सीलबंद कवर न्यायशास्त्र पर विचार करेगा सुप्रीमकोर्ट, जिग्नेश मेवानी मामले में भी हुआ इस्तेमाल

उच्चतम न्यायालय में कल सीलबंद कवर न्यायशास्त्र का मुद्दा फिर उठा। उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को कहा कि वह “सीलबंद कवर न्यायशास्त्र” के मुद्दे पर गौर करेगा, जिसे सरकार और अभियोजन एजेंसियों द्वारा “गोपनीय” दस्तावेजों को एक सीलबंद लिफाफे में अदालत को सौंपकर अपनाया जाता है। सुनवाई के दौरान यह तथ्य भी सामने आया कि असम पुलिस द्वारा गुजरात के दलित विधायक जिग्नेश मेवानी की गिरफ़्तारी के समय कुछ सीलबंद लिफाफे के दस्तावेज गौहाटी उच्च न्यायालय को सौंपे गए थे।

मलयालम समाचार चैनल मीडिया वन की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे ने जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, सूर्यकांत और जस्टिस बेला एम त्रिवेदी की पीठ से कहा कि वह समय आ गया है जब सरकारों और अभियोजन एजेंसियों द्वारा अपनाये जा रहे “सील्ड कवर न्यायशास्त्र” पर अदालत एक आधिकारिक व्यवस्था दे।

दुष्यंत दवे ने कहा कि हाल ही में गुजरात के विधायक जिग्नेश मेवानी को असम में गिरफ्तार किए जाने के मामले में कुछ सीलबंद लिफाफे के दस्तावेज गौहाटी उच्च न्यायालय को सौंपे गए थे। उन्होंने कहा कि असम में फिर से उसी सीलबंद कवर न्यायशास्त्र को गुजरात के एक विधायक के मामले में अपनाया गया था, जिसे वहां गिरफ्तार किया गया था। अब समय आ गया है कि अदालत इस मुद्दे पर कुछ आधिकारिक घोषणा करे।

पीठ ने कहा, “हां, हां। हम निश्चित रूप से इस पर गौर करेंगे लेकिन अभी के लिए केंद्र ने अपना जवाब दाखिल करने के लिए दो सप्ताह का समय मांगा है। आगामी गर्मी की छुट्टी को देखते हुए हम उन्हें चार सप्ताह का समय देंगे।

दरअसल करीब दो हफ्ते पहले असम पुलिस ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ कथित ट्वीट को लेकर गुजरात के पालनपुर से मेवानी को गिरफ्तार किया था। कुछ दिनों पहले ट्वीट मामले में जमानत पर रिहा होने के तुरंत बाद, उन्हें एक महिला पुलिसकर्मी पर हमला करने के आरोप में फिर से गिरफ्तार कर लिया गया, जो पुलिस पार्टी का हिस्सा थी, जो उनके साथ असम के कोकराझार गई थी।

गुजरात के विधायक को दूसरे मामले में भी जमानत मिल गई थी और पिछले शनिवार को उन्होंने कोकराझार की एक अदालत में लंबित जमानत की औपचारिकताएं पूरी कीं। अदालत ने उन्हें असम शहर छोड़ने की अनुमति दी थी, क्योंकि उनकी जमानत शर्तों में से एक अदालत के अधिकार क्षेत्र की सीमा के भीतर रहना था।

पीठ मलयालम समाचार चैनल ‘मीडिया वन’ से संबंधित एक मामले की सुनवाई कर रही थी। शीर्ष अदालत ने हाई कोर्ट के आदेश के खिलाफ चैनल की अपील पर 26 मार्च तक विस्तृत जवाबी हलफनामा दायर करने का केंद्र सरकार को निर्देश दिया था। केंद्र सरकार ने मलयालम समाचार चैनल ‘मीडिया वन’ के प्रसारण पर प्रतिबंध लगा दिया था, जिसे हाईकोर्ट ने बरकरार रखा था। इसके खिलाफ चैनल ने शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया है।

पीठ ने कहा, “हम इस पर फैसला करेंगे। प्रतिवादियों को एक जवाब दाखिल करने के लिए और समय चाहिए। उन्होंने दो सप्ताह का समय मांगा, लेकिन हम आगामी अवकाश को देखते हुए उन्हें और चार सप्ताह का समय देंगे।”

