मूर्खों के स्वर्ग से बाहर निकलिये हुजूर और थोड़े शरमाइये!

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निस्संदेह, यह ऐसा समय है जब उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार को शर्म महसूस करनी चाहिए कि प्रदेश में रामराज्य ला देने के उसके दावे एक के बाद एक हवा में उड़ते जा रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के इस दावे की तो उनके द्वारा बनाये गये नीति आयोग ने ही बखिया उधेड़ दी है कि उत्तर प्रदेश अभाव व अंधकार के दौर को पीछे छोड़कर अंतरराष्ट्रीय छाप छोड़ रहा है। यह कैसी छाप है कि यह आयोग अभी भी इस प्रदेश को देश के सबसे ज्यादा गरीबी वाले पांच राज्यों में गिनता है। और तो और, पिछले दिनों इस आयोग और हार्वर्ड स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ वगैरह द्वारा मिलकर किया गया अध्ययन कहता है कि अयोध्या के पांच साल से छोटे बच्चों की आधी से ज्यादा संख्या भूखी व कुपोषित और इस कारण नाना व्याधियों से पीड़ित है। 

इतना ही नहीं, भूख व कुपोषण के लिहाज से अयोध्या विधानसभा क्षेत्र देश के विधानसभा क्षेत्रों की फेहरिस्त में सबसे निचली पांत में है! 3941 विधानसभा क्षेत्रों की सूची में 52.25 प्रतिशत कुपोषित बच्चों के साथ यह 3870वें नम्बर पर है! प्रदेश में जितनी खराब दशा अयोध्या विधानसभा क्षेत्र की है, पूरे प्रदेश में किसी क्षेत्र की नहीं है और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के थाना भवन, कैराना, पुरकाजी और खटौली विधानसभा क्षेत्र भी उससे बेहतर हालत में हैं। अब यह बात तो हम जानते ही हैं कि कुपोषित बच्चों का शारीरिक व मानसिक विकास ठीक से नहीं होता, वे जल्दी-जल्दी बीमार होते हैं, अपनी कक्षाओं में उनका पढ़ाई का स्तर ठीक नहीं होता और वे गम्भीर बीमारियों की चपेट में आ जाते हैं।

योगी सरकार इसकी शर्म महसूस करती तो उम्मीद की जा सकती थी कि अब वह अयोध्या में दुनिया के सबसे भव्य राममन्दिर के निर्माण और विश्वरिकार्ड बनाने के लिए उस पर थोपी जा रही लाखों लाख दीयों के सरकारी दीपोत्सव की परम्परा की वाहवाही लूटने से बाज आयेगी। साथ ही मुख्यमंत्री द्वारा सार्वजनिक समारोहों में दिखावे के तौर पर बच्चों को मंच पर बुलाकर फोटो खिंचवाने की व्यर्थता समझेगी और बच्चों का सुखद व सुन्दर भविष्य सुनिश्चित करने के लिए जमीनी हकीकत बदलने वाले कदम उठायेगी। 

लेकिन अभी तो इसके उलट वह अनेक सदाशयी लोगों की उन भोली उम्मीदों का हाल भी बुरा किये दे रही है, जो सर्वोच्च न्यायालय द्वारा राम जन्मभूमि बाबरी मस्जिद विवाद के फैसले के बाद समझ बैठे थे कि उसके बहाने प्रायः उनका पीछा करती रहने वाली साम्प्रदायिक विद्वेष की बला अब उनके सिर से हमेशा के लिए टल जायेगी। साथ ही उसका राजनीतिक दुरुपयोग भी बन्द हो जायेगा, जिससे भविष्य के चुनाव विद्वेष पर आधारित साम्प्रदायिक व धार्मिक ध्रुवीकरण के बजाय सामाजिक-आर्थिक मुद्दों पर केन्द्रित हुआ करेंगे और उनकी बिना पर बेहतर सरकारें चुनकर आने लगेंगी।  

उन भोली उम्मीदों की नाउम्मीदी का ताजा उदाहरण यह है कि जब प्रदेश विधानसभा चुनाव की देहरी पर खड़ा है, उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य एक ट्वीट में कहने की सीमा तक चले गये हैं कि ’अयोध्या, काशी भव्य मंदिर निर्माण जारी है, मथुरा की तैयारी है। जय श्रीराम, जय शिवशम्भू, जय श्री राधेकृष्ण।’ जैसा कि बहुत स्वाभाविक था, उनके इस ट्वीट के बाद साम्प्रदायिक विद्वेष पर आधारित भाजपाई दांव पेंचों की चर्चा जोर पकड़ गई है। कोई कह रहा है कि केशव प्रसाद मौर्य ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा गत दिनों उत्तराखंड में किये गये काशी-मथुरा के जिक्र को आगे बढ़ाया है, तो कोई यह कि उनका ट्वीट कुछ दिनों पहले हिंदू महासभा समेत कुछ हिंदूवादी संगठनों के इस एलान से जुड़ा हुआ है कि छह दिसंबर को शाही मस्जिद में जलाभिषेक किया जाएगा। हालांकि ये पंक्तियां लिखने तक अखिल भारत हिंदू महासभा ने प्रशासन की ओर से अनुमति न मिलने के कारण जलाभिषेक का कार्यक्रम स्थगित कर दिया है। 

