भारत में विदेशी निवेश आना खत्म जबकि इंडियन कॉर्पोरेट की एफडीआई से दुनिया हो रही मालामाल

यह कैसा गोरखधंधा चल रहा है, जिसे खुद भारतीय रिजर्व बैंक ने अपने आंकड़ों में बताया है? ये खबर तीन दिन पुरानी हो चुकी है, लेकिन इस मुद्दे पर कोई हरारत नहीं है देश में। ऐसा जान पड़ता है कि समूचा देश अब सिर्फ नए-नए स्टेज मैनेजमेंट और ब्रेकिंग न्यूज़ से ही अपना पेट भर रहा है। 

भारतीय रिजर्व बैंक ने मई 2025 के अपने बुलेटिन में बताया है कि भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) एक वर्ष पूर्व 10.1 बिलियन डॉलर था, वह वर्ष 2024-25 में घटकर 0.4 बिलियन डॉलर रह गया है। यह गिरावट आधी या एक चौथाई भी नहीं 96% है। आरबीआई ने इतनी बड़ी गिरावट पर चिंता जताने के बजाय भारतीय बाजार को परिपक्व बाजार का संकेत बताया है, जहां से विदेशी निवेशक आसानी से प्रवेश और निकास कर सकते हैं।

चूंकि कुछ ऐसा ही बयान वित्त मंत्री, निर्मला सीतारमण जी ने कुछ माह पूर्व भारतीय स्टॉक मार्केट से एफपीआई के भारी मात्रा में निकलने को लेकर की थी, इसलिए माना जा सकता है कि रिजर्व बैंक ने ऐसा कहकर कोई अपराध नहीं किया है। उसने तो जैसा राजा, वैसी प्रजा का ही अनुसरण किया है। 

ऊपर से चौंकाने वाली खबर ये कि हमारा कॉर्पोरेट पिछले साल 29.2 बिलियन डॉलर का निवेश दुनिया में कर चुका है। आरबीआई के अनुसार, पिछले वर्ष की तुलना में भारतीय कारोबारियों ने विदेशों में 75% अधिक पूंजी का निवेश किया है। यानि देश इतना तरक्की कर चुका है कि उसे अब विदेशी पूंजी की जरूरत नहीं है, बल्कि जिसे भी चाहिए उस अर्थव्यवस्था को मदद पहुंचाने और उसमें अपने लिए मुनाफा ढूंढने के लिए हमारे देश का कॉर्पोरेट सक्षम हो चुका है।

जबकि जमीनी स्थिति यह है कि देश में मनमोहन सिंह वाला जॉबलेस ग्रोथ नहीं job loss ग्रोथ अब पूरी तेजी से दौड़ रहा है। पिछले दस वर्षों से रोजगार के लिए आंदोलन युवा अधेड़ हो चुके हैं, और जो थोड़े-बहुत कभी-कभार विरोध प्रदर्शन की हिम्मत भी जुटाते हैं, उनके साथ राज्य पुलिस जिस बर्बरता से निपट रही है, उसे देखते हुए अब देश में शायद ही कोई रोजगार की मांग के साथ आगे आये।

लेकिन भारत को अब नीति आयोग नए सब्जबाग दिखाकर खुश करने की कोशिश में है। हाल ही में नीति आयोग के सीइओ बीवीआर सुब्रमनियम ने घोषणा की कि हमने जीडीपी के मामले में जापान को पीछे छोड़ चौथा स्थान हासिल कर लिया है। उनके अनुसार, ये वे नहीं बल्कि आइएमएफ के आंकड़े बता रहे हैं। इस खबर को लेकर मीडिया और राजनीतिक गलियारों में बहार आ चुकी है।

जबकि हकीकत यह है कि आइएमएफ ने ऐसा कोई दावा नहीं किया है। उसके प्रोजेक्शन में अनुमानित किया गया है कि 2025 के अंत तक भारत की जीडीपी जापान से आगे निकल सकती है। वर्ष 2024 के आंकड़े जारी करते हुए आइएमएफ ने जापान की जीडीपी को 4.06 ट्रिलियन डॉलर आंका है, जबकि भारत की जीडीपी 3.9 ट्रिलियन डॉलर ही बताई है।

नीति आयोग के सीईओ साहब ने या तो आंकड़े ध्यान से देखे नहीं, या भविष्य को देखने की उनकी अंतर्दृष्टि हमारे गोदी मीडिया की ही तरह हो चुकी है, जिन्होंने भारतीय सेना को इस्लामाबाद, कराची से लेकर रावलपिंडी तक में तिरंगा झंडा गाड़ते देख लिया था।

