उत्तर प्रदेश: बनारस के ज्ञानवापी की तर्ज पर संभल में किसने गर्म की सांप्रदायिकता की भट्ठी?

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वाराणसी। “शीशे की अदालत में, पत्थर की गवाही है, कातिल ही मुहाफिज हैं, कातिल ही सिपाही है”- यह शेर वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश की बदलती परिस्थितियों और धार्मिक विवादों पर सटीक बैठता है। बनारस की ज्ञानवापी मस्जिद के सर्वेक्षण और कानूनी विवाद के बाद, अब पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मुस्लिम बहुल शहर संभल की शाही जामा मस्जिद विवाद का केंद्र बन गई है।

ज्ञानवापी मस्जिद और संभल की शाही जामा मस्जिद के मामलों की कहानी में कई समानताएं हैं। दोनों मामलों में हिंदू पक्ष की पैरवी अधिवक्ता हरिशंकर जैन और उनके पुत्र विष्णु शंकर जैन कर रहे हैं, जिनका आरएसएस और बीजेपी से पुराना नाता है। ज्ञानवापी मस्जिद मामले में अगस्त 2021 में दिल्ली की रहने वाली पांच महिलाओं द्वारा याचिका दायर की गई थी। उन्होंने श्रृंगार गौरी के नियमित दर्शन और पूजा की अनुमति मांगी थी। इस मामले में कोर्ट ने अप्रैल 2022 में सर्वेक्षण का आदेश दिया और जल्दबाजी में वजू स्थल को सील कर दिया गया। सर्वे रिपोर्ट मीडिया में लीक होने और पक्षपातपूर्ण फैसलों के आरोपों ने विवाद को और गहरा कर दिया।

इसी तरह, संभल की शाही जामा मस्जिद मामले में 19 नवंबर 2024 को याचिका दायर की गई। याचिका में दावा किया गया कि यह मस्जिद दरअसल एक प्राचीन हरिहर मंदिर के स्थान पर बनी है। अदालत ने मुस्लिम पक्ष को सुने बगैर उसी दिन शाम को मस्जिद का सर्वेक्षण कराने का आदेश दे दिया।

मामले की जड़ में हिंदू पक्ष का दावा और उसके तहत कोर्ट द्वारा सर्वेक्षण का आदेश है। जैसे ही कोर्ट ने कमीशन को सर्वेक्षण करने का निर्देश दिया और सर्वेक्षण प्रक्रिया शुरू हुई, मुस्लिम पक्ष इस निर्णय से नाराज हो गया। उनका कहना था कि यह फैसला जल्दबाजी में लिया गया और उन्हें अपना पक्ष रखने का पर्याप्त अवसर नहीं दिया गया।

जब सर्वेक्षण टीम मस्जिद परिसर पहुंची, तब वहां बड़ी संख्या में मुस्लिम समुदाय के लोग इकट्ठा हो गए और स्थिति तनावपूर्ण हो गई। इसके बाद वहां हंगामा शुरू हो गया और मस्जिद के बाहर प्रदर्शन तेज़ हो गया। विवाद ने उग्र रूप ले लिया, और सर्वे टीम और पुलिस पर पथराव शुरू कर दिया गया। इसी बीच फायरिंग की घटनाएं भी हुईं, जिसके चलते पांच लोगों की मौत हो गई और कई अन्य घायल हो गए।

सर्वेक्षण और हिंसा

संभल की शाही जामा मस्जिद अपनी ऐतिहासिक और धार्मिक महत्ता के लिए जानी जाती है। यह मस्जिद एक ऊंचे टीले पर स्थित है और आसपास की सबसे बड़ी इमारत मानी जाती है। हिंदू पक्ष का दावा है कि यह मस्जिद एक प्राचीन मंदिर के स्थान पर बनी है, जिसे भगवान कल्कि से जोड़ा जाता है। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि मस्जिद का निर्माण मुग़ल शासक बाबर के आदेश पर हुआ था, जबकि इतिहासकार मौलाना मोईद इसे तुग़लक काल की संरचना बताते हैं। उनका कहना है कि बाबर ने मस्जिद का निर्माण नहीं करवाया, बल्कि संभवतः उसकी मरम्मत करवाई थी।

