चारों ओर से मुसीबतों से घिरे मोदी जी अपने बद से बदतर होते जा रहे हालात में अब एक अंतिम दांव चल दिए हैं, जिसकी चर्चा सन् 2019 से शुरू गई थी। जब कांग्रेस मुक्त भारत के सपने देखने वाले को इंदिरा गांधी का परिवार गले की हड्डी बन गया।
राहुल के पीछे पूरा आईटी सेल छोड़ दिया गया और भाजपा के अदने से कार्यकर्ता से लेकर समस्त मंत्री, सांसद, मुख्यमंत्री और मोदी-शाह उनको पप्पू साबित करने में लग गए। इस दुष्प्रचार में करोड़ों रुपए खर्च किए गए।
किंतु राहुल इस उपालंभ से लेशमात्र घबराए नहीं। यहां तक कि कांग्रेस के स्वनामधन्य लीडर भी उन्हें उसी नज़रिए से देखने लगे। इसका असर बहुसंख्यक अवाम पर भी पड़ा। ऐसी विपरीत परिस्थितियों में राहुल गांधी डिगे नहीं। उनकी संसद सदस्यता भी समाप्त की गई, उनका बंगला भी छीन लिया गया। उनकी मां को अपमानित किया गया किंतु इस सबसे बेखबर दृढ़ता के साथ, साहस समेटे वे निरंतर एक सामर्थ्यवान जन प्रिय नेता बन गए। आज वे सदन में प्रतिपक्ष नेता के पद पर आसीन हैं जिस पद को शैडो प्राइम मिनिस्टर माना जाता है।
मोदी का ब्रह्मास्त्र कहें या अंतिम दांव अब ये है कि राहुल गांधी, देश के लिए समर्पित उनकी मां सोनिया गांधी और बहन प्रियंका और उनके पति राबर्ट वाड्रा को जेल की सलाखों के पीछे कैसे भेजा जाए। ताकि कांग्रेस और इंडिया गठबंधन को कमज़ोर किया जा सके। इसीलिए नेशनल हेराल्ड मामले में एक सुनियोजित साज़िश के तरह एफआईआर दर्ज कराई गई है।
हालांकि देश का अवाम मोदी सरकार की तमाम करतूतों को भली-भांति समझ रही है। चर्चा चल पड़ी है कि क्या इसका असर भारतीय जनमानस पर पड़ेगा? आज देश के तमाम लोग ईडी जैसी फर्जी एजेंसी को भली-भांति जानने लगे हैं जिसने कांग्रेस पार्टी, श्रीमती सोनिया गांधी और राहुल गांधी को टार्गेट करने का प्रयास किया है।
इस ईडी ने पिछले 10 साल के अंदर 5,900 केस दर्ज किए, 70 हजार करोड़ रुपए की संपत्तियों को अटैच किया है, लेकिन सिर्फ 23 केस साबित कर पाई। पिछले 10 साल के अंदर 193 केस नेताओं पर किए, जिनमें 95% नेता विपक्ष के थे। इससे साफ़ जाहिर है कि यह एजेंसी डराकर बहुत लोगों को कांग्रेस से खींचकर भाजपा में ले आई। इनमें शातिर लोग भी हैं जो आज भाजपा के चमकदार बेदाग नेता हैं। मसलन हेमंत विस्शर्मा, शुभेंदु अधिकारी, ज्योतिरादित्य वगैरह। BJP और देश जानता है कि सोनिया गांधी, राहुल गांधी न डरने वाले हैं, न झुकने वाले हैं।
इसलिए 11साल से नेशनल हेराल्ड के नाम से जब तब पूछताछ करते रहते हैं इस बार इस परिवार के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई है। ताकि इन सबको जेल भेजा जा सके।पर यह इतना आसान नहीं है।नेशनल हेराल्ड और यंग इंडिया का सच इसे पढ़कर जाना जा सकता है।
नेशनल हेराल्ड की स्थापना 1938 में पंडित नेहरू ने की थी। 2008 तक इसका मालिकाना हक एसोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड (AJL) के पास था एक प्राइवेट लिमिटेड कंपनी जिसके पास हजारों करोड़ की संपत्तियाँ थीं। यानी इसके शेयरधारकों (जिनमें गांधी परिवार भी शामिल था) को कानूनी रूप से इसका स्वामित्व प्राप्त था।
2008 में AJL आर्थिक संकट में फंसी, अखबार छपना बंद हुआ और कर्मचारियों के वेतन व देनदारियाँ चुकाना मुश्किल हो गया। इसे सहारा देने के लिए भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने AJL को लगभग ₹90 करोड़ का बिना ब्याज ऋण दिया- केवल वेतन, संचालन और कर्ज चुकाने के लिए।
2012 में डॉ. सुब्रमण्यम स्वामी ने चुनाव आयोग से शिकायत की कि कांग्रेस ने एक प्राइवेट कंपनी को ऋण देकर नियमों का उल्लंघन किया है।
लेकिन चुनाव आयोग ने इस शिकायत को खारिज कर दिया, और कहा कि कांग्रेस द्वारा AJL को ऋण देने में कुछ भी अवैध नहीं है। अब आलोचक सवाल उठाते हैं: AJL ने अपनी संपत्ति बेचकर कर्ज क्यों नहीं चुकाया?
