ग्राउंड रिपोर्ट: आज भी कंप्यूटर की पहुंच से दूर हैं ग्रामीण किशोरियां

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“आज का समय कंप्यूटर का है। हमें हर छोटे बड़े हर काम के लिए कंप्यूटर की दुकान पर जाना पड़ता है। फोन से हम सब काम कर सकते हैं। लेकिन परीक्षा का फार्म भरना हो या उससे संबंधित जानकारियां प्राप्त करनी हो, तो उसके लिए शहर के कंप्यूटर सेंटर पर जाना पड़ता है। जो गांव से 16-17 किमी दूर है। ऐसा कभी नहीं हुआ है कि एक बार जाने से ही हमारा काम हो गया हो। एक तो आने जाने का खर्च और दूसरा कंप्यूटर सेंटर वाले की मनमानी फीस अदा करना हमारे लिए बहुत मुश्किल हो जाता है। हमारे माता पिता की आमदनी इतनी नहीं है कि हम बार बार शहर जा सके। यदि गांव में ही कंप्यूटर सेंटर होता तो बार बार शहर जाकर पैसे खर्च नहीं करने पड़ते।” यह कहना है उत्तराखंड के पिंगलो गांव की 21 वर्षीय गुंजन का, जो स्नातक की छात्रा है और पढ़ाई के साथ साथ प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी भी कर रही है।

दरअसल, कंप्यूटर ने न केवल इंसान के काम को तेज़ और आसान बना दिया है बल्कि इसने दुनिया में विकास की परिभाषा को बदल कर रख दिया है। भारत भी कंप्यूटर के माध्यम से दुनिया भर में अपनी एक अलग पहचान बना चुका है। बात चाहे अर्थव्यवस्था की हो, रक्षा का क्षेत्र हो या फिर टेक्नोलॉजी का मैदान हो, भारतीयों ने हर जगह अपनी कामयाबी के झंडे गाड़े हैं। न केवल सुंदर पिचाई और सत्य नडेला बल्कि आरती गुप्ता, कविता बाला, सुजाता बनर्जी और सुपर्णा भट्टाचार्य जैसी भारतीय महिलाओं ने भी कंप्यूटर के क्षेत्र में दुनिया भर में अपनी विशिष्ट पहचान बनाई है। इसके बावजूद आज भी हमारे देश के कई ऐसे दूर दराज़ के ग्रामीण इलाके हैं जहां कंप्यूटर तक लड़कियों की पहुंच आसान नहीं है। हालांकि अवसर मिलने पर यह किशोरियां कंप्यूटर सीखने के लिए उत्सुक हैं। लेकिन सुविधा उपलब्ध नहीं होने के कारण वह इसे सीखने अथवा इसे चलाने से वंचित रह जाती हैं। उन्हें अपने कॉलेज का ऑनलाइन फॉर्म भरने के लिए भी किसी पर निर्भर रहना पड़ता है।

गुंजन की तरह पिंगलो गांव की अन्य किशोरियों को भी इन्हीं समस्याओं से गुज़रना पड़ रहा है। हरे भरे और सुंदर पहाड़ों के बीच बसा यह गांव उत्तराखंड के बागेश्वर जिला से 48 किमी और गरुड़ ब्लॉक से 27 किमी दूर स्थित है। ब्लॉक ऑफिस में उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार इस गांव की जनसंख्या लगभग 1,152 है। ओबीसी बहुल इस गांव में 25 प्रतिशत अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति समुदाय भी निवास करता है। 2011 की जनगणना के अनुसार यहां की साक्षरता दर करीब 80 प्रतिशत से अधिक है।

हालांकि महिला साक्षरता दर मात्र 45 प्रतिशत दर्ज की गई है। गांव के किशोर-किशोरियां शिक्षा के साथ साथ एंड्रॉयड फोन के माध्यम से सोशल मीडिया पर भी सक्रिय हैं। लेकिन कंप्यूटर तक उनकी सुलभ पहुंच नहीं होने के कारण वह कई अर्थों में पीछे रह जाती हैं। इस संबंध में गांव की 17 वर्षीय किशोरी नमन कहती है कि हमारे गांव में कंप्यूटर की सुविधा न होने के कारण हम बहुत सी योजनाओं का लाभ उठाने से वंचित रह जाती हैं। फोन के माध्यम से ऑनलाइन फॉर्म आसानी से भर सकते हैं। लेकिन इस दौरान बहुत से डाक्यूमेंट्स भी अपलोड करने होते हैं। जो फोन से संभव नहीं हो पाता है। ऐसे में हमें कंप्यूटर सेंटर की आवश्यकता होती है। लेकिन पिंगलो गांव में इसकी सुविधा नहीं है। इसके लिए बागेश्वर या बैजनाथ शहर जाना पड़ता है। जो काफी खर्चीला साबित होता है।