मस्जिद का सर्वेक्षण अदालत के आदेश पर 19 नवंबर को 2024 किया गया। पहले दिन सर्वे शांतिपूर्वक हुआ। बाद में कोर्ट के आदेश पर 24 नवंबर 2024 को दोबारा सर्वे शुरू हुआ तो हिंदू पक्ष के समर्थकों ने “जय श्रीराम” के नारे लगाए, जिससे मुस्लिम समुदाय में आक्रोश फैल गया। मुस्लिम पक्ष का आरोप है कि सर्वे टीम के साथ आए लोगों ने उकसावे की स्थिति पैदा की, जिनका नेतृत्व अधिवक्ता हरिशंकर जैन के पुत्र विष्णु शंकर जैन खुद कर रहे थे। इस बाबत एक वीडियो भी जमकर वायरल हो रहा है।

सर्वेक्षण के दौरान माहौल इतना बिगड़ गया कि यह पत्थरबाजी और हिंसा में बदल गया। मुस्लिम समुदाय ने पुलिस और प्रशासन पर धार्मिक पक्षपात का आरोप लगाया। दूसरी ओर, पुलिस का कहना है कि उन्होंने भीड़ को तितर-बितर करने के लिए केवल लाठीचार्ज और आंसू गैस का इस्तेमाल किया। हिंसा के दौरान नईम, बिलाल और नोमान समेत चार युवकों की मौत हो गई।

मुस्लिम समुदाय ने आरोप लगाया कि पुलिस ने सीधे फायरिंग करके धार्मिक पक्षपात दिखाया। वहीं, पुलिस का दावा है कि उन्होंने केवल आत्मरक्षा में कार्रवाई की। घटना के दौरान वायरल हुए वीडियो में पुलिस और भीड़ के बीच गोलीबारी स्पष्ट दिखाई दे रही है। हालांकि, इस पर प्रशासन ने कोई स्पष्ट बयान नहीं दिया है।

ज्ञानवापी मस्जिद मामले में भी कुछ ऐसी ही स्थिति थी, जब सर्वेक्षण के दौरान दोनों समुदायों में तनाव पैदा हुआ था। वहां भी हिंदू और मुस्लिम पक्षों के नारेबाजी के कारण माहौल बिगड़ा और सांप्रदायिक तनाव बढ़ गया। संभल में भी ज्ञानवापी जैसी ही पटकथा देखने को मिली। हिंदू पक्ष की ओर से धार्मिक पहचान का मामला उठाया गया, जबकि मुस्लिम पक्ष ने इसे सांप्रदायिक ध्रुवीकरण और राजनीतिक साजिश बताया।

न्याय और राजनीति के बीच का संघर्ष

ज्ञानवापी मस्जिद के बाद संभल की शाही जामा मस्जिद को लेकर उपजे विवादों में यह साफ झलकता है कि धार्मिक स्थल विवाद न्याय और राजनीति के बीच फंस गए हैं। हिंदू पक्ष इसे धार्मिक पुनर्स्थापना का मामला मानता है, जबकि मुस्लिम पक्ष इसे अपनी धार्मिक स्वतंत्रता पर हमला और धर्मस्थल कानून का घोर उलंघन करार दे रहा है।

संभल की शाही जामा मस्जिद का यह विवाद केवल एक मस्जिद या मंदिर का मामला नहीं रह गया है, बल्कि यह धार्मिक, सांप्रदायिक और राजनीतिक तनाव का प्रतीक बन गया है। घटना ने न केवल स्थानीय बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर भी चर्चा और चिंता को जन्म दिया है।

24 नवंबर 2024 को हुई हिंसा के बाद शहर में पांच लोगों की मौत के बाद प्रशासन ने इंटरनेट और फोन सेवाओं को पूरी तरह बंद कर दिया है। मस्जिद के पास भारी संख्या में पुलिस बल तैनात है, और लोगों के आवागमन पर सख्ती से रोक लगा दी गई है। हालांकि, मस्जिद में तय समय पर नमाज़ जारी है, लेकिन माहौल में अभी भी तनाव की स्थिति बनी हुई है।

संभल हिंसा मामले में पुलिस ने सात एफआईआर दर्ज की हैं, जिसमें नखासा थाना क्षेत्र में दो और दूसरे थाना क्षेत्र संभल में पांच केस दर्ज हुए हैं। सपा सांसद जियाउर्रहमान बर्क और सपा विधायक इकबाल महमूद के बेटे सुहेल इकबाल के खिलाफ समेत 800 अज्ञात के खिलाफ केस दर्ज किया है.