उत्तर सीधा है: अगर AJL अपनी संपत्तियाँ बेचता, तो उससे होने वाला लाभ उसके शेयरधारकों को मिलता यानी गांधी परिवार को। लेकिन AJL ने संपत्तियाँ नहीं बेचीं, ताकि भविष्य में नेशनल हेराल्ड को फिर से शुरू किया जा सके।
इस उद्देश्य को सुनिश्चित करने और व्यक्तिगत लाभ से बचने के लिए, “यंग इंडिया” नामक एक नई संस्था बनाई गई । जो कंपनी अधिनियम की धारा 25 के तहत एक “गैर-लाभकारी संस्था (Non-Profit)” है। कांग्रेस ने उस ऋण को माफ कर दिया और AJL का स्वामित्व यंग इंडिया को स्थानांतरित कर दिया।
विदित हो, यंग इंडिया एक गैर-लाभकारी संस्था है। इसके निदेशकों या शेयरधारकों को कोई वेतन, लाभांश या आर्थिक लाभ नहीं मिल सकता।
अगर AJL एक प्राइवेट लिमिटेड कंपनी के तौर पर अपनी संपत्ति बेचता, तो गांधी परिवार को बड़ा वित्तीय लाभ होता। लेकिन यंग इंडिया के अंतर्गत अब ऐसा संभव नहीं है।
भविष्य में यदि यंग इंडिया या AJL को भंग किया जाता है, तो संपत्तियाँ बेची जाएँगी और सारी राशि भारत सरकार के पुनर्वास और दिवालिया कोष में जाएगी। किसी भी व्यक्ति को एक रुपया भी नहीं मिलेगा। सोचिए, अगर गांधी परिवार या कांग्रेस को निजी लाभ चाहिए होता, तो वे बस संपत्तियाँ बेच देते। लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। उन्होंने एक गैर-लाभकारी संस्था बनाई, ताकि नेशनल हेराल्ड को पुनर्जीवित किया जा सके और किसी भी व्यक्ति को इसका लाभ न मिले।
अब गौर कीजिए ऐसी संस्था में मनी लांड्रिंग का मामला कैसे बनेगा। इसीलिए इस बार एफआईआर की गई है ताकि इस परिवार की बदनामी हो और जेल का मज़ा चखाया जाए।
उपलब्ध प्रमाण इस मामले को भी निश्चित ही खारिज कर देंगे क्योंकि इसमें किसी अपराध की बू नहीं आती। बाकी साहिब का झूठा ज़माना है झूठे किरदार हैं वे वही कर रहे हैं जो निदेशक करवा रहा है। बहरहाल बदलाव की आंधी शुरू हो चुकी है कभी भी तूफान में तब्दील होकर झूठ का दंभ तोड़ सकती है। सच परेशान हो सकता है लेकिन जय उसी को मिली है।
(सुसंस्कृति परिहार लेखिका और एक्टिविस्ट हैं।)
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