भाजपा जबरन आदिवासियों को हिंदू बनाना चाहती है: सालखन मुर्मू

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रांची। आदिवासी सेंगेल अभियान के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं पूर्व सांसद सालखन मुर्मू ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को एक पत्र लिखकर कहा है कि “सरना धर्म कोड” भारत के प्रकृति पूजक लगभग 15 करोड़ आदिवासियों के अस्तित्व, पहचान, हिस्सेदारी की जीवन रेखा है। मगर आदिवासियों को उनकी धार्मिक आजादी से वंचित करने के लिए कांग्रेस-बीजेपी दोषी हैं। 1951 की जनगणना तक यह प्रावधान था। जिसे बाद में कांग्रेस ने हटा दिया और अब भाजपा जबरन आदिवासियों को हिंदू बनाना चाहती है।

सालखन ने अपने पत्र में कहा है कि 2011 की जनगणना में 50 लाख आदिवासियों ने सरना धर्म लिखवाया था, जबकि जैन की संख्या 44 लाख थी। अतः आदिवासियों को मौलिक अधिकार से वंचित करना संवैधानिक अपराध जैसा है। सरना धर्म कोड के बगैर आदिवासियों को जबरन हिंदू, मुसलमान, ईसाई आदि बनाना धार्मिक गुलामी की ओर मजबूर करना एवं धार्मिक नरसंहार जैसा है। सरना धर्म कोड की मान्यता मानवता और प्रकृति-पर्यावरण की सुरक्षा के लिए भी अनिवार्य है।

उन्होंने कहा है कि प्रधानमंत्री मोदी का उलिहातू दौरा (15.11.23) और राष्ट्रपति का बारीपदा दौरा (20.11.23) भी बेकार साबित हुआ है, क्योंकि उन्होंने सरना पर कोई बात नहीं की।

सालखन ने बताया कि उपरोक्त तथ्यों के आलोक में आदिवासी सेंगेल अभियान अन्य आदिवासी संगठनों के सहयोग से 30 दिसंबर 2023 को सांकेतिक भारत बंद और रेल-रोड चक्का जाम करने को बाध्य हुआ था। 30 दिसम्बर 2023 के भारत बंद और रेल-रोड चक्का जाम का जोरदार असर अनेक प्रदेशों में हुआ।

जिसपर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा ने समाचार एजेंसी पीटीआई को बताया कि सरना धर्म कोड की मान्यता के लिए रेल-रोड चक्का जाम के बदले उचित मंच पर संवाद सही है। मुंडा ने समाचार एजेंसी को बताया कि राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग, दिल्ली ने प्रकृति पूजक आदिवासियों को सरना धर्म कोड देने की सिफारिश की है।

इस पर सालखन कहते हैं ऐसी स्थिति में आदिवासी समाज उपरोक्त तथ्यों को सही दिशा में सकारात्मक पहल मानती है एवं इसका स्वागत करती है। उन्होंने बताया कि 30 दिसम्बर, 2023 के भारत बंद की जानकारी प्रधानमंत्री को 28 अक्टूबर 2023 के एक पत्र और रांची में आयोजित 8 नवंबर 2023 के आयोजित सरना धर्म कोड जनसभा द्वारा प्रदान की गई थी।

सालखन राष्ट्रपति को लिखे पत्र में सवाल उठाते हुए कहते हैं कि भारत के हम आदिवासियों के लिए यह कैसी विडंबना है कि देश के सर्वोच्च संवैधानिक महामहिम राष्ट्रपति के पद पर भी एक आदिवासी हैं। भारत के संविधान में धार्मिक आजादी की व्यवस्था मौलिक अधिकार है। हमारी संख्या मान्यता प्राप्त जैनों से ज्यादा है, तब भी हमें धार्मिक आजादी से वंचित करना अन्याय, अत्याचार और शोषण नहीं तो क्या है? आखिर हम जाएं तो कहां जाएं?

