कूपमंडूकता तो हमें ले डूबेगी!

यह सवाल हम सबके लिए गंभीर चिंता का विषय होना चाहिए कि ऑपरेशन सिंदूर के तहत साढ़े तीन दिन चली लड़ाई में अंतरराष्ट्रीय नैरेटिव भारत के खिलाफ क्यों चला गया? आज हालत यह है कि भारतीय मीडिया में जो सुर्खियां और विवरण हैं, वैश्विक मीडिया में उसके एकदम उलट कहानी बताई जा रही है। 

कुछ विदेशी रिपोर्टों में सैनिक कार्रवाई में भारत को मिली अधिक सफलता का जिक्र जरूर हुआ है। मसलन, India and Pakistan Talked Big, but Satellite Imagery Shows Limited Damage शीर्षक से छपी न्यूयॉर्क टाइम्स की एक रिपोर्ट में उल्लेख हुआ कि सैनिक कार्रवाई में भारत ने पाकिस्तान को अधिक क्षति पहुंचाई। (https://www.nytimes.com/interactive/2025/05/14/world/asia/india-pakistan-attack-damage-satellite-images.html)

ऐसे तथ्य कुछ दूसरी रिपोर्टों में भी बताए गए हैं। लेकिन पश्चिमी मीडिया में चर्चा का मुख्य विषय भारत के लड़ाकू विमानों को मार गिराने का पाकिस्तानी दावा बना हुआ है। 

इस दावे से फ्रांस में बने रफेल विमानों की छवि सबसे बुरी तरह प्रभावित हुई है। नतीजतन, उसकी निर्माता कंपनी देसों के शेयर के भाव में भारी गिरावट दर्ज हुई। दूसरी तरफ चीन में बने विमान दुनिया की चर्चा में आए हैं और शेयर मार्केट में उसका लाभ उसकी निर्माता कंपनी चेंगदू को मिला। 

जब फ्रांस के सरकारी टीवी चैनल फ्रांस-24 ने भी इसी कहानी को आगे बढ़ा दिया, तो उसे इस घटनाक्रम की पुष्टि के रूप में देखा गया। इस चैनल की वेबसाइट पर Chinese weapons pass combat test in India-Pakistan clash – with flying colours शीर्षक से एक रिपोर्ट छपी है। (https://www.france24.com/en/asia-pacific/20250514-chinese-weapons-pass-combat-test-in-india-pakistan-clash-%E2%80%93-with-flying-colours?utm_medium=social&utm_campaign=x&utm_source=shorty&utm_slink=f24.my%2FBAZ5)

ऐसी कहानियां पूरे पश्चिमी मीडिया में छाई रही हैं। हम यहां उसकी सिर्फ दो और मिसालें देंगे। ब्रिटिश अखबार द गार्जियन ने इस बारे में एक विस्तृत रिपोर्ट छापी, जिसकी हेडलाइन और सब-हेडलाइन पर गौर कीजिएः Pakistan’s use of J-10C jets and missiles exposes potency of Chinese weaponry

Shooting down of India’s planes by Beijing’s customer Pakistan would mark the first time the fighters and their PL-15 missiles have been used in combat (https://www.theguardian.com/world/2025/may/14/pakistans-use-of-j-10c-jets-and-missiles-exposes-potency-of-chinese-arms?CMP=Share_AndroidApp_Other)

इसी तरह अमेरिकी समाचार माध्यम ब्लूमबर्ग की Chinese weapons gain credibility after Pakistan-India conflict शीर्षक से छपी रिपोर्ट भी खासी चर्चित रही है। (https://www.msn.com/en-us/news/world/chinese-weapons-gain-credibility-after-pakistan-india-conflict/ar-AA1EGgTa?ocid=BingNewsSerp) टीवी मीडिया पर जाएं, तो इसी लाइन पर हुई चर्चाओं की एक लंबी शृंखला वहां मौजूद है।

सवाल है कि पाकिस्तान अपनी इस कहानी को दुनिया भर में फैलाने में कैसे कामयाब हो गया? 

पहली नजर में बात यह समझ में आती है कि पाकिस्तान के दावे को पहले चीन समर्थक मीडिया ने आगे बढ़ाया। अब दुनिया में- खास कर सोशल मीडिया पर- चीन समर्थक टेक्स्ट, ऑडियो और वीडियो माध्यमों का बड़ा नेटवर्क बन चुका है। उसके करोड़ों फॉलोवर हैं। इनके जरिए चीन अपना नजरिया दुनिया भर में फैलाने में अक्सर कामयाब रहता है। इसके जरिए उसने चीन विरोधी पश्चिमी कथानकों का प्रभावी मुकाबला किया है।

चूंकि पाकिस्तान के साथ चीन के निकट रिश्ते हैं और लड़ाकू विमान गिराने के पाकिस्तानी दावे के साथ खुद उसके अपने हित जुड़े थे, तो चीनी मीडिया ने उस कहानी को खूब तव्वजो दी। सोशल मीडिया के जरिए ये कहानी दुनिया भर में पहले दिन ही- यानी सात मई को फैल गई। इसका मुकाबला भारत की कहानी तभी कर सकती थी, अगर पश्चिमी मीडिया उसका साथ देता। मगर पश्चिमी मीडिया ने खुद ही उस कथा को उठा लिया। 

