इस बार रमजान और होली का त्यौहार एक साथ है। ऐसा माना जा रहा है कि यह संयोग 6 दशक बाद आया है, जब रमाजन के पाक महीने में शुक्रवार के जुमे के दिन ही होली का त्यौहार एक साथ पड़ रहा है। पूरे देश में, विशेषकर उत्तर भारत में बड़ी संख्या में प्रवासी स्वजनों के साथ होली की खुशियाँ बांटने गाँव और कस्बों में लौट रहे हैं। लेकिन सत्ता के भूखों के लिए अब त्योहार भी नफरत की नई लहर पैदा करने का सबसे बड़ा माध्यम बन गया है। यह न सिर्फ हमारी खुशियों के रंग में भंग डालने का काम कर रहा है, बल्कि देश की शांति और खुशहाली को स्थायी रूप से घुन लगाने और अंदर से कमजोर करने की सबसे बड़ी वजह बन गया है।
पिछले कुछ दिनों से उत्तर प्रदेश और बिहार में होली के त्यौहार के मद्देनजर काफी कुछ ऐसा हो रहा है, जिसे किसी भी स्थिति में नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। यहां तक कि जिसे आमतौर पर गोदी मीडिया कहा जाता है, उसने भी यूपी और बिहार की सियासत की बागडोर थामे राजनेताओं की बयानबाजियों को लेकर सवाल उठाये हैं। ये अलग बात है कि कल जब हिंदू-मुस्लिम सांप्रदायिक हिंसा को लेकर रिपोर्टिंग की बात आयेगी तो यही मीडिया नफरत की आग को और ज्यादा बढ़ाने में भूमिका निभाती दिखेगी।
उत्तर प्रदेश में होली और रमजान के त्यौहार को एक दूसरे के साथ भिड़ाने का काम किसी हिंदू या मुसलमान ने नहीं किया है। दोनों समुदाय की ओर से इस बारे में कोई बयानबाजी देखने को नहीं मिली थी। इसकी शुरुआत सबसे पहले एक सप्ताह पूर्व उत्तर प्रदेश में संभल के सीओ अनुज चौधरी के बयान से हुई, जिसे उन्होंने बार-बार दोहराया है।
अपने बयान में उनका कहना था कि जुमा साल में 52 बार आता है, जबकि होली एक बार। आखिर हिंदुओं की होली तो साल में एक बार ही आती है। इसलिए जिसकी सामर्थ्य हो बाहर निकलने की और रंग झेलने की वही अपने घर से बाहर निकले, वर्ना अपने घर में अपने बच्चों के साथ रहे और नमाज अदा करे। एक दिन घर से न निकले, कोरोना में भी तो सब लोग अपने घरों के भीतर रहे। इससे अच्छा संदेश जाएगा। लेकिन यदि कोई शांति व्यवस्था भंग करेगा तो उसके खिलाफ सख्त कार्रवाई होगी।
एक पुलिस अधिकारी का ऐसा बयान न ही विधि सम्मत है और न ही भारतीय लोकतंत्र के सम्मान की ही रक्षा करता है। आखिर होली का ही त्यौहार ऐसा क्यों है, जिसमें सड़क पर किसी भी अनजान व्यक्ति को पानी, रंग और कीचड़ से सरोबार करने के लिए लोग मचल पड़ते हैं, और बाद में कहते हैं कि ‘बुरा न मानो होली है।’ अभी तक होली के त्यौहार के नाम पर महिलाओं के साथ छेड़खानी करने से लेकर अभद्रता की सारी सीमा लांघ जाने के न जाने कितने किस्सों के बारे में हम सभी अवगत हैं। शहरों और महानगरों में होली के दिन महिलाओं का घर से बाहर निकलना किसी बड़े अनिष्ट का कारण बन जाता है।
इस बार होली और जुमे का दिन एक साथ आ जाने के साथ-साथ उत्तर भारत में भाजपा सरकारों का होना आग में घी का काम कर रहा है। संभल के सीओ अनुज चौधरी के बयान पर सूबे के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ में समर्थन ने इसे और भी बल प्रदान कर दिया है।
