11 लोगों की जान बचाने वाले नज़ाकत ने कहा : एक आदिल शहीद तो हज़ारों आदिल पर्यटकों की रखवाली करेंगे

कश्मीर के पहलगाम में 22 अप्रैल को हुए आतंकियों के कायराना हमले के 13-14 दिन बाद हमारी बातचीत (फोन पर) इस हमले में 11 लोगों को बचाने वाले नज़ाकत शाह से हुई, नज़ाकत एक टूर गाइड है और साथ ही उनके परिवार का शॉल का बिजनेस है वो सर्दियों में शॉल बेचने के लिए छत्तीसगढ़ जाते हैं। पहले ये काम उनके वालिद (पिता) करते थे लेकिन 2010 से वो ख़ुद छत्तीसगढ़ जा रहे हैं। लेकिन क्या इस साल वो शॉल बेचने छत्तीसगढ़ जा पाएंगे?  हालांकि वो उम्मीद जताते हैं कि जल्द ही सब ठीक हो जाएगा। इसी से जुड़ा एक सवाल हमने नज़ाकत से किया.. 

सवाल: नज़ाकत आपने मसूरी का वो वीडियो देखा जिसमें शॉल वालों को गंदी गालियां दी जा रही हैं और उनके साथ मारपीट हो रही है? ऐसे हालात में क्या आप इस साल छत्तीसगढ़ शॉल बेचने जा पाएंगे? 

नज़ाकत का जवाब: अगर ऐसे हालात रहे फिर तो हमारा जाना नामुमकिन है, जो लोग नफ़रत फैला रहे हैं वो सरासर ग़लत कर रहे हैं, हमने पहले भी बोला है और अभी भी बोल रहे हैं कि सबसे बड़ी चीज़ है इंसानियत, मेरे मामा का लड़का आदिल शाह (बाइसरन वैली में आतंकियों से लड़ते हुए मारा गया) जो शहीद हो गए, वो वहां से भाग भी सकते थे लेकिन वो अंदर गए, सुनने में आया कि वो अपने कस्टमर को ढूंढने गए थे, उन्होंने बहुत से टूरिस्टों को बचाया क्योंकि सबसे बड़ी चीज़ है इंसानियत।

देश और दुनिया को झकझोर देने वाली 22 अप्रैल की घटना के बाद जिस तरह से गोदी मीडिया और सोशल मीडिया के ट्रोल्स ने कश्मीरियों के ख़िलाफ़ एक माहौल बनाने की कोशिश की उसे सड़कों पर निकली कश्मीर की अवाम ने ध्वस्त कर दिया।

घटना के बाद ज़ख्मी लोगों को अस्पताल पहुंचाना हो या फिर ख़ून देने के लिए लंबी क़तारों में लगना पहलगाम के लोगों ने बग़ैर वक़्त गंवाए अपनी जिम्मेदारी निभाई। हमने नज़ाकत शाह से उस दिन के बारे में विस्तार से बात की पहलगाम और ऐशमुकाम के बीच एक छोटे से गांव के रहने वाले नज़ाकत घटना के बाद से घर पर ही बैठे हैं। आज भी जब वो उस दिन को याद करते हैं तो आवाज़ थरथरा जाती है, गला रूंध जाता है। हमने नज़ाकत से पूछा – 

हमले से पहले बाइसरन में नजाकत शाह

सवाल: नज़ाकत 22 अप्रैल को जो हुआ क्या आप उसे दोबारा याद कर पाएंगे, मैं समझ सकती हूं कि इन बातों को बार-बार दोहराते हुए आप भी दुखी हो रहे होंगे।  

जवाब: मेरा 11 लोगों का ग्रुप था (3 बच्चे, 4 औरतें, 4 पुरुष)  मैं उनको लेकर गया था बाइसरन वैली।  मैं भी विंटर्स में बाहर जाता हूं शॉल बेचने के लिए, तो वहीं छत्तीसगढ़ के चिरमिरी से लोग आए थे तो मैं उन्हीं के साथ था जब फायरिंग हुई, फिर मैं उनको लेकर वहां से निकला। 

नज़ाकत को बीच में ही टोकते हुए हमने उनसे इस बात की तस्दीक करनी चाही कि क्या उनके साथ वो बीजेपी नेता भी थे जिन्होंने बाद में सोशल मीडिया पोस्ट कर उनका शुक्रिया अदा किया था। जिसके जवाब में उन्होंने बताया कि –

