क्‍या बिल की डेडलाइन तय कर सकता है सुप्रीम कोर्ट?राष्‍ट्रपति ने पूछे 14 सवाल

सुप्रीम कोर्ट ने राज्यपालों के लिए विधेयकों पर कार्रवाई करने हेतु समय-सीमा निर्धारित की है, तथा पहली बार यह निर्धारित किया है कि राष्ट्रपति को राज्यपाल द्वारा विचार के लिए आरक्षित विधेयकों पर तीन महीने के भीतर निर्णय लेना चाहिए।

क्या न्यायिक आदेशों के माध्यम से समय-सीमा तय की जा सकती है और अभ्यास का तरीका निर्धारित किया जा सकता है?’: राष्ट्रपति मुर्मू ने विधेयकों को मंजूरी देने पर सुप्रीम कोर्ट से पूछा

सर्वोच्च न्यायालय द्वारा राज्य विधानसभाओं द्वारा भेजे गए विधेयकों पर कार्रवाई करने के लिए राष्ट्रपति और राज्यपालों के लिए समय-सीमा निर्धारित करने के बाद, राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने अनुच्छेद 143(1) के तहत शीर्ष अदालत से राय मांगी है कि क्या उनकी कार्रवाई न्यायोचित है और क्या संविधान में ऐसे किसी प्रावधान के अभाव में उन पर ऐसी समय-सीमा लागू की जा सकती है।

इस साल अप्रैल में सुप्रीम कोर्ट ने राज्यपालों के लिए विधेयकों पर कार्रवाई करने के लिए समय-सीमा तय की और पहली बार यह निर्धारित किया कि राष्ट्रपति को राज्यपाल द्वारा विचार के लिए आरक्षित विधेयकों पर संदर्भ प्राप्त होने की तिथि से तीन महीने के भीतर निर्णय लेना चाहिए। संविधान के अनुच्छेद 201 के तहत राष्ट्रपति के निर्णय के लिए कोई समय-सीमा निर्धारित नहीं की गई है।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ‘इस अवधि से आगे किसी भी देरी के मामले में, संबंधित राज्य को उचित कारण दर्ज करने होंगे और सूचित करना होगा।’ अदालत ने अपने फैसले में तमिलनाडु के राज्यपाल आरएन रवि की कार्रवाई को अवैध और गलत करार दिया, जिसमें उन्होंने 10 विधेयकों को नवंबर 2023 में राष्ट्रपति के विचार के लिए आरक्षित कर दिया था, जबकि राज्य विधानसभा उन पर पहले ही पुनर्विचार कर चुकी थी।

न्यायालय के विचारार्थ निम्नलिखित 14 प्रश्न उठाए गए हैं:

• क्या अनुच्छेद 201 के तहत राष्ट्रपति के विवेक की न्यायिक समीक्षा की जा सकती है?

•क्या संवैधानिक आदेशों के अभाव में राष्ट्रपति न्यायिक रूप से निर्धारित समय-सीमा से बंधे हैं?

• क्या राज्यपाल द्वारा विधेयक सुरक्षित रखे जाने पर राष्ट्रपति को अनुच्छेद 143 के अंतर्गत सर्वोच्च न्यायालय की राय लेना आवश्यक है?

• क्या न्यायालय किसी विधेयक के कानून बनने से पहले राज्यपाल या राष्ट्रपति के निर्णयों में हस्तक्षेप कर सकते हैं?

•क्या अनुच्छेद 142 के अंतर्गत राष्ट्रपति या राज्यपाल के निर्णयों को रद्द करना या प्रतिस्थापित करना स्वीकार्य है?

• क्या राज्य विधानमंडल द्वारा पारित विधेयक राज्यपाल की स्वीकृति के बिना कानून बन जाता है?

• क्या संवैधानिक व्याख्या के प्रश्नों को पहले अनुच्छेद 145(3) के तहत संविधान पीठ को भेजा जाना चाहिए?

• क्या अनुच्छेद 142 प्रक्रियात्मक मामलों से आगे बढ़कर ऐसे फैसले देने की अनुमति देता है जो मौजूदा कानूनों या संवैधानिक प्रावधानों के विपरीत हों?

• क्या केंद्र-राज्य विवादों को अनुच्छेद 131 के बाहर सुलझाया जा सकता है, जो सर्वोच्च न्यायालय को विशेष अधिकार क्षेत्र प्रदान करता है?

(जे पी सिंह कानूनी मामलों के जानकार एवं वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

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