क्यों आंदोलित हैं बंगाल में छात्र

एक वामपंथी छात्र नेता अनीश खान की हत्या के बाद से छात्रों और युवाओं के आंदोलन से पश्चिम बंगाल आंदोलित हो गया है। उसकी हत्या करने का आरोप पुलिस वालों पर लगा है। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी चाकू की पसलियों से गुजारिश तो देखिए वाले अंदाज में इस मामले की जांच पुलिस से ही कराना चाहती है। जबकि अनीश के परिवार वाले और छात्र एवं युवा इसकी जांच सीबीआई से कराने की मांग कर रहे हैं।

हावड़ा के आमता थाने का एक पुलिस अफसर, एक होमगार्ड और सिविक पुलिस वालों के साथ 18 फरवरी को रात एक बजे अनीश के घर पहुंचा था। उसने बंदूक की नोक पर अनीश के पिता सलीम को प्रवेश द्वार पर ही रोक लिया और बाकी तीनों तीसरी मंजिल पर चले गए। इसके थोड़ी देर बाद ही अनीश तीसरी मंजिल से नीचे गिरा और उसकी मौत हो गई। इसके साथ ही पुलिस वाले वापस चले गए। सलीम थाने में फोन करते रहे पर पुलिस अगले दिन सुबह 9:30 बजे के करीब उनके घर पहुंची। उस रात नाइट पेट्रोल पर रहे एएसआई निर्मल दास, सिपाही जितेंद्र हेंब्रम और होमगार्ड कृष्णनाथ बेरा को लापरवाही के आरोप में निलंबित कर दिया गया। पर यह रहस्य बना ही हुआ है कि वह पुलिस अफसर और बाकी तीन कौन थे।

इसके बाद पुलिस इस मामले में होमगार्ड कृष्णनाथ बेरा और सिविक पुलिस प्रीतम भट्टाचार्य को गिरफ्तार कर लेती है। और यहीं से बेशुमार सवाल खड़े होते हैं जिनका पुलिस के पास कोई जवाब नहीं है। अगर बेरा उस रात अनीश के घर गया था तो उसे यह जानकारी होनी चाहिए कि वह पुलिस अफसर कौन था। यह जानने के लिए भारी भरकम विशेष जांच दल बनाने की क्या जरूरत है। और अगर उनके जाने का सबूत नहीं है तो फिर उन्हें गिरफ्तार क्यों किया गया है। होमगार्ड की पत्नी सवाल करती है कि अगर उसका पति उस रात अनीश के घर गया था तो निश्चित रूप से थाना प्रभारी के आदेश पर ही गया होगा। तो फिर थाना प्रभारी यह बताएं वह पुलिस अफसर कौन था। इस सीधे से सवाल का जवाब पुलिस के पास नहीं है। यही वजह है कि सलीम के साथ ही होमगार्ड की पत्नी भी हजारों छात्रों व युवाओं के साथ सीबीआई जांच की मांग कर रही है।

कहते हैं कि करीब पांच साल पहले अनीश के खिलाफ पोक्सो के तहत एक मामला दायर हुआ था और इसी के तहत वारंट जारी किया गया था। अगर इसे ही सच मान लें तो सवाल उठता है कि वारंट तामील करने की इतनी जल्दी क्या थी कि रात एक बजे अनीश के घर पहुंच गए। फिर प्रत्येक थाने में एक वारंट अफसर होता है, क्या इस अफसर ने वारंट तामील करने का आदेश दिया था। इन कुछ सवालों का जवाब पाने में भला पुलिस को कितना समय लगेगा। तो फिर पर्दे के पीछे कोई और है क्या जिसकी वजह से पुलिस पर्दे को उठाना नहीं चाहती है।

अब आइए इस संदर्भ में सत्तारूढ़ दल के साथ अनीश के रिश्ते की तफ्तीश करते हैं। मौत से कुछ दिनों पहले अनीस ने एक रक्तदान शिविर लगाने की योजना बनाई थी लेकिन सत्तारूढ़ दल के समर्थकों ने उसे रोक दिया। इससे पहले सत्तारूढ़ दल के कई सौ समर्थकों ने उसके घर को घेर कर हंगामा किया था। उस पर हमला भी किया गया था और इस वजह से उसे अलुबेडिया के अस्पताल में भर्ती हो कर इलाज करना पड़ा था। अनीश खान के फेसबुक पोस्ट से इस तल्खी का और बेहतर ढंग से खुलासा होता है। विधानसभा चुनाव का परिणाम आने के बाद अनीश ने लिखा था मौत को गले लगा लूंगा पर सिर नहीं झुकेगा दलालों के पास खुद को बिक्री नहीं करूंगा। तो फिर सवाल उठता है कि ये लोग कौन है, जिनका इशारा उसने अपने पोस्ट में किया है।

तो क्या अनीश की लोकप्रियता इस कदर बढ़ गई थी कि वह किसी की राजनैतिक हैसियत के लिए खतरा बन गया था। वह आलिया विश्वविद्यालय से एमए करने के बाद कल्याणी विश्वविद्यालय में पत्रकारिता की पढ़ाई कर रहा था। उसकी हत्या के बाद से ही जादवपुर विश्वविद्यालय प्रेसिडेंसी विश्वविद्यालय कोलकाता विश्वविद्यालय और दिल्ली के जेएनयू तक की छात्रों ने आंदोलन शुरू कर दिया है और यह लगातार जारी है। वामपंथी युवा भी सड़कों पर उतर आए हैं। पुलिस आंदोलन को कुचलने के लिए लाठीचार्ज के साथ-साथ आंसू गैस के गोले भी छोड़ रही है। गिरफ्तारी भी की जा रही है, पर आंदोलन थमने का नाम नहीं ले रहा है।

इस मामले का एक दिलचस्प पहलू यह भी है कि इस कांड की जांच के लिए बनाए गए स्पेशल टास्क फोर्स का प्रमुख एडीजी सीआईडी ज्ञानवंत सिंह को बनाया गया है। यहां याद दिला दें कि 2010 में रिजवान नामक एक युवक की लाश रेल की पटरी पर पाई गई थी। आरोप है कि एक धनकुबेर की बेटी से उसका प्रेम संबंध था, और इस वजह से उसकी हत्या करने के बाद उसकी लाश पटरी पर फेंक दी गई थी। आज के ज्ञानवंत सिंह ही उन दिनों पुलिस के डिप्टी कमिश्नर थे और इस मामले की जांच कर रहे थे। उन दिनों ममता बनर्जी ने इसकी जांच सीबीआई से कराने के लिए पुरजोर आंदोलन किया था। उनकी दलील थी कि जब पुलिस पर ही शक है तो भला पुलिस इसकी जांच कैसे कर सकती है। तो क्या यह दलील आज लागू नहीं होती है।

(कोलकाता से वरिष्ठ पत्रकार जितेंद्र कुमार सिंह की रिपोर्ट)

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