नया खानीः बस्तर के आदिवासियों का कुपोषण से लड़ाई का महापर्व

जगदलपुर। बस्तर के आदिवासियों का ‘नया खानी’ कुपोषण, टीवी और मलेरिया जैसी बीमारियों से लड़ने का परंपरागत पर्व है। इस दिन एक विशेष धान को ईष्ट देवता और पुरखों को भेंट किया जाता है। उसके बाद आदिवासी इसका भोग करते हैं। बताते हैं इस चावल में 70 गुना तक आयरन होता है। नया खानी पर्व पर आदिवासी हजारों साल से पुरखों से मिले ज्ञान को संजोते हैं।

बस्तर आदिवासी बहुल क्षेत्र है। यहां गोंड, मुरिया, धुरवा, हल्बा, भतरा, गदबा, माड़िया आदि प्रमुख जनजातियां पाई जाती हैं। बस्तर में आदिवासियों की पर्वों को मानने की शैली अलग होती है। बस्तर में नव वर्ष के रूप में माटी तिहार का उत्सव में धरती माता को आभार प्रकट करते हैं। वहीं अमुस तिहार में खेतों में किट प्रकोष्ठ को नष्ट करने के लिए अनेक प्रकार की जड़ी-बूटियों को खेतों में गाड़ दिया जाता है।

बस्तर में दियारी त्योहार में पशुओं को चराने वाले धोरई को सम्मान किया जाता है, उसी प्रकार बस्तर में नई फसल को उपयोग करने से पहले अपने पुरखों-ईष्ट देवता-पेन को नया धान अर्पित करते हैं। आदिवासी बहुल क्षेत्र बस्तर में नया खानी  में परंपराओं के अनुसार धान की नई फसल की बालियों को तोड़कर उसे आग में भूंज कर कूट दिया जाता है। हल्बा समुदाय से चिवड़ा खरीद कर लाते हैं। इन दोनों का मिश्रण पर अपने पुरखों की देवी-देवता पेन को समर्पित करते हैं।

इसके बाद पूरे परिवार वाले नए धान को ग्रहण करने के पहले टीका लगवाते हैं। प्रसाद के रूप में कूड़ही पत्ता से ग्रहण करते हैं। साथ ही छोटे-छोटे बच्चों को पारंपरिक शिक्षा देने के लिए लड़के के लिए खेती-बाड़ी करने की शिक्षा दी जाती है। लड़कियों को चूल्हा-बर्तन की शिक्षा दी जाती है। यह बच्चे आगे जाकर अपने पैरों पर खड़े होकर खेती-कमानी कर सकें, इसलिए पारंपरिक शिक्षा दी जाती है।

मुरिया सामाज के युवा प्रभाग अध्यक्ष हेमराज बघेल ने बताया कि नवाखाई पर्व का मतलब सिर्फ उत्सव नहीं है। इसके अलावा भी अनेक उद्देश्य हैं। आदिवासियों के लिए पर्व ऐसा आयोजन होता है,  जिसमें हजारों सालों से पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तांतरित ज्ञान को सतत् हस्तांतरित करने का प्रयास करते हैं। हमारे पुरखों द्वारा संरक्षित प्रकृति के अनमोल उपहार आने वाली पीढ़ी को भी मिल सके। इस महापर्व में अनेक महान उद्देश्य छुपे हुए हैं, नया खानी महापर्व में प्रकृति में सर्वप्रथम उत्पदित धान को अपने पुरखों, देवी-देवताओं, पेन के समक्ष समर्पण करते हैं।

उन्होंने बताया कि बरसात से शरीर में आयरन की कमी हो जाती है। ऊपर से संक्रमण के डर से पत्तेदार सब्जियों का कम उपयोग करने से आयरन का प्रवाह रुक जाता है। इसकी पूर्ति और स्थाई समाधान के लिए हमारे महान पूर्वजों ने चावल की इस अद्भुत वैरायटी को संजोया। इसमें आयरन की मात्रा आश्चर्यजनक रूप से 70 गुना अधिक होती है। नया खानी महापर्व के दिन साथ ही पूरे आदिवासी समुदाय में एक साथ उपयोग करने का महा अभियान चलाया जाता है। अपनी एक अलग सुगंध और विटामिन से भरे इस चावल आदिवासियों में नई ऊर्जा भर देता है।

उन्होंने बताया कि यह धान मात्र 48 दिन में तैयार हो जाता है। यह भुखमरी, कुपोषण से जूझ रहे दुनिया को एक नई उम्मीद दिखाती है। नया खानी महापर्व ज्ञान का पर्व है, जो हमें टीवी, कुपोषण और मलेरिया से बचाता है।

(जनचौक संवाददाता तामेश्वर सिन्हा की रिपोर्ट।)

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