
स्वच्छता अभियान पर कलंक है पिराना डम्पिंग साईट
अहमदाबाद: नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद उनके बड़े कदमों में से एक स्वच्छ भारत अभियान भी है। मोदी का कहना था कि स्वच्छता राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का सपना था। बहुत कम प्रयासों के साथ ही हम अपने आस-पास और देश को साफ-सुथरा बना सकते हैं। लेकिन अहमदाबाद का पिराना डम्पिंग साईट इसका अपवाद है। गंदगी और कूड़ा-करकट डालने से यहां गंदगी का पहाड़ बन गया है। गांधी नगर से चंद कदमों की दूरी पर स्थित पिराना में आम आदमियों का जीवन गंदगी से नरक बन गया है। ऐसे में सवाल उठता है कि 12 वर्षों तक गुजरात के मुख्यमंत्री रहते हुए नरेंद्र मोदी का ध्यान इधर क्यों नहीं गया?
पिराना डम्पिंग साईट पर रोजाना 4000 मैट्रिक टन कचरा डम्प किया जाता है। जिससे पिराना में कचरे का पहाड़ बन गया है। दुर्गंध और प्रदूषण से आसपास के निवासियों का रहना दूभर हो गया है। बरसात के समय प्रदूषण से होने वाले कई रोग रिहायशी इलाकों में फैलना आम बात है। पिराना डम्पिंग साईट से 42 मीटर की दूरी से रिहायशी इलाका शुरू हो जाता है। रिहायशी क्षेत्रों में लाखों गरीब – मजदूर रहते हैं। दूसरी तरफ लगभग 50 से 60 मीटर की दूरी पर नेशनल हाईवे नम्बर 8 शुरू होता है। कचरा डम्प करने के लिए केंद्र सरकार ने एक गाइड लाइन बना रखी है। जिसे सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट रूल 2016 कहते हैं। 8 अप्रैल 2016 से पहले सॉलिड बेस्ट मैनेजमेंट रूल 2001 अमल में था। इस कानून के अनुसार 500 मीटर के परिधि में कोई भी रिहाइशी या बस्ती नहीं होनी चाहिए और 200 मीटर के बाद ही कोई नेशनल हाईवे हो सकता है। लेकिन केंद्र सरकार के नए और पुराने गाइडलाइंस को धता बताते हुए पिराना डम्पिंग साईट में कूड़ा डालना जारी है।
पिराना अहमदाबाद शहर के किनारे ही स्थित है। ये शहर नरेंद्र मोदी का गृहनगर है। प्रधानमंत्री बनने के बाद मोदी पूरे देश को स्वच्छ करने का अभियान चला रहे हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर पिराना डम्पिंग साईट गंदगी का पहाड़ कैसे बन गया। पिराना अहमदाबाद के बहरामपुरा म्युनिसपल वार्ड में आता है। इस वार्ड के सभी चार काउंसिलर कांग्रेस पार्टी से आते हैं। यह डम्पिंग साईट दानीलिमड़ा विधानसभा क्षेत्र में आता है जो अनुसूचित जाति के लिए सुरक्षित है। कांग्रेस पार्टी के शैलेश परमार इस क्षेत्र से विधायक हैं। ऐसे में इसका एक बड़ा कारण राजनीतिक भी है। जिसके कारण भाजपा और कांग्रेस इस क्षेत्र से डम्पिंग साईट को बंद करने में कोई रूचि नहीं दिखाती है। फिलहाल, सरकार के गाइड लाईन के अनुसार हर रोज कचरा डम्प करने के बाद रोजाना कचरे को 10 सेंटीमीटर मिट्टी से ढंकना होता है। दूसरा, डम्पिंग क्षेत्र की चारों तरफ से फेंसिंग होनी चाहिए ताकि कोई प्राणी या गैर कानूनी तरीके से व्यक्ति प्रवेश न कर सके। काम करने वालों को सेफ्टी शूज और मास्क देना निगम निकाय की जिम्मेदारी है। डम्पिंग साईट में एक प्रवेश द्वार और एक निकास द्वार होना चाहिए। इस प्रकार की सेफ्टी को ध्यान पर रखते हुए कई रूल हैं। परन्तु कभी भी किसी भी रुल को म्युनिसिपल कारपोरेशन ने कभी भी पालन नहीं किया जिस कारण से यह गंभीर समस्या बन गयी है।
जनहित याचिका के माध्यम से जन समस्याओं को उठाने वाले वकील राहुल शर्मा का कहना है कि सॉलिड वेस्ट कि समस्या वैश्विक है। लेकिन सही तरीका अपना कर इसका उचित निदान संभव है। स्वीडन बिजली उत्पादन के लिए कचरे का आयात करता है। यदि पिराना डम्पिंग साईट पर सही डिजाइन, फेंसिंग, लैंड फिलिंग पद्धति को अपनाया गया होता तो यह डम्पिंग साईट समस्या नहीं बनती। दिनोंदिन बढ़ रही प्रदूषण की समस्या और नगर निगम की उदासीनता के कारण समाज के प्रबु़द्ध लोगों ने एक जनहित याचिका डाली है।
