तमिलनाडु निकाय चुनाव: ट्रांसजेंडर को आरक्षण देने की पहल

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क्या आपको मालूम है तमिलनाडु सरकार को मद्रास हाई कोर्ट ने स्थानीय निकाय चुनाव में ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को आरक्षण देने का निर्देश दिया है। यह खबर उन ट्रांसजेंडर्स के लिए एक उम्मीद है और उनका भरोसा बढ़ाता है, जो अपने हक और अधिकारों को पाने के लिए न्यायालय में लंबी लड़ाई लड़ रहे हैं।

मैं उनके उन अधिकारों की बात कर रही हूं, जो उनके रोजमर्रा के जीवन को मुश्किल बनाती है। हर दिन एक नई समस्या उनके सहज जीने के रास्ते में रोड़े उत्पन्न करती है। समाज में रहने, चलने और जीने के लिये कई चुनौतियां उनके सामने पेश करती है।      

वही अधिकार जो समाज में उन्हें मुहैया नहीं कराई जाती है। जिसके अभाव से होने वाली परेशानियों के कारण उनकी दिनचर्या में प्रतिदिन कोई न कोई मुश्किलें पैदा हो जाती हैं। समझिए तो यह उनके जीवन में आने वाली समस्याएं छोटी-मोटी तो बिल्कुल भी नहीं होती है। यह बात हम सब मनुष्य होकर थोड़ा मानवीय होकर उनके बारे में जानकर, पढ़कर, इस दर्द, पीड़ा को उनकी बातों को समझ सकते हैं। 

हम सभी यह जानते हैं कि कैसे इन समस्याओं से जूझते हुए वे समाज में रहते है। जब आप उनके दुख, दर्द और समस्याओं को सुनेंगे, जानेंगे तो यह महसूस होगा कि जितना इस समाज का हम हिस्सा है, उनकी भी उतनी ही हिस्सेदारी बनती है। मुझे उन लोगों से यह पूछना है जो ट्रांसजेंडर्स का विरोध करते हैं। बताइये क्यों अपने ही समाज में रहते हुए उन्हें आपसे अनाप-शनाप अपने बारे में सुनने को मिलता है? और उन्हें क्यूं ये सब भुगतना, सहना और झेलना पड़ेगा?

जबकि वह हमारे जैसे ही इंसान हैं। हमारे जैसी ही उनमें भी भावनाएं, जैसे हम बातचीत करते है वो भी करते हैं और हमारा रहन-सहन सब कुछ एक जैसा ही है। समाज जैसे हर किसी की आवश्यकता है, हर जरूरत की चीजें मुहैया होती है, वैसी ही बराबरी ट्रांसजेंडर्स को भी मिलनी चाहिए। लेकिन उनके साथ क्यों इस तरह का व्यवहार अपनाया जाता है? जैसे वह इंसान ही नहीं है, इस समाज का हिस्सा ही नहीं है।

मैं पूछती हूं कि उनके खिलाफ कड़वाहट सोच, बर्ताव और अनर्गल बातें क्यों? जब वे अपने ही समाज में रहते हुए यह सब झेलते हैं, उन्हें कितना बुरा लगता होगा अवसाद के दबाव, मानसिक प्रताड़ना से गुजरना पड़ता होगा। जबकि वे हमारे समाज का ही एक हिस्सा हैं, फिर भी इनके साथ यह दोहरा चरित्र वाला व्यवहार क्यों? 

