हिमाचल में बारिश और भूस्खलन से 41 लोगों की मौत, उत्तराखंड में भी तबाही का मंजर

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नई दिल्ली। बरसात का कहर जारी है। मैदानी इलाकों में स्थिति सामान्य हो चुकी है लेकिन पिछले 3 दिनों से उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश में मूसलाधार बारिश जारी है। लेकिन देश में खबर तब बनती है जब लोग मरते हैं। चूंकि एक बार फिर से जान-माल की हानि की खबर आने लगी है, इसलिए नेशनल मीडिया के लिए इस न्यूज़ देना जरूरी हो गया है।

उत्तराखंड से खबर आ रही है कि बद्रीनाथ, केदारनाथ और गंगोत्री हाईवे में जगह-जगह भू-स्खलन हुआ है। कई भवन क्षतिग्रस्त हो चुके हैं, 3 लोगों की मौत की खबर है और 5 से अधिक लोग जख्मी हालत में हैं। लगातार भारी बारिश के चलते देहरादून के बाहरी क्षेत्र में बने एक प्राइवेट डिफेंस ट्रेनिंग एकेडमी भी ढह गई है। एक बड़ा भवन अचानक भरभराकर ताश के पत्तों की मानिंद जमींदोज हो गया।

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने हालात की समीक्षा के लिए वरिष्ठ अधिकारियों के साथ बैठक की और स्थिति पर लगातार अपनी नजर गड़ाए हुए हैं। अब नजर रखने और जायजा लेने से क्या होगा, वो चाहे उत्तराखंड हो या हिमाचल प्रदेश हो, लेकिन चूंकि सरकारी भाषा में यही सब कहा जाता है, इसलिए यहां भी यही कहना उचित होगा।

इससे सरकार इस निष्कर्ष पर पहुंची है कि फिलहाल चारधाम यात्रा पर 2 दिनों की रोक लगाई जाती है। देहरादून को ऋषिकेश से जोड़ने वाली सड़क भोगपुर गांव के पास बीच से गायब हो चुकी है। सड़क का एक बड़ा हिस्सा जाने कहां बिला गया है। सहज अनुमान लगाया जा सकता है कि पानी का दबाव कितना ज्यादा रहा होगा, जिसने करीब 10 फीट ऊंची सड़क की सारी मिट्टी को काट डाला और सड़क पूरी तरह से गायब हो चुकी है। इसके पुनर्निर्माण में कितना समय लगेगा, यह तो सड़क निर्माण विभाग ही बता सकता है। 

इतना ही नहीं टिहरी में शिवपुरी में टनल निर्माण का काम चल रहा था। वहां पर अचानक से पानी भर जाने के कारण टनल में कार्यरत 114 इंजीनियर और मजदूर फंस गये। टनल निर्माण का ठेका एल एंड टी के पास है। कंपनी प्रबंधक अजय प्रताप ने खबर की कि टनल नंबर एडिट-2 में उनके इंजीनियर और मजदूर करीब 300 मीटर अंदर फंस गये हैं। टनल में तब तक 4 मीटर पानी भर गया था। एसडीआरएफ की टीम और पुलिस के द्वारा पोकलेन की मदद से रेस्क्यू का काम शुरू किया गया, और खबर है कि सभी 114 लोगों को सुरक्षित बाहर निकाल लिया गया है।

मौसम विभाग की ओर से राज्य में 15 अगस्त तक के लिए रेड अलर्ट जारी किया गया है। देहरादून, टिहरी गढ़वाल, पौड़ी, नैनीताल, उधमसिंह नगर और चम्पावत के लिए रेड अलर्ट जारी किया गया है। भारत-चीन सीमा पर नेलंग घाटी में चोरगाड नदी पर बना ब्रिज ढहने से सेना और आईटीबीपी के जवानों का हिमाचल प्रदेश को जोड़ने वाला संपर्क मार्ग नहीं रहा और अंतर्राष्ट्रीय सीमा से संपर्क टूट गया है। जोशीमठ के गांवों में एक बार फिर से दरार आने की खबर आ रही है। कई परिवार सुरक्षित ठिकानों की तलाश में अपने घरों को छोड़कर पलायन कर चुके हैं। 

