उत्तर प्रदेश के बनारस में काशी विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद के गेट नंबर चार के पास अचानक लोहे का एक नया गेट लगाए जाने से आक्रोशित मुसलमानों ने जुमे की नमाज से पहले जमकर प्रदर्शन किया। इसके चलते मुस्लिम समुदाय और मंदिर प्रशासन के बीच विवाद गहराता जा रहा है। 01 अगस्त 2024 को घंटों की मशक्कत के बाद भी दोनों पक्षों के बीच सहमति नहीं बन पाई और स्थिति संभालने के लिए भारी पुलिस फोर्स की तैनाती की गई। ज्ञानवापी मस्जिद की देखरेख करने वाली संस्था अंजुमन इंतेजामिया मसाजिद कमेटी के संयुक्त सचिव मोहम्मद यासीन ने कहा है कि, ”योगी सरकार लोहे के गेट से सांप्रदायिकता का नया गेटवे बनाने बनाने की तैयारी कर रहे हैं। कुर्सी बचाने की कवायद में जानबूझकर पीएम नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र में सांप्रदायिकता का नया बितंडा खड़ा किया जा रहा है।”
1 अगस्त की दोपहर बाद मस्जिद जाने वाले नमाजियों और मुस्लिम समाज के लोगों ने विरोध प्रदर्शन किया। विरोध का कारण एंट्री पॉइंट पर बनाए जा रहे अस्थाई गेट (फ्रेम गेट) को लेकर है। जुमे की नमाज और सावन शिवरात्रि के मौके पर पूरे इलाके को पुलिस ने अपने कब्जे में कर लिया है। पुलिस फोर्स, मंदिर की अपनी फोर्स के साथ-साथ पैरामिलिट्री फोर्स भी तैनात की गई है।
वाराणसी प्रशासन और सुरक्षा बलों ने पूरे इलाके में सख्त इंतजाम किए हैं, जिसके तहत माहौल शांत है। दोनों ही समुदायों के लिए आज का दिन विशेष है। एक तरफ शिव भक्तों की भीड़ सावन शिवरात्रि का जल लेकर पहुंच रही है, तो वहीं दूसरी ओर जुमे की नमाज अदा करने के लिए नमाजियों की भीड़ है। विवाद की वजह यह है कि काशी विश्वनाथ मंदिर प्रशासन ने 01 अगस्त 2024 को गेट नंबर चार के सामने, अचानक लोहे का एक फ्रेम लगाकर नया गेट लगाना शुरू किया।
ज्ञानवापी मस्जिद की नई विभाजन रेखा खींचे जाने से आक्रोशित बड़ी तादाद में मुसलमान और मस्जिद कमेटी के लोग मौके पर पहुंच गए। इनका कहना था कि इस नए गेट से उन्हें मस्जिद में जाने से रोका जा सकता है, जिससे उनकी धार्मिक गतिविधियों में बाधा उत्पन्न हो सकती है। प्रशासन किसी भी कीमत पर ज्ञानवापी मस्जिद जाने वाले रास्ते पर गेट लगाने पर अड़ा था, जिसका मुसलमानों ने कड़ा विरोध किया। कल शाम तक आक्रोश और नारेबाजी चलती रही। उस तरफ मीडिया को जाने से रोक दिया गया। ज्ञानवापी मस्जिद कमेटी की ओर से मांग की जाती रही कि लोहे के गेट का फ्रेम हटाया जाए। काफी जद्दोजहद के बाद प्रशासन ने गेट लगाने का काम रोक दिया है, लेकिन फ्रेम को हटाने पर अभी भी सहमति नहीं बनी है।

ज्ञानवापी मस्जिद कमेटी का कहना है कि प्रशासन ने बिना सूचना दिए यह कदम उठाया है, जो अस्वीकार्य है। मंदिर प्रशासन और मुस्लिम पक्ष के बीच विवाद बढ़ने के कारण पैरामिलिट्री फोर्स भी तैनात की गई है। प्रशासन का कहना है कि सावन के महीने में सुरक्षा के मानकों को ध्यान में रखते हुए नया गेट बनाने का निर्णय लिया गया था। मंदिर प्रशासन ने यह भी कहा कि उन्होंने सुरक्षा समिति की बैठक में यह निर्णय लिया था, लेकिन मुस्लिम पक्ष को विश्वास में नहीं लिया गया था।