उत्तर प्रदेश में मुस्लिम समुदाय के मान-मर्दन के लिए अब योगी आदित्यनाथ के मंत्रालय के लोग कैसे पीछे रह सकते थे। उनके एक राज्यमंत्री हैं रघुराज सिंह। उनके बयान से साफ़ संकेत मिलता है कि यूपी सरकार मुस्लिमों को ललकार रही है। उन्होंने अपने बयान में कहा है, “जिस तरह मस्जिद को तिरपाल से ढका जाता है उसी तरह होली में रंग से बचने के लिए टोपी वाले तिरपाल का हिजाब पहनें।”
हकीकत यह है कि आज के दिन संभल में जामा मस्जिद को सफेद तिरपाल से ढक दिया गया है। इसी तरह यहां की कुल 10 मस्जिदों को ढका जा रहा है, ताकि इन पर होली का रंग न गिरे। इसी तरह शाहजहांपुर में 67 मस्जिदों को ढकने की व्यवस्था की जा रही है। होली का त्यौहार यदि हिंदुओं का है तो यूपी पुलिस को ऐसा क्यों लग रहा है कि हिंदू होली खेलने दूसरे धर्म के प्रार्थनास्थलों पर जायेंगे?
इसे असल में योगी आदित्यनाथ की दबंग हिन्दुत्वव छवि को निर्मित करने के तौर पर देखा जा रहा है। संभल को इस शक्ति प्रदर्शन का अड्डा बनाया गया है, जहां मस्जिदों को तिरपाल से ढकने के अलावा एक दिन पहले से होली उत्सव मनाया गया। आज हजारों पुलिसकर्मियों ने सीओ अनुज चौधरी के नेतृत्व में शहर में फ्लैगमार्च निकाला। ऐसा प्रचारित किया जा रहा है कि 46 साल बाद यहां पर हिंदू होली का त्यौहार धूमधाम से मना सकेंगे। संभल में यूपी प्रशासन की कार्रवाई को मीडिया बड़े पैमाने पर प्रचारित करने में जुटी हुई है।
योगी आदित्यनाथ पहले ही 80 बनाम 20 का ऐलान कर चुके हैं। ऐसा माना जा रहा है कि कुंभ में करोड़ों श्रद्धालुओं की भीड़ का दावा करने के बाद अब होली में मुस्लिमों को अपने घर के भीतर दुबक कर रखने का दावा उनके ‘एक हैं तो सेफ हैं’ के दावे को ही मजबूत करने का काम करेगा।
उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव भले ही 2027 में हों, लेकिन भाजपा की तैयारी चुनाव जीतने के बाद ही शुरू हो जाती है। यूपी में तो वैसे भी बहुत जटिलताएं हैं, जिसमें न सिर्फ दिल्ली से अपने तख्त को बचाए रखना है, बल्कि तीसरी बार फतेह हासिलकर दिल्ली के तख्त पर अपनी दावेदारी को भी सबसे मजबूती से रखने का सुनहरा मौका है।
लेकिन बिहार में तो इसी वर्ष के अंत तक चुनाव होने हैं। इसलिए बिहार में भाजपा भला उत्तरप्रदेश से पीछे कैसे रह सकती है? कुछ दिन पहले बिहार के मधुबनी जिले में बफी विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र के विधायक हरिभुशन ठाकुर बच्चुल ने विधानसभा परिसर में संवाददाताओं से बात करते हुए यह टिप्पणी की थी, “मैं मुसलमानों से अपील करना चाहता हूं कि एक वर्ष में 52 जुम्मा (शुक्रवार) आते हैं। उनमें से एक होली के साथ मेल खाता है। इसलिए, उन्हें हिंदुओं को त्योहार का जश्न मनाने देना चाहिए और अगर उन पर रंग लग जाए तो उसका बुरा न मानें। यदि उन्हें ऐसी कोई समस्या है, तो उन्हें घर के अंदर रहना चाहिए। यह सांप्रदायिक सद्भाव को बनाए रखने के लिए आवश्यक है।”