हिमाचल में भारी बारिश, 41 लोगों की मौत

हिमाचल में भारी बारिश और भू-स्खलन से अब तक 41 लोगों की मौत की खबर आ रही है, यह संख्या अभी बढ़ सकती है। तबाही शिमला शहर तक पहुंच गई है। जगह-जगह पेड़ गिरे हैं, जिससे मकानों और वाहनों को भारी नुकसान हुआ है। यहां भी मुख्यमंत्री सुक्खू हालात का जायजा ले रहे हैं, और बाहर निकलकर भी स्थितियों का अवलोकन कर रहे हैं।

उप-मुख्यमंत्री मोटरसाइकिल पर निकलकर सड़क मार्ग की दुर्दशा का जायजा ले रहे हैं। जायजा लेने के बाद उनका भी वही आकलन है जो खबरों के जरिये राज्य के लोगों को जानकारी मिल रही है। उन्होंने बताया है कि अगले दो दिन भी भारी बारिश की संभावना है। लेकिन उन्होंने अपने फैसले में बताया है कि स्कूलों की एक दिन छुट्टी की जाती है। जब बारिश दो दिन होनी है, जगह-जगह सड़क टूट रही है, पेड़ गिर रहे हैं, लोग मारे जा रहे हैं तो एक की जगह 2 दिन की छुट्टी कर सकते थे। लेकिन नहीं, उसका फैसला कल लेंगे।

आज सुबह एक ट्विटर यूजर ने हिमाचल प्रदेश के विभिन्न जिलों का हाल बताने वाला वीडियो और तस्वीरें ट्वीट करते हुए लिखा है, “यह वह कीमत है जो हिमाचल प्रदेश ने अनियोजित विकास और अनियंत्रित पर्यटन के लिए चुकाई है। हमें यह समझने की जरूरत है कि पहाड़ एक्सप्रेस-वे और फ्लाईओवर के लिए नहीं बने हैं। वे शक्तिशाली और सुंदर अविचल खड़े होने के लिए बने हैं। लेकिन तमाम चेतावनियों के बावजूद इस सप्ताहांत में पर्यटकों का सैलाब हिमाचल प्रदेश में उमड़ पड़ा था। करीब 20 मौतें और राज्य में अभी भी गिनती जारी है। यह मंडी, सोलन और शिमला से सोमवार की सुबह की तबाही का दृश्य है।”

हिमाचल के हालात इस बार उत्तराखंड से काफी खराब हैं। सैकड़ों राजमार्ग खत्म हो गये। पुल, पुलिया का अस्तित्व मिट गया। हिमाचल प्रदेश का नुकसान पिछले माह ही 10,000 करोड़ रुपये लगाया गया था। अभी मानसून जारी है, और हिमाचल प्रदेश को इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ रही है।

इतना ही नहीं, भूस्खलन के चलते यूनेस्को की ओर से विश्व धरोहर घोषित 120 साल पुराना कालका-शिमला रेलवे ट्रैक पर जो रेल की पटरियां थीं, वे हवा में लटक रही हैं। नीचे की सारी मिट्टी और ट्रैक न जाने रातों-रात गायब हो चुका है। पानी और मलबे का रेला इतना भयानक था कि इसने समूचे इलाके की स्थिति को पूरी तरह से बदलकर रख दिया है। भारी बारिश की स्थिति देखते हुए कंडाघाट-शिमला के बीच ट्रेनें रद्द कर दी गई हैं। अब दुबारा कब स्थिति सामान्य होगी, कहा नहीं जा सकता है।

