लोकतांत्रिक संगठनों का संयुक्त सम्मेलन: अरुंधति रॉय और शौकत हुसैन के खिलाफ मामला वापस लेने की मांग

जालंधर। देश भगत मेमोरियल में तीन दर्जन से अधिक सार्वजनिक लोकतांत्रिक संगठनों और साहित्यिक-सांस्कृतिक संस्थानों पर आधारित काले कानूनों के खिलाफ संयुक्त समिति द्वारा एक राज्य सम्मेलन का आयोजन किया गया। जिसमें पंजाब के कोने-कोने से संगठनों के नेता और कार्यकर्ता पहुंचे। सम्मेलन में प्रमुख पत्रकार और लोकतांत्रिक कार्यकर्ता भाषा सिंह ने मुख्य वक्ता के रूप में भाग लिया।

भाषा सिंह ने भारत की वर्तमान स्थिति पर बड़ी बेबाकी से अपने विचार रखे और भगवा सरकार द्वारा उठाये जा रहे फासीवादी कदमों का पुरजोर विरोध किया। तीसरी बार सत्ता में आई मोदी सरकार के फासीवादी लक्ष्यों के बारे में उन्होंने कहा कि ”सरकार ने आदेश को कानून से ऊपर रखा है। सर्वोच्च न्यायालय, यहां तक कि उच्च न्यायालय भी मूक दर्शक बने हुए हैं। इस व्यवस्था में, कुछ लोग कानून से ऊपर होते हैं, दूसरों को सरकार जब चाहे बिना अपराध किये जेलों में फेंक सकती है। यह भ्रम नहीं रहना चाहिए कि वर्तमान सरकार कमजोर है। यह पहले से भी बड़ा हमला करेगा। यूएपीए के तहत मामले को मंजूरी देकर सरकार स्पष्ट संदेश देना चाहती है कि वे न केवल संघर्षों का दमन कर सकते हैं, बल्कि प्रतिशोधी शक्ति विश्व प्रसिद्ध कलमों को मनमाने ढंग से दंडित भी कर सकती है। वे यह परखना चाहते हैं कि लोग उत्पीड़न के खिलाफ कितना बोलते हैं।”

उन्होंने विश्व प्रसिद्ध लेखक अरुंधति रॉय और प्रोफेसर शौकत हुसैन के खिलाफ यूएपीए के तहत मुकदमा चलाने की मंजूरी का विरोध करते हुए कहा कि अरुंधति रॉय इस बात का प्रतीक हैं कि कठिन परिस्थितियों में भी कैसे लड़ना है, कैसे लिखना है, कैसे बोलना है और कैसे मुस्कुराते रहना है। सत्ता अरुंधति रॉय की इसी मुस्कुराहट से डरती है।”

संसदीय विपक्ष की प्रकृति पर चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि विपक्ष को यह स्पष्ट रूप से समझ लेना चाहिए कि अगर वे अन्याय के खिलाफ नहीं बोलेंगे तो देश की जनता उनकी बात नहीं सुनेगी। जनसंघर्षों के महत्व के बारे में उन्होंने कहा कि ”सत्ता जनता के संघर्षों से डरती है। अरुंधति रॉय संघर्षों की सबसे बुलंद आवाज हैं, सत्ता उनकी कलम से और भी ज्यादा डरती है। इसीलिए वह उसे मुकदमे में फंसाकर उन सभी न्यायप्रिय लोगों के लिए एक संदेश बनाना चाहती है जो सत्ता पर सवाल उठाते हैं और उन्हें डर के मारे चुप करा दिया जाता है। लेकिन सत्ता के मंसूबे कभी सफल नहीं होंगे। अगर सत्ता में यूएपीए है, तो हमारा जवाब विरोध है।

पंजाब के जुझारू संघर्षों की विरासत के बारे में बात करते हुए उन्होंने कहा कि पंजाब के लोगों ने क्रांति के सपने को जीवित रखा है, यही कारण है कि पंजाब के लोगों के संघर्ष इतने शक्तिशाली हैं कि उन्होंने फासीवादी सरकार को तीन कृषि अधिनियम वापस लेने के लिए मजबूर कर दिया। संघर्षों की इस विरासत के कारण सांप्रदायिक ताकतों के इरादे यहां कभी सफल नहीं हुए।

जनवादी अधिकार परिषद के प्रदेश अध्यक्ष प्रोफेसर जगमोहन सिंह ने सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा कि औपनिवेशिक कानून व्यवस्था को खत्म करने के नाम पर नयी व्यवस्था बनायी गयी है। देश को एक पुलिस राज्य में बदलने के लिए लाए गए पुलिस बल कानून नए नामों के तहत औपनिवेशिक कानूनों को सुदृढ़ करते हैं और रोलेट एक्ट से भी अधिक खतरनाक हैं, जिसे रद्द करने के लिए भारत के स्वतंत्रता सेनानियों ने अपना खून बहाया था। उन्होंने कहा कि अरुंधति रॉय, प्रोफेसर शौकत, मेधा पाटेकर जैसे बुद्धिजीवियों और अधिकार रक्षकों को चुप कराकर नागरिकों की अभिव्यक्ति की आजादी का गला घोंटने और काले कानून थोपने के फासीवादी हमले के पीछे देश के इजारेदार पूंजीपतियों का हाथ है साम्राज्यवादी काम करते हैं।

जाने-माने वकील एडवोकेट दलजीत सिंह और एनके जीत ने नए आपराधिक कानूनों का विश्लेषण करते हुए कहा कि ये कानून संघर्षों से प्राप्त लोकतांत्रिक अधिकारों की जगह छीनने के लिए हैं। यह कानून उन अंतरराष्ट्रीय संधियों का भी उल्लंघन है, जिन पर भारतीय शासकों ने हस्ताक्षर किए हैं।