जब उन्हें बताया गया कि मुसलमान रमज़ान के दौरान रोजा (उपवास) का पालन करते हैं और शुक्रवार को विशेष प्रार्थना करते हैं, तो विधायक का जवाब था, “उनके पास हमेशा दोहरे मानक होते हैं। वे स्टाल लगाकर अबीर-गुलाल बेचकर पैसे कमाने पर तो खुश रहते हैं, लेकिन अगर कुछ दाग उनके कपड़ों पर लग जाये तो दोजख (नरक) से डरने लगते हैं।”
जाहिर है, उनका इरादा बिहार में होली-रमजान के नाम पर माहौल गर्म करने का है। भाजपा के लिए हिंदुओं के जातीय या वर्गीय आधार पर बंटने का मतलब है बर्बादी। लेकिन यदि हिंदू-मुस्लिम ध्रुवीकरण की खाई चौड़ी होती है तो उसे बिहार में पहली बार अपने दम पर सरकार बनाने का मौका मिल सकता है। नीतीश कुमार का राजनीतिक ग्राफ न सिर्फ कमजोर हो चुका है, वे मानसिक-शारीरिक स्वास्थ्य के मामले में भी अब पहले की तरह मजबूत चुनौती नहीं रहने वाले हैं।
महाराष्ट्र में भी भाजपा की सरकार है। यहां कल रत्नागिरी जिले में एक भयानक मंजर देखने को मिला। हिंदुत्ववादी भीड़ ने तरावीह की नमाज़ के दौरान पुलिस की मौजूदगी में राजापुर जामा मस्जिद का गेट तोड़ डाला। सोशल मीडिया में इसका वीडियो वायरल है, जिसमें साफ़ देखा जा सकता है कि होली का शिमगा उत्सव मनाते हुए हिंदूवादी भीड़ ने धार्मिक नारा लगाते हुए शिमगा का करीब 30-40 फीट लंबा टुकड़ा नारे लगाते हुए मस्जिद के गेट पर दे मारा। इस दौरान मस्जिद के भीतर तरावीह की नमाज़ पढ़ी जा रही थी। मस्जिद का गेट क्षतिग्रस्त होने की खबर है, और इसमें एक व्यक्ति भी घायल हुआ है। लेकिन कथित राष्ट्रीय मीडिया ने जानबूझकर इस घटना का संज्ञान नहीं लिया है, उसकी सुर्ख़ियों में तो बस संभल में सुरक्षाबलों का फ्लैगमार्च के बहाने आदित्यनाथ की धाक के एजेंडे को आगे बढ़ाना है।
देश को उम्मीद करनी चाहिए कि कल का दिन किसी तरह हंसी-ख़ुशी के साथ बीत जाये। इतिहास के आईने से देखें तो होली के रंग में रसखान, जायसी से एल्क्र अवध के नवाब डूबे नजर आयेंगे। हम सभी की यादों में होली के त्यौहार को हिंदू-मुस्लिम-सिख सभी के द्वारा आपस में बेहद उत्साह और उल्लास के साथ मनाने की परंपरा बसी हुई है। यह उत्तर प्रदेश और बिहार में मौजूद धर्मनिरपेक्ष राजनीतिक दलों और हितधारकों के लिए परीक्षा की घड़ी है।
मौजूदा निजाम अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप और चीन की ताकत के सामने मारे-मारे छिप रही है। उसके पास खुद को शेर साबित करने के लिए हर बार की तरह मुसलमानों के खिलाफ नफरत का एजेंडा फैलाने का कोई न कोई उपाय मौजूद रहता है। उम्मीद करनी चाहिए कि कल का दिन किसी बड़ी अनहोनी के बगैर ही शांति और सौहार्द के साथ बीत जाये। अब तो भारत में हर पर्व और त्यौहार में ख़ुशी की कल्पना से पहले कोई अनहोनी न हो जाये, इसी आशंका में हर अमनपसंद आम लोकतंत्र पसंद नागरिक का समय बीतता है।
(रविंद्र पटवाल जनचौक संपादकीय टीम के सदस्य हैं)
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