जवाब: जी हां, अरविंद अग्रवाल जी, जो वहां (छत्तीसगढ़) बीजेपी से जुड़े हुए हैं, वो, उनकी फैमली और एक और थे वो भी बीजेपी से ही जुड़े हुए थे उनकी भी फैमली थी। 

इसके बाद कांपती आवाज़ में नज़ाकत ने 22 अप्रैल की उस दर्दनाक दोपहर के बारे में बताना शुरू किया… 

नज़ाकत : हम साढ़े बारह बजे के क़रीब पहुंचे थे (बाइसरन वैली) जो आदिल हुसैन शाह थे, जो शहीद हो गए, वो मेरे मामा के लड़के हैं, वो वहीं पर मुझे मिले थे, वो चाय के लिए पूछ रहे थे तो मैंने उनको बोला कि पहले मैं इनको घुमा लेता हूं फिर हम बैठकर चाय पीएंगे। हम अंदर गए, टिकट निकाली, वहां पर जिप लाइनिंग की, थोड़ी बहुत एक्टिविटीज और गेम थे, और हमारे साथ जो थे, वो रील बना रहे थे। तो उसी दौरान (नज़ाकत का गला भर आया वो कुछ सहमी सी आवाज़ में बताने लगे) क्या हुआ कि क़रीब डेढ़, दो या सवा दो यही टाइम था, पहले एक-दो फायर हुए, सारे लोगों को ये अंदाज़ा नहीं हुआ कि ये फायरिंग हो रही है, लेकिन जब फायरिंग बढ़ी तब उस ग्राउंड में चीख-पुकार मच गई, बहुत शोर हो गया, मेरा वीडियो आपने देखा होगा जिसमें मैं बच्चों के साथ खेल रहा था, तो हम बहुत दूर थे, मैं वहीं बच्चों को लेकर लेट गया, वहीं ज़मीन पर। जब फायरिंग बढ़ी तो मैंने यही सोचा कि मैं कितनी जल्दी इन 11 लोगों को यहां से निकालूं, फिर उनको लेकर वहां से भागा 7-8 किलोमीटर कीचड़ वाला रास्ता था बच्चों को उठाकर, वहां से दौड़ते-दौड़ते मैं गणेशबल (गांव) में पहुंच गया। गणेशबल से उन्हें इनोवा (गाड़ी) में बैठाया। वो बहुत डरे हुए थे उन्होंने बोला अभी के अभी हमको यहां से निकालो, मैं उनको होटल लाया तो उन्होंने बोला हमें यहां रुकना ही नहीं है हमें श्रीनगर लेकर चलो, तो मैं रात के 9-10 बजे श्रीनगर पहुंचा। 

नजाकत शाह, टूर गाइड

कुछ याद करके वो आगे बताते हैं कि जब हम पहलगाम से निकल रहे थे तो वहां मेरे मम्मी-पापा भी पहुंच गए जब उन्होंने सुना तो वो भी घबराए हुए थे, उन्होंने सोचा कि मेरा बेटा और उसके मेहमान वहां (बाइसरन वैली) हैं। असल में उन्हें (टूरिस्ट ग्रुप को)  हमारे घर भी आना था दावत पर, 23 को ब्रेकफास्ट हमारे यहां करना था फिर हमने श्रीनगर में उनके लिए थोड़ा साइड सीन रखा था और फिर उनको छोड़ना था। 

इस अफरा-तफरी के माहौल में छत्तीसगढ़ से आए ये लोग नज़ाकत के लिए टूरिस्ट से बढ़कर थे। वो उन्हें ख़ासतौर पर अपने घर ले जाना चाहते थे, अपने परिवार से मिलवाना चाहते थे, उनकी मेहमान नवाज़ी करना चाहते थे ताकि वो कश्मीर से ख़ूबसूरत यादों को लेकर लौटें, लेकिन आतंकियों ने बाइसरन वैली में सिर्फ इंसानी ख़ून ही नहीं बहाया बल्कि कश्मीरियत को भी लहूलुहान कर दिया। दहशत के माहौल में जब नज़ाकत बाइसरन वैली से निकले तो उन्होंने वहां से निकलते वक़्त और क्या कुछ देखा उसी से जुड़ा एक सवाल हमने उनसे पूछा… 

सवाल: जब आप बाइसरन वैली से निकल रहे तो क्या आपने वहां आदिल हुसैन शाह को देखा था? 