बस इसलिए कि वह थोड़ा हमसे अलग दिखते हैं, हमें यह बात नहीं भूलनी चाहिए कि ये ट्रांसजेंडर भी इस समाज के बराबरी के हकदार हैं, वे इसी समाज का हिस्सा हैं, जिन्हें हमारे साथ रहने खाने का अधिकार है। सोचिए ऐसी समस्याएं मानसिक और शारीरिक तौर पर उन्हें तोड़ कर रख देती होगी। जो कि कितना अमानवीय है।

यह हमारे देश समाज के लिए एक चिंता का विषय है। और उनकी भलाई के बारे में सोचने, विकास, उत्थान के लिए हम सभी को मिलकर काम करने की जरूरत है। अगर हम अपने द्वारा उनके प्रति किए गए व्यवहार को देखें तो एक समाज के रूप में हम कितने विफल हैं। जिस इंसान को रहने, खाने और जीने के लिए एक अलग लड़ाई लड़नी पड़े बस इसलिये कि वे सभी ट्रांसजेंडर्स हैं, सुनकर कितना बुरा लगता है। 

हमें हस्तक्षेप करना होगा उनके जीवन के अधिकारों को उन्हें दिलाने के लिए। उनके हक की लड़ाई में हमें उनके साथ खड़ा होना होगा और कंधे के कंधे से कंधा मिलाकर उनके साथ चलना होगा। तभी यह उपेक्षित करार दिये गए लोग हमारे साथ खड़े हो पायेंगे। जिसके लिये हमें उनके साथ उनकी परेशानियां, कठिनाइयों को साथ मिलकर दूर करने की कोशिश करनी होगी।

तभी हम समाज में बदलाव लाकर, इस दुनिया को नया भारत दिखा सकेंगे। इन सबके लिए हमें इस पर काम करने की जरूरत है। उनके बारे में सोचने, उनके बेहतर जीवन के लिए हमें उनके हिस्से की बात करनी ही होगी क्योंकि वह इसी समाज का हिस्सा हैं। हमें और आपको यह समझना होगा कि ये आने वाली कठिनाइयां उनके रोजमर्रा के जीवन को मुश्किल बना देती है।

आइए मामला क्या है जानते हैं 

जल्दी कार्रवाई और प्रारंभिक उपाय के रूप में तमिलनाडु की अदालत ने कुड्डालोर जिला कलेक्टर को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि स्थानीय निकाय में ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को आरक्षण दिया जाए। इसी के तहत कार्रवाई के रूप में मद्रास हाईकोर्ट ने तमिलनाडु पंचायत अधिनियम 1994 के तहत कुड्डालोर जिला कलेक्टर को तत्काल प्रभाव से नैनारकुप्पम गांव के पंचायत अध्यक्ष और अन्य सदस्यों को उनके ट्रांसफोबिक पत्र और गांव में ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को पट्टा भूमि देने के खिलाफ प्रस्ताव पर उचित कार्रवाई शुरू करने का निर्देश दिया।   

ज्ञातव्य है कि जस्टिस एसएम सुब्रमण्यम ने इस बात पर यह कहते हुए अपनी बात रखी कि ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को आरक्षण का अधिकार है। अब समय आ गया है कि तमिलनाडु सरकार ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को समाज की मुख्यधारा में शामिल करने और उनकी लोकतांत्रिक भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए स्थानीय निकाय में आरक्षण प्रदान करने के लिए कदम उठाए। 

तमिलनाडु कोर्ट के माननीय न्यायधीश ने ट्रांसजेंडर्स को आश्वासन देते हुए कहा कि “इस समुदाय की आवाज़ सुनना भी महत्वपूर्ण है। ट्रांसजेंडरों के लिए आरक्षण का विस्तृत कानून बनाने वाली संस्थाएं होना चाहिए। यह इन कानून बनाने वाले मंचों पर है, जहां ट्रांसजेंडर व्यक्ति अपने विचार व्यक्त कर सकते हैं और उनके अधिकार पर चर्चा कर सकते हैं। इसके अलावा, उन्होंने अपने आदेश पर जोर देते हुए यह कहा कि ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को आरक्षण का अधिकार है, इस तथ्य के कारण कि “वे सामाजिक रूप से पिछड़े वर्ग हैं।” 

