आईटी कंपनियों की गिरती छवि से भारत की प्रतिष्ठा संकट में

नई दिल्ली। भारत की कुछ आईटी कंपनियों पर लगे अनैतिक कार्यप्रणालियों के आरोपों ने देश की वैश्विक छवि को गंभीर चुनौती दी है। इन कंपनियों पर भाई-भतीजावाद और आंतरिक साँठगाँठ से काम हथियाने के आरोप हैं, जिससे भारत की विश्वसनीय डिजिटल टैलेंट हब की पहचान खतरे में पड़ सकती है।

सन् 2023 में भारत की सबसे बड़ी आईटी सेवा कंपनी टीसीएस में सामने आया ‘ब्राइब्स फॉर जॉब्स’ घोटाला इस संकट का पहला बड़ा संकेत था। टीसीएस की आंतरिक जाँच में सामने आया कि हैदराबाद की ‘फॉरे सॉफ्टवेयर प्राइवेट लिमिटेड’ और बेंगलुरु की ‘टैलटेक टेक्नोलॉजीज प्राइवेट लिमिटेड’ ने वरिष्ठ अधिकारियों को रिश्वत देकर अनुबंध हासिल किए। इन कंपनियों को अन्य 1000+ सब-वेंडर्स की तुलना में पहले से स्टाफिंग की ज़रूरतों की जानकारी दी जाती थी, जिससे ये प्रतिस्पर्धा से बाहर हुए बिना सीधे काम हासिल कर लेती थीं।

जाँच के बाद टीसीएस ने इन दोनों कंपनियों और उनसे जुड़े अधिकारियों को काली सूची में डाल दिया। कई अन्य बहुराष्ट्रीय आईटी कंपनियों ने भी फॉरे सॉफ्टवेयर और इसके संस्थापक वासु बाबू वज्जा को काली सूची में शामिल किया। लेकिन मामला यहीं नहीं रुका। बेंगलुरु स्थित उद्योग विश्लेषक लक्ष्मण बाबू के अनुसार, “फॉरे सॉफ्टवेयर अब भी भारत और विदेशों में काम कर रही है और वेंडर सिस्टम की खामियों का फायदा उठाकर फॉर्च्यून 500 कंपनियों को गुमराह कर रही है।”

इस कंपनी की अमेरिका की ईएस सर्च कंसल्टेंट्स (ES Search Consultants) के साथ साझेदारी भी जाँच के दायरे में है। यह कंपनी टेक्सास में आधारित है और इसके मालिक पति-पत्नी मधु कोनेनी और मृदुला मुनगला हैं।

भर्तियों में गड़बड़ियाँ और एच1बी का दुरुपयोग

पूर्व कर्मचारी देबाशीष पंड्या का कहना है कि एक बार ईएस सर्च का कोई कर्मचारी किसी अमेरिकी कंपनी में नियुक्त हो जाता है, तो वह भर्ती प्रक्रिया को प्रभावित करता है। योग्य अमेरिकी नागरिकों को जानबूझकर अस्वीकार किया जाता है ताकि ‘कमी’ का माहौल बनाया जा सके और फिर फॉरे सॉफ्टवेयर से जुड़े एच1बी वीजाधारी उम्मीदवारों को ऊँचे बिलिंग रेट्स पर पेश किया जाए।

समाचार एजेंसियों के अनुसार, वास्तव में इन उम्मीदवारों को कम वेतन दिया जाता है, जिससे ईएस सर्च का मुनाफा बढ़ता है। इस तरह की गतिविधियाँ न केवल अमेरिकी आप्रवास नियमों का उल्लंघन करती हैं, बल्कि अन्य भारतीय कंपनियों को भी नुकसान पहुँचाती हैं।

एच1बी रिकॉर्ड के अनुसार, ईएस सर्च ने WW Grainger और 7-Eleven जैसी कंपनियों को ‘सेकेंडरी एंटिटी’ बताया है—यानी ऐसे स्थान जहाँ कर्मचारी को तैनात किया जाता है। दिलचस्प बात यह है कि मधु कोनेनी स्वयं WW Grainger में पूर्णकालिक नौकरी करती हैं, जिससे हितों के टकराव और पारदर्शिता पर सवाल उठते हैं।

फॉरे और ईएस सर्च केवल अपने करीबी रिश्तेदारों और दोस्तों को ही भर्ती करते हैं। इस “तेलुगु माफिया” मॉडल के कारण देश के अन्य हिस्सों के योग्य इंजीनियरों को अवसर नहीं मिल पाते और निष्पक्ष प्रतिस्पर्धा प्रभावित होती है। गुरुग्राम स्थित टेक उद्यमी विश्वास कुमार, जिन्होंने अमेरिका का एक प्रोजेक्ट ऐसे ही अनैतिक नेटवर्क के चलते गँवाया, ने कहा, “भारत की आईटी इंडस्ट्री की नींव ईमानदारी और कौशल पर टिकी है। कुछ लालची लोगों के कारण पूरे देश की साख दाँव पर लग सकती है।”

कुमार का कहना है कि भारत इस समय अमेरिका के साथ कुशल कार्यबल, डिजिटल गवर्नेंस, और प्रौद्योगिकी सहयोग के नए अध्याय खोल रहा है। ऐसे में किसी भी तरह की अनैतिकता भारत की विश्वसनीयता को नुकसान पहुँचा सकती है।

(प्रेस विज्ञप्ति)

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