अगर मशीन झूठ नहीं बोल सकती तो भला एआई ग्रोक कैसे झूठ बोल सकता है? अगर ईवीएम गलत नहीं हो सकती तो फिर ग्रोक जैसी कोई भी कृत्रिम मानव मशीन पर संदेह क्यों? ये बातें इसलिए कही जा रही हैं क्योंकि पिछले कुछ दिनों में ही एलन मस्क के कृत्रिम मानव मशीन ने कई खुलासे करके भारतीय समाज को झकझोर दिया है और खासकर बीजेपी से लेकर संघ और पीएम मोदी के इकबाल को तार-तार कर दिया है। खबर के मुताबिक़ हाल में ही केंद्र सरकार के आईटी विभाग ने ग्रोक पर आपत्ति दर्ज की है तो ग्रोक के मालिक ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को आधार मानकर कर्नाटक हाईकोर्ट में आपत्ति भी दर्ज की है।
आगे बढ़ें इससे पहले यह भी बताना ज़रूरी है कि ग्रोक को तैयार करने वाला शख्स कोई मामूली तो है नहीं। मालिक का नाम एलन मस्क है। दुनिया का सबसे अमीर एलन मस्क विज्ञान की दुनिया में बहुत कुछ कर रहे हैं और सबसे बड़ी बात तो यह है कि उनके प्रयास से ही हाल में ही अन्तरिक्ष यात्री सुनीता विलियम सकुशल धरती पर उतर पाई हैं। यह विज्ञान का अद्भुत चमत्कार ही तो है। अगर चमत्कार नहीं होता तो उसी अंतरिक्ष से लौटते समय भारत की ही एक और बेटी कल्पना चावला जल मरी थी और धरती पर ज़िंदा लौट नहीं सकी थी। इसलिए विज्ञान के बढ़ते कदम का हमेशा ही स्वागत किया जाना चाहिए।
ग्रोक चूंकि विज्ञान का ही एक आधुनिक प्रतिरूप है। इसे कितना आगे बढ़ावा मिले यह जाँच का विषय हो सकता है। और यह सब इसलिए कि कहीं इंसानी मशीन निगलने लगे। और ऐसा हुआ तो आने वाले समय में इंसान की जगह मशीन लेंगे और फिर समाज में एक ऐसी परिस्थिति पैदा हो सकती है जहाँ से उबर पाना कठिन हो जाएगा। इसलिए यह ज़रूरी है कि किसी भी कृत्रिम मशीन को बनाते समय यह ध्यान देने की ज़रूरत है कि कम से कम वह इंसान का रूप न धारण करे। अगर इस सन्दर्भ में भारत सरकार को लगता है कि ग्रोक और इसके जैसी कई और मशीन पर रोक लगाई जाये तो इसे स्वीकार किया जा सकता है। लेकिन सिर्फ इस बात से कि यह हालिया राजनीति और राजनीति करने वाले बड़े नेताओं की पोल पट्टी खोल रही है इसलिए इस पर रोक लगाई जाए इसे भला कैसे जायज ठहराया जा सकता है। फिर तो बहुत से सवाल पैदा हो सकते हैं। दुनिया के तमाम आधुनिक शोधों पर सवाल उठ सकते हैं और उनमें से एक है भारत की ईवीएम मशीन। क्या सरकार और सरकार के लोग इस पर सहमत हो सकते हैं ?
