अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने यूरोपीय संघ पर 50% टैरिफ लगाने की धमकी दी है। इसके साथ ही उन्होंने आईफोन निर्माता कंपनी एप्पल और सैमसंग स्मार्टफोन पर विदेशों से अमेरिका में आयात पर 25% शुल्क लगाने की धमकी को दोहराया है। हार्वर्ड यूनिवर्सिटी को मिलने वाली सरकारी अनुदानों पर पहले ही प्रतिबंध लग चुका है, और अब हालिया फैसले में राष्ट्रपति ट्रम्प ने विदेशी छात्रों के प्रवेश पर भी प्रतिबंध की घोषणा की है, जिसने विश्वविद्यालय की नींव को हिला दिया है।
राष्ट्रपति ट्रम्प की आक्रामकता का यह दूसरा दौर कहा जा सकता है। राष्ट्रपति पद की शपथ लेने से पहले ही अपने बयानों के लिए कुख्यात ट्रम्प ने दावा किया था कि उनके सत्ता में आते ही यूक्रेन-रूस संघर्ष समाप्त हो जाएगा। लेकिन यह युद्ध अभी भी जारी है, और ट्रम्प यूक्रेन से रेयर अर्थ मिनरल्स सहित अन्य प्राकृतिक संसाधनों से सैकड़ों अरब डॉलर की कमाई की उम्मीद लगाए बैठे हैं। कनाडा और मेक्सिको के साथ टैरिफ युद्ध और कनाडा को अमेरिका का 51वां राज्य बताने की शेखी ने वहाँ की राजनीति में बड़ा उलटफेर कर दिया।
इस बार ट्रम्प की तरह ही कनाडा में दक्षिणपंथी कंजरवेटिव पार्टी के जीतने की उम्मीद थी, लेकिन कनाडाई अस्मिता के साथ ट्रम्प की छेड़छाड़ ने लिबरल पार्टी की जीत को सुनिश्चित कर दिया। ऐसा ही हाल ऑस्ट्रेलिया में देखने को मिला, जहाँ लेबर पार्टी ने एक बार फिर जीत हासिल की।
ट्रम्प के पहले कार्यकाल से ही अमेरिका का निशाना चीन रहा है, जिसे बाइडेन प्रशासन ने भी आगे बढ़ाया। इस बार ट्रम्प ने टैरिफ युद्ध की घोषणा चीन को केंद्र में रखकर की थी, जिसमें वे देश भी शामिल थे, जहाँ चीन ने पिछले 10 वर्षों में अपने निवेश को बढ़ाकर अमेरिका को अप्रत्यक्ष निर्यात के जरिए व्यापार घाटा बढ़ाया था।
लेकिन चीजें वैसी नहीं चलीं, जैसा ट्रम्प और उनकी टीम ने सोचा था। कुछ चुनिंदा देशों को छोड़कर लगभग सभी प्रमुख देशों ने जवाबी टैरिफ की घोषणा शुरू कर दी, जिनमें कनाडा, यूरोपीय संघ, और चीन प्रमुख हैं। टैरिफ युद्ध की आशंका के चलते अमेरिकी आयातकों ने पहले से ज्यादा आयात कर लिया, जबकि निर्यात पहले से कम हो गया। चीन के खिलाफ टैरिफ को 145% तक बढ़ाने और जवाब में चीन द्वारा भी अप्रत्याशित टैरिफ की घोषणा ने वैश्विक बाजार को असंतुलित कर दिया। इसका सबसे बड़ा झटका अमेरिकी बाजार, खासकर स्टॉक मार्केट को लगा। नतीजतन, ट्रम्प को 90 दिनों के लिए इसे स्थगित करना पड़ा, लेकिन चीन को छोड़कर सभी पर 10% टैरिफ लागू रहा।