उधर बिहार से भी बुरी खबर आ रही है। बिहार सरकार ने भी कोसी बैराज से पानी छोड़े जाने पर अलर्ट की चेतावनी जारी कर दी है। इसका अर्थ यह है कि नेपाल में भारी बारिश के चलते वहां पर नदियां उफान पर हैं और अब जल-स्तर इतना अधिक बढ़ गया है कि यदि पानी नहीं छोड़ा गया तो बैराज टूट सकता है। बताया जा रहा है कि सुपौल जिले के बीरपुर में रविवार रात को 4.62 लाख क्यूसेक पानी छोड़ा गया है, जो पिछले 30 वर्षों में सबसे अधिक है। सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है कि बिहार के निचले इलाके वाले अधिकांश जिलों के करोड़ों लोगों और पशुओं को अगले 15-30 दिनों तक किन हालातों से दो-चार होना पड़ सकता है।

कुल मिलाकर कहें तो देश के तमाम राज्यों में सरकारें जिस प्रकार से बुलडोजर न्याय चला रही हैं, उसकी तुलना में दस गुना तबाही बारिश के चलते हो रही है। इसमें सड़कों, पुलिया और ब्रिज इत्यादि की तो बात ही न करें, क्योंकि इनकी तबाही हजारों करोड़ रुपये की है। इनमें से कई राजमार्ग तो हाल ही में कई हजार करोड़ रुपये की लागत से बनाये गये थे। विशेषज्ञ अब कह रहे हैं कि भारत ही नहीं बल्कि विश्व में राजमार्गों और पुलों का निर्माण ग्लोबल वार्मिंग से होने वाली तबाही को ध्यान में रखकर बनाया ही नहीं गया था। पुनर्निर्माण में लाखों करोड़ रुपये की जरूरत होगी।

दुनियाभर के मौसम विशेषज्ञ एवं जलवायु विज्ञानी चेतावनी जारी कर रहे हैं कि ग्लोबल वार्मिंग का सबसे बड़ा शिकार होने वाले देशों में भारत तीसरे स्थान पर बना हुआ है। अभी हाल ही में बीजिंग में हुई भारी बारिश ने पिछले सभी रिकॉर्ड तोड़ दिए थे। 24 घंटे में 18-20 इंच बारिश ने वहां भारी तबाही तो मचाई लेकिन करीब 25 लोगों को ही अपनी जान गंवानी पड़ी थी। इसकी तुलना में भारत में 4-6 इंच की बारिश भारी तबाही का सबब बन जाती है।

ग्लोबल वार्मिंग तेजी से बढ़ रही है, ग्लेशियर पिघल रहे हैं। बारिश में तेजी और बादल फटने की घटनाओं में वृद्धि के मद्देनजर देश की कोई तैयारी नहीं है। हमारे सड़क, बांध, बिजली घर के डिजाइन इसके लिए नहीं बने हैं। बंगाल की खाड़ी और तमिलनाडु से लेकर गुजरात तक का समुद्री तट का हिस्सा समुद्र में पानी के बढ़ने से तबाही की ओर धीरे-धीरे बढ़ रहा है।

हमारी सरकार 24 घंटे चुनावी मुद्रा में दिखाई देती है। उसके लिए एक चुनाव जीतने के बाद अगले 5 साल बाद के चुनाव जीतने की रणनीति ही असली विकास की कहानी बन चुकी है। साल दर साल मौसम की मार में तेजी से इजाफा हो रहा है। इसके लिए केंद्र सरकार और विपक्षी दलों से अपेक्षा करने के बजाय भारत के नागरिकों को ही सोचना और फैसला लेना होगा कि उन्हें कैसा विकास चाहिए?

आज विकास और कल महाविनाश की जगह प्रकृति के साथ साहचर्य और सह-अस्तित्व ही हमें और मानव सभ्यता को बचाएगा, इसे जितनी जल्दी हम समझ लेंगे उतना ही अच्छा है। शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व हमें समाज के भीतर भी लाना है और मनुष्य और प्रकृति के साथ भी, जिसकी जरूरत आज से पहले कभी भी इतनी अधिक नहीं थी।

(रविंद्र पटवाल जनचौक की संपादकीय टीम के सदस्य हैं।) 

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