छिंदवाड़ा: आन्दोलनकारियों पर प्राण घातक हमला करने वाले अडानी पावर प्लांट के सीईओ आखिर बरी कैसे हुए?

छिंदवाड़ा स्थित अडानी पावर प्लांट प्रभावित गांव में पद यात्रा की तैयारी बैठक से लौटते समय शाम को अडानी पॉवर प्लांट के सीईओ अमोलक सिंह के नेतृत्व में पूर्णिमा उर्फ पूनम, गोलू उर्फ अरविन्द, विनोद वर्मा, शक्ति उर्फ ओमप्रकाश वर्मा, शिवराम वर्मा, साकेत जैन, रवि वर्मा, निधीश कहार द्वारा एड. आराधना भार्गव एवं डॉ. सुनीलम पर प्राण घातक हमला किया गया, जिसमें अपराध पंजीबद्ध किया गया था।

हमला धारदार हथियार से सिर पर किया गया था। जिस कारण मुझे सिर पर 10 टांके लगे थे तथा हाथों में फ्रैक्चर भी हुआ था। आज भी हाथ ठीक तरह से काम नहीं करता है लेकिन 307 ( जान से मारने के प्रयास ) का प्रकरण दर्ज नहीं किया गया। हमले के बाद दर्ज दाण्डिक प्रकरण क्रमांक 2669/11 में न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी प्रेरणा जैन, छिन्दवाड़ा द्वारा दिनांक 18 नवंबर, 2021 को निर्णय दिया गया। एड. आराधना भार्गव तथा डॉ. सुनीलम और गवाहों द्वारा अदालत में आरोपी अमोलक सिंह की पहचान और घटना स्थल पर उपस्थिति को दर्शाया गया। पूर्णिमा वर्मा तथा साकेत जैन को नाम से पहचाना शेष आरोपी गोलू, विनोद, शक्ति, शिवराम, रवि, निधीश कहार को चेहरे से पहचाना तथा किसके हाथ में क्या हथियार था तथा किसकी क्या भूमिका थी, इस पर स्पष्ट तौर पर न्यायालय में बयान दिये गए, जिसे विरोधी पक्ष के वकील काट नही सकें।

उसके पश्चात भी न्यायालय द्वारा सिर्फ दो आरोपी पूर्णिमा वर्मा और साकेत जैन को मात्र एक-एक वर्ष की सजा सुनाई गई शेष आरोपी बरी कर दिये गये। माननीय विद्वान न्यायालय ने आरोपी पूर्णिमा वर्मा तथा साकेत जैन को धारा 325 (दो शीर्ष में) सहपठित धारा 149 भादवि में एक वर्ष का कठोर कारावास, 341 भादवि में एक माह तथा 427 में तीन माह के कारावास तथा अर्थदण्ड से दण्डित किया है, इसी प्रकार की सजा निक्की उर्फ साकेत जैन को दी है। धारा 325 भादंवि में सात वर्ष का कठोर कारावास तथा 427 भादंवि में दो वर्ष के कारावास का उल्लेख है और माननीय न्यायालय ने अपने फैसले में दोनों आरोपियों द्वारा पूर्णतः अपराध किया जाना सिद्ध पाया है, इसके बावजूद किस आधार पर सजा कम की गई यह समझ से परे है।

शेष आरोपियों को न्यायालय ने इस आधार पर छोड़ दिया कि घटना स्थल पर आराधना भार्गव और डॉ. सुनीलम को आरोपियों के नाम नहीं मालूम थे तथा अन्य गवाहों ने घटना स्थल पर आरोपियों की उपस्थिति से इंकार किया था। साक्ष्य अधिनियम की धारा 134 में उल्लेख किया गया है कि किसी तथ्य को साबित करने के लिए साक्षियों की विशिष्ट संख्या अपेक्षित नहीं होती। इसका अर्थ यह है कि किसी मामले में साक्षी की गुणवत्ता देखी जानी चाहिए ना कि साक्षियों की संख्या। माननीय न्यायालय ने इस बात को स्वीकारा है, उसके पश्चात् भी अडानी ग्रुप के सीईओ अमोलक सिंह को आरोप से बरी करना अदालत के निर्णय पर तमाम प्रश्न चिन्ह लगाते हैं।

ऐसे फैसले न केवल न्यायपालिका के प्रति जनता में अविश्वास को बढ़ाते हैं बल्कि कानून हाथ में लेने के लिए भी प्रेरित करते हैं। हमला सन् 2011 में हुआ और अदालत का फैसला 2021 में आया है। विलम्ब से दिया गया न्याय अन्याय की श्रेणी में आता है और इसी कारण इस देश की जनता या तो खुद कानून हाथ में लेने पर आमादा हो जाती है, वहीं दूसरी ओर एनकाउंटर की कार्यवाहियों को त्वरित न्याय मान कर उसकी तारीफ करने लगती है।

न्यायपालिका द्वारा दिये गये उपरोक्त फैसले पर टिप्पणी करने के लिए देश के आम नागरिकों के समक्ष टिप्पणी भेज रही हूं ताकि देश की जनता देश की न्यायपालिका की प्रक्रिया को समझे तथा अपराधियों पर से पर्दा हटाया जा सके तथा देश की जनता को शीघ्र न्याय मिल सके। आप सबसे यह भी अपेक्षा करती हूँ कि प्रकरण से संबंधित टिप्पणी हम इस देश के मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना के पास भी भेजें ताकि इस देश के मुख्य न्यायाधीश को भी यह पता चल सके कि उनके निम्न न्यायालय के न्यायाधीश किस तरीके के फैसले करते हैं।

उपरोक्त प्रकरण में पुलिस के अन्वेषण की कार्यवाही पर मैं अलग से टिप्पणी लिखूंगी, जिससे आप को इस बात का अन्दाजा होगा कि पुलिस सरकार की ‘बी’टीम की तरह काम कर रही है। सरकार के इशारे पर ही इन्वेस्टीगेशन (जाँच) करती है। लखीमपुर खीरी के प्रकरण में पुलिस द्वारा किस तरीके से आरोपियों को बचाया जा रहा है। इस पर सर्वोच्च न्यायालय ने स्वयं टिप्पणी की है । यह पहली बार नहीं हुआ है, पुलिस की जाँच प्रक्रिया को इस देश के मुख्य न्यायाधीश और इस देश की जनता लगातार देख रही है।

(एडवोकेट आराधना भार्गव मामले की पीड़िता हैं और यह टिप्पणी उन्होंने ही की है।)

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