एक अगस्त को गेट लगाने का काम रुकने के बाद एडीएम सिटी आलोक कुमार वर्मा के आश्वासन पर मुस्लिम पक्ष ने विरोध प्रदर्शन बंद कर दिया था। प्रशासन की ओर से कहा गया था कि वो रात के समय गेट लगाने के लिए लगाया गया गार्डर हटा लेंगे, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। देर रात अंजुमन इंतेजामिया कमेटी के पदाधिकारियों को सूचना दी गई कि उन्होंने गेट हटाने का जो वादा किया था, वह ऐसा नहीं कर पाएंगे।
अफसरों की नीयत में खोट
02 अगस्त की सुबह तक गेट लगाने का सामान नहीं हटाया गया तो मुस्लिम समुदाय के लोग आक्रोशित हो गए। काशी विश्वनाथ मंदिर कॉरिडोर के गेट नंबर चार के पास अचानक मुस्लिम समुदाय के लोग जुटने लगे और विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया। सैकड़ों लोगों की भीड़ ने कॉरिडोर के गेट नंबर चार के सामने शांति से विरोध करना शुरू किया। मौके पर मौजूद प्रदर्शनकारियों ने यूपी की योगी सरकार की मंशा पर भी सवाल उठाए और कहा कि यूपी सरकार की मंशा किसी से छुपी नहीं है, और एक वर्ग के खिलाफ बहुत कुछ किया जा रहा है। मुस्लिम पक्ष के एक सदस्य हाजी एखलाक अहमद ने जनचौक से कहा, ”मुस्लिम पक्ष को बिना सूचना दिए गेट लगाने की तैयारी की जा रही थी। दोनों साइड में गेट लगाए जा रहे थे, और इसका उन्हें विरोध है। उन्होंने यह भी कहा कि मुख्य कार्यपालक अधिकारी ने नया गेट लगाने का फैसला किया है और उसे लेकर कोई प्रशासनिक आदेश नहीं आया है।”

ज्ञानवापी मस्जिद में जुमे की नमाज अदा कराने जा रहे मुफ्ती-ए-बनारस मौलाना अब्दुल बातिन नोमानी ने मंदिर प्रशासन के मनमाने रवैये की कड़ी आलोचना की। उन्होंने कहा, ”मस्जिद परिसर के अंदर दरवाजा लगाए जाने पर उन्हें आपत्ति है, क्योंकि इससे मस्जिद को खतरा हो सकता है। साथ ही मुसलमानों को मस्जिद की ओर जाने से रोका जा सकता है। उन्होंने कल भी इसका विरोध किया था और आज भी कर रहे हैं। मेरा मुतालबा यह है कि पहले जो काम हो चुका है, उसे हटाया जाए और उसकी बुनियाद खत्म की जाए। प्रशासन जानबूझकर मनमानी कर रहा है। एडीएम सिटी आलोक वर्मा ने गुरुवार की रात करीब एक बजे हमसे वादा किया था कि दो अगस्त को जुमे की नामज से पहले सब कुछ हटा दिया जाएगा। बाद में वो अपने वादे से मुकर गए और कहा कि यह संभव नहीं हो पाएगा।”
मुफ्ती-ए-बनारस मौलाना अब्दुल बातिन नोमानी ने कहा कि, ”मस्जिद के दरवाजे पर गेट पहले भी लगे हैं, लेकिन इस बार की बात कुछ और है। हमें प्रशासन की नीयत पर संदेह है। हम किसी भी कीमत पर गेट नहीं लगने देंगे। गेट हटा लिया गया है, लेकिन अब वे चाहते हैं कि फ्रेम और अन्य कार्य भी हटाए जाएं। जब तक यह नहीं होता, उनका विरोध जारी रहेगा। प्रशासन की मंशा स्पष्ट नहीं है। मस्जिद परिसर के अंदर जो दरवाजा लगाया जा रहा है, उस पर उन्हें आपत्ति है क्योंकि इससे मस्जिद को खतरा हो सकता है। कल भी इस दरवाजे का विरोध किया गया था और आज भी विरोध जारी है। जब तक गेट का काम पूरी तरह से बंद नहीं होता और पहले का काम हटाया नहीं जाता, तब तक विरोध जारी रहेगा। हमारे साथ विश्वासघात किया जा रहा है। प्रशासन की मंशा स्पष्ट नहीं है और जब तक उनकी मांगें पूरी नहीं होतीं, विरोध जारी रहेगा।”
