मोहन यादव की सरकार में मंत्री, खुद को तथाकथित कुंवर बताने वाले विजय शाह ने इस बार खुद अपने ही कुनबे को चौंकाते हुए, भद्रता की सारी सीमाएँ ध्वस्त करते हुए भारतीय सेना की कर्नल सोफिया कुरैशी के बारे में निहायत आपराधिक और आपत्तिजनक बात कह दी।
इंदौर के महू में एक सभा में बोलते हुए कैबिनेट मंत्री ने तीन दिन के युद्ध के बाद भारत की अंतरराष्ट्रीय हैसियत को कमतर करने वाले युद्धविराम पर अपने मोदी जी के उस धमाल और कमाल-जो हुआ ही नहीं-को गिनाते हुए कहा कि जिन पाकिस्तानी आतंकियों ने हमारे लोगों के कपड़े उतरवाए थे, उन्हें मोदी जी ने करारा जवाब दिया। अब मोदी जी कपड़े तो नहीं उतरवा सकते थे, तो उन्होंने ‘उन्हीं कटे-पिटे की बहन’ सोफिया कुरैशी को उनके खिलाफ, उनका जवाब देने के लिए खड़ा कर दिया।
इस तरह भाजपा के मंत्री ने भारतीय सेना की कर्नल, युद्ध के दौरान हुई प्रेस ब्रीफिंग्स में देश और सेना की प्रतिनिधि के रूप में दुनिया के सामने भारत का चेहरा बनीं कर्नल सोफिया कुरैशी को, उनके मुसलमान होने की वजह से पाकिस्तानियों और आतंकियों की बहन बता दिया। इस तरह की बेहूदा, आपराधिक और सांप्रदायिक तुलना से देश भर में विक्षोभ, आक्रोश और गुस्सा भड़कना स्वाभाविक भी था। यह धर्म पता करके किया गया अपराध ही था। युद्ध से अभी उबर रहे वातावरण में ऐसी कुटिल विभाजनकारी बातों की सांघातिकता और बढ़ जाती है।
ऐसे बयान देश में ही नहीं, दुनिया भर में वायरल होते हैं और अंतरराष्ट्रीय पैमाने पर भारत की उस छवि को और बिगाड़ते हैं, जिस बिगड़ी छवि के चलते इस बार उसे पहली बार इतना कूटनीतिक अलगाव देखना पड़ा है। इन सभी कारणों और मंत्री की उग्र और अश्लीलता की हद लांघती भाषा-शैली को देखते हुए उम्मीद की जा रही थी कि विजय शाह को या तो मंत्रिमंडल से बर्खास्त किया जाएगा या उनसे इस्तीफा लिया जाएगा। मगर इन पंक्तियों के लिखे जाने तक इन दोनों में से कुछ नहीं हुआ। इस्तीफा-विस्तीफा तो दूर की बात है, भाजपा के किसी भी नेता ने सार्वजनिक रूप से विजय शाह के बयान की निंदा तक नहीं की, उसे गलत और अनुचित तक नहीं बताया।
मध्यप्रदेश हाईकोर्ट की युगल बेंच ने स्वत: संज्ञान लेते हुए मंत्री की कही बातों पर सख्त नाराजगी जताई, कड़ी आलोचनात्मक टिप्पणियाँ कीं और मध्यप्रदेश के पुलिस महानिदेशक को चार घंटे के अंदर एफआईआर दर्ज कर आपराधिक कार्यवाही करने का आदेश दिया। कायदे से इस उच्च अदालती आदेश के बाद इस्तीफा या बर्खास्तगी हो जानी चाहिए थी; नहीं हुई। हाईकोर्ट के समयबद्ध निर्देश के 6 घंटे बाद मानपुर थाने में एफआईआर हो भी गई। इस्तीफा या बर्खास्तगी अब भी नहीं हुई। सुनते हैं, मंत्री जी सुप्रीम कोर्ट जा रहे हैं।
ऐसा नहीं है कि कुछ भी नहीं हुआ। पहले भाषण को गलत तरीके से समझे जाने की ‘किंतु-परंतु’ के साथ ‘फिर भी किसी को बुरा लगा हो तो माफी’ के लठमार अंदाज में मंत्री ने वीडियो जारी किया। उसके बाद भी ’10 बार माफी माँगता हूँ’ कहा, लेकिन उसमें भी विचलित होने, आहत होने का पाखंड जोड़ दिया। बिना कुछ किए डैमेज कंट्रोल करने के लिए सोफिया के मध्यप्रदेश के घर भाजपा नेता चाय पीने पहुँच गए।
यहाँ से सांसद, भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष हैं, सो मंत्री के बयान पर उन्होंने थोड़ी-बहुत नाखुशी जता दी। अखबार में खबर चलवा दी गई कि भाजपा के संगठन मंत्री ने विजय शाह को बुलाकर फटकारा है। मगर इस्तीफा न माँगा गया, न लिया गया। मंत्री के चेहरे पर भी कोई ग्लानि या शिकन नहीं है। वे न तो नौसिखिए हैं, न ही अज्ञानी; अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के जमाने से, अपने बाल्यकाल से संघ के कुनबे में हैं। कोई 8 बार विधायक और चार बार से मंत्री हैं। चंबल में एक कहावत है:
“जैसे जाकी नदी नाखुरे, तैसे ताकी भरिका
जैसे जाकी बाप-महतारी, तैसे ताकी लरिका।”
कहावत की तर्ज पर कहें तो इनकी दुष्टता इनकी निजी योग्यता नहीं है, यह वैचारिक परवरिश का हासिल है। इनकी आवाज और लहजा भी इसके दो नंबरी नेता जैसा है, और ऐसे ही नहीं है। यह शाखा शृगालों का ठेठ ठाठ है। वे जो कह रहे थे, वह उनका नहीं, उनके कुनबे का आख्यान था।
पूरे देश ने देखा है कि कुनबे की नफरती ब्रिगेड-आईटी सेल-सैन्य टकराव के बीच भी मुस्लिम विरोधी नफरत उभारने की अपनी हरकतों से बाज नहीं आई थी। मोदी के सबसे भरोसेमंद प्रचारतंत्र के इस समूह ने विदेश सचिव की बेटी तक को नहीं बख्शा। इतनी भद्दी और अश्लील गाली-गलौज की कि देश के सर्वोच्च आधा दर्जन अधिकारियों में से एक विदेश सचिव मिस्री को अपना ट्विटर अकाउंट प्राइवेट करना पड़ा। सेना द्वारा प्रेस कॉन्फ्रेंस के लिए समझदारी के साथ चुनी गई टीम की लड़कियों, खासकर कर्नल सोफिया कुरैशी को, इस आईटी सेल ने युद्ध के बीचो-बीच भी मुसलमान होने के नाते भद्दी और अश्लील टिप्पणियों के ट्रोल का निशाना बनाया था।
पहलगाम में आतंकियों के हमले में मारे गए नौसेना अधिकारी की पत्नी हिमांशी नरवाल को ट्रोल और अपमानित किया गया। विजय शाह कुनबे के उसी आख्यान को आगे बढ़ा रहे थे, जिसे खुद उनके प्रधानमंत्री ने अपने राष्ट्र के नाम संबोधन में दूसरी तरह से आगे बढ़ाया है। पहलगाम के आतंकी हमले के जिक्र में उस दौरान और उसके बाद कश्मीरी अवाम की शानदार भूमिका और साहस का उल्लेख, उनकी सराहना, पाकिस्तान के हमलों में मारे गए नागरिकों का जिक्र और अफसोस किसी भी प्रधानमंत्री के भाषण का हिस्सा होता-मगर यहाँ प्रधानमंत्री नहीं, मोदी बोल रहे थे, इसलिए इस सबका कोई उल्लेख तक नहीं था।
नियम यह है कि नफरत भस्मासुरी होती है, अपनों को भी नहीं बख्शती। विजय शाह जिस सोच के भस्मासुर हैं, उसमें सिर्फ मुसलमान ही नहीं, दलित और महिलाएँ भी निशाने पर रहती हैं। अपने ही मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की जीवन-संगिनी के बारे में अत्यंत घिनौनी कामुक टिप्पणी करके वे इसका उदाहरण भी प्रस्तुत कर चुके हैं। तब भी फूँ-फाँ तो बहुत हुई थी, मगर इनका कोई कुछ बिगाड़ नहीं पाया था। इसलिए कि विजय शाह लक्षण हैं, उस वायरस के वाहक हैं, जिसका जखीरा कुनबे के पास है, और कोई अपने ही खिलाफ कार्यवाही कैसे कर सकता है। वे उस प्रवृत्ति के विषाणु हैं, जिसकी संक्रामक बीमारी ने आज भारत को दुनिया में ऐसी दीन, हीन, अलग-थलग स्थिति में लाकर खड़ा कर दिया है, जहाँ वह पिछले हजार वर्ष में भी नहीं रहा।
बहरहाल, हर अंधेरे में कहीं न कहीं कोई रोशनी छुपी होती है। इस बार यह रोशनी सेना की प्रवक्ता कर्नल सोफिया कुरैशी के कथन में दिखी है। पाकिस्तानी सेना के दावे कि भारतीय सेना ने कुछ मस्जिदों को भी निशाना बनाया, पर कड़ी प्रतिक्रिया देते हुए उन्होंने कहा, “भारत एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है और हमारी सेना हमारे संविधान की मूल भावना ‘सेक्युलरिज्म’ की सच्ची प्रतिनिधि है। हमारी सेना हर धर्म और हर पूजा स्थल का पूरा सम्मान करती है। किसी भी धार्मिक स्थल को निशाना नहीं बनाया गया है।” कर्नल सोफिया का यह बयान भले पाकिस्तानियों के दुष्प्रचार का जवाब था, मगर इधर वालों को भी उसे पढ़ लेना चाहिए।
(बादल सरोज लोकजतन के संपादक और अखिल भारतीय किसान सभा के संयुक्त सचिव हैं)