झारखंड में आदिवासियों की संस्कृति, सामुदायिक स्वायत्तता और संसाधनों पर लगातार हमला : महासभा

Estimated read time 1 min read

रांची। झारखंड जनाधिकार महासभा ने 17 मार्च, 2025 को रांची में एक प्रेस वार्ता किया। महासभा ने राज्य सरकार से मांग करते हुए कहा कि ‘अबुआ राज’ की भावना के साथ पंचायत उपबंध (अनुसूचित क्षेत्रों पर विस्तार) अधिनियम,1996 (पेसा) को पूर्ण रूप से लागू करने की ज़रूरत है। इसके लिए (जेपीआरए) झारखंड पंचायत राज अधिनियम, 2001 में संशोधन कर पेसा के सभी प्रावधानों को जोड़ने की ज़रूरत है। इसके साथ पेसा राज्य नियमवाली के ड्राफ्ट में सुधार की भी ज़रूरत है। इस अवसर पर महासभा ने (जेपीआरए) में प्रस्तावित संशोधनों और नियमावली में सुधार के संलग्न ड्राफ्ट को जारी किया।

महासभा ने कहा कि झारखंड में दशकों से आदिवासियों की सांस्कृतिक पहचान, सामुदायिक स्वायत्तता और संसाधनों पर लगातार हमले होते रहे हैं। जैसे – निजी व सामुदायिक भूमि का अतिक्रमण करना, बिना ग्राम सभा की सहमति के धार्मिक निर्माण करना, पुलिस कैंप स्थापित करना, वन विभाग द्वारा फर्जी मामला दर्ज करना, संस्कृति, भाषा और सामुदायिक प्रबंधन को पर्याप्त संरक्षण न मिलना आदि।

हालांकि, इन्हें रोकने के लिए संविधान के कई प्रावधान हैं एवं कई स्थानीय कानून भी हैं, लेकिन हमले भी तीव्र होते गए हैं। ऐसी परिस्थिति में इनके विरुद्ध सामूहिक संघर्ष में पेसा भी कुछ हद तक मदद कर सकता है।

पेसा के अनुसार अनुसूचित क्षेत्र में त्रिस्तरीय पंचायत व्यवस्था के प्रावधानों का विस्तार होगा। लेकिन, आदिवासी सामुदायिकता, स्वायत्तता और पारम्परिक स्वशासन इस पंचायत व्यवस्था का मुख्य केंद्र बिंदु होगा एवं ग्राम सभा स्वायत्त और स्वशासी होगा। पेसा के प्रावधान राज्य के पंचायत राज कानून से ही लागू हो सकते हैं, लेकिन जेपीआरए में पेसा के अधिकांश प्रावधान सम्मिलित नहीं है।

प्रेस वार्ता में बताया गया कि पेसा के अनुसार, राज्य के पंचायत अधिनियम को अनुसूचित क्षेत्र के लिए रूढ़ि विधि, सामाजिक-धार्मिक परम्पराएं और सामुदायिक संसाधनों के पारम्परिक प्रबंधन व्यवस्था अनुरूप बननी है। लेकिन जेपीआरए में यह मूल भावना सम्मिलित नहीं है। इसलिए सबसे पहले जेपीआरए को संशोधित करने की ज़रूरत है।

पेसा के तहत ग्राम सभा के कुछ प्रमुख अधिकार जो जेपीआरए में सम्मिलित नहीं हैं निम्न हैं:

1. भूमि अर्जन से पहले और पुनर्वास के पहले ग्राम सभा से सहमति।

2. गौण खनिजों पर नियंत्रण।

3. गौण वन उपजों पर मालिकाना।

4. गैर कानूनी तरीके से ली हुई जमीन वापसी करवाने की शक्ति

5. सामुदायिक संसाधनों का पारंपरिक प्रबंधन व्यवस्था आदि।

इसके अलावा जेपीआरए में अनुसूचित क्षेत्र के लिए ऐसे कई धाराएं व प्रावधान हैं जो पेसा की मूल भावना के अनुरूप नहीं हैं। उदहारण के लिए, ग्राम सभा के लिए कुल सदस्यों के महज़ 1/3 की उपस्थिति का कोरम रखा गया है। इससे सामूहिकता कमज़ोर होती है। पंचायत सचिव को ही ग्राम सभा का सचिव बनाया गया है। जबकि, अनुसूचित क्षेत्र में प्रशासन व बाहरी तत्वों द्वारा ग्राम सभाओं को नियंत्रित करने की कोशिश लगातार रहती है। साथ ही जेपीआरए में ग्राम पंचायतों, पंचायत समिति व ज़िला परिषद् को कई अधिकार हैं जो पेसा के तहत ग्राम सभा के अधिकार क्षेत्र पर हस्तक्षेप करते हैं।

प्रेस वार्ता में बताया गया कि महासभा द्वारा जेपीआरए में प्रस्तावित संशोधनों में पेसा के सभी अधिकारों को जोड़ा गया है और उक्त कमियों को सुधारा गया है। साथ ही, राज्य के सभी सम्बंधित कानूनों में नियमावली के अनुसार संशोधन हो।

महासभा मानती है कि बिना मूल कानून (जेपीआरए) में पेसा के सभी प्रावधानों को जोड़े नियमावली बनाना उचित नहीं है क्योंकि प्रावधानों को कानून का बल नहीं मिलेगा। पंचायत राज विभाग द्वारा बनाए गए नियमावली में अनेक गंभीर खामियां हैं। पेसा का प्रमुख प्रावधान है कि परम्पराओं और रूढ़ि के अनुसार समाज समाविष्ट टोला/टोलों के समूह से एक गांव का गठन करना। लेकिन नियमावाली में ग्राम गठन के बदले ग्राम सभा गठन का वर्णन है।

पेसा के अनुसार ग्राम सभा आदिवासी भूमि का गलत तरीके के हस्तांतरण को रोकने और ऐसी भूमि वापिस करवाने के लिए सक्षम है। लेकिन नियमावली में निर्णायक भूमिका उपायुक्त को दिया गया है। वर्तमान नियमावली में सांस्कृतिक पहचान और सामुदायिक स्वायत्तता पर हो रहे हमलों को रोकने के लिए प्रक्रियाओं को नहीं जोड़ा गया है। महासभा द्वारा नियमावली में ऐसे कमियों को सुधारा गया है।

प्रेस वार्ता में बताया गया कि विभिन्न संगठनों के लगातार संघर्ष से राज्य में पेसा पर व्यापक चर्चा शुरू हुई है। लेकिन विभिन्न समूहों में पेसा लागू करने की प्रक्रिया पर अलग-अलग सोच होने के कारण सरकार पर इसे लागू करने के सामूहिक दबाव नहीं पड़ रहा है। ऐसी एक गलत अवधारणा भी फ़ैल रही है कि पेसा लागू होने से पंचायत ख़त्म हो जायेंगे एवं पेसा सीधा, बिना राज्य पंचायत कानून के, लागू हो सकता हैं। महासभा ने इस सम्बन्ध में कई पर्चे जारी किए हैं ताकि सभी पेसा अधिकारों और इसके लागू करने की प्रक्रिया से अवगत हो। साथ ही, पंचायत राज मंत्री को भी जेपीआरए व नियमावली के खामियों से अवगत कराया गया है।

गठबंधन दलों ने पेसा को पूर्ण रूप से लागू करने का चुनावी वादा किया था। विधानसभा सत्र में झामुमो विधायक हेमलाल मुर्मू समेत कई विधायकों ने भी इन मुद्दों को उठाया है। लेकिन अभी तक राज्य सरकार ने इस पर स्पष्ट प्रतिबद्धता नहीं दर्शायी है। महासभा राज्य सरकार से मांग करती है कि तुरंत जेपीआरए में संशोधन कर पेसा के सभी प्रावधान जोड़े जायें एवं उसके अनुसार नियमावली बनाई जाये। साथ ही, प्रशासन और पुलिस को ग्रामसभा के अधिकारों के विषय में जागरूक किया जाए एवं यह सुनिश्चित किया जाए कि वे ग्राम सभा के अधिकारों का उल्लंघन न करें।