यह टैरिफ अंततः अमेरिकी उपभोक्ताओं को ही चुकाना पड़ रहा है। लेकिन ट्रम्प के MAGA (मेक अमेरिका ग्रेट अगेन) के नारे में विश्वास करने वाले आम अमेरिकी, जिनमें श्वेत आबादी से लेकर अफ्रीकी मूल के लोग शामिल हैं, अभी भी मानते हैं कि ट्रम्प अमेरिकी कॉरपोरेट्स को देश में निवेश के लिए मजबूर कर लाखों रोजगार और समृद्धि लाएंगे। जबकि हकीकत यह है कि ट्रम्प टैरिफ से वसूली कर टैक्स में कटौती और आयकर-मुक्त अमेरिका बनाने का सपना देख रहे हैं।
यह स्थिति भारत में नोटबंदी जैसी है, जिसे भारत के गरीब और आम आदमी ने आतंकी फंडिंग, अमीरों के खजाने की सफाई, और काले धन पर सर्जिकल स्ट्राइक मान लिया था। जैसे नौ साल बाद मोदी सरकार नोटबंदी शब्द का नाम लेने से कतराती है, वैसे ही जल्द ही अमेरिका में भी MAGA की हकीकत सामने आने वाली है। लेकिन अमेरिकी कॉरपोरेट्स को टैरिफ युद्ध से सीधा नुकसान नहीं हुआ, हालांकि उनकी बिक्री और शेयर-बॉन्ड निवेशकों को तगड़ा झटका लगा। इसके चलते ट्रम्प को न केवल शेष विश्व, बल्कि चीन से भी समझौते की मेज पर बैठकर टैरिफ को 145% से घटाकर 30% करने के लिए मजबूर होना पड़ा।
हाल के दिनों में खाड़ी देशों से ट्रम्प को अच्छा रिस्पॉन्स मिला है, लेकिन भारत-पाक संघर्ष के औपचारिक युद्ध की स्थिति में जाने से बचाने में उनकी भूमिका पर भारत की खामोशी ने शायद ट्रम्प को कुछ नया करने की दिशा में मोड़ा है। क्या टिम कुक को एप्पल स्मार्टफोन पर 25% टैरिफ की धमकी भारत को ट्रम्प की भूमिका और टैरिफ शुल्क की शर्तों पर मजबूर करने से जुड़ी है?
शुक्रवार को ट्रम्प ने यूरोपीय संघ के बारे में अपनी शिकायतों को दोहराते हुए अमेरिकी कंपनियों को गलत तरीके से निशाना बनाने का आरोप लगाया। उन्होंने स्पष्ट कहा कि 50% टैरिफ दर 1 जून से लागू होगी। ब्लूमबर्ग ने अपने विश्लेषण में इसे अमेरिकी व्यापार को नाटकीय रूप से बदलने की संभावना बताया है, खासकर निवेशकों के लिए इसे एक और झटका करार दिया।
इक्विटी मार्केट में इसका असर दिखाई दिया। एसएंडपी 500 में 0.7% की गिरावट देखी गई, जो लगातार चौथे दिन जारी रही। नैस्डैक-100 में 0.9% और डॉव जोन्स इंडस्ट्रियल एवरेज में 0.6% की गिरावट आई। एप्पल के शेयर मूल्य में 3% से अधिक की गिरावट के साथ तेज बिकवाली का रुख दिखा।
अमेरिकी प्रशासन के शीर्ष अधिकारियों का कहना है कि ट्रम्प यूरोपीय संघ के रुख से निराश थे। अमेरिकी ट्रेजरी सेक्रेटरी स्कॉट बेसेंट ने फॉक्स न्यूज पर एक साक्षात्कार में उम्मीद जताई कि इससे यूरोपीय संघ के भीतर तेजी से फैसले लेने में मदद मिलेगी।
यूरोपीय संघ के प्रमुख देशों की प्रतिक्रिया अभी बाकी है। हालांकि, आयरिश प्रधानमंत्री माइकल मार्टिन ने ट्रम्प के सुझाव को “बेहद निराशाजनक” बताया। फ्रांसीसी वाणिज्य मंत्री लॉरेंट सेंट-मार्टिन ने शुक्रवार को एक्स पर लिखा, “हम उसी रुख पर कायम हैं: तनाव कम करना, लेकिन हम जवाब देने के लिए तैयार हैं।”
