दलित आदिवासी शक्ति अधिकार मंच (DASAM) ने जीवन और सम्मान के अधिकार का प्रश्न उठाया

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नई दिल्ली, 23 सितम्बर 2023: सीवर श्रमिकों का शोषण सिर्फ एक श्रमिक मुद्दा नहीं है, बल्कि यह वर्ण व्यवस्था में निहित है और इसे दलित समुदाय के ऐतिहासिक सामाजिक-धार्मिक-सांस्कृतिक-आर्थिक शोषण से अलग नहीं किया जा सकता है। यह बात सीनियर जर्नलिस्ट और डॉक्यूमेंट्री फिल्म निर्माता वाई एस गिल ने आयोजित प्रेस कांफ्रेंस में कही।

दिल्ली में सीवर श्रमिकों के मुद्दों पर दलित आदिवासी शक्ति अधिकार मंच (DASAM) इंटीग्रेटेड सोशल इनिशिएटिव्स (ISI) ने मिलकर यह प्रेस कांफ्रेंस आयोजित किया था।

वाई एस गिल ने आगे कहा कि भले ही विश्व नेताओं की G-20 घोषणा सभी के लिए समावेशी सामाजिक सुरक्षा नीतियों को सुनिश्चित करने की प्रतिबद्धता का दावा किया गया है, इस बात पर प्रकाश डाला कि ठेके पर काम करने वाले सीवर श्रमिकों को यह भी नहीं पता है कि उनका ठेकेदार कौन है, जो ठेका व्यवस्था के सभी मानदंडों का उल्लंघन है!

‘नेशनल कैंपेन फॉर डिग्निटी एंड राइट्स ऑफ सीवरेज एंड एलाइड वर्कर्स’ की राष्ट्रीय संयोजक हेमलता कंसोटिया ने कहा कि दावा किया गया है कि जब सामाजिक सुरक्षा अनुबंध में स्वास्थ्य बीमा और मुआवजे का उल्लेख होता है तब भी सीवर श्रमिकों को शायद ही सामाजिक सुरक्षा मिलती है। जबकि दिल्ली में सीवर श्रमिकों की संख्या एक हजार से कुछ ज्यादा है।

उन्होंने आगे कहा कि सीवर ‘शिल्ट’ उठाने वाली महिला सीवर कर्मचारियों (अनुकंपा के आधार पर नियुक्त) की दुर्दशा को भी प्रकाश में लाया, जिन्हें सीवर कर्मचारी भी नहीं माना जाता है। सीवर श्रमिकों का निरंतर शोषण और काम के दौरान भी उनके साथ हर दिन होने वाले भेदभाव जाति के इतिहास से जुड़े हुए हैं।

म्युनिसिपल वर्कर्स लाल झंडा यूनियन (डीजेबी) और स्टेट प्रेसिडेंट (सीटू) के वीरेंद्र गौड़ ने सीवर श्रमिकों की भयावह कामकाजी परिस्थितियों को प्रकाश में लाते हुए बताया कि जनशक्ति आपूर्ति करने वाली अनुबंध एजेंसी में से एक आईसीएसआईएल (ICSIL) ने पिछले चार महीनों से अपने कर्मचारियों को भुगतान नहीं किया है! यहां तक कि दिल्ली जल बोर्ड में काम करने वाले सीवर श्रमिकों को भी न्यूनतम वेतन नहीं दिया जाता है, उन्होंने जोर देकर कहा कि केवल संगठन और संघर्ष ही इस सरकार को श्रमिकों की दुर्दशा सुधारने पर मजबूर कर सकते हैं।

जबकि दिल्ली में सरकार द्वारा निर्धारित न्यूनतम मजदूरी पहले 16500 रूपए थी जिसमें मामूली इजाफा कर अब 17234 कर दिया गया है।

चेयरमैन और मॉनिटरिंग समिति, दिल्ली उच्च न्यायालय के हरनाम सिंह ने कहा कि इस साल दिल्ली में 19 सीवर कर्मचारियों की मौत हुई है, सभी 30 साल से कम उम्र के थे, जिनके परिवारों को उचित मुआवजा नहीं दिया गया है। जबकि दिल्ली सरकार द्वारा प्रदान की गई 200 सीवर सफाई मशीनें मृत सीवर श्रमिकों के परिवारों को आवंटित की जानी थी, उन 200 में से केवल 3 प्रभावित परिवारों को दी गई है। हरनाम सिंह जी ने कहा कि गिल ने दैनिक आधार पर खतरनाक काम में लगे सीवर श्रमिकों के लिए अलग जीवन बीमा और स्वास्थ्य बीमा की आवश्यकता के लिए भी अपील की थी।

इसके अलावा, प्रेस कांफ्रेंस में इस बात पर जोर दिया गया कि सीवर श्रमिकों को ईएसआई (ESI) कार्ड नहीं दिए जाते हैं जिससे कि श्रमिकों स्वास्थ्य लाभ सुनिश्चित ले सकें जो कि विशेष रूप से स्वच्छता श्रमिकों के लिए महत्वपूर्ण है। श्रमिक असंख्य व्यावसायिक स्वास्थ्य खतरों से जूझ रहे हैं। 10-12 साल तक काम करने वाले कर्मियों को कुशल नहीं माना जाता और उन्हें दिल्ली जल बोर्ड का स्थायी कर्मचारी नहीं बनाया जाता। दिल्ली में सीवर श्रमिकों की आर्थिक और सामाजिक हालत बहुत खराब है। इनकी सुरक्षा सुनिश्चित करने का एकमात्र तरीका ठेकेदारी प्रथा को हटाना और सरकारी विभागों के माध्यम से श्रमिकों की भर्ती करना है।

‘दलित आदिवासी शक्ति अधिकार मंच’ (DASAM) दिल्ली एनसीआर में सफाई कर्मचारियों के मुद्दों के लिए काम करने वाला एक संगठन है। पिछले कुछ वर्षों में ठेकेदार सीवर श्रमिकों के साथ DASAM के काम ने सीवर श्रमिकों के बड़े पैमाने पर शोषण को प्रकाश में लाया।

हम भले ही चंद्रमा पर पहुंच गए हों, लेकिन सीवर श्रमिकों के लिए जीवन और सम्मान का अधिकार अभी भी कोसों दूर है!

प्रेस कांफ्रेंस में कई समुदाय के सदस्यों, कार्यकर्ताओं, विल सोसाइटी के सदस्यों, छात्रों आदि ने भाग लिया।

(प्रेस विज्ञप्ति पर आधारित)

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