हरिद्वार वाया चंपावत; बेनकाब होता हिन्दुत्व

हरिद्वार के अधर्म हिन्दुत्वी जमावड़े में जो हुआ और भिन्न तीव्रता के साथ जिसे छत्तीसगढ़ के रायपुर में हुयी ऐसी एक शोर भरी जमावट में दोहराया गया वह आजाद भारत में अभूतपूर्व और असाधारण बात है। हरिद्वार में “उनकी जनसंख्या को हमें खत्म करना है।”  “अगर हम सौ सैनिक बन गए और इनके 20 लाख भी मार दिए जा सकते हैं। ” से लेकर “तलवार केवल मंचों पर दिखाने के काम आने वाली नहीं है।” और “म्यांमार की तरह यहां की पुलिस को, यहां के नेताओं को, यहां की फौज को, यहां के हर हिन्दू को हथियार उठाकर के, इस सफाई अभियान को करना पड़ेगा, इसके अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं है।” जैसे आह्वान सीधे-सीधे नरसंहार का ऐलान करने वाले थे। वहीं रायपुर में गांधी के लिए गाली का इस्तेमाल भी गांधी के मुकाबले गोडसे को आगे लाने के आख्यान का अगला चरण था। इसी बीच दक्षिण दिल्ली के बनारसीदास चांदीवाला ऑडिटोरियम में एक सभा में सुदर्शन टीवी के प्रमुख संपादक सुरेश चव्हाणके द्वारा भारत को हिन्दू राष्ट्र बनाने की शपथ दिलाई। ये हिंसक बोलवचन सिर्फ कुछ सिरफिरे साधुओं या व्यक्तियों के प्रमाद का परिणाम नहीं थे- यह सुविचारित एजेंडे का पालन है।

उस एजेंडे का जो सिर्फ यूपी चुनाव जीतने भर के लिए उन्माद फैलाने तक सीमित नहीं है बल्कि जितना जल्दी हो उतना जल्द भारत को हिन्दुत्व आधारित हिन्दू-राष्ट्र बनाना चाहता है। यहूदीवादी इजरायल के अंदाज में मध्यप्रदेश के नेमावर में मशीनों से अल्पसंख्यकों के मकान तोड़कर यही एजेंडा व्यवहार में भी लाया गया। यह सिर्फ कुछ सिरफिरे उन्मादियों तक सीमित घटना विकास नहीं था। इसी जहरीले आख्यान को खुद प्रधानमंत्री अपने गाय ट्वीट से आगे बढ़ा रहे थे जिसमें वे कह रहे थे कि “देश में गाय और गोबर्धन की बात करने को कुछ लोगों ने गुनाह बना दिया है और ऐसे लोग यह भूल जाते हैं कि…..गाय हमारे लिए पूजनीय है।” इस ट्वीट में “कुछ लोग” और “ऐसे लोग” का फर्क इसी एजेंडे का आगे बढ़ाया जाना था। उन्मादी माहौल बनाने में कहीं कोई कसर न रह जाए इस फ़िक्र में देश के रक्षामंत्री के बगल में खड़े होकर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री, जो कहने भर को योगी हैं, मशीनगन तानकर फोटो खिंचवा रहे थे। क्रिसमस के मौके पर सांताक्लाज के पुतले फूंके जा रहे थे, चर्चों पर हमले हो रहे थे और हरियाणा में ईसा मसीह की कोई सवा सौ साल से ज्यादा पुरानी प्रतिमा तोड़ी जा रही थी।

यह सब असम्बद्ध नहीं है – एक दूसरे से जुड़ा हुआ है और एक व्यवस्थित पटकथा का हिस्सा है। योजनाबद्ध तरीके से उग्रता का बार-बार प्रदर्शन, हिंसक आह्वानों का बारम्बार दोहराव करते हुए उन्माद की आक्रामकता को तेज से तेजतर करना और उसे ऐसे खतरनाक मुकाम पर ले जाना जहां संविधान और लोकतंत्र की क्षय पूरी तरह निश्चित कर दी जाए। यह हड़बड़ी और हताशा दोनों की मिलीजुली अभिव्यक्ति है ; धर्म और सभ्य समाज की मान्यताओं का निषेध है। यह हिन्दू धर्म को हिन्दुत्व से स्थानापन्न करने की कपट-लीला है। ध्यान रहे कि इसी हरिद्वार में इस जमावड़े के करीब 10 दिन पहले ही हिन्दू धर्म से जुड़े  जिसमें चारों मठों के शंकराचार्यों, पांचों वैष्णव आचार्यों और सभी अखाड़ों के प्रतिनिधियों की मौजूदगी वाली धर्म संसद हुयी थी। इससे नफरती मुहिम नहीं निकली तो उसी हरिद्वार में आरएसएस ने अपने पालतू नकली साधुओं की अधर्म संसद आयोजित करा दी।

