वाराणसी यात्रा से पहले ही मिल गया दिव्यांगों को पीएम का तोहफा, बंद हो गया पोद्दार अंध विद्यालय

वाराणसी। हजारों दृष्टिहीनों से इल्म की रौशनी छीन ली गई है। दुर्गाकुंड स्थित पूर्वांचल के पहले और अंतिम अंध विद्यालय को हमेशा के लिए बंद कर दिया गया है। कोई अचरज नहीं कि आने वाले कल शहर के बीच स्थित इस अंध विद्यालय को खाक में मिलाकर गगनचुंबी व्यावसायिक ईमारतें तान दी जाएं।

कल 15 जुलाई को जब बनारस के सांसद और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पांच स्तरीय सुरक्षा व्यवस्था में घिरे शहर को फ्लाई ओवर, कन्वेंशन सेंटर सहित योजनाओं, परियोजनाओं और भविष्य की महा योजनाओं की सौगात देंगे तो दृष्टिहीन छात्र शायद दूर से ही उनसे यही कहना चाहेंगे “शहर को सौगात फिर हमारे हिस्से क्यों रात”। प्रधानमंत्री से उन्हें बस इतना ही कहना है कि हम दिव्यांगों के स्कूल का ताला खुलवा दीजिए प्रधानमंत्री जी ताकि इल्म की रौशनी से हम अपना मुस्तकबिल रौशन कर सकें।

सूत्रों की मानें तो दुर्गा कुंड स्थित हनुमान प्रसाद पोद्दार अंध विद्यालय की तकरीबन सौ करोड़ की संपत्ति का व्यावसायिक उपयोग कर मुनाफे की लालसा के चलते ही पूर्वांचल के पहले अंध विद्यालय को हमेशा के लिए बंद कर दिया गया है। जिससे हजारों छात्रों की जिंदगी अंधेरे में भटक रही है।

आपदा में अवसर का फायदा उठाकर 18 उद्योगपति जो विद्यालय के ट्रस्टी बताए जाते हैं, ने प्रस्ताव पारित कर पिछले 20 जून, 2020 को कोरोना काल में ही विद्यालय को हमेशा के लिए बंद कर दिया। ट्रस्टियों का आरोप था कि उन्हें किसी भी तरह की सरकारी सहायता नहीं मिल रही है। इस बात को अंदरखाने में ही रखने की भरसक कोशिश की गई लेकिन सच जब सामने आया तो लोगों ने प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री, शिक्षा सचिव और सामाजिक न्याय मंत्रालय तक छात्रों की व्यथा-कथा को लिख भेजा। इस उम्मीद से कि दिव्यांगों के लिए प्रधानमंत्री विशेष तौर पर संवेदनशील हैं पर ऊपरी खाने के मौन ने बता दिया कि सरकार का हाथ किसके लिए और किसके साथ है।

इस विद्यालय की स्थापना दूर दृष्टा समाजसेवी हनुमान प्रसाद पोद्दार ने 26 मार्च 1972 को ‌दृष्टिहीनों की जिदंगी में ज्ञान की रोशनी लाने के लिए किया था ताकि वो खुद को कमतर न समझ स्वावलंबी बन देश और समाज के विकास में योगदान दे सकें। उत्तर प्रदेश में चार अंध विद्यालयों में से ये एक है। सामाजिक न्याय मंत्रालय के दीन दयाल दिव्यांग पुनर्वास योजना के तहत इस विद्यालय को संचालित करने के लिए आर्थिक सहायता दी जाती थी जिसमें पहले कटौती की गई फिर साहयता देना ही बंद कर दिया गया। मौके का फायदा उठाकर ट्रस्टियों ने भी खेल खेला और विद्यालय पर ताला चढ़ा दिया।

हाल ही में दृष्टिहीन छात्रों ने विद्यालय को खोले जाने को लेकर सड़क पर प्रदर्शन भी किया था।

विकास के हवा-हवाई सफर में झूमते इस शहर में अंध विद्यालय का बंद होना मुद्दा नहीं है। शिक्षा की नगरी में फ़िलहाल बुद्धिजीवी और राजनीतिक दल खामोश हैं। सक्रिय है बंद कर बेच कर मुनाफा कमाने वाले। दृष्टिहीन सड़कों पर हैं और नजर वालों को विकास का मोतियाबिंद हो गया है।

 (वाराणसी से पत्रकार भास्कर गुहा नियोगी की रिपोर्ट।)

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