पिछली सुनवाई में कोर्ट ने पंचायत अध्यक्ष एचडी मोहन से ट्रांसफॉर्मिंग प्रस्ताव पेश करने को कहा था। इसे प्रस्तुत करते समय मोहन ने स्वीकार किया कि प्रस्ताव ट्रांसजेंडर्स के अधिकारों को जाने बिना पारित किया गया था। उसने उस याचिका को वापस लेने की मांग की, जो उसने प्रस्ताव पर कलेक्टर की निष्क्रियता के परिणामस्वरूप दायर की थी।

फिर न्यायालय ने यह देखते हुए कि कहा इस तरह की वापसी की अनुमति देने का मतलब “निर्वाचित निकाय के कहने पर होने वाली सामाजिक बुराई को स्वीकार करना” होगा। अदालत ने कहा कि संवैधानिक अदालतें संवैधानिक जनादेश की रक्षा करने के अपने कर्तव्य से चूक नहीं सकती हैं। अदालत ने कहा, “यदि याचिकाकर्ता को रिट याचिका वापस लेने की अनुमति दी गई है तो संवैधानिक न्यायालय संवैधानिक जनादेश, दर्शन और लोकाचार की रक्षा करने के अपने कर्तव्य में विफल हो रहे हैं। 

लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार

लाइव लॉ ने अपनी रिपोर्ट साझा करते हुए यह बताया कि माननीय न्यायाधीश ने जिला कलेक्टर को अपने गांव में ट्रांसजेंडर को सरकारी योजनाओं के तहत पट्टा देने का आदेश दिया।” यह देखते हुए कि ट्रांसजेंडर से जुड़े सामाजिक कलंक को दूर करना आवश्यक है। आगे उनका कहना था कि प्रत्येक प्राणी एक उपहार है और ट्रांस समुदाय द्वारा सामना किए जा रहे मानसिक और सामाजिक दबाव को केवल सहानुभूतिपूर्ण दिमाग से ही समझा जा सकता है। यद्यपि मतभेद अपरिहार्य हैं, एक सामंजस्यपूर्ण सामाजिक संरचना के लिए इस विविधता की समझ आवश्यक है।

लाइव लॉ रिपोर्ट के अनुसार यह अदालत ने कहा कि, “प्रत्येक जीवित प्राणी उपहार है। उपहारों को विभिन्न रंगों, डिज़ाइनों और दिखावटों में लपेटा जा सकता है और ये उपहार अनगिनत आश्चर्यों के साथ सामने आते हैं। यह हम में से प्रत्येक के साथ समान है। मानसिक और सामाजिक दबाव का स्तर ऐसे लोगों द्वारा सामना किया जाता है। लोगों के विशिष्ट समुदाय को केवल सहानुभूतिपूर्ण दिमाग से ही समझा जा सकता है। 

कोर्ट ने आगे कहा कि “जो समाज ट्रांसजेंडर समुदाय को सौभाग्य को लाने वाला सौभाग्यशाली मानता है, वही समाज उनके साथ अवमानना का व्यवहार भी करता है। तो यह कितनी हास्यास्पद बात है कि इसी समाज द्वारा उन्हें सदियों से बहिष्कृत किया गया है। जबकि देखा जाये तो यह सामाजिक बहिष्कार एक तरह से मानवता विरोधी है।” अदालत ने कहा कि, हालांकि राज्य समुदाय का समर्थन करने के लिए सामाजिक कल्याण योजनाएं ला रहा है, लेकिन उन्हें अक्सर कार्यपालिका के निचले स्तर द्वारा लागू नहीं किया जाता है, जो लोगों के सीधे संपर्क में हैं। 

इस प्रकार, अदालत ने जिला कलेक्टर को यह सुनिश्चित करने का भी निर्देश दिया कि ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को पात्रता के आधार पर मुफ्त गृह स्थल पट्टा दिया जाए। साथ ही ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को ग्राम उत्सवों में भाग लेने और सभी धार्मिक संस्थानों में पूजा करने की अनुमति दी जाए। 

(एकता प्रकाश स्वतंत्र पत्रकार हैं।)

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