उच्चतम न्यायालय ने 15 मार्च सूचना और प्रसारण मंत्रालय के उस आदेश पर रोक लगा दी थी, जिसने केबल टीवी नेटवर्क रेगुलेशन एक्ट के तहत चैनल के लिए लाइसेंस बढ़ाने से इनकार कर दिया था। इसने चैनल के प्रसारण लाइसेंस रिन्यू नहीं करने के सूचना और प्रसारण मंत्रालय के फैसले को बरकरार रखने के केरल हाईकोर्ट के फैसले की आलोचना करते हुए चैनल चलाने वाली कंपनी द्वारा दायर एक विशेष अनुमति याचिका में अंतरिम आदेश पारित किया था। पीठ ने यह आदेश गृह मंत्रालय द्वारा चैनल चलाने वाली कंपनी के संबंध में सुरक्षा चिंताओं को लेकर पेश की गई फाइलों की जांच के बाद पारित किया था।

चैनल ने दलील दी थी कि मंत्रालय ने अपने फैसले के कारणों का खुलासा नहीं किया। इसने याचिकाकर्ता के साथ सामग्री साझा किए बिना, केंद्र द्वारा प्रस्तुत सीलबंद कवर दस्तावेजों के आधार पर अपनी याचिका को खारिज करने पर हाईकोर्ट के आदेश पर भी आपत्ति जताई। पीठ ने चैनल को अंतरिम राहत देते हुए कहा था कि वह सीलबंद कवर प्रक्रिया के खिलाफ है और कहा कि वह इस प्रक्रिया की वैधता की जांच करेगी। पीठ ने कहा कि तथ्य यह है कि उसने मंत्रालय द्वारा दी गई फाइलों का अध्ययन किया है, इसे सीलबंद कवर प्रक्रिया की मंजूरी के रूप में नहीं माना जाना चाहिए।

पीठ ने कहा था कि हम स्पष्ट करते हैं कि इस स्तर पर अदालत द्वारा फाइलों का अवलोकन याचिकाकर्ताओं की इस दलील पर अभिव्यक्ति नहीं है कि वे फाइलों का निरीक्षण करने के हकदार होंगे। इस मुद्दे को अदालत के स्तर पर हल करने के लिए खुला रखा गया है। आदेश में आगे कहा गया था कि मौजूदा चरण में हमारा विचार है कि याचिकाकर्ताओं की ओर से उन फाइलों की सामग्री को ध्यान में रखते हुए अंतरिम राहत देने का मामला बनाया गया है, जिन्हें अदालत ने देखा है। हम तदनुसार आदेश देते हैं और निर्देश देते हैं कि केंद्र सरकार के 31 जनवरी 2022 के आदेश के लंबित रहने तक, याचिकाकर्ता, मध्यमम ब्रॉडकास्टिंग लिमिटेड को दी गई सुरक्षा मंजूरी रद्द करने के आदेश पर रोक लगा दी जाएगी। याचिकाकर्ताओं को उसी आधार पर मीडिया वन नामक समाचार और करंट अफेयर्स टीवी चैनल का संचालन जारी रखने की अनुमति दी जाएगी, जिस पर 31 जनवरी 2022 को मंजूरी के निरसन से ठीक पहले चैनल संचालित किया जा रहा था।

उच्चतम न्यायालय ने केंद्र से उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ चैनल द्वारा दायर अपील पर 26 मार्च तक विस्तृत जवाबी हलफनामा दाखिल करने को कहा था। उच्चतम न्यायालय ने 10 मार्च को चैनल के उस याचिका पर केंद्र से जवाब मांगा था, जिसमें केरल उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ सुरक्षा आधार पर इसके प्रसारण पर प्रतिबंध लगाने के केंद्र के फैसले को बरकरार रखा गया था। इसने केंद्र से उस फाइल को रिकॉर्ड में रखने को कहा था जिस पर उच्च न्यायालय का भरोसा था।

केरल उच्च न्यायालय ने मलयालम समाचार चैनल के प्रसारण पर रोक लगाने के केंद्र के फैसले को बरकरार रखा था और केंद्र सरकार के 31 जनवरी के फैसले को चुनौती देने वाली मध्यमम ब्रॉडकास्टिंग लिमिटेड की याचिका खारिज कर दी थी। उच्च न्यायालय ने कहा था कि गृह मंत्रालय (एमएचए) का सुरक्षा मंजूरी से इनकार करने का निर्णय विभिन्न एजेंसियों से प्राप्त खुफिया सूचनाओं पर आधारित था।

चैनल ने तर्क दिया था कि एमएचए मंजूरी केवल नई अनुमति/लाइसेंस के लिए आवश्यक थी, नवीनीकरण के समय नहीं।यह भी तर्क दिया गया था कि अपलिंकिंग और डाउनलिंकिंग दिशानिर्देशों के अनुसार, सुरक्षा मंजूरी केवल नई अनुमति के लिए आवेदन के समय आवश्यक थी न कि लाइसेंस के नवीनीकरण के समय।

(वरिष्ठ पत्रकार जेपी सिंह की रिपोर्ट।)

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