सर्वे आदेश पर गंभीर सवाल

संभल की शाही जामा मस्जिद समिति ने दावा किया है कि उन्हें वाद दायर होने की कोई पूर्व सूचना नहीं दी गई थी और उन्हें सर्वेक्षण की जानकारी अदालत के आदेश के बाद ही मिली। मस्जिद समिति से जुड़े अधिवक्ता ज़फ़र अली ने इस सर्वे को अचानक और अनुचित बताया और कहा, “अदालत परिसर में हमें भगवाधारी लोगों की चहलक़दमी से संदेह हुआ, लेकिन हमें वाद दायर होने की जानकारी नहीं दी गई। शाम को करीब साढ़े पांच बजे पुलिस ने हमें सूचित किया कि मस्जिद परिसर में सर्वे होगा।”

ज़फ़र अली ने यह भी कहा कि इस मस्जिद को लेकर कभी कोई क़ानूनी विवाद नहीं था और यह विवाद हिंदू संगठनों द्वारा जानबूझकर खड़ा किया गया है। दूसरी ओर, मुख्य याचिकाकर्ता महंत ऋषिराज गिरी का कहना है, “हमारा विश्वास है कि यह मस्जिद जिस स्थान पर बनी है, वहां पहले हरिहर मंदिर था। इसकी वास्तुकला मंदिर जैसी लगती है। हम अपने धर्मस्थल को वापस पाना चाहते हैं और इसके लिए क़ानूनी लड़ाई लड़ रहे हैं।”

याचिकाकर्ताओं की ओर से अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन ने यह वाद दाखिल किया है। जैन इससे पहले वाराणसी के ज्ञानवापी मस्जिद विवाद में भी वकील रह चुके हैं। मुस्लिम पक्ष का कहना है कि यह वाद एक राजनीतिक साजिश है, जिसे धार्मिक भावनाओं को भड़काने और सुर्खियां बटोरने के लिए उठाया गया है। मस्जिद समिति ने अदालत में इस वाद को खारिज करने की अपील करने की बात कही है।

संभल के पुलिस अधीक्षक कृष्ण कुमार कहते हैं, “अदालत के आदेश पर पुलिस बल की मौजूदगी में सर्वे पूरा हुआ। सांप्रदायिक हिंसा कें बाद फिलहाल शहर में शांति है और स्थिति पूरी तरह नियंत्रण में है। किसी भी अप्रिय घटना से बचने के लिए एहतियाती कदम उठाए गए हैं।” दूसरी ओर, मस्जिद समिति से जुड़े अधिवक्ता ज़फ़र अली ने जनचौक से कहा, “मस्जिद में सामान्य रूप से नमाज़ अदा की जा रही है और किसी प्रकार का तनाव नहीं है। पुलिस बल एहतियातन तैनात है।”

संभल की शाही जामा मस्जिद मामले की अगली सुनवाई अब 29 नवंबर 2024 को होगी। अदालत ने एडवोकेट कमिश्नर से सर्वेक्षण की रिपोर्ट पेश करने के निर्देश दिए हैं। मस्जिद समिति के अधिवक्ता ज़फ़र अली का कहना है, “हम क़ानूनी रूप से अपने पक्ष को मज़बूती से रखने की तैयारी कर रहे हैं। हमारा मानना है कि यह विवाद बिना किसी आधार के पैदा किया गया है और अदालत में यह टिक नहीं पाएगा।”

हिंदू पक्ष ने अपने दावे को लेकर पूरी गंभीरता से तैयारी की है। याचिकाकर्ता महंत ऋषिराज गिरी का कहना है कि यह मस्जिद एक प्राचीन हरिहर मंदिर की जगह पर बनाई गई थी। हिंदू पक्ष का कहना है कि वे क़ानूनी तरीके से अपने धर्मस्थल को वापस पाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। हालांकि शहर के अमनपसंद लोगों में इस विवाद को लेकर मिलेजुले भाव देखने को मिल रहे हैं।

हिंदू पक्ष के समर्थकों का कहना है कि यह उनके इतिहास और धर्म से जुड़ा मामला है, जबकि मुस्लिम पक्ष का कहना है कि यह विवाद सांप्रदायिक ध्रुवीकरण पैदा करने का प्रयास है। हालांकि, पुलिस और प्रशासन ने शांति बनाए रखने के लिए कड़े सुरक्षा प्रबंध किए हैं। सांसद ज़िया उर रहमान बर्क़ और अन्य मुस्लिम नेताओं ने इसे एक साजिश बताते हुए कहा है कि यह विवाद समाज में अशांति फैलाने के उद्देश्य से खड़ा किया गया है। वहीं, हिंदू संगठनों ने इसे अपनी धार्मिक पहचान के पुनःस्थापन का मामला बताया है।

क्या है विवाद का आधार?