नज़ाकत का जवाब: नहीं-नहीं मैंने तो किसी को नहीं देखा मैं बस वहां से निकला, वहां पर यही सोचा कि मैं इन 11 लोगों को सेफ वहां से पहलगाम ले जाऊं और वही मेरे दिमाग़ में चल रहा था। मेरी भी दो बेटियां हैं, मैंने उनको समझाया कि आप डरो मत, कोई भी मसला (परेशानी) होगा तो उसे पहले मेरे ऊपर से गुज़रना होगा, आप टेंशन मत लो। मैं आपको सेफ़ करूंगा, आपको घर तक पहुंचा कर रहूंगा, वो बहुत डरे हुए थे, मैं उन्हें होटल एक्सीलेंट ले लाया और फिर श्रीनगर लेकर गया। श्रीनगर में देर रात मुझे पता चला कि जो आदिल हुसैन शाह हैं, उनकी भी फायरिंग में शहादत हो गई, 23 तारीख़ को जनाज़ा था। मैं जनाज़ा भी नहीं पढ़ पाया क्योंकि वो लोग बहुत डरे हुए थे, उन्होंने बोला कि आप पहले हमें फ्लाइट में बैठा दो फिर वापस जाना, वो बिल्कुल साथ नहीं छोड़ना चाह रहे थे। तो हमने भी उस वक़्त यही बेहतर सोचा कि उनका साथ ना छोड़ें, वो हमारे मेहमान हैं। इंसानियत भी यही कहती है कि पहले वो हमारे मेहमान थे, तो वो जो बोल रहे थे मैं वही कर रहा था। नज़ाकत अपने मेहमानों को सुरक्षित श्रीनगर से विदा कर पहलगाम लौट गया, उसने तो किसी से नहीं बताया कि वो कैसे उस आतंकी हमले से 11 लोगों को बचा लाया लेकिन उस ग्रुप ने छत्तीसगढ़ लौट कर सोशल मीडिया पर नज़ाकत का शुक्रिया किया और वो वायरल हो गए। 

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इस हमले का असर पूरे देश पर पड़ा है, कश्मीर और पहलगाम की तरफ रुख़ करने वाले टूरिस्टों की संख्या में कमी आई है, ऐसे में हमने नज़ाकत से पूछा कि उनके काम-धंधे का क्या हाल है? जिसके जवाब में वे कहते हैं। 

नज़ाकत का जवाब: बहुत असर पड़ा है, तब से तो मैं घर पर ही बैठा हूं, कुछ लोग ग़लत मैसेज दे रहे हैं, टूरिस्ट लोगों को डरा रहे हैं, टूरिस्ट लोगों को भी ये सोचना चाहिए कि ये हमारा पार्ट है और डरने की कोई बात नहीं है, मैं अपने टूरिस्ट भाइयों को बोलूंगा कि हम भी टूरिस्ट से ही बावस्ता हैं, कश्मीर में इंसानियत जिन्दा है, जिन्दा थी और रहेगी, बाक़ी जो लोग नफ़रत फैला रहे हैं बिल्कुल ग़लत कर रहे हैं, भाईचारा है और भाईचारा रहेगा। हम उनका (टूरिस्ट) ख़्याल पहले से भी ज़्यादा रखेंगे। वो आएं, अपनी टिकट कैंसिल ना करें, वो अपना कश्मीर का ट्रिप कैंसिल ना करें, घूमें हम पहले से ज़्यादा उनका ख़्याल रखेंगे और एक आदिल शहीद हुआ हज़ारों आदिल उनकी रखवाली के लिए बैठे हैं। 

हमले के बाद कश्मीर के कुछ लोगों से बात हो रही थी, बेहद ग़मगीन और उदास माहौल में होटल चलाने वाले एक दोस्त का कहना था कि बिजनेस ठप हो जाएगा बात इसकी नहीं है बल्कि ये हमारे कश्मीर की इमेज की बात है। कश्मीरियत की बात है।

(नाज़मा ख़ान स्वतंत्र पत्रकार हैं।)

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