स्वामी प्रसाद मौर्य की तर्ज पर एमपी-एमएलए कोर्ट में 32 बीजेपी विधायकों के भी खिलाफ मामले

लखनऊ। यूपी के श्रम मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य के अपने पद से 11 जनवरी को इस्तीफा देने के दूसरे दिन ही एक पुराने मामले में कोर्ट से गिरफ्तारी का वारंट जारी होने के बाद दूसरे इसी तरह के 45 नेताओं को क्यों बख्शा जा रहा है इसको लेकर सवालों का बाजार गर्म हो गया है। एमपी-एमलए कोर्ट की तरफ से जारी इस वारंट के तहत यूपी के कृषि मंत्री व कांग्रेस अध्यक्ष समेत 45 विधायक आते हैं। लेकिन उन पर अभी तक कोर्ट ने कोई संज्ञान नहीं लिया है। इस पुराने प्रकरण को लेकर लोगों में चर्चा जरूर शुरू हो गई है। सूत्रों का कहना है कि इन मामलों में कोर्ट का कभी भी फैसला आ सकता है। अगर ऐसा हुआ तो इन नेताओें में से कईयों के राजनीतिक कैरियर पर विराम लग जाने की आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता।

योगी कैबिनेट से इस्तीफा देने वाले पूर्व श्रम मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य के खिलाफ गिरफ्तारी का वारंट जारी करते हुए पडरौना-एमपीएमलए कोर्ट ने 24 जनवरी को पेश होने के आदेश दिए हैं। यह वारंट 7 साल पुराने केस में जारी हुआ है जिसमें उन पर धार्मिक भावना भड़काने का आरोप है। स्वामी प्रसाद मोर्य के खिलाफ धार्मिक भावना भड़काने का ये मामला साल 2014 का है, जब वो बहुजन समाज पार्टी में हुआ करते थे। उन्होंने अपने समर्थकों से देवी देवताओं की पूजा नहीं करने के लिए कहा था। तभी से उनके खिलाफ ये मामला चल रहा है। हालांकि ये वारंट नया नहीं है, ये पहले से जारी था, उन्होंने साल 2016 से इस पर स्टे ले रखा था। 12 जनवरी को उन्हें अदालत में पेश होना था, लेकिन जब वो हाजिर नहीं हुए तो ये वारंट पूर्ववत जारी कर दिया गया। इस मामले पर अगली सुनवाई 24 जनवरी को होनी है।

भाजपा के 32 समेत विभिन्न दलों के 45 विधायकों के खिलाफ भी है मामला 

एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफार्म (एडीआर) की जारी एक रिपोर्ट में यह चैंकाने वाला मामला सामने आया है कि राज्य में विभिन्न दलों के 45 विधायकों के खिलाफ एमपी-एमएलए कोर्ट ने सुनवाई करने के साथ आरोप तय हो चुके हैं। रिपोर्ट के मुताबिक इनमें सबसे अधिक विधायकों की 32 संख्या भाजपा की है। इसके अलावा सपा के पांच, बसपा व अपना दल के 3-3 और कांग्रेस व तीन अन्य दल के एक-एक विधायक शामिल हैं। इन 45 विधायकों के खिलाफ आपराधिक मामलों के लंबित होने की औसत संख्या 13 वर्ष है। 32 विधायकों के खिलाफ दस साल या उससे अधिक वर्ष से कुल 63 आपराधिक मामले लंबित हैं।

जिन विधायकों को लेकर संशय की स्थिति बनी हुई है, उसमें योगी सरकार के कृषि मंत्री सूर्य प्रताप शाही शामिल हैं। शाही देवरिया जनपद के पथरदेवा विधान सभा क्षेत्र से निर्वाचित हैं। इस बार इनका मुकाबला सपा के वरिष्ठ नेता व पूर्व मंत्री ब्रम्हाशंकर त्रिपाठी से होने की संभावना है। उधर कांग्रेस पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू का भी नाम इस सूची में शामिल है। इसके अलावा भाजपा विधायक रमाशंकर सिंह, बसपा के मऊ से मुख्तार अंसारी, धामपुर से भाजपा विधायक अशोक कुमार के नाम शामिल हैं। वहीं पथरदेव से अलीगढ़ के भाजपा विधायक संजीव राजा, गोवर्धन से भाजपा विधायक कारिंदा सिंह, प्रतापगढ़ के अपना दल से विधायक राज कुमार पाल, कुंदरकी से सपा विधायक मोहम्मद रिजवान, दुद्धी से अपना दल विधायक हरिराम, गौरीगंज से सपा विधायक राकेश प्रताप सिंह, शाहगंज से सपा विधायक शैलेंद्र यादव ललई और सकलडीहा से सपा विधायक प्रभुनाथ यादव का नाम शामिल है।