हिंदू पक्ष का कहना है कि जामा मस्जिद जिस स्थान पर स्थित है, वह प्राचीन हरिहर मंदिर का स्थान है, जिसे भगवान कल्कि के अवतार से जोड़ा जाता है। याचिका में उल्लेख किया गया है कि भगवान कल्कि का अवतार भविष्य में संभल में ही होगा, और इस आधार पर इस स्थान को हिंदू धर्म का पवित्र स्थल माना जाता है।

हिंदू पक्ष का दावा है कि वे भगवान शिव और विष्णु के उपासक हैं और यह उनका धार्मिक अधिकार है कि वे हरिहर मंदिर के स्थान पर पूजा-अर्चना कर सकें। याचिका में यह भी कहा गया है कि मस्जिद की संरचना और इसका स्थान इस बात की पुष्टि करता है कि यह एक प्राचीन हिंदू मंदिर का स्थान है।

याचिका में यह भी दावा किया गया है कि मस्जिद का निर्माण बाबर के आदेश पर किया गया था, लेकिन संभल के इतिहास पर गहरी जानकारी रखने वाले इतिहासकार मौलाना मोईद इस दावे को खारिज करते हैं। मौलाना मोईद का कहना है कि बाबर ने केवल मस्जिद की मरम्मत करवाई थी, जबकि इसका निर्माण तुग़लक़ काल में हुआ हो सकता है।

जामा मस्जिद वर्तमान में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) की देखरेख में संरक्षित है। इसे 1920 में राष्ट्रीय महत्व की संरक्षित इमारत के रूप में घोषित किया गया था। मौलाना मोईद बताते हैं कि मस्जिद की निर्माण शैली मुग़ल काल से मेल नहीं खाती है, और यह संभव है कि इसका निर्माण तुग़लक़ काल में हुआ हो।

दूसरी ओर, मुस्लिम पक्ष का कहना है कि यह विवाद बेवजह पैदा किया गया है। मस्जिद प्रबंधन समिति के वकील मसूद अहमद का कहना है, “यह मस्जिद सदियों से एक शांतिपूर्ण धार्मिक स्थल रही है। इसे लेकर अदालत में कोई पूर्व विवाद नहीं था। यह पहला अवसर है जब इस मस्जिद को लेकर अदालत में वाद दायर किया गया है।”

मसूद अहमद यह भी कहते हैं कि अदालत ने याचिका दायर होते ही बिना विपक्ष को सुने सर्वेक्षण का आदेश जारी कर दिया और उसी दिन शाम को सर्वे भी पूरा हो गया। उन्होंने कहा, “यह पूरी योजना के तहत किया गया प्रतीत होता है।”

याचिकाकर्ताओं ने अपनी याचिका में भारत सरकार के गृह मंत्रालय, सांस्कृतिक मंत्रालय, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, मेरठ ज़ोन के पुरातत्व अधीक्षक, संभल के ज़िलाधिकारी और मस्जिद प्रबंधन समिति को पक्षकार बनाया है।

विवाद और तनाव का इतिहास

संभल की जामा मस्जिद को लेकर विवाद कोई नया नहीं है। साल 1976 में मस्जिद के इमाम की हत्या के बाद यहां सांप्रदायिक तनाव पैदा हुआ था। 1980 में पड़ोसी शहर मुरादाबाद में हुए दंगों का असर संभल पर भी पड़ा। शिवरात्रि के अवसर पर हिंदू संगठनों द्वारा मस्जिद के परिसर में बने एक कुएं के पास पूजा करने के प्रयास भी कई बार किए गए हैं।

हालांकि, मुस्लिम पक्ष का कहना है कि यह पहली बार है जब इस मस्जिद को लेकर अदालत में कोई वाद दायर हुआ है। मस्जिद प्रबंधन समिति के मुताबिक, यह स्थान धार्मिक सौहार्द का प्रतीक रहा है और यहां पहले कभी इस प्रकार का क़ानूनी विवाद नहीं हुआ।