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने पिराना डम्पिंग मामले में पहली बार 2001 में अहमदाबाद म्युनिसिपल को नोटिस दिया था। उस समय कांग्रेस के पास अहमदाबाद नगर निगम की सत्ता थी और हिम्मत सिंह पटेल महापौर थे। इसी वार्ड से चुन कर आने वाले बदरुद्दीन शेख स्टैंडिंग कमिटी के अध्यक्ष थे। इन लोगों ने उस नोटिस को कूड़ेदान में डाल दिया था। नोटिस में डम्पिंग साईट को बंद करने या इसे सही तरीके से विकसित करने को कहा था। 2000 से 2005 तक कांग्रेस के पास नगर निगम की सत्ता थी। लेकिन इस समस्या को गंभीरता से नहीं लिया गया। बहराम पुरा वार्ड के जावेद कुरैशी को सूचना अधिकार से मिली जानकारी के अनुसार अप्रैल 2000 से दिसम्बर 2015 के बीच किसी भी पार्षद द्वारा म्युनिसिपल बोर्ड की मीटिंग में पिराना डम्पिंग मुद्दे को उठाने की जानकारी उपलब्ध नहीं हैं।
आक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के एक रिसर्च स्कॉलर ने दिसम्बर 2015 में एक अध्ययन किया था। डम्पिंग साईट से कुछ मीटर की दूरी पर बसे सिटीजन नगर के 40 मकान का एक सर्वे हुआ था। जिसका परिणाम आया कि इन 40 मकानों में किडनी और सांस की बीमारी से 19 लोग मर चुके हैं। यह वह इलाका है जहां से कांग्रेस के 8 पार्षद और 1 विधायक आते हैं। डम्पिंग के आस पास बसने वाले अधिकतर लोग किसी न किसी बीमारी से पीड़ित हैं। आईआईटी कानपुर के एक अध्ययन के अनुसार इस डम्पिंग साईट में लगभग 35 तरह के जहरीले तत्व पाये गए। सेंट जेवियर्स कॉलेज के अध्ययन के अनुसार डम्पिंग साईट के आस-पास वायु मे पीएम-वन मात्रा बहुत अधिक है। जिस कारण से आस-पास की बस्ती में बसने वाली गर्भवती महिलाओं का समय पूर्व प्रसव होने की आशंका बहुत अधिक होती है। समय पूर्व प्रसव की समस्या होने के बावजूद भी लोग जागरूक नहीं हैं। और न ही फैल रही बीमारियों के प्रति जागरूकता फैलाई जा रही है। डम्पिंग साईट से निकलने वाले प्रदूषण से स्वसन तंत्र,किडनी और टीबी जैसी बीमारियां आम बात हैं। इस क्षेत्र में न तो सरकारी स्कूल है न ही सरकारी दवाखाना है। जब नगर निगम से सूचना का अधिकार कानून के तहत इस वार्ड में चल रहे हेल्थ सेंटर की जानकारी मांगी गयी तो अधिकारीयों ने कुछ प्राइवेट डॉक्टर और झोला छाप डॉक्टर की लिस्ट पकड़ा दी।
हाल ही में 15 जनवरी 2017 को अमेरिकी सरकार के एक प्रतिनिधिमंडल ने डम्पिंग साईट का दौरा किया था। प्रतिनिधिमंडल ने इस बात को माना कि डम्पिंग के आस पास मुस्लिम और दलित रहते हैं। जिस कारण सरकार और सत्ता में बैठे लोग इस क्षेत्र के प्रति गंभीर नहीं हैं। यह डम्पिंग साईट शैक्षणिक संस्थानों के लिए एक गंभीर विषय बन चुका है। मीडिया ने भी इस विषय पर कोई ठोस पहल नहीं की। जिसके कारण आम आदमियों को इस समस्या से निपटने के लिए हाईकोर्ट जाना पड़ा। इसके पहले इस गंभीर समस्या के निपटारे के लिए इंसाफ फाउंडेशन ने म्युनिसिपल कारपोरेशन, प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड, गुजरात सरकार से कई पत्राचार किये परन्तु किसी ने इस समस्या को गंभीरता से नहीं लिया। कलीम सिद्दीकी ने रिटायर्ड आईपीएस और वकील राहुल शर्मा के जरिये गुजरात हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका डाली जिस पर कोर्ट ने म्युनिसिपल कारपोरेशन , प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड और गुजरात सरकार को नोटिस दिया। 22 मार्च 2017 को अहमदाबाद म्युनिस्पल कारपोरेशन ने अदालत में 244 पेज का जवाब रखा है।
पिराना डम्पिंग साईट की अगली सुनवाई 5 अप्रैल को है। लेकिन अहमदाबाद नगर निगम अब डम्पिंग साईट को हटाने पर राजी हो गया है। कारपोरेशन ने गुजरात सरकार से 374.63 करोड़ रुपये की ग्रांट मांगी है। इसके अलावा नई डम्पिंग साईट के लिए कुमोद गांव के पास 512234 वर्ग मीटर निजी जमीन और 371908 वर्ग मीटर सरकारी जमीन देख रखी है ।
इस वर्ष भारत सरकार के शहरी विकास मंत्रालय ने स्वच्छ भारत मिशन को टेक्नोलॉजी से जोड़ते हुए स्वच्छ भारत एप्प लांच किया। जिसके द्वारा आम आदमी भी अपने शहर की गंदगी के फोटो खींचकर एप्प के जरिये उसे अपलोड कर शिकायत दर्ज करा सकता है। 2016 दिसम्बर तक एक लाख पचपन हजार नागरिकों ने इस एप्प के द्वारा अपने आसपास की गन्दगी की शिकायत दर्ज कराई थी। जिसमें 33874 शिकायतें अहमदाबाद से थीं। केंद्रीय शहरी विकास मंत्रालय द्वारा जारी स्वच्छ शहरों की सूची में अहमदाबाद भारत के टॉप 10 स्वच्छ शहरों में भी नहीं है। इसका कारण 1980 से चल रहे पिराना डम्पिंग से फैल रही गन्दगी और प्रदूषण बताया गया है।