परजीवियों को मार्क्सवाद से डर तो लगता है भाई!

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आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने आज नागपुर में ‘स्वांग’ सेवकों को संबोधित किया। इस संबोधन में मोहन भागवत ने कहा की भारत बहुत तेजी से विकास कर रहा है। भारत की समृद्धि बढ़ रही, विश्व में भारत की इज्जत बढ़ रही, चारों तरफ डंका बज रहा है, लेकिन भारत के समक्ष कुछ चुनौतियां भी हैं।

इन चुनौतियों में सबसे बड़ी चुनौती उन्होंने मंत्र विप्लव को माना। उनके लिए भारत से गरीबी को दूर करना कोई चुनौती नहीं है, बेरोजगारी को दूर करना कोई चुनौती नहीं है, सभी के लिए शिक्षा और स्वास्थ्य की व्यवस्था करना कोई चुनौती नहीं है।

हां हम कहां से आए हैं, मरने के बाद कहां जायेंगे, इसकी चिंता करनी चाहिए। गरीबी, बेरोजगारी, शिक्षा और स्वाथ्य जैसे लौकिक मुद्दों की चिंता नहीं करनी चाहिए।

मोहन भागवत ने एक तरफ आध्यात्म की बात की और दूसरी तरफ मंत्र विप्लव की बात की। अगर हमें यही सोचना है कि हम कहां से आए हैं, मरने के बाद कहा जायेंगे तो, आपको अपने ईश्वर और धर्म पर पूरा भरोसा होना चाहिए और लौकिक जगत यानी बांग्लादेश में क्या हो रहा है, इसकी चिंता नहीं करनी चाहिए।

इसी विरोधाभास के कारण मोहन भागवत मार्क्सवाद से डर रहे हैं। क्योंकि मार्क्स कहते हैं, इस लोक की चिंता करो। अपनी गरीबी बेरोजगारी का कारण यहां की व्यवस्था में तलाश करो। ये स्वर्ग नरक का भय दिखाने वाले तुम्हारे दुश्मन है। और यह डर परजीवियों यानी दूसरे के श्रम का शोषण करने वालों को होना भी चाहिए।

वो भी उस समय, जब पड़ोस में अपने आप को मार्क्सवादी कहने वाला व्यक्ति सत्ता पर काबिज हो गया है, बांग्लादेश में लौकिक जगत की समस्याओं को लेकर तख्ता पलट हो गया है। नेपाल पहले से ही मार्क्सवादियों के हाथ में है। चीन में क्रांति ही हुई थी। अब बचा पाकिस्तान, वहां भी शायद अब जन्नत में जाने के लिए कम, इसी जीवन में रोजी-रोटी के लिए ज्यादा सोचा जा रहा है।

चलिए अब मोहन भागवत के भाषण की कुछ अन्य विशेषताओं पर बात करते हैं। इस भाषण में भागवत ने कुछ ऐसे शब्दों का प्रयोग किया, जिसके लिए शेखर गुप्ता जैसे वरिष्ठ पत्रकारों को भी दूसरे विद्वानों से सहायता लेनी पड़ी। मंत्र विप्लव, अल्टरनेटिव पॉलिटिक्स, डीप स्टेट, wokism जैसे शब्द।

मंत्र विप्लव को छोड़ दिया जाय तो सभी शब्द अमेरिका के दक्षिणपंथी संगठन, वामपंथी संगठनों के लिए इस्तेमाल करते हैं। वैसे जिन कार्यों के लिए मोहन भागवत ने अमेरिकी दक्षिणपंथियों से शब्दों को उधार लेकर वामपंथ को कोसा, वे सारी उपमाएं आरएसएस पर हुबहू लागू होती है।

अल्टरनेटिव पॉलिटिक्स उस राजनीति को कहते हैं, जिसमें राजनीति करने वाला संगठन स्वयं जनता के सामने नहीं जाता है, आरएसएस इसका सबसे शानदार उदाहरण है।

डीप स्टेट का अर्थ होता है, जो संगठन स्वयं राजनीति नहीं करते हैं लेकिन उनके सदस्य सभी संस्थाओं में बैठे रहते हैं। इस समय सभी संस्थाओं में आरएसएस के सदस्य प्रभावी भूमिका में हैं।

विश्वविद्यालयों के कुलपति, प्रोफेसर, पुलिस अधिकारी, ईडी के अधिकारी, सीबीआई के अधिकारी, रिजर्व बैंक के गवर्नर, यहां तक की न्यायपालिका में भी आरएसएस के सदस्य बैठे हैं।

इसके अतिरिक्त भागवत ने प्रवचन में जो अवगुण गिनाए, वे सभी आरएसएस के प्रमुख गुण है। आरएसएस ही धर्म के नाम पर भारतवासियों में भेद करता है, भारत में अल्पसंख्यकों को सबसे ज्यादा डर आरएसएस से ही है।

आरएसएस ही कट्टरता फैलता है। आरएसएस ही ब्राह्मणों सवर्णों को सभी संसाधनों का मालिक बनाए रखना चाहता है। दलितों, पिछड़ों और महिलाओं को अधिकार दिए जाने का विरोधी है, भारत के संविधान का विरोध आरएसएस ही करता है।

मणिपुर में जो आग आज लगी है उसके लिए दोषी आरएसएस ही है। ग्रामर ऑफ एनार्की की बात करने वाले मोहन भागवत को मालूम है कि अन्ना आंदोलन और जेपी आंदोलन जो स्वतंत्र भारत का सबसे बड़ा अराजक आंदोलन था, उसको आरएसएस ने चलाया था। बाबरी मस्जिद गिराना क्या अराजकता नहीं थी।

आरएसएस के ‘स्वांग’ सेवक कल्याण सिंह सुप्रीम कोर्ट में एफिडेविट देने के बावजूद भी बाबरी मस्जिद को ध्वस्त करवाया, क्या ये संविधान की मर्यादा का उल्लंघन नहीं था? मंडल आयोग लागू करने के विरोध में आरएसएस के मुखपत्र ऑर्गनाइजर में ही लिखा गया था कि यह शुद्र क्रांति है, इसे किसी भी कीमत पर रोकना होगा।

आंदोलनरत किसानों को खालिस्तानी किसने कहा। क्या यह सच नहीं कि आरएसएस इस देश की संपत्तियों को कुछ थोड़े से पूंजीपतियों के हाथों में सौप दिए जाने का समर्थन करता है।

इतना सब होने के बावजूद भागवत किसको नसीहत दे रहे हैं, स्पष्ट है इस देश के गरीबों को, दलितो को, पिछड़ों को, आदिवासियों को और अल्पसंख्यकों को।

चाहे जितना भी अत्याचार इनपर हो इन्हें सहन करना चाहिए और मार्क्सवाद जैसे मंत्र विप्लव से बचना चाहिए। लेकिन अब आरएसएस का सच भारत की जनता के सामने आ चुका है।

(डॉ. अलख निरंजन लेखक एवं टिपप्णीकार हैं)

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