19 नवंबर को दायर याचिका के बाद अदालत ने तुरंत सर्वेक्षण का आदेश जारी किया। शाम को मस्जिद परिसर में सर्वे की प्रक्रिया पूरी की गई। विवाद के बढ़ने के साथ, मस्जिद और इसके इतिहास पर चर्चा गर्म हो गई है। हिंदू पक्ष इसे धार्मिक पुनःस्थापना का मामला मान रहा है, जबकि मुस्लिम पक्ष इसे राजनीति से प्रेरित एक प्रयास करार दे रहा है। अदालत की अगली सुनवाई और सर्वे रिपोर्ट पर अब सभी की निगाहें टिकी हुई हैं।

बेमतबल बनता धर्मस्थल कानून

उत्तर प्रदेश में ऐतिहासिक और धार्मिक स्थलों को लेकर विवाद कोई नई बात नहीं है। विभिन्न समुदायों के बीच इन स्थलों के स्वामित्व और धार्मिक महत्व को लेकर विवाद समय-समय पर अदालतों तक पहुंचे हैं। अयोध्या का बाबरी मस्जिद-राम जन्मभूमि विवाद भारत के सबसे बड़े और लंबे समय तक चलने वाले क़ानूनी मामलों में से एक रहा। इस विवाद का निपटारा 2019 में सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले से हुआ, जिसमें विवादित भूमि पर राम मंदिर के निर्माण की अनुमति दी गई और मुस्लिम पक्ष को वैकल्पिक भूमि प्रदान की गई।

वाराणसी की प्रसिद्ध ज्ञानवापी मस्जिद को लेकर भी ऐसा ही विवाद चल रहा है। हिंदू पक्ष का दावा है कि यह मस्जिद प्राचीन काशी विश्वनाथ मंदिर के स्थान पर बनाई गई थी। अदालत के आदेश पर मस्जिद परिसर का सर्वेक्षण भी किया गया, जिसमें शिवलिंग के प्रतीक पाए जाने का दावा किया गया। हालांकि, मुस्लिम पक्ष ने इसे वज़ुखाने का हिस्सा बताया है। यह विवाद अभी क़ानूनी प्रक्रिया में है और इस पर अंतिम निर्णय आना बाकी है।

मथुरा की शाही जामा मस्जिद और ईदगाह को लेकर भी इसी तरह का विवाद अदालत में चल रहा है। हिंदू पक्ष का दावा है कि यह स्थान भगवान श्रीकृष्ण की जन्मभूमि है, जहां मुग़ल काल में मंदिर को ध्वस्त कर मस्जिद का निर्माण किया गया था। यह मामला भी अदालत के विचाराधीन है और दोनों पक्ष अपनी-अपनी दलीलें पेश कर रहे हैं।

इन प्रमुख मामलों के अलावा, देश के कई और धार्मिक स्थलों को लेकर विवाद अदालतों में लंबित हैं। इनमें प्रमुख रूप से दिल्ली की कुतुब मीनार परिसर को लेकर हिंदू और जैन समुदाय का दावा, उज्जैन के महाकाल क्षेत्र में स्थित कुछ संरचनाओं पर विवाद, और कर्नाटक के मंदिर-मस्जिद विवाद शामिल हैं।

इंटेलिजेंस की नाकामी पर सवाल

उत्तर प्रदेश के संभल जिले में मस्जिद के सर्वे के दौरान हुई हिंसा ने कई गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। इस घटना में चार लोगों की जान चली गई और कई लोग घायल हो गए। लेकिन इस हिंसा के पीछे की साजिश और इंटेलिजेंस विभाग की भूमिका पर सवाल उठ रहे हैं।

सर्वे के दौरान स्थानीय लोगों के आक्रोश और तनावपूर्ण माहौल की संभावना पहले से ही स्पष्ट थी। इसीलिए सर्वे टीम के साथ बड़ी संख्या में पुलिस बल को तैनात किया गया था। बावजूद इसके, हिंसा हुई और स्थिति बेकाबू हो गई। इस पूरे घटनाक्रम ने इंटेलिजेंस विभाग की नाकामी को उजागर किया है।

यदि खुफिया विभाग ने समय रहते हिंसा की तैयारी और उपद्रवियों की योजना के बारे में जानकारी दी होती, तो पुलिस और प्रशासन अलर्ट रहकर उपद्रवियों की साजिश को नाकाम कर सकते थे।

