नई दिल्ली। जेनेवा के यूएन एक्सपर्ट ने दिल्ली के पूर्व प्रोफेसर जीएन साईबाबा की गिरफ्तारी का विरोध करते हुए उसे अमानवीय और बेबुनियाद बताया है।
संयुक्त राष्ट्र के विशेष दूत मैरी लॉवलर ने कहा कि “जीएन साईबाबा बहुत सालों से भारत में दलितों, आदिवासियों समेत अल्पसंख्यकों के मानवाधिकारों के रक्षक के तौर पर काम करते रहे हैं।” उनका लगातार जेल में रहना शर्मनाक है। यह आलोचक आवाजों को चुप करने की राज्य की चाहत को दर्शाता है।
दिल्ली विश्वविद्यालय में अंग्रेजी के प्रोफेसर रहे साईबाबा जब पांच साल के थे तभी से रीढ़ की बीमारी से पीड़ित हैं और चलने-फिरने के लिए ह्वील चेयर का इस्तेमाल करते हैं। उनको 2014 में गिरफ्तार किया गया था और फिर 2017 में विभिन्न मामलों उन्हें यूएपीए के तहत आजीवन कारावास की सजा मिली थी। संयुक्त राष्ट्र की मानवाधिकार विशेषज्ञ उनकी सजा को लेकर लगातार गहरी चिंता जाहिर कर रही थीं। इसके साथ ही यूएन वर्किंग ग्रुप ने उनकी गिरफ्तारी को मनमाना करार दिया था। और 2021 में बाकायदा इसको उसने लिखित तौर पर बताया था।
बीच की दो छोटी जमानतों के अलावा साईबाबा अपनी शुरुआती गिरफ्तारी और जेल के बाद से ही नागपुर सेंट्रल जेल में बंद हैं। लॉवलर ने कहा कि जेल में उनकी स्थिति बेहद गंभीर चिंता का विषय है।
लॉवलर ने कहा कि “श्री साईबाबा को उच्च सुरक्षा वाले अंडा सेल में रखा गया है जो उनकी ह्वील चेयर इस्तेमाल करने वाली स्थिति से बिल्कुल साम्य नहीं खाती है। 8X10 फीट वाली उनकी सेल में कोई खिड़की नहीं है और उसकी एक दीवार लोहे की है जिससे सर्दी और खासकर भीषण गर्मी में उनकी स्थिति बहुत खराब हो जाती है।”
विशेष दूत ने इसी लिहाज से उनके स्वास्थ्य को लेकर अपनी विशेष चिंता जाहिर की।
लॉवलर ने कहा कि “कैदी और गिरफ्तार शख्स के स्वास्थ्य को दुरुस्त रखने और एक इंसान के तौर पर उसके सम्मान को सुनिश्चित करने की जवाबदेही सरकार की है। जेल के अधिकारियों को विशेष क्षमता वाले कैदियों के लिए उनकी पहुंच को सुनिश्चित करने के साथ ही उनको जरूरी रिहाइश मुहैया करानी चाहिए।”
इसके साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि जैसा कि साईबाबा के स्वास्थ्य की स्थिति बहुत नाजुक है लिहाजा उन्हें रिहा कर दिया जाना चाहिए।
बताया गया कि साईबाबा के मामले को लेकर यूएन एक्सपर्ट भारत सरकार के संपर्क में है।
(प्रेस विज्ञप्ति पर आधारित।)
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