तेलंगाना में कांग्रेस के पक्ष में अल्पसंख्यकों के झुकाव से बीआरएस में मची खलबली

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नई दिल्ली। तेलंगाना विधानसभा चुनाव के लिए कांग्रेस की तैयारियों को देखकर सत्तारूढ़ भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) में खलबली है। आगामी चुनाव को देखते हुए कांग्रेस अल्पसंख्यकों, दलितों, युवाओं और महिलाओं पर फोकस कर रही है। कांग्रेस की तेलंगाना में बढ़ती सक्रियता को देखकर बीआरएस को यह डर सताने लगा है कि इस बार चुनाव में मुस्लिम मतों का एक बड़ा हिस्सा उसके पाले से खिसक सकता है।  

दरअसल, सोमवार को कांग्रेस ने ‘अल्पसंख्यक घोषणा समिति’ के विषय पर पहली बैठक आयोजित की। इस बैठक में तय किया गया कि पार्टी कार्यकर्ता समाज के विभिन्न समुदायों के बीच पहुंचने की कोशिश करें और वर्तमान में उन्हें किस तरह की दिक्कतों को सामना करना पड़ रहा है उसका डेटा एकत्र करें। राज्य चुनाव से पहले कांग्रेस के घोषणापत्र में इन समस्याओं के मुख्य बिंदुओं और कांग्रेस की सरकार बनने पर उसे हल करने के लिए क्या किया जाएगा, इसकी घोषणा होगी।

अल्पसंख्यक घोषणा समिति के अध्यक्ष के तौर पर कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व मंत्री मोहम्मद अली शब्बीर को चुना गया है, सोमवार को हुई बैठक में एआईसीसी के राज्य प्रभारी माणिकराव ठाकरे और सचिव मंसूर अली खान ने भाग लिया था। हाल में ही मंसूर अली खान को अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी (एआईसीसी) का सचिव नियुक्त किया गया है।

मोहम्मद अली ने बताया कि करीब तीन घंटा तक चली चर्चा में ईसाई और मुस्लिम संगठनों के पेशेवरों, नागरिक समाज के लोगों और अल्पसंख्यक संस्थानों के प्रतिनिधियों के सुझावों पर गौर किया गया।  

मोहम्मद अली ने आगे कहा कि इस बैठक से निकलकर आई बातों का एक मसौदा इस महीने के अंत तक तैयार हो जाएगा, जिसके बाद पार्टी के वरिष्ठ नेताओं द्वारा मसौदे को देखा जाएगा और फिर इसे जनता के बीच ले जाया जाएगा।

कांग्रेस और गठबंधन के नेताओं द्वारा विभिन्न समुदाय तक पहुंचने की पहल जल्द ही शुरु होगी। जिसके तहत हरेक जिले में विभिन्न समाजसेवी और अल्पसंख्यकों के नेताओं से मिलना शुरु करेंगे। पार्टी कार्यालय में एक विशेष डेस्क का गठन किया जाएगा, ताकी समूहों के साथ-साथ व्यक्तियों से प्रतिनिधित्व प्राप्त किया जा सके।

आपको बता दें कि तेलंगाना में लगभग 13 प्रतिशत मतदाता मुस्लिम हैं और 1 प्रतिशत ईसाई समुदाय है।

हालांकि सत्तारुढ पार्टी भी अल्पसंख्यकों के वोट के मायने समझती है और शायद यही वजह है कि बीआरएस का गठबंधन एआईएमआईएम के साथ है। ये समझौता भी मुस्लिम वोट को ध्यान में रखते हुए किया गया है, और मुस्लिम-ईसाई को वोट कहीं और ना चल जाए इसलिए उनके लिए रियायतों की घोषणा की गई है।

23 जुलाई को, के चन्द्रशेखर राव के नेतृत्व वाली सरकार ने पिछड़े वर्ग के परिवार के एक सदस्य को 1 लाख रुपये की एकमुश्त आर्थिक सहायता योजना लेकर आई था, अब इस योजना का विस्तार करते हुए मुसलमानों और ईसाइयों को भी इस मुहिम का हिस्सा बना दिया है। लोगों के बीच चेक का वितरण जल्द ही शुरू होने की संभावना है। इसके अलावा, शादी मुबारक योजना के तहत, केसीआर सरकार ने पात्र मुस्लिम दुल्हनों को 1,00,116 रुपये देना शुरू कर दिया है।

हालांकि कांग्रेस के वादे इससे बिल्कुल अलग हैं, कांग्रेस के वादों में अल्पसंख्यकों के लिए छात्रवृत्ति, ऋण, आवास आदि शामिल हैं।

तेलंगाना में कांग्रेस की स्थिति पर बात करते हुए मोहम्मद अली कहते हैं कि, हम जानते हैं कि कांग्रेस कोई बहुत अच्छी स्थिति में नहीं है और राज्य में लगभग 75 प्रतिशत मुस्लिम वोट बीआरएस के साथ हैं। ऐसे में अगर कांग्रेस को तेलंगाना में सत्ता में आना है तो कुछ ठोस कदम उठाने पड़ेंगे।

तेलंगाना में सरकार बनाने के लिए मुस्लिम वोट बेहद ज़रूरी है। साल 2011 में हुई जनगणना के अनुसार राज्य में करीब 13 फीसद वोटर मुस्लिम हैं और ये कहना गलत नहीं होगा कि किसी भी पार्टी के लिए ये आंकड़े कितना मायने रखते हैं। 

बैठक के बाद माणिकराव ठाकरे ने कहा कि कांग्रेस संयुक्त आंध्र प्रदेश में पिछली कांग्रेस सरकार द्वारा प्रदान की गई 4 प्रतिशत मुस्लिम आरक्षण और अन्य कल्याणकारी योजनाओं से 2005-06 के बाद से 20 लाख से अधिक गरीब मुस्लिम परिवारों को लाभ हुआ है। हालांकि, उन्होंने आगे बताया कि, 2014 में तेलंगाना राष्ट्र समिति (अब बीआरएस) के सत्ता में आने के बाद यह योजनाएं रोक दी गई है।

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