इस हिंसा में जिस तरह से टीम पर हमला हुआ, उससे यह स्पष्ट हो गया कि उपद्रव करने वालों ने पूरी तैयारी कर रखी थी। बताया जा रहा है कि उपद्रवियों के पास हथियार भी थे। हिंसा के बाद घटनास्थल के पास नाले से खाली कारतूस मिलने की खबरें सामने आई हैं, जो इस बात का संकेत देती हैं कि हिंसा एक सुनियोजित साजिश थी।

उपद्रवियों ने पुलिस और सर्वे टीम पर पत्थरबाजी की, गाड़ियों में आग लगाई और इलाके में दहशत फैलाई। अगर इंटेलिजेंस विभाग को इस साजिश की भनक होती, तो यह हिंसा टाली जा सकती थी।

हिंसा के दौरान पुलिस ने लाठीचार्ज और आंसू गैस का इस्तेमाल कर हालात को संभालने की कोशिश की। लेकिन इंटेलिजेंस की ओर से समय पर कोई इनपुट न मिलना प्रशासन के लिए एक बड़ी चूक साबित हुई। अगर खुफिया विभाग उपद्रवियों की योजना और तैयारियों की जानकारी पहले ही दे देता, तो पुलिस ज्यादा सतर्क होती और हिंसा को रोका जा सकता था।

संभल की हिंसा ने इंटेलिजेंस तंत्र की कमजोरी को उजागर किया है। यह घटना बताती है कि प्रशासन और पुलिस को समय पर सही सूचनाएं नहीं मिल पा रही हैं। जरूरत है कि: खुफिया विभाग को मजबूत किया जाए और उसकी जवाबदेही तय की जाए। संवेदनशील क्षेत्रों में समय रहते सुरक्षा के पर्याप्त इंतजाम किए जाएं। इस घटना की निष्पक्ष जांच हो और खुफिया विभाग की चूक का विश्लेषण किया जाए।

‘बाप-बेटे भड़का रहे दंगा’

संभल में शाही जामा मस्जिद के विवाद और उसके बाद हुई हिंसा को लेकर ज्ञानवापी मामले के मुस्लिम पक्षकार और अंजुमन इंतजामियां मसाजिद के संयुक्त सचिव मोहम्मद यासीन ने गंभीर आरोप लगाए हैं। एबीपी न्यूज़ से बातचीत में उन्होंने अधिवक्ता हरिशंकर जैन और उनके बेटे विष्णु शंकर जैन को दंगा भड़काने का जिम्मेदार ठहराया। उन्होंने कहा कि यह घटना भारत जैसे 5 ट्रिलियन अर्थव्यवस्था के सपने देखने वाले देश के लिए बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है।

मोहम्मद यासीन ने कहा, “हरिशंकर जैन और विष्णु शंकर जैन अलग-अलग जगह दंगे कराने में लगे हुए हैं। रविवार को जब विष्णु शंकर जैन भारी भीड़ के साथ मस्जिद के सर्वेक्षण के लिए पहुंचे, तो भीड़ ने नारेबाजी की। इससे स्थानीय लोगों को लगा कि यह भीड़ मस्जिद को नुकसान पहुंचाने आई है। इस भ्रम और उत्तेजना ने हिंसा को जन्म दिया।”

उन्होंने कहा कि विष्णु शंकर जैन के खिलाफ राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (रासुका) के तहत कार्रवाई होनी चाहिए। “दंगा कराना इनका पेशा बन गया है। ये बाप-बेटा मिलकर दंगे करा रहे हैं। इनके खिलाफ मामला इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस में ले जाना चाहिए।”

मोहम्मद यासीन ने बनारस के ज्ञानवापी विवाद का हवाला देते हुए कहा कि, “बनारस में भी इन लोगों ने हंगामा कराने की कोशिश की, लेकिन वहाँ की मुस्लिम समुदाय ने सूझबूझ से स्थिति को संभाल लिया।” उन्होंने अदालत पर भी सवाल उठाए और कहा, “समझ नहीं आता कि इन लोगों की अदालत से क्या ट्यूनिंग है। इनकी बात सुनते ही अदालत तुरंत आदेश दे देती है। बनारस हो या संभल, इनकी रणनीति एक जैसी है। संभल में भी एकतरफा आदेश दिया गया।”

