मोदी सरकार ने प्याज पर लगाई 40 फीसदी एक्सपोर्ट ड्यूटी, सड़क पर उतरे किसान

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नई दिल्ली। 21 अगस्त को एशिया की सबसे बड़ी प्याज मंडी नासिक में व्यापारियों और किसानों ने बाजार बंद रखा, और प्याज की खरीद और बिक्री को तब तक बंद रखने की शपथ ली है, जब तक 40% एक्सपोर्ट ड्यूटी हटा नहीं ली जाती है। खबर है कि नासिक की एक मंडी को छोड़ सभी 15 मंडियों में सोमवार कोई काम नहीं हुआ। ऐसा कहा जा रहा है कि एक्सपोर्ट ड्यूटी के बाद से नासिक मंडी में 5 रुपये किलो बिकने वाले औसत प्याज के दाम में 2 रुपये तक कमी आ चुकी है। फिलहाल प्याज की कीमतें स्थिर बनी हुई हैं, जिसकी वजह किसानों द्वारा प्याज की आपूर्ति पर रोक और बाजार की तालाबंदी को बताया जा रहा है। किसान नेताओं का मानना है कि यदि ड्यूटी नहीं हटाई गई और बाजार फिर से खुल जाते हैं तो दाम और अधिक गिर सकते हैं।

जून माह में जब टमाटर के दाम बढ़ने शुरू हुए थे तो मोदी सरकार की ओर से पहले सप्ताह कोई प्रतिक्रिया नहीं आई थी। खाद्य एवं उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय के हवाले से 4-5 दिन बाद एक बयान आया था कि टमाटर उत्पादक राज्यों में भारी बरसात की वजह से सप्लाई चैन बाधित हुई है, जिसे अगले 10-15 दिन के भीतर दुरुस्त हो जाने की उम्मीद है। तब टमाटर 30 रुपये किलो से 100-120 रुपये प्रति किलो हो चुका था। 3 महीने से टमाटर 30 रुपये से 80 फिर 120 फिर 200 से 250 रुपये प्रति किलो पहुंच गया और अब दामों में गिरावट आ रही है, लेकिन अभी भी दाम 80 रुपये प्रति किलो है, जो देश की 80% आबादी की पहुंच से टमाटर को कोसों दूर बनाये हुए है।

लेकिन कोई हंगामा नहीं मचा। लेकिन यही बात प्याज के बारे में नहीं कह सकते। टमाटर के बिना भी गुजारा कर लिया गया, लेकिन प्याज की महंगाई की मार का हिसाब जब जनता देने पर आती है तो सरकार ही पलट देती है। भारत में पहले भी प्याज के आंसू रोते दलों को देखा गया है। यही वजह है कि जैसे ही महाराष्ट्र की प्याज मंडी में अगस्त के मध्य में दाम बढ़ने शुरू हुए थे, केंद्र सरकार के कान खड़े हो गये थे। वित्तीय समाचार पत्रों में भी खबर थी कि प्याज की आवक बढ़ने के बावजूद दामों में तेजी देखने को मिल रही है।

इसी के मद्देनज़र केंद्र ने प्याज के निर्यात पर 40% ड्यूटी लगाने का फैसला लिया है।

मोदी सरकार को बखूबी पता है कि टमाटर को लेकर भले ही आम लोग सड़कों पर नहीं उतरे हैं, लेकिन उनके आहार से टमाटर गायब हो चुका है। इसका मलाल उन्हें है और वे इसके लिए सरकार को भी कहीं न कहीं दोषी मान रहे हैं। लेकिन गेहूं, चावल, आलू और प्याज के दाम यदि टमाटर की तरह 800% की वृद्धि हो जाये तो सरकार पर कहर टूट सकता है। ये वे अनाज और खाद्यान्न हैं, जिनके बिना देश में भुखमरी की स्थिति उत्पन्न हो सकती है। सरकार ने गेहूं और चावल के निर्यात पर रोक पहले ही लगा दी थी, इसके साथ अब प्याज पर 40% एक्पोर्ट ड्यूटी लगाकर जनता के कहर से खुद को बचाने की तैयारी शुरू कर दी है। निर्यात पर 40% टैक्स की दर 19 अगस्त से लागू हो गई है।

लेकिन चुनावी वर्ष में शहरी मध्य वर्ग और आम जनता को राहत पहुंचाने की यह कवायद प्याज के कारोबार से जुड़े व्यापारियों, आढ़तियों और किसानों को रास नहीं आ रही है। उनका साफ़ कहना है कि पिछले 2 वर्ष से प्याज के दाम बेतहाशा गिरे हैं, जिसके चलते लागत तक नहीं मिल पाई है। बड़ी संख्या में किसानों को कर्ज के नए दुश्चक्र में फंसने को मजबूर होना पड़ा है। आज जब प्याज के दाम कुछ दिनों से उठने शुरू हुए थे, सरकार ने तत्काल कार्रवाई करते हुए निर्यात पर लगाम लगा दी है।