यह कहने वालों की भी कमी नहीं है कि अब जब राममंदिर का निर्माण शुरू हो चुका है और अयोध्या में साल दर साल दीये जलाने के रिकार्ड भी बना लिए गये हैं तो भाजपा को लग रहा है कि अयोध्या के दीये में अब उतना तेल नहीं रह गया, जिससे वह फिर से अपनी सत्ता की राह रौशन कर सके। इसलिए अब वह नये सिरे से साम्प्रदायिक विद्वेष के नये मुद्दे खड़े कर रही है। लेकिन असली सवाल इसके उलट है। यह कि अयोध्या विवाद निपटने के बाद भी साम्प्रदायिक विद्वेष की राजनीति का अंत नहीं होने दिया जा रहा, उलटे उसे और भड़काया जा रहा है और भाजपा फिर से उससे जुड़े अपने पुराने दांव-पेंचों पर उतर आई है, तो उसका अंत कहां होगा? 

जवाब बहुत कठिन नहीं है। जब तक इस राजनीति से भाजपा को होते आ रहे लाभों को उसकी हानि में नहीं बदला जायेगा, तब तक इसकी उम्मीद भी नहीं की जा सकती। अभी तो उसके लाभ भाजपा के मुंह लगे हुए हैं। आखिर वह कैसे भूल सकती है कि राममंदिर के मुद्दे को अपनी राजनीति का आधार बनाकर वह दो लोकसभा सीटों से शुरू किए गए अपने सफर को लोकसभा में प्रचंड बहुमत तक पहुंचने में सफल रही है। इस क्रम में उसके हाथ एक के बाद दूसरी पारी इसीलिए लगती रही है, क्योंकि उसने देश में सांप्रदायिकता, उग्रराष्ट्रवाद और नफरत की नाना विष बेलें बढ़ाने के अपने रास्ते की सारी बाधाएं दूर कर डालीं हैं। साथ ही अपने विरोधियों को इतना पस्त कर दिया है कि वे उन विष बेलों के खिलाफ वाक युद्ध तक नहीं लड़ पा रहे। इसी कारण 2017 में उसे उत्तर प्रदेश की सत्ता प्रधानमंत्री के श्मशान-कब्रिस्तान जैसे विभाजनकारी बयानों से गुजर कर ही हासिल हुई थी। 

लेकिन दूसरे पहलू से देखें तो यह सवाल भी जवाब की मांग करता है कि अपनी सरकारों की विफलताओं की ओर से लोगों का ध्यान हटाने के लिए साम्प्रदायिक विद्वेष की नारंगी को नये सिरे से निचोड़ने के फेर में भाजपा मूर्खों के स्वर्ग में तो नहीं जा पहुंची है? क्यों कर उसे लगता है कि उसकी सरकारों की अनुकम्पा से भीषण महंगाई, रिकार्डतोड़ बेरोजगारी और खाली खजाने का बोझ सिर पर ढोते रहकर भी लोग उसके विद्वेष के एजेंडे के कारण उसे वोट देते रहेंगे? क्या वे कभी नहीं समझेंगे कि राम मंदिर चाहे दुनिया का सबसे खूबसूरत मंदिर बने या ब्रह्मांड की सबसे आकर्षक रचना, उससे उनकी बुनियादी समस्याएं नहीं ही सुलझेंगी, जबकि अपने जीवन की बेहतरी के लिए उन्हें उनको सुलझाने वाली सरकार चाहिए?

यह भी नहीं समझेंगे कि योगी सरकार पांच साल तक अपनी जिम्मेदारियों के प्रति इतनी लापरवाह बनी रही है कि बेरोजगारी और विकास जैसे जिन मुद्दों को लेकर वह सत्ता में आई, उनका अब दूर-दूर तक जिक्र नहीं करती और इसीलिए चुनाव के दस्तक देते ही विद्वेष की राह पकड़ने के साथ विभिन्न परियोजनाओं के भव्य उद्घाटनों व शिलान्यासों पर निर्भर कर रही है? 

अंत में यही कहना होगा कि अगर भाजपा वाकई मूर्खों के स्वर्ग में है तो उसे केवल यही सीख दी जा सकती है कि वह मतदाताओं के विवेक को इतना कमजोर समझकर बहुत बड़ी गलती कर रही है।

(कृष्ण प्रताप सिंह दैनिक अखबार जनमोर्चा के संपादक हैं।)

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