मोहम्मद यासीन ने कहा कि अब वह इस मामले को सुप्रीम कोर्ट में ले जाएंगे। उन्होंने कहा, “हम प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट पर त्वरित सुनवाई की मांग को लेकर याचिका दाखिल करेंगे। यह जरूरी है कि इस कानून को सही तरीके से लागू किया जाए ताकि देश में शांति बनी रहे।”

मोहम्मद यासीन ने संभल और पूरे उत्तर प्रदेश के लोगों से शांति बनाए रखने की अपील की। उन्होंने कहा, “हिंसा किसी समस्या का समाधान नहीं है। सभी पक्षों को शांति और धैर्य का परिचय देना चाहिए। मस्जिद और मंदिर के विवाद को अदालत के जरिए हल करना ही सही तरीका है।”

यह बयान उस समय आया है जब संभल की शाही जामा मस्जिद विवाद ने राज्य और देशभर में चर्चा को गर्म कर दिया है। मुस्लिम पक्ष ने सीधे तौर पर आरोप लगाते हुए इसे एक सोची-समझी रणनीति बताया है, जिसका मकसद सांप्रदायिक ध्रुवीकरण करना है।

संभल दंगे से देशभर में हलचल

उत्तर प्रदेश के संभल जिले में शाही जामा मस्जिद पर सर्वे के दौरान भड़की हिंसा ने राज्य और देशभर में हलचल मचा दी है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने बीजेपी सरकार पर तीखा हमला किया है। उन्होंने इस घटना को दुर्भाग्यपूर्ण बताते हुए सरकार की नीतियों और प्रशासन के रवैये की कड़ी आलोचना की। राहुल गांधी ने इस विषय पर अपने एक्स (पूर्व में ट्विटर) हैंडल पर एक पोस्ट के जरिए अपनी प्रतिक्रिया दी।

राहुल गांधी ने अपने बयान में कहा, “संभल में हाल ही में हुई हिंसा पर राज्य सरकार का पक्षपाती और जल्दबाजी भरा रवैया बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है। हिंसा और फायरिंग में जिन परिवारों ने अपने प्रियजनों को खोया है, उनके प्रति मेरी गहरी संवेदनाएं हैं।”

उन्होंने आगे कहा, “प्रशासन ने बिना सभी पक्षों को सुने असंवेदनशीलता से कार्रवाई की, जिससे हालात और बिगड़े। इस हिंसा में हुई मौतों की सीधी जिम्मेदारी बीजेपी सरकार पर है। भाजपा का सत्ता का उपयोग हिंदू-मुसलमान समाजों के बीच दरार और भेदभाव पैदा करने के लिए किया जा रहा है, जो प्रदेश और देश दोनों के हित में नहीं है।”

राहुल गांधी ने सुप्रीम कोर्ट से इस मामले में हस्तक्षेप करने की अपील करते हुए कहा, “मैं सुप्रीम कोर्ट से अनुरोध करता हूं कि इस मामले में जल्द से जल्द हस्तक्षेप कर न्याय सुनिश्चित करें। मेरी सभी नागरिकों से अपील है कि शांति और आपसी सौहार्द बनाए रखें। हमें मिलकर यह सुनिश्चित करना होगा कि भारत सांप्रदायिकता और नफरत नहीं, बल्कि एकता और संविधान के रास्ते पर आगे बढ़े।”

कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने भी इस मुद्दे पर राज्य सरकार की आलोचना की। उन्होंने अपने एक्स हैंडल पर लिखा, “संभल में उठे विवाद को लेकर राज्य सरकार का रवैया बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है। इतने संवेदनशील मामले में प्रशासन ने बिना किसी जांच और बिना दोनों पक्षों को विश्वास में लिए जल्दबाजी में कार्रवाई की। यह दिखाता है कि सरकार ने खुद माहौल खराब किया।” प्रियंका ने यह भी कहा कि, “सरकार ने जरूरी प्रक्रियाओं और प्रशासनिक कर्तव्यों का पालन करना भी जरूरी नहीं समझा।”

समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने ट्वीट कर सरकार और प्रशासन पर निशाना साधते हुए कहा, “सर्वे के नाम पर तनाव फैलाने की साजिश का सर्वोच्च न्यायालय तुरंत संज्ञान ले। जो लोग भड़काऊ नारे लगाकर माहौल बिगाड़ने पहुंचे थे, उनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए। प्रशासन से किसी निष्पक्षता की उम्मीद नहीं है, सुप्रीम कोर्ट को इस मामले में हस्तक्षेप करना चाहिए।”

