोचने की बात ये है कि जब राज्य में अराजकता को फैलाना था तो इन्हीं हिंसक समूहों ने पुलिस स्टेशन से हथियारों को लूटा था और अब ये सरकारी हथियार ही सेना के जवान और पुलिस कर्मियों की जान ले रहे हैं।
(राहुल कुमार की रिपोर्ट।)