गुजरात हाईकोर्ट।

क्या गुजरात की 70 फीसद आबादी कोरोना संक्रमित है?

क्या गुजरात में कुल आबादी का 70 फीसद लोग वास्तव में कोविड-19 से संक्रमित हैं और वास्तविक संख्या सामने न आये इसलिए गुजरात की भाजपा सरकार कम संख्या में टेस्ट करा रही है? यह हम नहीं कह रहे हैं बल्कि गुजरात के एडवोकेट जनरल, कमल त्रिवेदी ने जस्टिस जेबी पादरीवाला और जस्टिस इलेश की खंडपीठ के समक्ष कोरोना मामले की सुनवाई के दौरान कहा। एडवोकेट जनरल ने कहा था कि यदि सभी का परीक्षण किया जाता है, तो 70 फीसद लोगों का COVID-19 टेस्ट पॉज़िटिव आ जाएगा। अब गुजरात हाईकोर्ट के सामने एडवोकेट जनरल जैसे उच्च पद का व्यक्ति ऐसी आशंका जता रहा है तो कहीं न कहीं बात में दम ज़रूर है।

खंडपीठ ने कहा है कि गुजरात सरकार को इस डर से कोविड-19 टेस्ट की संख्या को कम नहीं करना चाहिए कि अधिक टेस्ट करने से जनसंख्या के 70 फीसद लोगों का टेस्ट पॉज़िटिव आ जाएगा। खंडपीठ ने कहा कि यह तर्क कि अधिक संख्या में COVID 19 टेस्ट करने से 70 प्रतिशत लोग पॉज़िटिव आ जाएंगे और इससे भय की मानसिकता फ़ैल जाएगी, कम टेस्ट करने का आधार नहीं होना चाहिए।

खंडपीठ ने कोविड-19 की जांच करने के लिये निजी प्रयोगशालाओं को इजाजत नहीं देने के राज्य सरकार के फैसले पर सवाल करते हुए कहा कि क्या इसका उद्देश्य प्रदेश में कोरोना वायरस संक्रमण के मामलों के आंकड़े को ‘कृत्रिम तरीके से नियंत्रित’ करना है। खंडपीठ ने राज्य को अधिकतम जांच किट खरीदने को कहा है, ताकि निजी एवं सरकारी अस्पताल सरकारी दर पर कोरोना वायरस की जांच कर सकें। कोविड-19 के रोगी को अस्पताल से छुट्टी देने से पहले उसकी जांच अनिवार्य रूप से की जानी चाहिए।

जबकि तीन या इससे अधिक दिन संक्रमण के मामूली, हल्के या कोई लक्षण नहीं दिखने वाले रोगियों की जांच नहीं किये जाने के लिये आईसीएमआर के दिशानिर्देश में कोई वैज्ञानिक आंकड़ा या अनुसंधान या कारण नहीं बताया गया है। खंडपीठ ने कहा कि कोई भी प्रयोगशाला, जो बुनियादी ढांचे से जुड़े मानदंडों को पूरा करती हो और राष्ट्रीय प्रयोगशाला मान्यता बोर्ड (एनएबीएल) से पंजीकृत हो सकती हो, उसे ये जांच करने की इजाजत दी जानी चाहिए।

गौरतलब है कि इससे पहले राज्य सरकार ने खंडपीठ से कहा था कि उसने सिर्फ सरकारी प्रयोगशालाओं में मुफ्त जांच कराने का फैसला किया है क्योंकि कई दृष्टांतों में निजी प्रयोगशालाएं अनावश्यक जांच कर रही हैं, जिससे रोगियों को गैर जरूरी खर्च करना पड़ रहा है। खंडपीठ ने कहा कि जब कभी सरकारी प्रयोगशालाओं में और अधिक जांच की गुंजाइश नहीं बचे, तब निजी प्रयोगशालाओं को जांच करने दिया जाए।

गुजरात में कोविड-19 के 405 नये मामले सामने आने से राज्य में संक्रमण के कुल मामले बढ़ कर सोमवार को 14,468 हो गये। वहीं, इस महामारी से 30 और मरीजों की मौत हो जाने पर कुल मृतक संख्या बढ़ कर 888 हो गई।अहमदाबाद जिले में कोरेाना वायरस संक्रमण के 310 नये मामले सामने आने पर कुल मामले बढ़ कर सोमवार को 10,590 हो गये। कोविड-19 से जिले में 25 और लोगों की मौत हो जाने से इस महामारी से मरने वाले लोगों की कुल संख्या बढ़ कर 722 हो गई। अहमदाबाद के मध्य जोन में सबसे ज्यादा 1,132 मामले और दक्षिण जोन में 1,054 जबकि उत्तरी जोन में 830 मामले सामने आए हैं।

इस बीच, अहमदाबाद सिविल अस्पताल के एक चिकित्सा अधिकारी द्वारा कथित रूप से तैयार की गई एक रिपोर्ट की सच्चाई का पता लगाने के लिए खंडपीठ ने तीन सदस्यीय समिति का गठन किया है। इस रिपोर्ट में अहमदाबाद के कोविड-19 अस्पतालों के खिलाफ कई शिकायतें की गई हैं। खंडपीठ ने कहा कि इस स्तर पर हम स्पष्ट कर सकते हैं कि उपर्युक्त रिपोर्ट की कोई प्रामाणिकता नहीं है। हालांकि इसके साथ ही हम इस तथ्य पर ध्यान देते हैं कि रिपोर्ट में बहुत महत्वपूर्ण चीजें शामिल हैं।

सोशल मीडिया पर वायरल एक विस्तृत 22 सूत्रीय रिपोर्ट में कहा गया है कि इन अस्पतालों में आवश्यक दवाओं की भारी कमी है और आरोप लगाया गया है कि कोविड-19 विशिष्ट उपचार प्रोटोकॉल की कमी के कारण मरीजों के प्रबंधन में भेदभाव किया जा रहा है। मेडिसिन विभाग के स्तर पर अधिकारी मरीजों के हित में कार्य करने में बुरी तरह से विफल रहे हैं और विभिन्न प्रकार के मुद्दों के बारे में निवासी डॉक्टरों द्वारा कई शिकायतें करने का भी कोई असर नहीं पड़ा है।

खंडपीठ ने राज्य सरकार को यह सुनिश्चित करने का भी निर्देश दिया है कि अहमदाबाद और उसके बाहरी हिस्से में स्थित सभी निजी अस्पताल फ़ीस के बारे में कोई प्रक्रिया निर्धारित करें। पीठ ने कहा कि किसी भी क़ीमत पर निजी अस्पतालों को कोविड- 19 के इलाज के लिए भारी राशि वसूलने की इजाज़त नहीं दी जानी चाहिए। यह मुश्किल भरा समय है न कि व्यवसाय से मुनाफ़ा कमाने का। अभी जिस तरह का समय है उसमें चिकित्सा सेवा सर्वाधिक आवश्यक सेवा है और निजी अस्पताल मरीज़ों से लाखों रुपए नहीं वसूल सकते। खंडपीठ ने कहा कि निजी अस्पतालों को कोविड-19 के इलाज की अनुमति दी जानी चाहिए और इनके दर की निगरानी राज्य सरकार करेगी।

 (वरिष्ठ पत्रकार होने के साथ जेपी सिंह कानूनी मामलों के जानकार भी हैं।)

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