पश्चिमी मीडिया ने ऐसा क्यों किया, यह भारत के लिए मंथन का प्रश्न है। यहां यह नहीं भूलना चाहिए कि पहलगाम आतंकवादी हमले और ऑपरेशन सिंदूर के संदर्भ में पश्चिमी देशों का रुख भी भारत के पक्ष में नहीं रहा है। अधिक से अधिक उन्होंने तटस्थ रुख अपनाया है। चूंकि चीन आज पश्चिम की चर्चा के केंद्र में रहता है- उसके प्रति आक्रोश, विरोध भाव और उत्सुकता समान रूप से वहां की चर्चा पर हावी रहते हैं, तो पश्चिमी मीडिया में चीन के जे-10 लड़ाकू विमान और उसकी मिसाइलों की क्षमता हावी हो गई। 

आज विश्व मीडिया वातावरण में रूस की भी प्रभावशाली मौजूदगी है। यूक्रेन युद्ध के बाद पश्चिम में रूसी मीडिया पर लगे प्रतिबंध से वहां उसकी पहुंच कुछ घटी है, लेकिन ग्लोबल साउथ में रूसी मीडिया जनमत को ढालने का प्रमुख माध्यम बना हुआ है। रूसी मीडिया ने इस मामले में तटस्थता दिखाते हुए भी चीन के माध्यम से प्रचलित हुए पाकिस्तानी दावों को पर्याप्त महत्त्व दिया। 

परिणाम नैटिरव्स वॉर में भारत का पिछड़ जाना है। अमेरिका के भारत और पाकिस्तान के बीच मध्यस्थता करने के दावों से भारत को कूटनीतिक झटका भी लगा है। यह भी मीडिया की चर्चा में आया। नतीजा यह है कि सैनिक मोर्चे पर अपेक्षाकृत अधिक प्रभावशाली सफलता के बावजूद वैश्विक चर्चा में आम धारणा पाकिस्तान के अनुकूल बन गई है। 

हैरतअंगेज है कि भारत के लिए प्रतिकूल इस स्थिति से सबसे ज्यादा गैर-वाकिफ़ भारत के लोग ही हैं। इसका प्रमुख कारण भारत सरकार का अपने देश के अंदर के नैरेटिव पर पूरा कंट्रोल जमा लेना है। इस कारण भारतीय अखबारों या टीवी चैनलों में जो सुर्खियां दिखाई देती हैं, वह अंतरराष्ट्रीय मीडिया में चल रही चर्चाओं के एकदम विपरीत हैं। इसलिए भारत के लोगों को आम तौर पर यह नहीं मालूम है कि देश के बाहर हाल की घटनाओं को किस रूप में देखा गया या देखा जा रहा है। 

इस विरोधाभास की लगभग पूरी जिम्मेदारी भारत सरकार को स्वीकार करनी चाहिए। देश में विदेशी मीडिया को प्रतिबंधित करने और घरेलू मीडिया के असहमत हिस्सों को रोकने की कोशिशों का स्वाभाविक परिणाम है कि भारत के लोग अपने देश के बारे में विदेश में बनी धारणा से नावाकिफ हैं। पाकिस्तानी मीडिया के बाद तुर्किए और चीनी मीडिया के कुछ सोशल मीडिया हैंडल्स पर भी भारत में पाबंदी लगा दी गई है।

इस मामले को सरकार की सामने आई अस्थिर नीति ने और उलझाया ही है। मसलन, बुधवार को चीन की समाचार एजेंसी शिन्हुआ और वहां के अखबार ग्लोबल टाइम्स के एक्स (ट्विटर) हैंडल्स को प्रतिबंधित कर दिया गया। मगर पांच घंटों के बाद ग्लोबल टाइम्स के हैंडल को ओपन कर दिया गया, जबकि गुरुवार दोपहर को इन पंक्तियों के लिख जाने तक सिन्हुआ का हैंडल प्रतिबंधित था।

बहरहाल, मुद्दा यह है कि बाहर में क्या चर्चा चल रही है, इस बारे में जानकारी रोकने से क्या हासिल होगा? सरकार को याद रखना चाहिए कि कुएं का मेढक बाहरी दुनिया के बेखबर रह कर सिर्फ अपने को ही नुकसान में रखता है। जिन मसलों के आयाम अंतरराष्ट्रीय हों, उनमें कूपमंडूकता देश के लिए हानिकारक होती है। 

आज भारत के हित में यह है कि देशवासी 

– नई स्वरूप लेती भू-राजनीति और उसके समीकरणों से बखूबी परिचित हों। वे उनसे पेश आ रही चुनौतियों और उनके बीच भारत के लिए उपलब्ध विकल्पों को समझने की कोशिश करें।

– चीन या पाकिस्तान की वास्तविक क्षमता और सैनिक शक्ति क्या है, इससे परिचित होना भी बेहद जरूरी है, ताकि उनके अनुरूप भारत अपनी तैयारियां कर सके। इस संबंध में जानबूझ कर बनाए किसी भ्रम का शिकार रहना चुनौती या इम्तहान के मौकों पर खतरनाक हो सकता है। 

इसलिए ये कहा जाएगा कि सूचना को रोकना भले सत्ताधारी दल के हित में हो, लेकिन वह देश के हित में नहीं है। बाहरी चर्चाओं से देशवासियों के बेखबर रख कर और अपने नियंत्रित मीडिया से मनमाफिक नैरेटिव्स फैला कर सत्ताधारी दल अपने समर्थक जमातों को अपने पक्ष में गोलबंद किए रख सकती है, मगर इससे देश को नई चुनौतियों के अनुरूप तैयार नहीं किया जा सकता। 

(सत्येंद्र रंजन वरिष्ठ पत्रकार हैं और दिल्ली में रहते हैं।)

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