काशी विश्वनाथ मंदिर की सुरक्षा के लिए तैनात डीसीपी (सुरक्षा) सूर्यकांत त्रिपाठी की पहल पर मंदिर मैनेजमेंट और प्रदर्शन कर रहे लोगों में एक म्यूचुअल कंसेंट बन गया फिलहाल मुस्लिम समुदाय ने प्रदर्शन और धरना समाप्त कर दिया है। जुमे की नमाज के बाद पुलिस प्रशासन ने नमाजियों को भरोसा दिया कि इस मुद्दे पर दोनों पक्षों के बीच बातचीत होगी। विवाद का सार्थक हल निकाला जाएगा। वार्ता के समय मुफ्ती-ए-बनारस मौलाना अब्दुल बातिन नोमानी के अलावा हाजी जावेद इकबाल और अंजुमन इंतेजामिया मसाजिद कमेटी के प्रतिनिधि और तमाम नमाजी मौके पर मौजूद थे।
ज्ञानवापी में देर से हुई नमाज
विरोध प्रदर्शन के चलते आज जुमे की नमाज अपने निर्धारित समय से करीब डेढ़ घंटे विलंब से शुरु हुई। इस मुद्दे को लेकर प्रशासन और मस्जिद कमेटी में तनातनी बनी हुई है। दोनों ही अपने-अपने स्थान पर अड़े हुए हैं। मंदिर प्रशासन और मुस्लिम पक्ष के बीच विवाद बढ़ने के कारण पैरामिलिट्री फोर्स भी तैनात की गई है। प्रशासन और सुरक्षा बल स्थिति पर नजर बनाए हुए हैं। संवेदनशील स्थिति और विभिन्न पर्वों को ध्यान में रखते हुए पुलिस फोर्स और मंदिर की अपनी सुरक्षा फोर्स तैनात कर दी गई है। सावन माह में पड़ने वाली महाशिवरात्रि के कारण श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ रही है।

काशी विश्वनाथ मंदिर मुख्य कार्यपालक अधिकारी विश्व भूषण मिश्र के मुताबिक, ”मंदिर मैनेजमेंट ने एक सुरक्षा समीक्षा बैठक बुलाई थी, जिसमें निर्णय लिया गया कि मंदिर के गेट नंबर चार के पास एक और गेट का निर्माण किया जाएगा।” सावन के महीने में भक्तों की भीड़ को देखते हुए गेट नंबर चार को अस्थायी रूप से बंद कर दिया गया और उसके बगल में एक और गेट बनाया जा रहा था। इस बात की जानकारी मिलते ही मसाजिद इंतजाम कमेटी ने मौके पर पहुंचकर शांतिपूर्ण प्रदर्शन शुरू कर दिया। दूसरी ओर, मुस्लिम पक्ष का कहना है कि गेट जो लगवाए जा रहे हैं, उसके बारे में उन्हें कोई जानकारी नहीं दी गई थी।
अंजुमन इंतेजामिया मस्जिद कमेटी के संयुक्त सचिव मोहम्मद यासीन ने जनचौक से कहा, ”सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट का 1942 का आदेश है कि जिस स्थान पर मंदिर प्रशासन लोहे का स्थायी गेट लगा रहा है वह पैसेज कामन है। ज्ञानवापी मस्जिद में नमाज अदा करने के लिए मुस्लिम समुदाय के लोग यहीं से होकर जाते हैं। मस्जिद जाने के लिए यह मुसलमानों का इकलौता रास्ता रह गया है, जिसे वो पूरी तरह रोकना चाहते हैं। योगी सरकार जानबूझकर नए सांप्रदायिक विवाद को जन्म दे रही है। इसके पीछे सिर्फ कुर्सी बचाने की मंशा है।
”यूपी में सांप्रदायिकता को हवा देने की रणनीति के चलते से योगी सरकार ने कांवड़ मार्गों और विश्वनाथ मंदिर के आसपास की दुकानों पर नेम प्लेट लगाने का फरमान जारी किया था। बनारस के ज्ञानवापी मस्जिद के पास गेट लगाकर नई विभाजन रेखा खींचना चाहते हैं। हम कानूनी परामर्श कर रहे हैं। जरूरी हुआ तो हम इस मुद्दे पर सुप्रीम जाएंगे। मंदिर प्रशासन को किसी भी कीमत पर मनमानी नहीं करने देंगे। अंजुमन इंतेजामिया मसाजिद कमेटी की बैठक के बाद आगे की रणनीति तय की जाएगी।”
प्रशासन पर भरोसा नहीं