यही काम छत्तीसगढ़ में हुआ जहां के कवर्धा में आयोजित धर्म संसद खत्म हुई तो आरएसएस ने अपने नकली भगवाइयों को जुटाकर रायपुर में अधर्म संसद आयोजित करा दी। आरएसएस नकली साधुओं की एक जमात खड़ी कर चुका है और मोदी को ब्रह्मा बताने वाला कारपोरेट मीडिया अपने प्रचार के बूते पर इन्हीं को असली धर्म गुरु बताने में जुटा हुआ है और एक हद तक कामयाब भी हो गया लगता है। ये वही कथित साधू हैं जिनके बारे में स्वामी विवेकानंद कह चुके हैं कि “धर्म को असली ख़तरा उसके इस तरह के एजेंटों से है। ” इनके आचरण से खफा होकर विवेकानन्द इन कथित साधुओं और पंडों को बैल की जगह हल में जोत कर देश की कृषि समस्या के समाधान का उपाय भी सुझा गए थे। संघ-भाजपा की भारत तोड़ो परियोजना में अब इन्हीं को हिन्दू धर्म का अधिकृत प्रवक्ता साबित करने की साजिशें जोरों से की जा रही हैं। “

किसी देश को कमजोर करने का सबसे सरल तरीका है उसकी जनता से बुद्धि विवेक को तथा उसकी विश्लेषण की क्षमता छीन लेना। यूँ भी किसी समझदार समाज में इस तरह की बेहूदगियां सहज नहीं होतीं। इसके लिए, इसके साथ , कुछ और भी करना जरूरी हो जाता है। इसी कुछ और के रूप में इस अभियान के साथ साथ, समानांतर दूसरा अभियान भी जारी है ; मूर्खत्व का अभियान। तुलसीदास कह भी गए हैं कि ; जाको प्रभु दारुण दुख देही, ताकी मति पहले हर लेही। यहां प्रभु का आशय सत्ता में बैठे प्रभु वर्ग से है जो पूरी ताकत से लोगों के निर्बुद्धीकरण का मेगा-प्रोजेक्ट चालू किये हुए। “गाय के गोबर और गोमूत्र से देश की अर्थव्यवस्था को मजबूत किया जा सकता है” का दावा करते हुए मध्य प्रदेश  के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान इसे ही आगे बढ़ा रहे थे।

इंडियन वेटनरी एसोसिएशन की महिला विंग के कन्वेंशन को संबोधित करते हुए शिवराज ने कहा कि “अगर सही सिस्टम से काम किया जाए तो गाय का गोबर और गोमूत्र देश की अर्थव्यवस्था को मजबूत करने की दिशा में अहम कड़ी साबित हो सकता है, ये दोनों देश को मजबूत बनाने में योगदान दे सकते हैं।” उन्होंने गाय के दूध, गोबर और गौ मूत्र के उपयोग पर जोर देते हुए कहा था कि इनका इस्तेमाल स्वस्थ समाज के लिए जरुरी है। ये वही शिवराज सिंह हैं जिनकी पार्टी गोवा और उत्तर पूर्वी प्रदेशों के चुनाव में सस्ती दरों पर गौ-मांस उपलब्ध कराने का वादा करती है – जिसके आराध्य विनायक दामोदर सावरकर गाय को बुद्धिहीन प्राणी और उसकी पूजा करना मनुष्यता को नीचे गिराना करार देते हैं। मगर जब ठगना और झांसा देना ही एकमात्र ध्येय हो तो तर्क, तथ्य और प्रमाणों की परवाह कहां की जाती है।

