प्रतीकात्मक चित्र।

कोरोना ठीक हो जाएगा, पर नफरत कैसे ठीक होगी?

बहुत दुख होता है। लोग बदल रहे हैं। पर वो खुद नहीं जानते, वो कितना बदल गए हैं? हम अक्सर खुद में होने वाले बदलाव को कहां पहचान पाते हैं? यह ठीक वैसे ही हो रहा है। 

एक नफरत धीरे-धीरे हमारे इर्द-गिर्द फैलती जा रही है। इस नफरत ने हमारे रिश्तों को, हमारे सामाजिक ताने-बाने को अपने शिकंजे में कस लिया है। 

जहां देखो लोग नफरत से भरे बैठे हैं।

दुख उन लोगों के बदलने पर ज्यादा होता है, जिन्हें हम जानते हैं, पहचानते हैं। 

उनमें से कई मेरे दोस्त हैं। कुछ चाचा, कुछ मामा, कुछ भाई। और भी न जाने क्या-क्या रिश्ते।

हर बात में नफरत बह रही है। 

कोरोना ठीक हो जाएगा। पर नफरत कैसे ठीक होगी?

सत्ता से होती हुई ये नफरत मीडिया के जरिए मेरे, तुम्हारे, हमारे घरों में घर कर गई है। इस नफरत का सिरा मिलता ही नहीं। आखिर क्यों फैली है ये नफरत? 

मैं परेशान इसलिए ज्यादा हूं। क्योंकि ये नफरत अनचाही नहीं है। गौर से देखो, तो पता चलेगा। इस नफरत को पाला गया, पोसा गया। एक लंबा वक्त लगा होगा इसे तैयार करने में। और अब इसे मेरे, तुम्हारे, हमारे घरों और रिश्तों के बीच छोड़ दिया गया है। अब ये नफरत अपना शिकार खुद कर रही है।

तो किसने पाला इस नफरत को? सत्ता या सत्ता से जुड़े प्रतिष्ठानों ने या फिर सत्ता की गुलामी में लगे मीडिया संस्थानों ने? या एक समाज के तौर पर हम फेल हुए हैं।

मैं बेचैन हूं, तब से जब से मैंने एक व्हाट्सएप मैसेज देखा है। मैं जानता हूं यह पहला व्हाट्सएप मैसेज नहीं है। इससे पहले न जाने कितने ही ऐसे व्हाट्सएप मैसेज मैंने देखे हैं। 

पर ये मैसेज किसी खास ने मुझे भेजा है। मैं जानता हूं यह मैसेज फॉर्वर्डेड है। किसी खास फैक्ट्री में किसी खास विचारधारा से प्रेरित लोगों ने बनाया होगा। 

मैं सोचता हूं उनके (मेरे खास) मन में नफरत ना होगी! पर फिर यकीन नहीं होता! 

आखिर इस तरह के नफरती संदेश कोई क्यों कर भेजेगा?

कई सवाल बार-बार दिल पूछता है?

मैसेज एक समुदाय के खिलाफ नफरत भड़काने वाला है। लिखा है, “मुल्लों का आर्थिक बहिष्कार। सूची तैयार हो गई है। सब हिंदू इसे कम से कम 10 ग्रुप में भेजो।”

फिर नीचे लिखा है “आर्थिक बहिष्कार ऐसा होना चाहिए कि अगले महीने ही इनकी बैलेंस शीट आधी हो जाए। फिर इनके शेयर औंधे मुंह गिरेंगे”

आगे लिखा है – “गोली नहीं मार सकते तो उंगली मार दो। बर्बाद कर दो इन जेहादियों को। यदि इतना भी दम नहीं है, तो मरोगे ही। तुम्हें कोई नहीं बचा सकता।”

यह मैसेज लंबा है। पूरा का पूरा नफरत से सना हुआ है।

यह व्हाट्सएप मैसेज एक उम्मीद के साथ मुझे भेजा गया था। भेजने वाले को लगता था मैं इसे 10 ग्रुपों में भेजूंगा। 

पर मैं माफी चाहता हूं मेरे उस अजीज से। मैं यह न कर सकूंगा। माफ करना।

अगर हिंदू होने का वास्ता देकर मुझे एक समुदाय के खिलाफ नफरत से भरा जा रहा है, तो मैं कहना चाहता हूं मेरा ऐसे धर्म पर जरा भी विश्वास नहीं। मैं कहना चाहता हूं जिस हिंदू धर्म को मैंने जाना, समझा; वो बिला शक ऐसा नहीं। अगर यही हिंदू धर्म है, तो मैं इस धर्म का हिस्सा नहीं रहना चाहता। 

माफ करना, मेरे चाचा।

माफ करना, मेरे मामा।

माफ करना, मेरे भाई।

माफ करना, मेरे दोस्त।

मैं नफरत में तुम्हारा संगी नहीं बन सकता।

तुम्हारा ही एक हिस्सा

जितेन्द्र

(लेखक जितेंद्र भट्ट पत्रकार हैं और आजकल एक प्रतिष्ठित इलेक्ट्रॉनिक चैनल में काम करते हैं।)

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