विपक्ष ने भी किसानों को अपनी नाराजगी को आगामी लोकसभा चुनावों में वर्तमान सरकार के खिलाफ वोट डालने के रूप में दिखाने की अपील की है। अंग्रेजी समाचारपत्र द इकोनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार कुछ भाजपा नेताओं ने भी इस बात को स्वीकार किया है कि एक्सपोर्ट ड्यूटी लगाना किसानों के साथ अनुचित होगा।

महाराष्ट्र राज्य प्याज उत्पादक संघ के अध्यक्ष भरत दिघोले के अनुसार, “प्याज पर एक्सपोर्ट ड्यूटी का केंद्र का फैसला किसानों के लिए आर्थिक नुकसान का कारण बनेगा। बेमौसम बारिश एवं अंधड़ के चलते पहले ही प्याज के उत्पादन पर विपरीत असर पड़ा था, और बारिश के कारण किसानों द्वारा प्याज के भंडारण में रखा प्याज भी बड़ी मात्रा में खराब हो गया है।”

देश में प्याज उत्पादन के मामले में महाराष्ट्र नंबर 1 पर है। देश में 35-40% प्याज का उत्पादन अकेले महाराष्ट्र राज्य में होता है। भाजपा नेतृत्व का मानना है कि अगले वर्ष लोकसभा चुनाव से पहले प्याज के दामों में तेजी शहरी मध्य वर्ग को प्रभावित कर सकती थी, जिसे रोकने के लिए निर्यात पर प्रतिबंध लगाया गया है, लेकिन साथ ही वे इस बात को भी स्वीकार कर रहे हैं कि इस कदम से किसानों को भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है।

पूर्व केंद्रीय राज्य मंत्री एवं भाजपा नेता सुभाष भामरे अपनी पार्टी के अन्य नेताओं की तुलना में कहीं ज्यादा बेबाकी से इस बात को स्वीकार करते हुए कहते हैं, “यह कदम किसानों के लिए अन्यायपूर्ण है। मैं इस मुद्दे पर वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल से मुलाकात करूंगा।”

महाराष्ट्र में वर्ष में 3 बार प्याज की फसल उगाई जाती है। बरसात के सीजन में दो बार और जाड़े में एक बार। इस बार राज्य के कुछ हिस्सों में बारिश सामान्य से 18% कम हुई है, जिसके चलते फसल प्रभावित हुई है। सरकार को भी अंदाजा है कि उत्पादन में कमी प्याज की तेज महंगाई को दावत दे सकती है, जिसके लिए उसकी ओर से निर्यात पर ड्यूटी लगाकर रोकथाम को प्रभावी स्तर पर अमल में ला दिया गया है।

उधर केंद्रीय वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने अपने बयान में कहा है कि “इस वर्ष सरकार ने 3 लाख टन प्याज की खरीद की है, जिससे किसानों को अच्छा दाम मिले इसे सुनिश्चित किया है। पिछले कुछ समय से देश में प्याज के दाम बढ़ने की सूचना आ रही थी, इसके पीछे खराब मौसम, बुआई में देरी रही है। इसे ध्यान में रखते हुए सरकार ने प्याज के निर्यात पर एक्सपोर्ट ड्यूटी 40% लगाने का फैसला लिया है।

इस कदम से किसानों को कोई नुकसान न हो, उसके लिए 3 लाख की जगह अब 5 लाख टन प्याज की खरीद का फैसला लिया गया है। हमने 2410 रुपये प्रति क्विंटल पर प्याज की खरीद कर ऐतिहासिक मूल्य दिया है। अगर जरूरत पड़ी तो इस खरीद की सीमा को और बढ़ाया जा सकता है। केंद्र सरकार नैफेड के माध्यम से आम उपभाक्ताओं के लिए 25 रुपये किलो की दर पर प्याज की आपूर्ति शुरू कर दी है।”

कहना न होगा, चावल और गेहूं के बाद अब प्याज के दामों को लेकर मोदी सरकार की संवेदनशीलता शहरी मध्य वर्ग एवं आम उपभोक्ताओं के मतों को ध्यान में रखकर सामने आई है। एक समझ यह भी बनी है कि ग्रामीण किसान तो पहले से ही खेती में घाटे और ऋण ग्रस्तता के बोझ से घिरा है। शहरी मध्य वर्ग को आसमान छूती महंगाई और भ्रष्टाचार जैसे मुद्दे बेहद संवेदित करते हैं, और यही वह समुदाय है जो बड़े पैमाने पर खबरों को वायरल करने से लेकर माहौल बनाता है। ऐसे में मध्य वर्ग के गुस्से को यदि काबू में रखा जा सके तो कुछ समय के लिए व्यापारियों और निर्यातकों के हितों की अनदेखी करना लाभदायक ही रहेगा।

(रविंद्र पटवाल ‘जनचौक’ की संपादकीय टीम के सदस्य हैं।)

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