बनारस में मुस्लिम पक्ष के लोगों को प्रशासन की नीति और नीयत पर भरोसा नहीं है। वाराणसी के डिस्ट्रिक जज डा. एके विश्वेश ने अपने रिटायरमेंट के दिन ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में स्थित सोमनाथ व्यास के तहखाने में पूजा और राग-भोग शुरू कराने का आखिरी फैसला सुनाया था। अपने 31 जनवरी 2024 के आदेश में कोर्ट ने यही आदेश दिया था कि, “जिला मजिस्ट्रेट, वाराणसी/ रिसीवर को निर्देश दिया जाता है कि वह सेटेलमेंट प्लाट नंबर-9130, थाना चौक, जिला वाराणसी स्थित भवन के दक्षिण की तरफ स्थित तहखाने जो कि वादग्रस्त संपत्ति है। वादी और काशी विश्वनाथ ट्रस्ट बोर्ड के द्वारा नामित निर्दिष्ट पुजारी से तहखाने में स्थित मूर्तियों की पूजा और राग-भोग कराए। इस उद्देश्य के लिए सात दिन के भीतर लोहे की बाड़ आदि में उचित प्रबंध करे।”
ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में दो लेयर में बैरिकेडिंग की गई है। आम धारणा है कि यह बैरिकेडिंग मुलायम सरकार ने लगवाई थी, लेकिन ऐसा नहीं है। ज्ञानवापी मस्जिद की सुरक्षा के लिए मुहम्मद असलम उर्फ भूरे नामक व्यक्ति ने साल 1993 में सुप्रीम कोर्ट में एक पीआईएल दाखिल की थी। इस मामले में शीर्ष अदालत ने मस्जिद की कड़ी सुरक्षा का निर्देश दिया था और प्रशासन को मस्जिद के चारों ओर बैरिकेडिंग लगाने का निर्देश दिया था। बाड़ लगाने के बाद वाराणसी जिला प्रशासन ने सुप्रीम कोर्ट में शपथ-पत्र देते हुए कहा था कि ज्ञानवापी की मस्जिद की चौतरफा बैरिकेडिंग करा दी गई है। ज्ञानवापी का विवाद दोबारा उछला तो सुप्रीम कोर्ट ने मस्जिद की सुरक्षा की समीक्षा करते हुए और ऊंची बैरिकेडिंग करने के लिए 14 मार्च 1997 को एक और आदेश जारी किया। कोर्ट ने अपने आदेश में साफ तौर पर कहा, “ज्ञानवापी की सुरक्षा और बैरिकेडिंग के मामले में हमारे आदेश के ऊपर किसी भी सब-आर्डिंनेट कोर्ट का प्रभाव नहीं होगा।”
ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में जो पहली बैरिकेडिंग की गई थी, वह करीब दस फीट ऊंची है। जिस समय ज्ञानवापी मस्जिद की बैरिकेडिंग काटी जा रही थी, उस समय सीआरपीएफ के कमांडेंट समेत कई अफसर मौजूद थे। डिस्ट्रिक कोर्ट ने डीएम को सात दिन के भीतर लोहे की बाड़ आदि का उचित प्रबंध करने का हुक्म दिया था, लेकिन जिलाधिकारी एस.राजलिंगम ने तूफानी रफ्तार दिखाई और सिर्फ सात घंटे के अंदर ही बैरिकेडिंग कटवाकर पूजा, राग-भोग शुरू करा दिया।
नया एंगल तलाश रहे हुक्मरां
ज्ञानवापी मामले को तूल देने के लिए अब नई विभाजन रेखा खींचे जाने से सिर्फ मुस्लिम समुदाय ही नहीं, बनारस के प्रबुद्ध नागरिक भी अवाक हैं। लोगों के जेहन में यह सवाल खड़ा होने लगा है कि आखिर सावन के महीने में सरकार ज्ञानवापी का मुद्दा क्यों उछाल देती है? जिस स्थान पर लोहे का गेट लगाया जा रहा है, वहां पहले से ही बड़ी संख्या में पुलिस और अर्द्ध सैनिक बलों के जवान आधुनिक हथियारों के साथ तैनात रहते हैं। सुरक्षा इतनी तगड़ी है कि कोई परिंदा भी पर नहीं मार सकता है। ऐसे में वहां नया गेट लगाकर विवाद खड़ा करने की प्रशासन को जरूरत क्यों पड़ गई? इन सवालों का जवाब ढूंढने के लिए जनचौक ने शहर के कुछ वरिष्ठ पत्रकारों से बात की।