मालूम हो कि आरपी अधिनियम (रिप्रेजेन्टेशन ऑफ पीपुल एक्ट लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम) 1951 की धारा 8(1), (2) और (3) के तहत सूचीबद्ध अपराधों में ये आरोप तय हुए हैं। इन केसों में न्यूनतम छह महीने की सजा होने पर ये विधायक चुनाव नहीं लड़ सकेंगे। हालांकि चुनाव लड़ने की पात्रता या अपात्रता तय करने का अधिकार केन्द्रीय चुनाव आयोग के पास है। फिलहाल न्यायालय व चुनाव आयोग के बीच फंसे इन विधायकों के भविष्य को लेकर अटकलें ही लगाई जा सकती हैं। लेकिन अगर कानून व आयोग का डंडा चला तो आगे ये कभी भी चुनाव नहीं लड़ पाएंगे।

गौरतलब है कि 11 जनवरी को योगी सरकार में श्रम मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य ने कैबिनेट से इस्तीफा दे दिया था। मंत्री पद से इस्तीफे के बाद मंगलवार को समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव ने मौर्य के साथ अपनी एक तस्वीर ट्विटर पर साझा कर उनका सपा में स्वागत किया था। इस्तीफे के बाद मौर्य ने कहा था, ‘भाजपा नीत सरकार ने बहुतों को झटका दिया है, अगर मैं मंत्रिमंडल से इस्तीफा देकर उसे झटका दे रहा हूं तो इसमें नया क्या है? मैंने राज्यपाल को भेजे पत्र में उन सभी कारणों का उल्लेख किया है जिनकी वजह से भाजपा और मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे रहा हूं।

स्वामी प्रसाद मौर्य ने समाजवादी पार्टी में शामिल होने का एलान कर दिया है। उन्होंने कहा कि मैं 14 जनवरी को समाजवादी पार्टी में शामिल होऊंगा। मेरे पास किसी छोटे या बड़े राजनेता का फोन नहीं आया है। अगर वे समय पर सतर्क होते और सार्वजनिक मुद्दों पर काम करते, तो भाजपा को इसका सामना नहीं करना पड़ता। फिलहाल स्वामी प्रसाद मौर्य के इस फैसले के बाद भाजपा की कतार में खलबली मच गई है। दूसरी तरफ एमपीएमएलए कोर्ट के द्वारा वारंट जारी हो जाने के बाद स्वामी प्रसाद मौर्य के समर्थक परेशान हैं।

इस बीच यूपी की सियासी राजनीति तेज हो गई है। सत्ता से लेकर विपक्ष आगामी विधान सभा चुनाव में जीत की गणित अपने पक्ष में करने के लिए कोई कसर छोड़ना नहीं चाहता है। इस बीच अचानक उत्तर प्रदेश के मौजूदा 45 विधायकों के चुनाव लड़ने को लेकर संशय पैदा होने से संबंधित दलों की चिंता बढ़ गई है। जिसमें भाजपा सरकार के कृषि मंत्री व कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष समेत सपा-बसपा व अन्य दलों के विधायक शामिल हैं। विभिन्न मुकदमों की सुनवाई के दौरान इन 45 विधायकों पर एमपी-एमएलए कोर्ट में आरोप तय हो गए हैं ।जिसमें इनके खिलाफ फैसला आ जाने की स्थिति में चुनाव लड़ने पर रोक लग सकता है। लेकिन सबसे बड़ा सवाल यही बना हुआ है कि कोर्ट इन विधायकों के भी खिलाफ अपनी कार्यवाही को क्यों नहीं तेज कर रहा है।

(पत्रकार जितेंद्र उपाध्याय की रिपोर्ट।)

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