हिन्दू राष्ट्र की दुहाई देने वाले इस गिरोह को इस तथ्य से क्या मतलब कि हिन्दू और हिन्दुस्तानी -पर्सन ऑफ़ इंडियन ओरिजिन – कहे जाने वाले लोग, अब तक की गिनती के हिसाब से, दुनिया के 118 देशों में हैं। 16 से अधिक देशों में तो वे शासक पदों पर हैं। कि यह किसने कह दिया कि भारत एक हिन्दू देश है? भारत अपनी पूरी 5-7 हजार साल की सभ्यता में एक दिन के लिये भी हिन्दू राष्ट्र नहीं रहा। कि लंका से कुरुक्षेत्र से वाया पानीपत, हल्दीघाटी, प्लासी तक कोई भी मिथिहासिक या ऐतिहासिक युद्ध हिन्दू राष्ट्र बनाम अन्य में नहीं हुआ। कि भारत के इतिहास की खासियत थी इसकी सत्ताओं का आमतौर से धर्माधारित न होना । आज़ादी की लड़ाई, जिसमें व्हाटसप्पीये स्वयंभू हिन्दूराष्ट्रिये 5 मिनट भी नहीं रहे, ने बगल में इस्लामिक राष्ट्र के गठन के बावजूद खुद को हिन्दूराष्ट्र बनाये जाने की संकीर्ण अवधारणा से अलग रखा था। कि इसके दर्शनों -षड् दर्शन – की विविधता कमाल की है। कि इसकी 90% आबादी, आचार-व्यवहार, भाषा, व्याकरण, खानपान, सोच विचार को समय-समय पर आये आगन्तुकों, यायावरों, शरणार्थियों ने संवारा है।

यह बात बार-बार दोहराने की जरूरत है कि इस तरह की कथित हिन्दू धर्म सभाओं का हिन्दू या हिन्दू धर्म से कोई संबंध नहीं है। यह खांटी हिंदुत्व है, जिसकी हिन्दू पद पादशाही का एकमात्र आदर्श इधर पेशवा शाही उधर हिटलरशाही है। हिटलर की तर्ज पर एक ख़ास समुदाय के खिलाफ नफ़रत और हिंसा भड़काना इनकी फौरी लामबंदी का जरिया भर है। इनका असली मक़सद है मनुस्मृति पर आधारित राज की कायमी। एक ऐसा राज जो 90 प्रतिशत हिन्दुओं को आमतौर से और सभी महिलाओं, शूद्र और पिछड़ी जातियों के लिए खासतौर से जीते जागते नर्क से कम नहीं होगा। उत्तराखण्ड के चंपावत के सूखीढांग इंटर कॉलेज में मध्यान्ह भोजन के काम में लगी भोजन माता सुनीता देवी को उनके दलित होने की वजह से नौकरी से हटाकर, छुआछूत के मानसिक रोग को स्वीकार्यता देते हुए इसी असली मकसद को अंजाम दिया जा रहा था। यही है इस गिरोह का अंतिम लक्ष्य – यही है उनका वास्तविक हिंदुत्व आधारित हिन्दू-राष्ट्र।

भारत को यदि बचाना है तो इस यथार्थ को समझना और समझाना होगा।  भारतीयों की एकता को, उनके जीवन को प्रभावित करने वाले जरूरी आम मुद्दों के इर्दगिर्द, मैदानी संघर्ष की एकता में संजोना होगा। अतीत के पापों को, त्रिपुण्ड और जनेऊ पहनाकर हरिद्वार जैसी शंख ध्वनियों के साथ पुनर्स्थापित करने की साजिशों के विरुद्ध बिना किसी हिचक या देरी किये जूझना होगा। आर्थिक मोर्चे कार्पोरेटी वर्चस्व वाले हमलों को इन समाज पर कूपमंडूकता के वर्चस्व के मकसद वाले विभाजनकारी हमलों के साथ जोड़कर संज्ञान में लेना होगा। साल भर चले किसान आंदोलन ने तीन कानूनों की वापसी कराने के साथ यह भी किया था – 23, 24 फरवरी को अपनी दो दिनी हड़ताल के साथ भारत के मेहनतकश भी यही करने जा रहे हैं। 

(बादल सरोज लोकजतन के सम्पादक और अखिल भारतीय किसान सभा के संयुक्त सचिव हैं।)

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