सावन के महीने में ज्ञानवापी मस्जिद की ओर जाने वाले रास्ते पर मुस्लिम पक्ष को विश्वास में लिए बगैर नया गेट लगाने के मंदिर प्रशासन के फैसले को वरिष्ठ पत्रकार कुमार विजय अलग नजरिये से देखते हैं। वह कहते हैं, ”अयोध्या और यूपी में हारने के बाद बीजेपी अब नए सिरे से सांप्रदायिक एंगल तलाश रही है। पहले राम भरोसे थे और उम्मीद थी कि नैया पार लग जाएगी। लेकिन यूपी में करारी हार के बाद राम को छोड़ दिया। शिवभक्तों को मोहरा बनाकर इन्होंने सांप्रदायिक और जातीय नफरत की खाई खोदने का प्रयास किया। सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप की वजह से योगी सरकार को मात खानी पड़ी।”

”योगी इस समय अपनी कुर्सी बचाने की जद्दोजहद में लगे हैं। उनके पास सांप्रदायिकता के अलावा कोई ऐसी चाबी नहीं है जिसके सहारे वह इंडिया गठबंधन के पीडीए का मुकाबला कर पाएं। इसी चाल को नए सिरे से खेलते हुए ज्ञानवापी के सहारे मोदी के संसदीय क्षेत्र बनारस में सांप्रदायिक वैमनस्य को नए सिरे उभारने का प्रयास शुरू कर दिया है। इसी के तहत मुस्लिमों को रोकने और सांप्रदायिक तनाव पैदा करने के लिए अचनाक लोहे के सींखचों का बाड़ा लगाने का प्रयास किया जा रहा है।”
काशी पत्रकार संघ के पूर्व अध्यक्ष एवं राजनीतिक विश्लेषक प्रदीप श्रीवास्तव कहते हैं, ”सांप्रदायिकता को खाद-पानी देना बीजेपी का कोई नया और गोपनीय एजेंडा नहीं है। इस एजेंडे पर दशकों से बीजेपी अपने मातृ संगठन आरएसएस का काम कर रहा है। वो हिन्दुओं को यह समझाने में सफल हैं कि वही उनके मजबूत पैरोकार हैं। चाहे वो 370 का मसला हो या फिर अयोध्या, काशी और मथुरा का मुद्दा। इन्हीं मुद्दों पर उन्हें वोट मिलता रहा है। इसी के दम पर वो सरकार में आए हैं। बीजेपी को दो बार पर्याप्त वोट मिले। तीसरी बार भी खींच-तानकर सरकार बना लिया। आगे क्या होगा, यह उन लोगों को सोचना होगा, जो इस एजेंडे से उलट दूसरे तरह का समाज व देश बनाना चाहते हैं। जनता को भी यह तय करना होगा कि समाज में नफरत और सांप्रदायिकता कैसे खत्म हो?”
”बनारस के ज्ञानवापी में वो अभी फाटक लगा रहे हैं, कल उससे कुछ बड़ा कर सकते हैं। इसे स्वीकार करने से भी वो परहेज नहीं कर रहे है। सामने डटकर खड़े हैं। उन्हें कोई संकोच नहीं, कोई पर्देदारी नहीं है। वो जानते है कि उन्हें इससे ताकत मिलती है। हिन्दुत्व ही उनकी सबसे बड़ी ताकत है। उन्हें देश और समाज से कुछ लेना-देना नहीं है। उन्हें पता है वोटरों के लिए कुछ भी करने से सरकार नहीं बना करती। सरकार सिर्फ जज्बाती धार्मिक नारों से ही बनती हैं।”
प्रदीप कहते हैं, ”धार्मिक नारों और जज्बाती मुद्दों का ही कमाल है कि ज्यादातर लोगों को महंगाई में भी विकास नजर आता है। जिस दिन लोगों को एहसास हो जाएगा कि जज्बाती नारों सरकार नहीं बचा सकते तो वो फिर दूसरे उपाय तलाशेंगे। फिलहाल उनका जज्बाती कार्ड चल रहा है। ज्ञानवापी में जब गेट लगाने से किसी बड़े नेता की कुर्सी बच सकती है और उसका सियासी मकसद पूरा हो रहा है तो वह कुछ भी करेगा, किसी भी कीमत पर गेट लगाकर नई विभाजन रेखा खींचने से वो अपना कदम पीछे नहीं खींचेगा।”
(विजय विनीत बनारस के वरिष्ठ पत्रकार हैं)
+ There are no comments
Add yours