इसी गांव की 22 वर्षीय अंशिका बताती है कि वह स्नातक अंतिम वर्ष की छात्रा है। पढ़ाई के साथ साथ वह कई प्रतियोगिता परीक्षाओं की तैयारी कर रही हैं। जिसके लिए ऑनलाइन फॉर्म भरने की ज़रूरत पड़ती रहती है। लेकिन गांव में कंप्यूटर सेंटर की सुविधा नहीं होने के कारण वह हल्द्वानी में गर्ल्स हॉस्टल में रहती है ताकि इन प्रतियोगिता परीक्षाओं में फॉर्म भरने में उसे किसी प्रकार की कठिनाइयां न आए। वह कहती है कि आजकल सब कुछ कम्पूटराइज़ हो चुका है। चाहे कॉलेज का फॉर्म भरना हो या प्रतियोगिता परीक्षा का अथवा किसी स्कॉलरशिप के लिए अप्लाई करनी हो, सभी ऑनलाइन हो चुके हैं। इसके लिए फॉर्म भरने के साथ साथ फोटो, एजुकेशन सर्टिफिकेट और अन्य दस्तावेज़ भी अटैच करने होते हैं, जो कई बार फोन से संभव नहीं हो पाता है। इसके लिए कंप्यूटर या लैपटॉप की ज़रूरत होती है। हमारे गांव में कोई भी आर्थिक रूप से इतना सशक्त नहीं है कि वह निजी रूप से लैपटॉप खरीद सके। अगर गांव में कंप्यूटर सेंटर खुल जाए तो सभी के लिए अच्छा होगा, विशेषकर लड़कियों को बहुत लाभ मिलेगा।

गांव में कंप्यूटर सेंटर होने की आवश्यकता केवल किशोरियों ही नहीं, बल्कि उनके अभिभावक भी महसूस करने लगे हैं। टेक्नोलॉजी के बढ़ते प्रभाव और इसकी आवश्यकता को देखते हुए अब वह भी चाहते हैं कि गांव में कंप्यूटर सेंटर खुल जाए। इस संबंध में 34 वर्षीय उषा देवी कहती हैं कि “मेरी दो बेटियां हैं जो 8वीं और 10वीं की छात्रा हैं। मैं चाहती हूं कि अभी से वह दोनों कंप्यूटर चलाना सीखे, ताकि भविष्य में उन्हें किसी प्रकार का फॉर्म भरने में कोई कठिनाइयां न आए। लेकिन पूरे पिंगलो गांव में कोई कंप्यूटर सेंटर नहीं है। मैं उन्हें 17 किमी दूर केवल फॉर्म भरने नहीं भेज सकती हूं। वह कहती हैं कि हमारी आर्थिक स्थिति इतनी अच्छी नहीं है कि हम उन्हें शहर के हॉस्टल में रखें। अगर हमारे गांव में ही कंप्यूटर सेंटर खुल जाए तो सभी लड़कियों के लिए आसान हो जाएगा।”

वहीं एक अन्य अभिभावक 54 वर्षीय कलावती देवी कहती हैं कि “हमने तो अपना जीवन अभाव में जैसे तैसे गुजार लिया है। लेकिन अब हमें अपने बच्चों का भविष्य संवारना है। जिसके लिए स्कूल और कॉलेज की शिक्षा के साथ साथ कंप्यूटर की शिक्षा भी बहुत ज़रूरी है। इसके बिना गांव की नई पीढ़ी विकास के दौड़ में पिछड़ जाएगी।

पिंगलो के ग्राम प्रधान पान सिंह भी इसकी महत्ता को स्वीकार करते हुए कहते हैं कि “कंप्यूटर सेंटर न होने के कारण गांव की लड़कियां आगे बढ़ नहीं पा रही हैं। ऐसे में उनके सर्वांगीण विकास के लिए ज़रूरी है कि उन्हें कंप्यूटर शिक्षा में भी दक्ष बनाया जाए। यदि कोई निजी संस्था गांव में कंप्यूटर सेंटर खोलती है तो पंचायत की ओर से उसे पूरा सहयोग दिया जाएगा।

वहीं सामाजिक कार्यकर्ता नीलम ग्रेंडी कहती हैं कि “आज के दौर में किशोरियों के लिए भी कंप्यूटर सीखना बहुत जरूरी हो गया है। इससे वह अपना हर कार्य आसानी से कर सकती हैं। गांव में लड़कियों को आज भी घर से बाहर कम निकलने दिया जाता है। ऐसे में केवल फॉर्म भरने के लिए माता-पिता उन्हें अकेले शहर नहीं जाने देते हैं। इसलिए गांव में ही कंप्यूटर सेंटर का खुलना किशोरियों के लिए बहुत अच्छा रहेगा। वह बताती हैं कि किशोरी सशक्तिकरण की दिशा में आगे बढ़ते हुए चरखा संस्था की ओर से गरुड़ ब्लॉक के चार गांवों में ‘दिशा ग्रह’ नाम से कंप्यूटर सेंटर खोले गए हैं, जहां ग्रामीण किशोरियां गांव में ही रहकर कंप्यूटर चलाना सीख रही हैं। जिससे उनमें आत्मविश्वास बढ़ रहा है। यदि पिंगलों में भी इसी प्रकार के कंप्यूटर सेंटर खुल जाते हैं तो यहां की किशोरियों के लिए भी इस आधुनिक तकनीक तक पहुंच आसान हो जाएगी।”

( उत्तराखंड के कपकोट से भावना गड़िया की ग्राउंड रिपोर्ट)

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