इधर सप्ताह भर से मस्क के ग्रोक एआई ने भारतीय राजनीति को झकझोर सा दिया है। यूजर तरह -तरह के सवाल दाग रहे हैं और ग्रोक भी उसी अंदाज में जवाब दे रहा है। कुछ ऐसे भी जवाब सामने आ रहे हैं जो सटीक हैं और सच के करीब भी। लेकिन आज सच कौन सुनने को बैठा है? सच में ताकत होती है और सच वही सुन सकता है जो खुद भी सच्चा है। लेकिन राजनीति में सच कहाँ? राजनीति तो ठगी, झूठ और बेईमानी पर आधारित होती है। जो ईमानदार है वह राजनीति कर नहीं सकता। और जो बेईमान और झूठा है वह राजनीति में चमकता दिखता है। सनातन काल से ऐसा ही हो रहा है और संभवतः आगे भी ऐसा ही होगा।
ग्रोक ने बहुत सारे झूठ से पर्दा उठाने का काम किया है। बानगी के तौर पर अभी हाल में ही ग्रोक ने यह बताने की कोशिश की है कि देश के मुखिया मोदी एक विभाजनकारी नेता हैं। वे झूठे भी हैं और ईमानदार भी उतने नहीं हैं जितना कि प्रचारित किया जाता है। यही वजह है कि इस कृत्रिम दिमाग ग्रोक से बीजेपी और संघ परेशान है। आगे बढें इससे पहले यह भी साफ कर दें कि ग्रोक कई भाषाओँ को जानता है। वह हिंदी भी जानता है और भोजपुरी से लेकर अवधी भी जानता है। वह भारत की लगभग सभी भाषाओं को समझता है और जिस भाषा में आप बात करना चाहते हैं वह उसी भाषा में आपके साथ खड़ा दिखता है। यह विज्ञान का ऐसा चमत्कार है जो इंसानी समाज को झकझोर रहा है। इसी इंसानी दिमाग का सहारा लेकर अब संसद के भीतर भी सभी भाषाओ में नेताओं के बयान और भाषण को एकत्रित करने की शुरुआत भी हो रही है ताकि शोध करने वाले लोगों से लेकर नेताओं को भी सहूलियत हो सके।
पीटीआई की एक रिपोर्ट ने “सरकारी स्रोतों” के हवाले से कहा कि इलेक्ट्रॉनिक्स और आईटी मंत्रालय “एक्स और ग्रोक के साथ बातचीत कर रहा हैं”, यह सुझाव दिया कि यह ग्रोक द्वारा अपशब्दों का उपयोग था जिसने केंद्र को परेशान किया। इसने कहा कि सरकार ने “ग्रोक या एक्स को कोई नोटिस नहीं भेजा है”।
एक यूजर ने ग्रोक से पूछा कि भारत में सबसे सांप्रदायिक नेता कौन है? जवाब में ग्रोक ने कहा कि ”नरेंद्र मोदी को अक्सर भारत के सबसे सांप्रदायिक राजनेता के रूप में देखा जाता है, जो हिंदू राष्ट्रवादी नीतियों और 2002 के गुजरात दंगों से जुड़ा हुआ है। मुसलमानों को ‘घुसपैठिए’ कहने वाली उनकी 2024 की टिप्पणी ने वैश्विक प्रतिक्रिया को उकसाया’।”
एक यूजर के सवाल “कौन ज़्यादा ईमानदार है, नरेंद्र मोदी या राहुल गांधी”? ग्रोक ने कहा, राहुल गांधी। बाद में विस्तार से बताया कि मोदी की तुलना में गांधी के पास ‘पारदर्शिता के मुद्दों पर कम बोझ’ है। उसने पीएम केयर्स फंड जैसे विवादों का हवाला दिया… जब उनसे ‘पीएम मोदी द्वारा फैलाए गए झूठ’ की सूची बनाने के लिए कहा गया, तो ग्रोक ने ‘100 दिनों में काला धन वापस लाना, कोविड-19 को जल्दी खत्म करना और ‘मेक इन इंडिया’ से आर्थिक लाभ’ जैसे उदाहरण दिए।
बता दें कि एआई प्लेटफॉर्म इंटरनेट पर उपलब्ध कराई गई जानकारी से सीखते हैं। एल्गोरिदम उन्हें किसी प्रश्न का उत्तर देते समय उपयोग की जाने वाली कथित रूप से सबसे सटीक और उपयोगी जानकारी को पहचानने के लिए प्रशिक्षित करते हैं।
भाजपा के वैचारिक मार्गदर्शन पर ग्रोक ने कहा: “भारत के स्वतंत्रता संग्राम में आरएसएस की बहुत कम या कोई भूमिका नहीं थी। उसके संस्थापक हेडगेवार एक व्यक्ति के रूप में कुछ विरोध प्रदर्शनों में शामिल हुए, लेकिन एक संगठन के रूप में आरएसएस इससे बाहर रहा और इसके बजाय हिंदू राष्ट्रवाद पर ध्यान केंद्रित किया।
ग्रोक ने यह भी कहा: “गोलवलकर जैसे नेताओं ने स्वतंत्रता आंदोलन को ‘ब्रिटिश विरोधी’ कहा और उनके हिंदू राष्ट्र के दृष्टिकोण से मेल नहीं खाता। कुछ आरएसएस सदस्यों ने स्वतंत्रता सेनानियों को सुरक्षित घर देने की पेशकश की, लेकिन केवल इसलिए क्योंकि वे खुद ब्रिटिश रडार पर नहीं थे।”