हकीकत यह है कि अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आइएमएफ) ने 2025 के अंत तक भारत की जीडीपी के 4.187 ट्रिलियन डॉलर रहने का अनुमान जताया है, जबकि जापान के संदर्भ में यह आंकड़ा  4.186 ट्रिलियन डॉलर है। यानि बाल बराबर का अंतर प्रोजेक्ट किया गया है। भारत की जीडीपी को अनुमानित करने के लिए आइएमएफ के पास भारत सरकार के द्वारा जारी आंकड़े ही होते हैं, जिनके बारे में 2016 के बाद से ही कई अर्थशास्त्री संदेह जता चुके हैं। 

अगर इसे मान भी लें, तब भी क्या जापान को जीडीपी के आंकड़े में पछाड़ कर भी हम जापान से आगे निकलने का दावा कर सकते हैं? 2024 में जापान में प्रति व्यक्ति जीडीपी दर 32,500 डॉलर थी, जबकि भारत में प्रति व्यक्ति आय 2,711 डॉलर ही थी। 2025 में भी यदि हम जापान से जीडीपी के मामले आगे निकल जाते हैं, तब भी आइएमएफ के आंकड़े बताते हैं कि जापान में प्रति व्यक्ति आय 33,995 डॉलर होगी, यानि एक वर्ष में प्रति व्यक्ति आय में करीब 1,500 डॉलर की बढ़ोत्तरी हो सकती है। वहीं भारत के लिए प्रोजेक्शन 2,878 डॉलर है, यानि प्रति व्यक्ति आय करीब 160 डॉलर बढ़ने का अनुमान है। 

अब ये 160 डॉलर में कितना हिस्सा कॉर्पोरेट ले उड़ेगा, और कितना आम भारतीय की जेब में आ सकता है, इसका अनुमान आप स्टील अथॉरिटी ऑफ़ इंडिया में हुए करीब 400 करोड़ रूपये के कथित भ्रष्टाचार से लगा सकते हैं। 

यह खबर पुरानी है, लेकिन अभी तक इस मामले में मुख्य आरोपियों का बाल भी बांका नहीं हो पाया है, और जिसने इस भ्रष्टाचार का खुलासा करने का अपराध किया था उसे पहले 10 महीने तक कंपनी ने सस्पेंड किया और अब जबरन वीआरएस देकर 8 वर्ष पहले ही सेवाकाल से मुक्त कर दिया है। यह स्टोरी बेहद भयावह है, जिसके बारे में इक्का-दुक्का स्वतंत्र न्यूज़ एजेंसियों और यूट्यूब चैनलों के अलावा किसी भी प्रमुख समाचारपत्रों और कथित गोदी मीडिया ने कवरेज करने की जरूरत नहीं समझी। 

आखिर कवरेज करें भी तो कैसे? SAIL के बड़े-बड़े विज्ञापन भला कौन खोना चाहेगा? ऊपर से इस मामले में जिस प्रकार से एक नवोदित कंपनी को सेल कंपनी के द्वारा रियायती दरों पर स्टील देकर अपने ही प्रतिस्पर्धी निजी कंपनियों को सैकड़ों करोड़ रूपये का लाभ पहुंचाया गया है, उसमें वह कंपनी भी है जिसने भाजपा को इलेक्टोरल बांड के जरिये 30 करोड़ रूपये का चंदा दिया है। 

SAIL के भीतर चल रहे इस भ्रष्टाचार को लोकपाल और सीबीआई दोनों देख रहे हैं, और कंपनी पर आरोप है कि इसने 100 से ज्यादा ऐसी कंपनियों को सस्ते दाम पर 11 लाख टन से अधिक स्टील बेचा है, जो कोई निर्माण कार्य नहीं कर रही थीं। बता दें कि सेल एमओयू के तहत स्टील खरीदने वाली कंस्ट्रक्शन कंपनियों को ब्याज रहित ऋण देती है, और जो कंपनी इस सुविधा का लाभ नहीं लेती, उसे उतनी राशि की छूट दी जाती है। 

ऐसी ही एक कंपनी है APCO, जिसे हाल के वर्षों में दिल्ली-मेरठ राष्ट्रीय राजमार्ग के निर्माण का मेगा ठेका हासिल हुआ था। इसी कंपनी के लिखित आश्वासन पर एक अन्य कंपनी को सेल ने स्टील दिया, जिसकी शिकायत 17 नवंबर 2022 में कलकत्ता में कार्यरत जीएम (मार्केटिंग), राजीव भाटिया को भारी पड़ी, और सेल ने मामले पर एक्शन लेने के बजाय उन्हें ही 24 नवंबर 2022 को बगैर कोई स्पष्टीकरण दिए निलंबित कर दिया था। 

अब यदि इसी तरह देश की जीडीपी का विकास हो रहा है, तो समझा जा सकता है कि निश्चित ही हम विश्वगुरु बनने से बस कुछ ही कदमों की दूरी पर हैं।

(रविंद्र पटवाल जनचौक की संपादकीय टीम के सदस्य हैं।)

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