इस बीच, जमीयत उलेमा-ए-हिंद के प्रमुख मौलाना अरशद मदनी ने इस घटना को लेकर गंभीर आरोप लगाए। उनका कहना है कि मुस्लिम पक्ष को भरोसे में लिए बिना सर्वे की प्रक्रिया को तेज किया गया। उन्होंने आरोप लगाया कि पुलिस और प्रशासन ने एक सोची-समझी साजिश के तहत यह हिंसा करवाई।

जमीयत का दावा है कि तीन से अधिक लोगों की मौत गोली लगने से हुई है। मदनी ने यह भी मांग की है कि पुलिस और प्रशासन के उन अधिकारियों पर कार्रवाई हो, जिन्होंने अपनी जिम्मेदारियां सही तरीके से नहीं निभाईं। इस बीच, उत्तर प्रदेश के डिप्टी सीएम बृजेश पाठक ने इस घटना पर बयान देते हुए कहा, “न्यायपालिका के आदेश के तहत मस्जिद का सर्वे किया जा रहा था। यह घटना बेहद दुखद है। सरकार निष्पक्ष जांच और कार्रवाई सुनिश्चित करेगी।”

न्याय और निष्पक्षता की मांग

श्री काशी विश्वनाथ मंदिर के पूर्व महंत राजेंद्र तिवारी ने संभल में हुई हिंसा पर गहरी चिंता व्यक्त करते हुए इसे प्रशासनिक विफलता और समाज में बढ़ती धार्मिक असहिष्णुता का परिणाम बताया। उनका कहना है कि यह घटना न केवल कानून-व्यवस्था की कमियों को उजागर करती है, बल्कि यह भी दिखाती है कि समाज में धार्मिक और सामाजिक विभाजन कितनी गहराई तक पहुंच गया है।

महंत राजेंद्र तिवारी ने कहा कि इस मामले की निष्पक्ष जांच और दोषियों को सख्त सजा मिलनी चाहिए। उन्होंने प्रशासन और सरकार से अपील की कि ऐसे विवादों से बचने के लिए समावेशी और संवेदनशील दृष्टिकोण अपनाया जाए। उन्होंने कहा, “आज न्याय प्रक्रिया पर भी सवाल उठ रहे हैं। ऐसा लगता है कि हर स्तर पर निर्णय किसी एक पक्ष के पक्ष में लिए जा रहे हैं। सर्वे हो या न्यायालय के आदेश, सब कुछ पहले से तय लगता है।”

राजेंद्र तिवारी ने इसे एक व्यापक समस्या का हिस्सा बताया। उन्होंने कहा, “आज पूरे देश में इसी तरह का खेल चल रहा है। धर्म और राजनीति के नाम पर सत्ता का दुरुपयोग हो रहा है। यह छद्म लोकतंत्र का विकृत स्वरूप है, जहां लोकतंत्र की आत्मा को मारा जा रहा है।” उन्होंने आगाह किया कि यदि यही स्थिति बनी रही तो जनता की नाराजगी किसी भी समय बड़े आंदोलन का रूप ले सकती है। “हम श्रीलंका और बांग्लादेश जैसे हालात भारत में भी देख सकते हैं।”

महंत तिवारी ने हरिशंकर जैन और विष्णु जैन की नीति और नीयत पर सवाल उठाते हुए कहा कि ऐसा लगता है जैसे वे यह साबित करने में लगे हैं कि वर्तमान सरकार ही “कल्कि अवतार” है। उन्होंने कहा, “यह कलयुग का स्वरूप है, जिसे तुलसीदास ने पहले ही लिख दिया था। चोरी-छिनैती, बलात्कारियों का संरक्षण, साधुओं का दुरुपयोग और धर्म के नाम पर मनमानी – यही आज का न्याय है।”

महंत तिवारी ने सभी समुदायों से शांति बनाए रखने और उकसावे से बचने की अपील की। उन्होंने कहा, “धर्म और राजनीति का यह घातक मेल न केवल समाज के लिए बल्कि देश के भविष्य के लिए भी खतरनाक है। कार्यपालिका और न्यायपालिका ही नहीं लोकतंत्र का चौथा खंभा मीडिया भी पक्षपाती होती दिख रही हैं। धर्म के नाम पर सत्ता का ऐसा उपयोग समाज को कलयुग की ओर धकेल रहा है।”

(विजय विनीत बनारस के वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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