संसद में गूंजा पीएम मोदी के साथ विश्वविद्यालय परिसरों में सेल्फी का मुद्दा

Estimated read time 1 min read

नई दिल्ली। विश्वविद्यालय परिसरों में पीएम मोदी के साथ सेल्फी प्वाइंट बनाये जाने का मसला आज संसद में भी गूंजा। तृणमूल सांसद शांतनु सेन ने इस मुद्दे को राज्य सभा में उठाया। उन्होंने कहा कि कुछ दिनों पहले यह खबर आयी थी कि यूजीसी ने देश के सभी विश्वविद्यालयों और महाविद्यालयों को अपने परिसरों में सेल्फी प्वाइंट बनाने का निर्देश दिया है। जिससे बैकग्राउंड में स्थित पीएम मोदी की तस्वीर के साथ छात्र-छात्राएं सेल्फी ले सकें। 

उन्होंने कहा कि किस नियम और गाइडलाइन के तहत यूजीसी ने यह निर्देश जारी किया है? उनका कहना था कि यह कुछ और नहीं बल्कि राजनैतिक स्टंट और प्रचार है। उससे ज्यादा कुछ नहीं। और यह सब कुछ 2024 के चुनाव के लिए किया जा रहा है। इस सवाल का जवाब देने के लिए राज्यसभा के चेयरमैन जगदीप धनखड़ ने केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान को निर्देशित किया। लेकिन उससे पहले वह व्यंग्यात्मक लहजे में यह भी कहना नहीं भूले कि जवाब देने से पहले मंत्री जी यह याद रखें कि मैं पश्चिम बंगाल का राज्यपाल था। 

फिर सवाल का जवाब देते हुए धर्मेंद्र प्रधान ने कहा कि मैं अपने प्रधानमंत्री पर गर्व करता हूं। और यह देश प्रधानमंत्री पर गर्व करता है। इस चीज को ध्यान में रखा जाना चाहिए। और बस इतना कह कर वह बैठ गए। 

उसके बाद आगे की जिम्मेदारी राज्यसभा के चेयरमैन जगदीप धनखड़ ने संभाली। उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति, पीएम और संवैधानिक जिम्मेदारी संभालने वाले लोगों का रिश्ता राष्ट्र से होता है। वो राष्ट्र का प्रतिनिधित्व करते हैं। जैसे एक राज्य का मुख्यमंत्री किसी राज्य का प्रतिनिधित्व करता है। इसलिए हम सदन के सभी हिस्सों से अपील करते हैं। जब यह संवैधानिक दायित्वों को निभाने वालों का मामला सामने आता है, वह राज्य के स्तर पर हो या कि केंद्र के हमारे दृष्टिकोण में राजनीति का दखल नहीं होना चाहिए। बल्कि उसे सामान्य तरीके से देखा जाना चाहिए।

अब कोई पूछ सकता है कि देश के उच्च शैक्षणिक संस्थानों की स्वायत्तता का क्या हुआ? क्या मान लिया जाए कि जिसकी सरकार आएगी संस्थान उसके हो जाएंगे। और फिर उनमें उसी की विचारधारा चलेगी। उच्च शैक्षणिक संस्थाओं की स्थापना के पीछे सर्वप्रमुख शर्त उनकी स्वायत्तता थी। जिससे वह तमाम तरह के दबावों से मुक्त होकर स्वतंत्र तरीके से चिंतन और शोध कर सकें। छात्र, अध्यापक और एकैडमिक सेक्शन के विभिन्न हिस्से आपस में खुली बहस संचालित कर सकें। परिसर में सरकारों का न्यूनतम दखल हो।

सरकारों की भूमिका केवल और केवल उनको पैसे मुहैया कराने और उनके स्वतंत्र संचालन की गारंटी करने तक सीमित रहे। और इसी लिए इन संस्थाओं को रेगुलेट करने वाली यूजीसी को भी पूरी स्वायत्तता दी गयी थी। लेकिन नये रेजीम में स्वतंत्रता और स्वायत्तता जैसे शब्दों का नाम लेना भी गुनाह हो गया। ऐसा सोचने और उस दिशा में काम करने वालों को देशद्रोही से लेकर न जाने किन-किन तमगों से नवाजा जाने लगा है। 

एकबारगी राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के पद को निरपेक्ष माना जा सकता है। लेकिन प्रधानमंत्री का पद संवैधानिक होने के बावजूद कैसे निरपेक्ष हो सकता है? वह शुद्ध रूप से एक राजनीतिक पद है। लिहाजा उसके किसी स्थान पर मौजूदगी का मतलब ही राजनीति है। इसलिए विश्वविद्यालय और कॉलेज परिसरों में सेल्फी प्वाइंट का बनाया जाना शुद्ध रूप से एक राजनीतिक फैसला है और उसे 2024 के चुनावों में ध्यान रखते हुए लिया गया। और इसका यूजीसी से लागू कराया जाना न केवल एक स्वायत्त संस्था के तौर पर उसका पतन है बल्कि देश की शैक्षणिक संस्थाओं को नये पतन की तरफ ले जाने का यह एक नया नमूना भी है।

(जनचौक की रिपोर्ट।)      

You May Also Like

More From Author

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments