Thursday, March 28, 2024

अंतर्कथा: क्यों पंजाब का रण छोड़ गए चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर?

चंडीगढ़। वर्ष 2016 में पंजाब कांग्रेस ने आगामी 2017 के चुनाव के संदर्भ में आम आदमी पार्टी की बोलती तूती को देखते हुए अपने लिए बंजर सियासी ज़मीन में विजयश्री की फसल उगाने के लिए देश के उस चर्चित चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर की सेवाएं लेने के लिए करोड़ों का अनुबंध किया था जिनके बारे में हर अखबार व चैनल बताते रहे थे कि वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को पूर्ण बहुमत दिलाने में इसी प्रशांत किशोर की रणनीति ने काम किया। यकीन मानिए जीत के जिस आंकड़े को 2017 में पंजाब कांग्रेस ने छुआ था, सामान्य हालात में हुए चुनावी इतिहास (1992 को छोड़कर) में ये कांग्रेस की सबसे बड़ी जीत थी। एक यकीन और जानिए कि 2017 में चुनाव मैदान में उतरी कांग्रेस पार्टी अपनी जीत को लेकर बहुत सारे संदेहों से भरी हुई थी क्योंकि पार्टी को प्रशांत किशोर द्वारा करवाए जा रहे ‘कॉफी विद कैप्टन’ और ‘चाहता है पंजाब कैप्टन की सरकार’ सरीखे आयोजनों से पंजाब के कांग्रेसी खुद ही बेहद असहज थे। फिर ऐसा क्या हुआ कि इसी वर्ष 2021 में पंजाब सरकार में मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह के आधिकारिक सलाहकार का पद प्राप्त करके पंजाब में फिर से कांग्रेस का परचम लहरवाने का ख्वाब देखने वाले प्रशांत किशोर उर्फ पीके को चुनावी कुरुक्षेत्र दिखाई देने से पहले ही रणछोड़ दास बन कर मैदान से भागना पड़ा?

इस कथा को आगे बढ़ाने के लिए कुछ पिछले चुनाव में हुए खेल और कुछ इस बार की कांग्रेस के हालात व कुदरत के इन्साफ के कारण पैदा हुए हालात का विवरण देना पड़ेगा जिसके चलते पीके की रणनीति का शिराजा टूट कर बिखर गया। इस परिस्थिति के तीन कारण प्रमुख रहे। 1. पिछले चुनाव में बदले हालात 2. पावन श्री गुरुग्रंथ साहिब की हुई बेअदबी कांड की विशेष जांच टीम के प्रमुख आईजी व पंजाब कैडर के सबसे चर्चित व अपनी सख्त ईमानदारी के चलते प्रख्यात कुंवर विजय प्रताप सिंह की रिपोर्ट की हाईकोर्ट में मिलजुल कर करवाई गई बेअदबी के कारण कुंवर विजय प्रताप द्वारा पद त्याग देने के कारण बदली परिस्थितियां। 3. कुंवर के त्यागपत्र को वापस करवाने में विफल रही प्रशांत किशोर की रणनीति व उससे उपजे हालात में कांग्रेस में हुई भयानक बगावत।

ये तीनों कारण प्रसंग सहित व्याख्या की मांग करते हैं।

1.पिछले चुनाव में बदले हालात

वर्ष 2017 के चुनाव के आखरी चरण तक कांग्रेस पार्टी की ये मान्यता थी कि आम आदमी पार्टी बाजी ले जाएगी। उस समय जब चुनाव में तीन महीने रहे थे, आम आदमी पार्टी के कुछ पदाधिकारियों द्वारा की गई गलतियों के चलते आप के ग्राफ में कमी आने लगी। उस समय प्रदेश के सियासी माहौल में गुरुग्रंथ साहिब की बेअदबी का मामला बेहद गर्म था जिसके चलते अकाली-भाजपा गठबंधन के नेताओं को पहले विदेशों में धक्के पड़ने व उसके बाद पंजाब में धक्के पड़ने वाले हालात बन गए। तब रणनीतिकार पीके के सुझाव पर कैप्टन अमरिंदर सिंह ने गुटका साहिब (गुरुबाणी के पाठ का सक्षिप्त रूप) हाथ में उठा कर तलवंडी साबो स्थित तख्त श्री दमदमा साहिब के नजदीक हुई चुनावी रैली में कसम खाई कि वे बेअदबी के जिम्मेवारों के हाथों हथकड़ियां लगा कर सलाखों के पीछे भेजेंगे। इसके साथ ही चिट्टे के नशीले कारोबार में लगे सियासतदानों का पर्दाफाश करके पांच हफ्तों में इस घिनौने कारोबार का पंजाब से नामों निशान मिटा दिया जाएगा।