प्रेस वार्ता को दिनेश मुर्मू, डेमका सोय, एलिना होरो, जॉर्ज मोनिपल्ली, रिया तुलिका पिंगुआ और अलोका कुजूर ने संबोधित किया।

उल्लेखनीय है कि देश की आजादी के बाद पूरे भारत में पंचायती राज प्रणाली लागू थी। वहीं देश के पांचवीं अनुसूची वाले आदिवासी इलाकों में भी वही सामान्य कानून ही लागू थी, जिसके कारण आदिवासी समुदाय की विशिष्ट सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक, धार्मिक और राजनीतिक व्यवस्था लुप्तप्राय होने की स्थिति में पहुंच गयी थी।

आदिवासी समुदाय की इसी विशिष्ट पहचान को बचाने के लिए संविधान में 79वां संशोधन किया गया, जो संविधान का 73वां संशोधन अधिनियम 1992 पंचायतों को स्वशासी संस्था के रूप में काम करने में सक्षम बनाने के लिए कुछ शक्तियां और अधिकार देता है। इसी के आलोक में आदिवासी बहुल इलाकों में पंचायती राज के विस्तार पर अध्ययन करने के लिए एक संसदीय समिति बनायी गयी जिसे भूरिया समिति कहा जाता है जिसने 17 जनवरी, 1995 को अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की।

बताते चलें कि भूरिया समिति की सिफारिश के बाद संसद ने पंचायत (अनुसूचित क्षेत्रों में विस्तार) अधिनियम 1996 को अनुसूचित क्षेत्रों के लिए पारित किया। जो 24 दिसंबर, 1996 को लागू हुआ और यही पेसा कानून (पंचायत एक्सटेंशन टू शेड्यूल्ड एरियाज एक्ट) के रूप में जाना जाता है।

बता दें कि यह एक्ट आदिवासी समुदायों के पारंपरिक अधिकारों को मान्यता देता है। यह अधिनियम, ग्राम सभाओं को पूर्ण शक्तियां देता है, ग्राम सभाओं को अपने गांव का पैसा गांव के विकास के लिए खर्च करने का अधिकार देता है, आदिवासी समुदायों की परंपराओं और रीति-रिवाजों को बचाता है और आदिवासी समुदायों को शोषण से बचाने में मदद करता है। मतलब यह कानून जल, जंगल और जमीन का अधिकार देता है।

कहना ना होगा कि इस एक्ट के लागू हुए 29वां साल होने जा रहा है, लेकिन इस पर लंबे समय से हो रही बहस के बावजूद इसे राज्य में आजतक एक सार्थक स्वरूप नहीं दिया जा सका है।

बताते चलें कि झारखण्ड राज्य का 259 प्रखंडों में से 134 प्रखंड पांचवीं अनुसूची क्षेत्र के अंतर्गत आते हैं। झारखण्ड राज्य में झारखण्ड पंचायत राज विधेयक 2001, जो 30 मार्च 2001 को विधान सभा में पारित हो गया और अब यह कानून बन गया है। इस कानून के तहत अब राज्य में पंचायत चुनाव होंगे। अनुसूचित क्षेत्रों और गैर अनुसूचित क्षेत्रों में अलग-अलग कानून होंगे और अलग-अलग तरीके से पंचायती राज चलेगा।

बता दें कि झारखंड पंचायती राज अधिनियम (जेपीआरए), 2001 अंतर्गत अनुसूचित क्षेत्र को पेसा के अधिकांश प्रावधानों और शक्तियों से वंचित रखा गया है।

(झारखंड से विशद कुमार की रिपोर्ट)

+ There are no comments

Add yours

You May Also Like

More From Author