24 घंटे के अंदर दो लोगों की मौत। वजह है पीएमसी बैंक का डूबना और साथ में लोगों का पैसा डूबना। मोदी का स्पाइडरमैन पोलिसी स्टंट लोगों की जान ले रहा है, जैसे नोटबंदी में डेढ़-दो सौ लोग मारे गए थे।
मुंबई के संजय गुलाटी की हार्ट अटैक से मौत हो गई। संजय गुलाटी पीएमसी बैंक के खाताधारक थे। वे जेट एयरवेज के कर्मचारी थे। पहले जेट एयरवेज डूबा और वहां से उनकी नौकरी चली गई। उनकी जिंदगी भर की कमाई पीएमसी बैंक में जमा थी। यह रकम करीब 90 लाख थी। यह बैंक डूब गया है। पीएमसी ने बैंक से पैसा निकालने पर पाबंदी लगा दी है। बैंक के ग्राहक/खाताधारक हफ्तों से प्रदर्शन कर रहे हैं।
सोमवार को संजय गुलाटी भी प्रदर्शन में शामिल हुए थे। बाद में उनको हर्ट अटैक आ गया और उनकी मौत हो गई। संजय गुलाटी के पास पीएमसी बैंक में चार खाते हैं, जिसमें 90 लाख रुपये जमा हैं। उनका बेटा स्पेशल चाइल्ड है। संजय को नियमित रूप से पैसे की जरूरत रहती थी। वे पिछले कई दिनों से बैंक से पैसा नहीं निकाल पा रहे थे और परेशान थे।
दूसरी मौत हुई है फत्तोमल पंजाबी की। 59 साल के फत्तोमल को मंगलवार को हार्ट अटैक आया और उनकी मौत हो गई। इस मामले में और ज्यादा डिटेल आना बाकी है।
पीएमसी बैंक में ग्राहकों का 11500 करोड़ रुपया जमा है। इस बैंक की ब्रांच पंजाब, महाराष्ट्र, दिल्ली और गोवा में भी हैं। घोटाला करें नेता और अधिकारी, मरे आम जनता।
जब मैं यह पोस्ट लिख रहा हूं, बगल कहीं से मोदी जी के गरजने की आवाज आ रही है। वे अपनी नरसंहारक और विध्वंसक नीतियों और अपने छह सालों के झूठ के लिए वोट मांग रहे हैं। अगर आप चाहें तो उन्हें इसके लिए वोट दे सकते हैं।
(पत्रकार कृष्णकांत के फेसबुक से साभार)
इसके अलावा तीसरे शख्स अनिल तिवारी और उनके एक भाई हैं। एक को दिल की बीमारी है जबकि दूसरा किडनी की बीमारी से अस्पताल में जूझ रहा है। अनिल किसी तरीके से अस्पताल से छुट्टी लेकर प्रेस के सामने आए और उन्होंने सार्वजनिक रूप से अपने पैसों को दिलवाने की गुहार लगायी। उनके कांपते हाथ और आवाज का कंपन बता रहा था कि वह कितने जरूरतमंद हैं। उन्हें बिल्कुल साफ-साफ यह कहते सुना जा सकता है कि अगर उन्हें रुपये नहीं मिले तो दोनों भाइयों की जान चली जाएगी।
ये सभी किसी से उधार नहीं मांग रहे हैं और न ही सरकार से इन्हें भीख चाहिए। बल्कि ये सभी बैंक में जमा अपना खुद का पैसा मांग रहे हैं। और वह भी कोई निजी बैंक नहीं है। बल्कि सरकार द्वारा संचालित एक कोआपरेटिव बैंक है। लिहाजा रिजर्व बैंक, राज्य सरकार से लेकर केंद्र सरकार तक अपनी जिम्मेदारी से नहीं बच सकते हैं। लेकिन ये सभी पीड़ित दर-दर भटकने को मजबूर हैं। इनकी कहीं कोई सुनवाई नहीं हो रही है।