पहलगाम में हुए आतंकवादी हमले से उम्मीद है कि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेताओं का पाकिस्तान और कश्मीर को लेकर अहंकार टूटा होगा। जब नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ रहे थे, तब उन्होंने अपने सीने की चौड़ाई 56 इंच बताने से लेकर नोटबंदी और अनुच्छेद 370 को निरस्त करने जैसे कदमों से कश्मीर में आतंकवाद खत्म करने का दावा किया था।
हाल ही में भाजपा नेताओं राजनाथ सिंह, एस. जयशंकर और योगी आदित्यनाथ ने यह दावा किया कि कश्मीर का एकमात्र बचा मुद्दा पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (पीओके) को भारत में मिलाना है। ये दावे स्पष्ट करते हैं कि भाजपा नेता स्वयं को भ्रम में रखे हुए थे और देश को गुमराह कर रहे थे।
22 अप्रैल, 2025 को पहलगाम में हुए आतंकवादी हमले ने जम्मू-कश्मीर में भाजपा सरकार की नीतियों से शांति बहाल होने के दावों की पोल खोल दी। पिछले ग्यारह वर्षों में सरकार ने शुतुरमुर्ग की तरह कश्मीर समस्या को नजरअंदाज किया है।
प्रधानमंत्री शायद विश्व के सभी देशों की यात्रा कर चुके हैं, सिवाय मणिपुर के, और 2015 में पाकिस्तान में नवाज शरीफ के निजी कार्यक्रम में अघोषित रूप से लाहौर गए थे। मनमोहन सिंह के कार्यकाल में भारत-पाकिस्तान संबंधों में कुछ सुधार दिखा था, लेकिन भाजपा के सत्ता में आने के बाद ये संबंध ठंडे बस्ते में पड़ गए हैं।
पहलगाम हमले के बाद भारत की प्रतिक्रिया रही-सिंधु जल संधि को स्थगित करना, अटारी सीमा बंद करना, और पाकिस्तानी नागरिकों के वीजा रद्द करना। जवाब में पाकिस्तान ने भी इसी तरह के कदम उठाए। ये फैसले दूरदर्शी राजनीति के विपरीत हैं। आग लगने पर उसमें घी डालने का काम नहीं किया जाता, बल्कि उसे बुझाने की कोशिश होनी चाहिए।
यह कहना आसान है कि हम पाकिस्तान को एक बूंद पानी नहीं देंगे, लेकिन क्या किसी ने सोचा कि नदी के पानी को रोकने के क्या परिणाम होंगे? इससे हमारे यहाँ बाढ़ आ सकती है। यदि चीन ने ऐसा ही निर्णय लिया तो हिमालय से निकलने वाली हमारी अधिकांश नदियाँ प्रभावित होंगी, जिसके परिणाम भयावह होंगे।
हमने ऐसी तीखी प्रतिक्रिया 2020 में गलवान घाटी में चीन के सैनिकों द्वारा 20 भारतीय सैनिकों की हत्या के बाद नहीं दिखाई। चीन के साथ हमने राजनयिक संबंध समाप्त नहीं किए, बल्कि हमारा आयात-निर्यात व्यापार दोगुना हो गया। डोनाल्ड ट्रम्प ने मूर्खतापूर्ण तरीके से अमेरिकी निर्यात पर शुल्क बढ़ाकर अपनी किरकिरी कराई, जबकि चीन ने चतुराई से बिना शोर मचाए व्यापार में भारत को झुका लिया। आज हम चीन पर इतने निर्भर हैं कि हमारी सरकार खुलकर यह स्वीकार नहीं करती कि चीन ने भारत की 4,000 वर्ग किलोमीटर भूमि पर कब्जा कर रखा है। फिर भी, भाजपा नेता इस भूमि को वापस लेने की बात नहीं करते।
भाजपा सरकार भले ही युद्धोन्माद का वातावरण बनाए, लेकिन हकीकत यह है कि दोनों देशों के पास परमाणु हथियार होने के कारण भारत के सामने पाकिस्तान के साथ युद्ध का विकल्प नहीं है। यदि दोनों पक्षों ने परमाणु हथियारों का उपयोग किया, तो दोनों ओर भयंकर तबाही होगी।
जितनी जल्दी भारत यह समझ ले कि कश्मीर समस्या का समाधान केवल पाकिस्तान के साथ बातचीत से संभव है, उतना ही इस क्षेत्र के लोगों के लिए बेहतर होगा। भाजपा को यह मोह त्यागना होगा कि कश्मीर मुद्दे का सांप्रदायिक इस्तेमाल कर वह हिंदू वोटों का ध्रुवीकरण कर सकती है। उसे अब देशहित, लोकहित और कश्मीर मुद्दे के राजनीतिक दोहन के बीच चयन करना होगा।
खुफिया तंत्र और सुरक्षा व्यवस्था की विफलता की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए नरेंद्र मोदी और अमित शाह को पहलगाम आतंकवादी हमले के लिए इस्तीफा देना चाहिए। इससे नई सरकार के गठन का रास्ता साफ होगा, जो कश्मीर समस्या के समाधान के लिए पाकिस्तान के साथ बातचीत शुरू कर इस क्षेत्र में शांति और स्थिरता सुनिश्चित कर सके।
(संदीप पाण्डेय सोशलिस्ट पार्टी (इंडिया) के महासचिव हैं)
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