रैशनल सोसायटी के प्रांतीय नेता मास्टर राजिंदर भदौड़ ने कहा कि आज की सभा बुद्धिजीवियों को चुप कराकर और थोपकर पुलिस राज्य की ओर बढ़ने की बेहद खतरनाक साजिश के खिलाफ है। काले कानून जनता को जागृत करने में मील का पत्थर साबित होंगे और तीन कृषि कानूनों की तरह सरकार के हालिया फासीवादी हमलों को भी जनशक्ति द्वारा रोका जाएगा और यह फासीवादी सरकार के लिए एक चेतावनी भी होगी कि पंजाब के लोग महान गदरी बाबाओं, भगत-सराभाओं के दमनकारी साम्राज्यवाद के खिलाफ संघर्ष को नहीं भूले हैं और राज्य के फासीवादी कदमों का जवाब बड़े पैमाने पर जन लामबंदी के साथ पंजाब के जुझारू संघर्षों द्वारा दिया जाएगा। यह सभा एक चेतावनी भी है कि यदि यह फासीवादी कदम वापस नहीं लिया गया तो यह अभियान और अधिक व्यापक तथा तेज होगा।

सम्मेलन में नरभिंदर ने सभी संगठनों की ओर से प्रस्ताव प्रस्तुत किये। इन प्रस्तावों को मंजूरी देकर, कन्वेंशन ने मांग की कि अरुंधति रॉय और प्रोफेसर शौकत हुसैन के खिलाफ मामला पूरी तरह से वापस ले लिया जाए; अब तक पास किये लागू तीन दंडात्मक कानून, चार श्रम संहिता, डिजिटल मीडिया विनियमन और व्यक्तिगत डेटा संरक्षण अधिनियम, सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम और महाराष्ट्र सार्वजनिक सुरक्षा विधेयक, यूएपीए सहित सभी काले कानूनों को रद्द करें; भीमा-कोरेगांव और अन्य कथित साजिश मामलों के तहत जेल में बंद लोगों के बुद्धिजीवियों और कार्यकर्ताओं को बिना शर्त रिहा किया जाना चाहिए;

295/295ए के तहत दर्ज सभी मुकदमे तत्काल वापस लिए जाएं; जिन कैदियों ने अपनी सजा पूरी कर ली है उन्हें तुरंत रिहा किया जाना चाहिए; छत्तीसगढ़ और अन्य राज्यों में प्राकृतिक संसाधनों को कॉर्पोरेटों को सौंपने के लिए फर्जी मुठभेड़, ड्रोन हमलों और अन्य तरीकों से आदिवासियों की हत्या करना और बेदखली रोकी जानी चाहिए; अल्पसंख्यक मुसलमानों और ईसाइयों के खिलाफ घृणा अभियान, भीड़ हिंसा और बुलडोजर शासन को रोका जाना चाहिए; कश्मीर में सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम और यूएपीए के तहत जेल में बंद पत्रकारों, वकीलों और अन्य कार्यकर्ताओं को तुरंत रिहा किया जाये; मणिपुर में भाजपा सांप्रदायिक झगड़ों और महिलाओं के खिलाफ यौन हिंसा को तुरंत बंद किया जाये; गाजा पट्टी में अंधाधुंध हमलों के माध्यम से फ़िलिस्तीनियों का नरसंहार रोका जाना चाहिए और फ़िलिस्तीनी लोगों के फ़िलिस्तीन के अधिकार को स्वीकार किया जाना चाहिए।

सम्मेलन में यह भी मांग की गई कि पंजाब सरकार को इन काले कानूनों के लोकतांत्रिक अधिकारों पर घातक प्रभाव को देखते हुए इन्हें रद्द करने के लिए विशेष रूप से एक प्रस्ताव पारित करना चाहिए और उन लोगों के साथ खड़ा होना चाहिए जो लोकतांत्रिक अधिकारों की रक्षा के लिए आवाज उठा रहे हैं। सम्मेलन का मंच संचालन जसविंदर फगवाड़ा ने किया। सम्मेलन के बाद शहर में उग्र प्रदर्शन किया गया। इस अवसर पर बड़ी संख्या में संगठनों के नेता, कार्यकर्ता, महिला कार्यकर्ता, प्रसिद्ध लेखक, पत्रकार एवं अन्य लोकतांत्रिक हस्तियां उपस्थित थीं।

सम्मेलन के लिए एक बहुत ही उत्साहजनक संदेश कनाडा के संगठनों की ओर से एकजुटता का संदेश था। कनाडा के सार्वजनिक, लोकतांत्रिक, साहित्यिक, सांस्कृतिक और प्रगतिशील संगठनों मे संदेश भेजा। प्रो-पीपुल आर्ट्स प्रोजेक्ट मीडिया समूह टोरंटो ने भी सम्मेलन के उद्देश्य के साथ एकजुटता व्यक्त करते हुए एक संयुक्त भाईचारा संदेश भेजा। जो इस बात का प्रमाण है कि भारत की जागरूक जनता के साथ-साथ विदेशों में रहने वाले प्रवासी भारतीय भी फासीवादी शासन की योजनाओं को गंभीरता से ले रहे हैं और लोकतांत्रिक अधिकारों की रक्षा के लिए उनके संघर्ष में डटे हुए हैं।

(रिपोर्ट: बूटा सिंह महमूदपुर, अमोलक सिंह और सुमित सिंह अमृतसर)

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