एक ओर हथियारों की होड़ और दूसरी ओर दुनिया भर में अरबों लोग हो रहे हैं भुखमरी के शिकार

पिछले एक शताब्दी में विज्ञान के क्षेत्र में अत्यधिक विकास होने के कारण कृषि क्षेत्र में भी अधिक उन्नति हुई। इतना अनाज पैदा होने लगा कि सारी दुनिया का पेट भरा जा सके। भले ही दुनिया में दो महाशक्तियों के बीच शीतयुद्ध चल रहा था, लेकिन नब्बे के दशक तक यह कहा जाने लगा था, कि अब अकाल और भुखमरी इतिहास के पन्नों में ही दर्ज़ होकर रह जाएँगे, लेकिन क्या ऐसा हुआ?

भले ही आज महाशक्तियों के बीच शीतयुद्ध समाप्त हो गया हो,लेकिन नये तरह से साम्राज्यवादी युद्ध और गृहयुद्ध दुनिया भर में भड़क उठे हैं। छोटे-छोटे ग़रीब मुल्क भी हथियारों पर बेतहाशा ख़र्च करने लगे। भारत जैसे विकासशील देश भी बैलेस्टिक मिसाइल तक बनाने लगे हैं, फलस्वरूप दुनिया भर में एक बार फ़िर भुखमरी का संकट खड़ा हो गया है, क्योंकि संसाधन को अनाज की उपलब्धता पर नहीं बल्कि हथियारों की खरीद और विकास पर ख़र्च किया जा रहा है।

पिछले दिनों ‘विश्व बैंक और संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन’ (एफ़.ए.ओ.) ने ‘संसार में खाद्य सुरक्षा और पोषण के हालात’ नाम से रिपोर्ट प्रकाशित की है, जिसने पूँजीवादी समृद्धि और प्रगति के दावों की हवा निकालकर रख दी है। समय-समय पर प्रकाशित होने वाली ये रिपोर्टें इस व्यवस्था की वास्तविकता को उजागर करती हैं और इस व्यवस्था को जल्द से जल्द बदलने की ज़रूरत का अहसास करवाती हैं।

ताज़ा रिपोर्ट में विश्व स्तर पर खाद्य सुरक्षा,अच्छी ख़ुराक़ लोगों तक पहुँचाने, कुपोषण आदि के बारे में विस्तार से चर्चा की गई है। रिपोर्ट के अनुसार दुनिया में हर 11वाँ व्यक्ति भुखमरी का सामना कर रहा है और अफ़्रीका में तो हरेक पाँचवाँ व्यक्ति भुखमरी का शिकार है। यह एक भयानक स्थिति है। कुल दुनिया में साल 2022 में 73.3 करोड़ लोग भुखमरी का शिकार हुए। इस संख्या में साल 2019 की तुलना से भुखमरी के शिकार लोगों में 15.2 करोड़ की बढ़ौतरी हुई है।

इस समय संसार की 29 फीसदी आबादी खाद्य असुरक्षा का सामना कर रही है, जिसकी संख्या 23.3 करोड़ है। कुल जनता के एक तिहाई हिस्से यानी लगभग 280 करोड़ लोगों तक पौष्टिक आहार नहीं पहुँच रहा। पौष्टिक आहार का अर्थ ऐसा आहार है, जिसमें शरीर के लिए ज़रूरी प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट्स, चर्बी आदि भरपूर मात्रा में मौजूद हों। अगर यह पहुँच से बाहर है तब माना जाता है,जब व्यक्ति की आमदनी रिहाइश और यातायात के ख़र्चों समेत अलग-अलग खाद्य पदार्थों के ख़र्चे को पूरा करने के लिए पर्याप्त कम हो।

