झारखंड में पत्रकारों की एक टीम से 27 दिसंबर को अस्पताल के मुख्य चिकित्सक और स्टॉफ ने मारपीट की। पत्रकारों की टीम में शामिल एक महिला पत्रकार का वीडियो बनाते समय मोबाइल भी तोड़ दिया गया। जब पत्रकार ने इस बाबत थाने में हमलावरों पर मुकदमा दर्ज करने का आवेदन दिया, तो एफआईआर दर्ज करने में भी पुलिस आनाकानी करती रही। आखिर झारखंड पुलिस के ट्विटर हैंडल से जमशेदपुर पुलिस को एफआईआर दर्ज करने के आदेश दिए गए, तब जाकर कहीं देर रात एफआईआर दर्ज हुई, लेकिन अभी तक हमलावरों पर कोई कार्रवाई नहीं हुई है।
वेबपोर्टल ‘खबरखंड’ के फेसबुक पेज पर प्रकाशित खबर के अनुसार, “झारखंड के जमशेदपुर में प्राइवेट अस्पतालों में फायर सेफ्टी के क्या इंतज़ाम हैं, मरीज़ों की देखभाल और सुरक्षा का जायज़ा लेने खबरखंड की जर्नलिस्टों की टीम रविवार को शहर में बाराद्वारी स्थित एपेक्स अस्पताल पहुंची। उस टीम में विकास कुमार, अंकित, महिला पत्रकार के अलावा द टेलिग्राफ, द क्विंट एवं BBC से जुड़े हुए जर्नलिस्ट मोहम्मद सरताज आलम भी मौजूद थे, जो खबरखंड को भी सेवाएं देते आ रहे हैं।
इस टीम से अस्पताल कर्मी ने प्रतीक्षा करने के लिए कहा। कुछ देर के बाद अस्पताल प्रबंधक डॉ. सौरभ चौधरी अपने चेंबर से बाहर आए। उन्होंने आक्रामक अंदाज़ में अभद्रता के साथ बातें शुरू कर दीं। विकास कुमार ने उनके गंदे आचरण को देख वीडियो शूट कर लिया, जिससे आक्रोशित डॉक्टर ने विकास कुमार को अन्य सुरक्षाकर्मियों की मदद से पीटना शुरू कर दिया। यह देख कर मोहम्मद सरताज ने डॉक्टर सौरभ को रोकने की कोशिश की, तभी सरताज के सर पर पीछे से हमला हुआ। यह देख महिला पत्रकार ने वीडियो बनाने की कोशिश की। तभी एक कर्मी ने महिला पत्रकार के मोबाइल की स्क्रीन डैमेज कर दी। उसे बचाने गए अंकित पर भी हमला किया गया।
प्राइवेट अस्पताल अगर मीडिया कर्मियों के सवालों का जवाब देने से कतराते हैं, इस तरह से बेरहमी से हमला करने का साहस करते हैं तो आप उम्मीद कर सकते हैं कि मरीजों के साथ इनका बर्ताव कैसा होगा?

इस गंभीर मामले को देखते हुए एपेक्स अस्पताल ही नहीं शहर के दूसरे सभी अस्पतालों की फायर सेफ्टी की जांच होनी चाहिए, ताकि फायर सेफ्टी जैसे महत्वपूर्ण बिंदु पर कतई लापरवाही न हो। एपेक्स अस्पताल के प्रबंधन द्वारा खबरखंड टीम के साथ की गई मारपीट की निंदनीय घटना पर उचित कार्रवाई की जानी चाहिए।
पत्रकार मोहम्मद सरताज आलम ने बताया, “जैसे ही अस्पताल के मुख्य चिकित्सक डॉक्टर सौरभ चौधरी आए, वे स्पष्ट रूप से कहने लगे कि मैं आपको कुछ नहीं बताऊंगा, जो पूछना है प्रशासन से जाकर पूछिए। मैं यहां के नर्सिंग होम एसोसिएशन का अध्यक्ष भी हूं और मुझे पत्रकारों के किसी सवाल का जवाब देने की जरूरत नहीं है।”
डॉक्टर के द्वारा आक्रामक व्यवहार और मारपीट के कारण के बाबत पूछने पर पत्रकार मोहम्मद सरताज आलम कहते हैं कि यह बात हमारी भी समझ से परी थी क्योंकि उस डॉक्टर से हम सभी लोग पहली बार मिल रहे थे। शायद ‘दाल में कुछ काला था’, इसीलिए वह हम पर भड़क गया और अपने स्टॉफ के साथ मिलकर हम लोगों के साथ मारपीट की।
इस घटना से यही जाहिर होता है कि निजी अस्पतालों पर सरकार का कोई नियंत्रण नहीं है और उसे पब्लिक को लूटने की खुली छूट दे दी गई है और जब कोई पत्रकार डॉक्टर से सवाल करता है, तो वह पत्रकार के साथ मारपीट करने से भी बाज नहीं आते। पुलिस भी पत्रकारों के बजाय डॉक्टरों की ही सुनती है और तुरंत एफआईआर दर्ज कर हमलावर डॉक्टर और उसकी टीम को गिरफ्तार करने के बजाय एफआईआर दर्ज करने में भी आनाकानी करती है।
(झारखंड से स्वतंत्र पत्रकार रूपेश कुमार सिंह की रिपोर्ट।)
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