ये प्लान प्रशांत किशोर का था। जिस बेअदबी से सिख संगत आहत है उसी मुद्दे को नया ट्विस्ट देकर लोहे से लोहा काटने के अंदाज में सिखों के वोटों की फसल को काट लिया जाए। ऊपर से कोढ़ में खाज जैसी हालत ये बन गई कि बेअदबी का आधार बने डेरा सच्चा सौदा ने मतदान से पहले अकाली-भाजपा गठबंधन को खुला समर्थन देने की घोषणा कर दी। इसका उलटा प्रभाव ये रहा कि डेरे से नाराज अकाली दल का कट्टर वोट बैंक भी अकाली –भाजपा गठबंधन के पक्ष में नहीं हुआ। आखिरी दौर में अकाली दल का वोट कांग्रेस के पक्ष में पलटवाया गया ताकि आम आदमी पार्टी को सत्ता में आने से रोका जा सके। यहां तक तो हालात ही कांग्रेस के पक्ष में मुड़ते गए व जीत का सेहरा प्रशांत किशोर की रणनीति के सिर बंध गया।

2. पावन श्री गुरुग्रंथ साहिब की हुई बेअदबी कांड की विशेष जांच टीम के प्रमुख आईजी व पंजाब कैडर के सबसे चर्चित व अपनी सख्त ईमानदारी के चलते प्रख्यात कुंवर विजय प्रताप सिंह की रिपोर्ट की हाईकोर्ट में मिलजुल कर करवाई गई बेअदबी के कारण कुंवर विजय प्रताप द्वारा पद त्याग देने के कारण बदली परिस्थितियां।

अब हुआ यूं कि बेअदबी मामले की जांच के लिए एक स्पेशल इनवेस्टीगेशन टीम का गठन किया गया ताकि हुए सारे प्रकरण का असल सत्य जनता के सामने लाया जा सके। टीम में कई वरिष्ठ अधिकारी थे जिनमें एक थे आईजी कुंवर विजय प्रताप सिंह। जब जांच का दायरा बढ़ता हुआ सूबे के बड़े सियासी लोगों की तरफ जाने लगा तो एक-एक करके अधिकारी खुद ही पीछे हटते गए। उस दौर में कुंवर विजय प्रताप सिंह ने दृढ़ता दिखाई तो उन्हें सरकारी भाषा में समझाया भी गया व डराया भी गया पर उन्होंने बिना किसी हिचक के जांच कार्य जारी रखा। उसका नतीजा ये रहा कि उस मामले की जांच रिपोर्टों के आधार पर निचली अदालत में ट्रायल शुरु हो गया। अभी तक पंजाब के लोगों को ये अहसास हो रहा था कि बेअदबी मामले पर जांच चल रही है व सही हाथों में है।

अचानक एक पूर्व छोटे थानेदार द्वारा हाईकोर्ट में इस जांच को लेकर जनहित याचिका डाली जाती है व उसकी पैरवी के लिए जब दो दो पूर्व एडवोकेट जनरल हाईकोर्ट में हाजिर होते हैं तो सभी को बहुत हैरानी होती है। इसका सीधा सा मतलब ये ही निकलता है कि बेहद प्रभावशाली लोग पूर्व पुलिस मुलाजिम के कंधों पर रख कर अपनी बंदूक चला रहे हैं। कुंवर की जांच के खिलाफ हुई इस याचिका में कैसे संबंधित पात्रों का आचरण एक अलग टीम के रूप में दिखाई पड़ता है कि पंजाब सरकार के मुखिया तो कुंवर के अनुरोध पर बार बार कानूनी टीम को हाईकोर्ट में सही पक्ष रखने के आदेश देते हैं और कैसे मौजूदा एडवोकेट जनरल अतुल नंदा का हर पेशी पर पेट खराब होता है वो अपनी योग्यता पर खुद ही सवालिया निशान लगाते हुए दिल्ली के वकीलों को पैरवी करने के लिए हायर करवाते हैं।