वे आगे कहते हैं कि अतएव फिर 7 अप्रैल 2024 को भारत बंद, रेल-रोड चक्का जाम को हम मजबूर हैं, यदि 31 मार्च 2024 तक सरना धर्म कोड की मान्यता के लिए सभी संबंधित पक्ष कोई सकारात्मक घोषणा नहीं करते हैं। यह भारत बंद अनिश्चितकालीन भी हो सकता है। भारत के आदिवासियों को धार्मिक आजादी मिले इसके लिए आदिवासी सेंगेल अभियान सभी राजनीतिक दलों और सभी धर्म यथा हिंदू, मुसलमान, सिख, ईसाई, जैन, बौद्ध आदि के प्रमुखों से आग्रह करती है कि वे भी मानवता और प्रकृति- पर्यावरण की रक्षार्थ हमें सहयोग करें।

सालखन मुर्मू ने पत्र में साफ लिखा है कि “महामहिम राष्ट्रपति जी, आपको संविधान सम्मत सरना धर्म कोड देना ही होगा।”

वे सभी सरना धर्म संगठनों और समर्थकों को संबोधित करते हुए कहते हैं कि 7 अप्रैल, 2024 से आहूत भारत बंद में सरना धर्म लिखाने वाले 50 लाख आदिवासी एवं अन्य सभी सरना धर्म संगठनों और समर्थकों को सेंगेल अपने-अपने गांव के पास एकजुट प्रदर्शन करने का आग्रह और आह्वान करती है।

झारखंड विधानसभा में 11.11.2020 को धर्म कोड बिल पारित करने वाली सभी पार्टियों यथा जेएमएम, बीजेपी, कांग्रेस, आजसू आदि के कार्यकर्ताओं को तथा बंगाल से टीएमसी को भी सामने आना होगा वर्ना वे केवल वोट के लिए कार्यरत आदिवासी विरोधी और ठगबाज ही प्रमाणित होंगे।

 वे आदिवासियों का सबसे बड़ा धार्मिक प्रतीक मराङ बुरु (पारसनाथ पर्वत तथा कथित जैन धर्म स्थल, गिरिडीह) लुगु बुरु (बोकारो), अयोध्या बुरु (पुरुलिया) आदि को बचाने का अह्वान भी करते हैं।

वहीं कहते हैं कि राज्य के मान्य मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने 5.1.2023 को पत्र लिखकर मरांङ बुरु को जैनों को सौंप दिया है। अतः सेंगेल ने 10 दिसंबर 2023 को गिरिडीह जिले का मधुबन में मरांङ बुरु बचाओ सेंगेल यात्रा- सभा और 22 दिसंबर 2023 को दुमका के गांधी मैदान में हासा- भाषा विजय दिवस का सफल आयोजन किया है और संबंधित प्रस्ताव भी पारित किया है।

वे कहते है – “सेंगेल किसी पार्टी और उसके वोट बैंक को बचाने के लिए नहीं आदिवासी समाज को बचाने के लिए चिंतित है। चुनाव कोई भी जीते आदिवासी समाज की हार निश्चित है। आजादी के बाद से अब तक आदिवासी समाज हार रहा है, लुट-मिट रहा है। विकास के नाम पर आदिवासियों के लिए विनाश की तैयारी ही हो रही है। क्योंकि अधिकांश पार्टी और नेता के पास आदिवासी एजेंडा और एक्शन प्लान नहीं है।

अंततः अभी तक हम धार्मिक आजादी से भी वंचित है। अतः फिलवक्त सरना धर्म कोड आंदोलन हमारी धार्मिक आज़ादी के साथ वृहत आदिवासी एकता और भारत के भीतर आदिवासी राष्ट्र के निर्माण का आंदोलन भी है। सेंगेल का नारा है- “आदिवासी समाज को बचाना है तो पार्टियों की गुलामी मत करो, समाज की बात करो और काम करो। आदिवासी हासा, भाषा, जाति, धर्म, रोजगार आदि की रक्षा करो। मगर जो सरना धर्म कोड देगा आदिवासी उसको वोट देगा।”

(विशद कुमार की रिपोर्ट।)

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