फर्जी मुठभेड़ के दोषी यूपी पुलिसकर्मियों की गिरफ्तारी न होने पर सुप्रीम कोर्ट ने लगाया 7 लाख का जुर्माना

उत्तर प्रदेश में राज्य मशीनरी अपने दागी पुलिस अधिकारियों का बचाव कर रही है,सम्भवतः इसी लिए प्रदेश के खाकी वर्दीधारियों का मनोबल इतना बढ़ गया है किवे गुंडों, बाहुबलियों सरीखा आचरण कर रहे हैं।मुख्यमंत्री का गृह जिला गोरखपुर पुलिस मनमानी का सबसे ताजा ज्वलंत उदाहरण है जहाँ बिना किसी कारण के शान में कथित गुस्ताखी के लिए दरोगा जी ने एक युवा व्यापारी की पीट पीट कर हत्या कर दी।अब तो उच्चतम न्यायालय ने भी शुक्रवार एक अक्टूबर को कह दिया कि यूपी में राज्य के तंत्र के द्वारा प्रदेश के पुलिस अधिकारियों का बचाव किया जा रहा है।

उच्चतम न्यायालय के जस्टिस विनीत सरन और जस्टिस अनिरुद्ध बोस की पीठ ने यूपी पुलिस के 17 साल पुराने एनकाउंटर को लेकर राज्य सरकार पर सात लाख का जुर्माना लगाया है। पीठ ने राज्य सरकार को इस मामले में अधिकारियों के बचाव करने पर ये जुर्माना लगाया गया है। पीठ ने कहा कि इस मामले में राज्य ने जिस ढिलाई से कार्यवाही की है, उससे पता चलता है कि राज्य की मशीनरी अपने उत्तर प्रदेश पुलिस अधिकारियों का बचाव कैसे कर रही थी।

पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता यशपाल सिंह जो पुलिस द्वारा एक कथित मुठभेड़ में मारे गए मृतक के पिता हैं, पिछले 19 वर्षों से दर-दर भटक रहे हैं। वर्तमान मामले में राज्य ने जिस ढिलाई के साथ करवाई की है, वह बताता है कि कैसे राज्य मशीनरी अपने पुलिस अधिकारियों का बचाव या सुरक्षा कर रही है।इसी मामले में पीठ ने राज्य सरकार को कोर्ट रजिस्ट्री के साथ सात लाख रुपये जमा करने का निर्देश दिया, जिसे याचिकाकर्ता वापस लेने का हकदार होगा।

मामला 2002 का है जब यूपी पुलिस ने मुठभेड़ में एक व्यक्ति को मार गिराया था। इसके बाद 2005 में पुलिस द्वारा अपने ही अधिकारियों के खिलाफ आरोपों को खारिज करते हुए एक क्लोजर रिपोर्ट दाखिल की गई। ट्रायल कोर्ट ने क्लोजर रिपोर्ट को खारिज कर दिया था और एक विस्तृत तर्कपूर्ण आदेश पारित किया था । इसके बाद भी नौ साल तक कोई गिरफ्तारी नहीं हुई। इस मामले में उच्चतम न्यायालय के हस्तक्षेप के बाद दो गिरफ्तारियां हुईं और एक आरोपी ने आत्मसमर्पण कर दिया। जबकि चौथा अभी भी फरार है। याची के विद्वान अधिवक्‍ता ने कहा है कि चतुर्थ फरार आरोपी वर्ष में सेवा से सेवानिवृत्त हो चुका है।

इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा रिट याचिकाओं और अभियुक्तों द्वारा धारा 482 याचिकाओं को खारिज करने के बाद भी यह स्थिति जारी रही। निचली अदालत ने 2018 और 2019 में आरोपी पुलिस अधिकारियों के वेतन पर भुगतान रोकने के आदेश दिए थे, लेकिन आदेश का पालन नहीं किया गया। इसके बाद, चौथा आरोपी जो फरार था, उसे 2019 में उसकी सेवानिवृत्ति पर उसके सभी बकाये का भुगतान भी कर दिया गया था।

इस मामले में एक सितंबर, 2021 को उच्चतम न्यायालय के हस्तक्षेप के बाद दो गिरफ्तारियां हुईं और एक आरोपी ने आत्मसमर्पण कर दिया। जबकि चौथा अभी भी फरार है। अतिरिक्त महाधिवक्ता गरिमा प्रसाद ने कोर्ट को आश्वासन दिया कि राज्य सरकार ने कार्रवाई की है और यह पता लगाने के लिए कि इतने सालों तक इस मामले में कदम क्यों नहीं उठाए गएकी जाँच भी शुरू कर दी है । मामले की अगली सुनवाई 20 अक्टूबर को होगी।

(वरिष्ठ पत्रकार जेपी सिंह की रिपोर्ट।)

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