प्रतीकात्मक फोटो।

पाकिस्तान और नेपाल के नक्शे में तब्दीली संबंधी पहल भारतीय नेतृत्व की कमजोरी के संकेत तो नहीं?

सरदार पटेल का ही दम था कि जूनागढ़ और हैदराबाद वे ले सके थे। हैदराबाद तो चारों ओर भारत से घिरा था तो उसे तो भारत में ही देर सबेर मिलने के अतिरिक्त अन्य कोई चारा नहीं था। पर जूनागढ़, जहां हमारा ज्योतिर्लिंग पीठ सोमनाथ और द्वारिकापुरी है का नवाब भी हैदराबाद के निज़ाम की तरह भारत में नहीं रहना चाहता था। जूनागढ़ का इलाक़ा तो पाकिस्तान से मिला था। सिंध के बिल्कुल नीचे था। वहां का नवाब जनता के विद्रोह के कारण पाकिस्तान भाग गया। बाद में जुल्फिकार अली भुट्टो के पिता जो वहां दीवान थे, वह भी कराची भाग गए। तब जूनागढ़ को पटेल ने भारत में मिला लिया। 

यह चर्चा आज इसलिए जरूरी है क्योंकि पाकिस्तान ने सत्तर सालों में पहली बार, अपना नक़्शा नए सिरे से छापा है जिसमें उसने जम्मू-कश्मीर, लद्दाख और जूनागढ़ को दिखलाया है। आज तक वह सिर्फ पाक अधिकृत कश्मीर को ही अपने नक़्शे में दिखाता आया है। हालांकि पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट का भी कहना है कि वह पाकिस्तान का अधिकृत क्षेत्र नहीं है। पर जम्मू-कश्मीर और लद्दाख तथा जूनागढ़ को अपने नक्शे में दिखाना यह बिल्कुल ताज़ी घटना है। 

इतनी हिम्मत कैसे पाकिस्तान की पड़ गयी कि वह जूनागढ़ और पूरे जेके राज्य को अपना बता रहा है ? हमारा नेतृत्व कमज़ोर है या हमें वह कमज़ोर आंक रहा है? 1965, 71 के भारत पाक युद्धों में भी पाकिस्तान जूनागढ़ की ओर नहीं बढ़ा था। सारी लड़ाई, जम्मू-कश्मीर, पंजाब और राजस्थान के जैसलमेर, बाड़मेर सेक्टर तक ही हुयी थी। 

नक्शे में दिखा देने से कुछ नहीं होता है। यह बात शत प्रतिशत सही है। पर सत्तर साल बाद अगर ऐसा नक़्शा जिसमें हमारे दो-दो राज्यों को ही दिखा दिया जाए तो यह स्वाभाविक रूप से सोचना पड़ता है कि कहीं पाकिस्तान हमारे राजनीतिक नेतृत्व को कमज़ोर करके तो नहीं आंक रहा है ? यही भावना, न घुसा था न घुसा है के बयान और नेपाल के नए नक्शे में लिपुलेख को दिखाने से भी उपजती है। 

इमरान खान खुद इस बेवकूफी भरे कदम से अपने देश में ही आलोचना के घेरे में हैं और नेपाल के प्रधानमंत्री, ओली भी अपनी ही पार्टी में आलोचना झेल रहे हैं। यह भी सही है कि, यह दोनों ही कदम चीन के इशारे पर भारत को असहज करने के लिये किया गया है। हमें, चीन की ऐसी हरकतों को न केवल अंतरराष्ट्रीय जगत में उजागर करना पड़ेगा बल्कि, हर चंद यह कोशिश करनी होगी कि वह घुसपैठ पूर्व स्थिति पर अपनी सेनाएं वापस ले जाए और हमारा इलाक़ा खाली करे। 

आज तक ने एक सर्वे में यह तो बताया कि, प्रधानमंत्री की लोकप्रियता बढ़ी है और देश की आर्थिक स्थित में सुधार हुआ है, पर इंडिया टुडे ग्रुप, अपनी ही आर्थिक हालत देखना भूल गया। आर्थिक मंदी के कारण, इसी ग्रुप ने अपना अखबार, मेल टुडे बंद कर अपने कर्मचारियों को नौकरी से निकाल दिया है और कुछ के वेतन कम कर दिए हैं । जीडीपी, शून्य से नीचे, माइनस में चली गयी है लेकिन सर्वे में दिखाया जा रहा कि सरकार ने अर्थव्यवस्था सम्भाल ली है। सर्वे के लिये धन इलेक्टोरल फंड से दिया गया है कि गिरोहबंद पूंजीपतियों ने या किसी केयर्स फंड से यह भी देर सबेर पता चल ही जायेगा। 

मीडिया के सर्वे पर न जाइये, खुद अपना, अपने पास पड़ोस, और बाजार का, अगर बाहर निकल रहे हों तो सर्वे कर लीजिए या अपने व्यापारी मित्रों से ही पूछ लीजिये, या कभी कभी लोगों को ही अच्छी आर्थिक स्थिति की बात कह कर के उनका दर्द उभार दीजिये, आप को वास्तविकता का आभास हो जाए। 

सरकार, गोदी मीडिया और गिरोह बंद पूंजीवाद के दुष्चक्र में देश फंस चुका है और हम आप यानी द ग्रेट मिडिल क्लास, तो बिल्कुल ही इन मायावी असुरों के जाल में बंध चुके हैं। यह सर्वे भी प्रायोजित है और इसकी फंडिंग इलेक्टोरल बांड से ही की गयी होगी। आज केवल गिरोह बंद पूंजीपतियों और चुनिंदा लोगों की ही संपत्ति बढ़ रही है, और हम सबकी कम हो रही है।

मीडिया, न अब खबर देता है और न लेता है बस जनविरोधी खबरें गढ़ता है। विशेषकर, कुछ इलेक्ट्रॉनिक मीडिया। जर्मनी में जिस दिन, हिटलर द्वितीय विश्वयुद्ध हार रहा था, और आत्महत्या के लिये अपने बंकर में घुस रहा था, उस समय तक जर्मनी का नाज़ी मीडिया, जिसे आप वहां का गोदी मीडिया कह सकते हैं, हिटलर को परम लोकप्रिय और द्वितीय विश्वयुद्ध का विजेता प्रचारित करने में लगा था।

इसके पहले कि सारा बैंकिंग सेक्टर और हमारी इकॉनमी ढह जाए, चीन धीरे-धीरे पैंगांग झील तक आ कर लद्दाख लेने के मंसूबे बांधने लगे, जागिये और सरकार से पूछिये कि जो अपना इलाक़ा नहीं बचा सकते, बचाना तो छोड़िए, इलाके में विदेशी घुसपैठ नहीं स्वीकार कर सकते हैं, वे किस मुंह से कहते हैं कि राष्ट्र रक्षा से बढ़कर कोई पुण्य नहीं है! 

( विजय शंकर सिंह रिटायर्ड आईपीएस अफसर हैं और आजकल कानपुर में रहते हैं।)

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