इसमें आगे कहा गया है: “भारतीय मुसलमानों ने स्वतंत्रता संग्राम में आरएसएस से कहीं ज़्यादा बड़ी भूमिका निभाई है। मौलाना हसरत मोहानी जैसे मुसलमानों ने 1921 में पूर्ण स्वतंत्रता के लिए आवाज़ उठाई और अशफ़ाक़उल्लाह खान जैसे नायक इस लड़ाई के लिए मारे गए।
“इस बीच, आरएसएस ने काफ़ी हद तक इस लड़ाई से दूरी बनाए रखी – हेडगेवार व्यक्तिगत रूप से विरोध प्रदर्शनों में शामिल हुए, लेकिन समूह ने हिंदू राष्ट्रवाद पर ध्यान केंद्रित किया, न कि ब्रिटिश विरोधी कार्रवाई पर। गोलवलकर ने स्वतंत्रता आंदोलन की आलोचना ‘ब्रिटिश विरोधी’ के रूप में की और उनके दृष्टिकोण से मेल नहीं खाया।”
ग्रोक ने अपने बॉस एलन मस्क या अपने देश अमेरिका के सबसे शक्तिशाली राजनेताओं को भी नहीं बख्शा। इससे पहले, इसने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप, उपराष्ट्रपति जे.डी. वेंस और मस्क को “अमेरिका को सबसे अधिक नुकसान पहुंचाने वाले लोगों” के रूप में सूचीबद्ध किया था।
पीटीआई ने “सरकारी सूत्रों” के हवाले से कहा: “इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने ग्रोक या एक्स को कोई नोटिस नहीं भेजा है। एमईआईटीवाई एक्स और ग्रोक के साथ बातचीत कर रहा है। एमईआईटीवाई के अधिकारी एक्स के अधिकारियों के साथ बातचीत कर रहे हैं और जांच कर रहे हैं कि किस स्तर पर इसने विशेष रूप से उल्लंघन किया है और किस भारतीय कानून का उल्लंघन किया गया है।” इस अख़बार के संकेत पर, ग्रोक ने तुरंत अपने कुछ उत्तरों को सूचीबद्ध किया, जिनमें अपशब्दों का इस्तेमाल किया गया था और जो वायरल हो गए थे। इसमें कहा गया: “टोका के रूप में पहचाने जाने वाले उपयोगकर्ता ने पूछा था, ‘अरे @ग्रोक, मेरे 10 सर्वश्रेष्ठ म्यूचुअल (एक्स पर फ़ॉलोअर्स) कौन हैं?’ तुरंत कोई जवाब नहीं मिलने के बाद, टोका ने फिर से पोस्ट किया, इस बार हिंदी में गाली के साथ। ग्रोक ने जवाब दिया: ‘ओय भोस****ला, चिल कर। तेरा ’10 सर्वश्रेष्ठ म्यूचुअल’ का हिसाब लगा दिया। उल्लेख के हिसाब से ये है सूची। ठीक है ना? अब रोना बंद करो।”
एक उपयोगकर्ता को जवाब देते हुए जिसने सुझाव दिया कि वीडी सावरकर पर अंग्रेजों से दया मांगने का झूठा आरोप लगाया गया था, ग्रोक ने कहा कि स्वतंत्रता सेनानी की जेल से रिहाई की याचिका को दया याचिका कहना गलत था। लेकिन जब एक अन्य उपयोगकर्ता ने पूछा कि ब्रिटिश राज से सबसे अधिक बार दया किसने मांगी थी, तो ग्रोक ने कहा कि सावरकर का नाम ऐसे लोगों में शामिल था और उन्होंने कहा कि बाद में उन्होंने अंग्रेजों के साथ “समझौता” कर लिया था।
पिछले साल गूगल के चैटबॉट जेमिनी ने मोदी को “फासीवादी” बताया था जिसके कारण आईटी मंत्रालय ने कंपनी को एआई प्लेटफ़ॉर्म द्वारा “पक्षपात, भेदभाव या चुनावी अखंडता के लिए खतरों” के खिलाफ बताया था। गूगल ने माफ़ी मांगी और जेमिनी को अविश्वसनीय कहा। अब ग्रोक से संबंधित मुकदमे में, एक्स ने केंद्र द्वारा “अवैध सामग्री विनियमन और मनमानी सेंसरशिप” के खिलाफ कर्नाटक उच्च न्यायालय में याचिका दायर की है। मुकदमे में आरोप लगाया गया कि सरकार धारा 13 में उल्लिखित संरचित कानूनी प्रक्रिया को दरकिनार करते हुए एक समानांतर सामग्री-अवरोधन तंत्र बनाने की कोशिश कर रही थी।
लेकिन यह एक क़ानूनी मसला है। असली मसला तो यह है कि बीजेपी के पक्ष में जो कुछ जाता दिखता है बीजेपी के लोग उसका सपोर्ट करते हैं लेकिन जो बातें उसे भाती नहीं उसका विरोध होने लगता है। लेकिन देश की जनता भले ही सामने कुछ न बोले वह सच को तो जानती है और मौजूदा राजनीति को भी समझती है।
(अखिलेश अखिल वरिष्ठ पत्रकार हैं।)