माँ-बेटे की पोर्ट्रेट।

कोरोना काल डायरी: बदलती ज़िंदगी की गवाहियां

जब से लॉकडाउन हुआ है तबसे ज़िंदगी मानो बदल-सी गई है। पहले सुबह जल्दी उठने की सुगबुगाहट होती थी, बेटे को यूनिवर्सिटी भेजना होता था, वो 8 बजे चला जाता है। आजकल के बच्चे आप जानते ही हैं, जल्दी सोते नहीं हैं, तो सुबह उनकी नींद भी नहीं खुलती। मेरे बेटे को जगाना अगर मुश्किल नहीं है तो आसान भी नहीं है। माँ का बहुत लाडला है, आवाज़ में हल्का-सा भी गुस्सा उसकी बर्दाश्त से बाहर की बात है। इसलिए कभी नहीं चाहती कि उसके दिन की शुरुआत मेरे कारण खराब हो। लोगों की सुबह गुड मॉर्निंग होती है, पर हमारी होती है दूध मॉर्निंग। अभी वो 20 साल का हो गया, ऐसा कोई दिन याद नहीं जब हमारी दूध मार्निंग ना हुई हो।

बेटा आजकल घर ही होता है, इसलिए अब कोई जल्दी नहीं होती सुबह उठने की। अक्सर हम 9 बजे के बाद ही जागते हैं, कुछ देर बातें और माँ- बेटे की मस्ती होती है और फिर होती है एक खुशनुमा दिन की शुरुआत। मैं रात का प्राणी हूँ, अपने ज़्यादातर काम रात को ही निपटा के सोती हूं, ताकि दिन में खुद के साथ कुछ समय गुजार सकूं, लेकिन अब जिंदगी जैसे ठहर-सी गई है। खुद के साथ बिताने के लिए वक्त ही वक्त है पर अब मैं हमेशा किसी का साथ पाने की खोज में रहती हूं।

ना मैं किसी के घर जा रही हूं और ना ही पिछले करीब डेढ़ महीने से मेरे ही घर पर कोई आया है। बहुत अकेलापन महसूस होता है कई बार। पति मेरे विदेश में हैं और बेटा अपनी पढ़ाई में बिजी रहता है। पढ़ाई के बाद का टाइम वो अक्सर मेरे साथ बिताता है, इससे वो अकेलापन चाहे दूर नहीं होता, पर हम दोनों के बीच एक अच्छी अंडरस्टैंडिंग जरूर बन गयी है। अब वो मुझे बेहतर तरीक़े से समझने लगा है, मेरे अंदर के खालीपन को भरने की मासूम सी कोशिशें भी करता है। 

कई बार महसूस होता है जैसे अब किसी को भी किसी से वह पहले वाला प्यार नहीं रहा। भीतर व बाहर जैसे काफी कुछ बदल गया हो, ऐसा लॉक डाउन की वजह से उपजे एकाकीपन के कारण है या कोरोना जैसी महामारी की वजह से, यह मैं नहीं जानती। इस दौरान कुछ रिश्तों की परतें भी खुल गईं। रिश्तों के नए मायने समझ आ गए। कहीं बरसों की दोस्तियां अजनबियों में बदल गईं औऱ कहीं टूटे रिश्ते बेहद मजबूत कड़ी में जुड़ गए, कहीं भरोसे टूटे तो कहीं रिश्तों को नए आयाम मिले। 

मेरे जीवन में ये वक़्त काफी उथल-पुथल लेकर आया है, अचानक ही दिल की धड़कनें बहुत तेज़ हो जाती हैं, तो कभी लगता है कि सांसें मानो रुक सी गयी हैं। रिश्तों में क्या फर्क आया, कौन हुआ अपना और कौन पराया, कल करेंगे इस पर खुल कर बात….

(मीनाक्षी गांधी वरिष्ठ पत्रकार हैं। इन दिनों जालंधर रहती हैं।)

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