ये सब बातें रिकार्ड पर हैं कि किस प्रकार दिल्ली वाले वकील जिनकी एक पेशी का खर्चा पचपन लाख के करीब होता है वे कैसे दिल्ली में केस पर विचार करने गए कुंवर विजय प्रताप को दस मिनट से ज्यादा समय नहीं देते थे व केस की प्रोसीडिंग से संबंधित कुंवर के सुझाव को सुनने का नाटक किया करते थे। वो भी सिर्फ दो से तीन मिनट का। इस सारी कथा से क्या यह नहीं दिखाई पड़ता कि ये भी एक रणनीति के तहत किया जा रहा था जिसमें सत्ता पक्ष और केस में फंस रहे विरोधी सारा खेल खेल रहे थे। इस रणनीति का बंटाधार तब होता है जब हाईकोर्ट सारी कौरव सेना की चालों से जाने अनजाने कुंवर की जांच को रद्द कर देता है। इस फैसले पर हालांकि मुख्यमंत्री अमरेंद्र सिंह खुद ये बयान देते हैं कि हाईकोर्ट का फैसला राजनीति से प्रेरित है व इसकी पैरवी के लिए सरकार सुप्रीम कोर्ट जाएगी। पर सरकार इस तरफ कदम नहीं उठाती तथा सारे प्रकरण से आहत कुंवर आईजी के डेकोरेटेड पद के अफसर आईपीएस की नौकरी का त्याग कर सत्ता के इस खेल को नंगा करके अपने घर बैठ जाते हैं। यही वो प्वाइंट है जहां से पंजाब सरकार के रणनीतिक सलाहकार प्रशांत किशोर के रणछोड़ बनने की बुनियाद बनता है। तेज तरार्र पीके ये तथ्य जानते थे कि बेअदबी कांड की दबी चिनगारी को हाईकोर्ट के फैसले ने तो फिर से भड़का ही दिया है इसके बाद यदि कुंवर नौकरी छोड़ गए तो ये मामला ऐसा तूफान खड़ा करेगा जिसमें कांग्रेस की लुटिया तो डूबनी तय है क्योंकि हाथ में गुटका साहिब देख कर कैप्टन से बेअदबी कांड हल करवाने का आइडिया भी उन्हीं का ही था।   

3. कुंवर के त्यागपत्र को वापस करवाने में विफल रही प्रशांत किशोर की रणनीति व उससे उपजे हालात में कांग्रेस में हुई भयानक बगावत:

प्रशांत किशोर बहुत कोशिश करते हैं कि किसी भी तरह से कुंवर का त्यागपत्र वापस हो जाए और वे पद पर बने रहें। परंतु कुंवर मुख्यमंत्री के अत्यधिक आग्रह के बावजूद अपना फैसला नहीं बदलते। इस त्यागपत्र के बाद पंजाब में ऐसा सियासी तूफान खड़ा होता है जैसा पहले कभी न हुआ हो। नवजोत सिद्धू को जो डेढ़ साल से अपने घर पर मौन धारण किए हुए होते हैं उन्हें इन हालात की संजीवनी मिल जाती है व वे खुल कर कैप्टन अमरिंदर पर हमले करने शुरु कर देते हैं। असल में कुंवर विजय द्वारा हालात को देखते हुए राजनीति में उतरने का लिया गया फैसला व आम आदमी पार्टी में शमिल होने जैसा कदम तथा दूसरी तरफ कैप्टन के मंत्रियों व साथियों की बगावत के चलते सिद्धू का प्रधान बनना तो घटित हुआ। इसका बॉय प्रॉडक्ट ये हुआ कि बेअदबी का मुद्दा पंजाब की सियासत में सबसे बड़ा मुद्दा बन चुका है और इस मामले में ईमानदारी व निष्ठा से काम करने व इसके अंजाम से हताश कुंवर बेअदबी मुद्दे का पाजिटिव आईकॉन बन कर सामने खड़े हैं। अपनी शातिर व मौके पे चौका मारने वाली सलाहकारी से रोजी रोटी कमाते प्रशांत किशोर को इतना तो समझ में आ गया कि आगे का पंगा न लिया जाए क्योंकि पराजित व्यक्ति के मुकाबले भगोड़े की संभावनाएं थोड़ी सी ज्यादा भी हो सकती हैं। यदि वे न भागते तो ये तय था कि पीके जो अजेय रणनीतिकार के तौर पर स्थापित थे, पंजाब उनके माथे पर पराजित का काला तिलक लगा कर ही रवाना करता।

(चंडीगढ़ से वरिष्ठ पत्रकार अर्जुन शर्मा की रिपोर्ट।)   

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