ब्लूमबर्ग के अनुसार, ट्रम्प की नवीनतम टैरिफ घोषणा से अमेरिकी-यूरोपीय संघ के बीच 321 अरब डॉलर के व्यापार पर असर पड़ेगा, जिससे अमेरिकी जीडीपी में लगभग 0.6% की कमी और कीमतों में 0.3% से अधिक की वृद्धि हो सकती है। यूरोपीय संघ भी जवाबी कार्रवाई की तैयारी कर रहा है। पहले यह 25% टैरिफ के जवाब में अतिरिक्त टैरिफ के साथ अमेरिकी निर्यात (107 अरब डॉलर) को प्रभावित करने की योजना थी, जिसे 50% टैरिफ की स्थिति में दोगुना करना होगा।
हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में विदेशी छात्रों के प्रवेश पर प्रतिबंध ने अमेरिका के बारे में स्थापित धारणा पर पूरे विश्व को पुनर्विचार के लिए मजबूर कर दिया है। जो अंतरराष्ट्रीय छात्र अभी पढ़ाई कर रहे हैं, उन्हें भी हार्वर्ड से स्थानांतरण लेना होगा, वरना वे अपनी कानूनी स्थिति खो देंगे।
ट्रम्प प्रशासन के बयान के अनुसार, “हार्वर्ड के नेतृत्व ने अमेरिका विरोधी, आतंकवाद समर्थक आंदोलनकारियों को कई यहूदी छात्रों सहित आम लोगों को परेशान करने और शारीरिक हमला करने की अनुमति देकर एक सम्मानित शिक्षण वातावरण को बाधित कर असुरक्षित परिसर का माहौल बना दिया है।”
अंतरराष्ट्रीय छात्रों के नामांकन पर रोक से हार्वर्ड के लिए अतिरिक्त वित्तीय बोझ बढ़ेगा, क्योंकि 30% (7,000 विदेशी छात्र) अमेरिकी छात्रों की तुलना में अधिक शुल्क देकर पढ़ाई करते थे। ट्रम्प प्रशासन पहले ही हार्वर्ड के 2.6 अरब डॉलर के वित्तपोषण को रोक चुका है और परिसर में कथित यहूदी विरोधी गतिविधियों से निपटने की सरकारी मांगों को लेकर भविष्य के अनुदानों को भी काट दिया है।
हार्वर्ड ने सरकार की नवीनतम कार्रवाई को गैरकानूनी बताते हुए कहा, “हम 140 से अधिक देशों से आने वाले अंतरराष्ट्रीय छात्रों और विद्वानों की मेजबानी करने और विश्वविद्यालय – तथा इस राष्ट्र – को समृद्ध करने की अपनी क्षमता को बनाए रखने के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध हैं।” हार्वर्ड में लगभग 6,800 छात्र, जो कुल छात्र समुदाय का 27% हैं, अन्य देशों से आते हैं। हार्वर्ड ने हालिया टिप्पणी में कहा कि विदेशी छात्रों के बिना हार्वर्ड, हार्वर्ड नहीं रह जाएगा।
ट्रम्प प्रशासन के इस फैसले की एक वजह सोशल मीडिया पर यह भी बताई जा रही है कि उनके बेटे बैरन ट्रम्प को हाल ही में हार्वर्ड ने दाखिला देने से मना कर दिया था।
राष्ट्रपति पद की शपथ लेने के पांच महीने बाद भी ट्रम्प के पास बड़े-बड़े दावों और विश्व के राष्ट्राध्यक्षों को धमकियों के अलावा कुछ हासिल नहीं हुआ है। देखना होगा कि इस दूसरे दौर की धमकियों से हार्वर्ड, टिम कुक, और यूरोपीय संघ घुटने टेकते हैं, या अमेरिकी समाज और अब तक के सबसे विश्वसनीय सहयोगी यूरोपीय संघ के कड़े प्रतिवाद के बाद ट्रम्प किसे आसान शिकार समझकर झपट्टा मारने की तैयारी करेंगे।
(रविंद्र पटवाल जनचौक संपादकीय टीम के सदस्य हैं)