आँकड़ों के अनुसार ख़र्चे में साल 2020 से 2021 के दौरान 6 प्रतिशत की वृद्धि हुई है,जो 2021-22 में बढ़कर 11 प्रतिशत हो गई, लेकिन मेहनतकश आबादी की आमदनी में कोई महत्वपूर्ण वृद्धि नहीं हुई। लगातार बढ़ती महँगाई के कारण अच्छी ख़ुराक़ खाना मेहनतकश आबादी के लिए असंभव हो रहा है। कम आमदनी वाले देशों की 71.5% फ़ीसदी, कम और मध्यम आमदनी वाले देशों की 52.6% फ़ीसदी आबादी अच्छी ख़ुराक़ तक पहुँच नहीं कर सकती। दशकों से प्राकृतिक संसाधनों को लूटने के लिए साम्राज्यवादी युद्धों का अखाड़ा बने यमन और सीरिया जैसे देशों की जनता की स्थिति सबसे भयानक है।

रिपोर्ट के अनुसार 5 वर्ष से कम आयु के बच्चों में बौनापन और उम्र से कम वज़न की हालत में कोई महत्वपूर्ण अंतर नहीं आया और स्थिति वैसी की वैसी ही है। 15 से 49 वर्ष की महिलाओं में एनीमिया (ख़ून की कमी) में वृद्धि दर्ज हुई है। साल 2012 में 28.5 प्रतिशत,2019 में 29.9 प्रतिशत महिलाएं एनीमिया का शिकार थीं, जिनके 2030 तक 32.3 फ़ीसदी होने की आशंका है यानी 2030 में दुनिया की हर तीसरी महिला एनीमिया की शिकार होगी। ऐसी स्थितियों में पैदा होने वाले बच्चे सेहतमंद नहीं हो सकते। छोटे बच्चों के बौनापन और अन्य शारीरिक कमियों का एक मुख्य कारण माँओं का सेहतमंद ना होना भी है। इस तरह माँ से बच्चों तक ये कमियाँ पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ रही हैं।

यह पूँजीवादी-साम्राज्यवादी प्रणाली की असलियत है। इस व्यवस्था को इस तरह से पेश किया जाता है,जैसे कि यह कोई अंतिम व्यवस्था हो और मानवता अब इस चरण से आगे नहीं बढ़ेगी। ऐसा जताया जाता है जैसे कि यह व्यवस्था जल्द ही सभी समस्याओं पर क़ाबू पा लेगी, लेकिन असलियत में इस क्रूर प्रणाली का आम जनता के जीवन से कोई सरोकार नहीं है। कृषि विकास के वर्तमान चरण में उत्पादन कुल जनता की खाद्य ज़रूरतों से कहीं ज़्यादा हो रहा है और कुछ खाद्य पदार्थों का उत्पादन अभी भी इनकी ज़रूरतों से कहीं ज़्यादा है, लेकिन फिर भी दुनिया की एक तिहाई से ज़्यादा आबादी भुखमरी का शिकार है।

साम्राज्यवादी अमेरिका जैसे देशों के शासक फ़िलिस्तीनियों को कुचलने के लिए अरबों डॉलर की वित्तीय सहायता दे रहे हैं, जिसके ज़रिए इज़राइली शासक बच्चों, महिलाओं और फ़िलिस्तीनी लोगों की सरेआम हत्याएँ कर रहे हैं, लेकिन इस पैसे का इस्तेमाल संसार-भर से भुखमरी को मिटाने के लिए नहीं किया जा रहा और न ही इस वर्तमान व्यवस्था द्वारा किया जाएगा। इस एक उदाहरण से ही समझा जा सकता है कि विभिन्न देशों का शासक वर्ग और उनके प्रतिनिधियों के लिए आम जनता की क्या हैसियत है?

वास्तव में न आज संसाधनों की कमी है,न ही अनाज की। दुनिया भर में भरपूर अनाज की पैदावार हो रही है, लेकिन अनाज का मूल्य न गिरे, इससे लिए इसे आम जनता तक पहुँचाया ही नहीं जा रहा है। सीरिया, लीबिया, फिलिस्तीन लेबनान तथा अनेक अफ्रीकी देशों में जहाँ युद्ध और गृहयुद्ध चल रहे हैं, वहाँ साम्राज्यवादी देश भारी पैमाने पर हथियार तो भेज रहे हैं, लेकिन अनाज नहीं। वास्तव में वैश्विक खाद्यान्न के संकट और भुखमरी के पीछे यही साम्राज्यवादी ताकतें हैं।

(स्वदेश कुमार सिन्हा लेखक और स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)

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