बुलडोजर कांड में सुप्रीमकोर्ट में आज सुनवाई, इलाहाबाद हाईकोर्ट में 30 को 

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इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 10 जून को हुई  प्रयागराज हिंसा के आरोपी जावेद मोहम्मद की पत्नी द्वारा जिला प्रशासन द्वारा 12 जून को उनका घर गिराए जाने के खिलाफ दायर याचिका पर उत्तर प्रदेश सरकार और प्रयागराज विकास प्राधिकरण (पीडीए) से जवाब मांगा है। जस्टिस अंजनी कुमार मिश्रा और जस्टिस सैयद वाइज मियां की खंडपीठ ने यूपी सरकार और पीडीए को नोटिस जारी कर बुधवार तक जवाब मांगा है। मामले की अगली सुनवाई 30 जून को होगी ।इस बीच उत्तर प्रदेश में बुलडोजर मामले में बुधवार को होने वाली सुनवाई से पहले जमीयत उलेमा ए हिंद  ने सुप्रीम कोर्ट में अपना जवाब दाखिल किया है। हलफनामे में यूपी सरकार की इस दलील को नकारा गया है कि सरकार नियमों के मुताबिक अतिक्रमण हटा रही है। 

उत्तर प्रदेश में बुलडोजर मामले में बुधवार को होने वाली सुनवाई से पहले जमीयत उलेमा ए हिंद ने सुप्रीम कोर्ट में अपना जवाब दाखिल किया है। दरअसल, यूपी सरकार के हलफनामे पर जमीयत उलमा ए हिंद का ये जवाबी हलफनामा है। हलफनामे में यूपी सरकार की इस दलील को नकारा गया है कि सरकार नियमों के मुताबिक अतिक्रमण हटा रही है।  इसके सबूत के तौर पर जमीयत ने अपने हलफनामे में सहारनपुर में प्रदेश सरकार द्वारा की गई बुलडोज़र की कार्यवाही के फोटोग्राफ और वीडियो अदालत में जमा किए हैं। जमीयत ने अपने हलफनामे में कहा है कि राज्य सरकार अतिक्रमण हटाने के नाम पर समुदाय विशेष को निशाना बनाकर उनके खिलाफ काम कर रही है। इतना ही नहीं जमीयत ने अपने हलफनामे में यह भी कहा है सरकार की बुलडोजर की कार्रवाई उन जगहों पर भी हो रही है जहां दंगे नहीं हुए हैं। 

जमीयत ने आरोप लगाया कि सरकार की यह कार्रवाई कुछ आरोपियों को सबक सिखाने के लिए की जा रही है। सरकार इसे अतिक्रमण हटाने का मामला बता रही है वहीं दूसरी तरफ अतिक्रमण को हटाने के लिए उचित प्रक्रिया का पालन भी नहीं किया जा रहा है।जमीयत ने अपने हलफनामे में राज्य के बड़े नेता और अधिकारी के बयान भी कोर्ट में दिए जिसमें कहा जा रहा है कि दंगा करने वालों के घर बुल्डोजर से तोड़े जाएंगे।इसमें यूपी, एमपी, गुजरात और दिल्ली में बुलडोजर चलाकर एक खास तबके के लोगों के घर और संपत्तियां नष्ट की गई हैं। 

जमीयत ने कहा है कि सरकार अवैध निर्माण और अतिक्रमण कर किए गए निर्माण और म्युनिसिपल लॉ की आड़ लेकर बुलडोजर चला रही है जबकि सच्चाई ये है कि ये सारी प्रक्रिया विरोध प्रदर्शन के बाद ही अपनाई गई है। सरकार की नोटिस देने की दुहाई भी गलत है क्योंकि ऐसे मामले हैं जहां बिना नोटिस के ये बदले की भावना करते हुए लोगों के घर ढहाने की कार्रवाई की गई है। बिना तय कानूनी प्रक्रिया का पालन किए हुए प्रशासन ने सरकार के इशारे पर मनमाने ढंग से तोड़फोड़ की कार्रवाई की है। 

जमीयत ने अपने हलफनामे में कहा है कि यूपी के मुख्यमंत्री अपने बयानों में भी  सरकार की मंशा जता चुके हैं। हलफनामे में कहा गया है कि सहारनपुर में मोहम्मद रहीस ने अपना घर किसी हशमत अली को किराए पर दिया था।  हशमत के 17 साल के बेटे का नाम हिंसा करने वालों में आया तो रहीस का घर ढहा दिया गया।  घर के मालिक रहीस को कोई नोटिस नहीं दिया गया।  इसी तरह अब्दुल वकीर को भी बिना नोटिस दिए उसका घर जमींदोज कर दिया गया। 

अब इस मसले पर बुधवार को सुनवाई होगी। इससे पहले सुप्रीमकोर्ट ने जमीयत की याचिका पर उत्तर प्रदेश सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा था। यूपी सरकार ने तोड़फोड़ को कानूनी ठहराते हुए कहा कि तोड़फोड़ की कार्रवाई नियमों के मुताबिक हो रहा है और अवैध निर्माण के खिलाफ तोड़फोड़ नियमित प्रक्रिया का हिस्सा है।उत्तर प्रदेश सरकार ने कहा कि जमीयत तोड़फोड़ को दंगों से जोड़ रहा है और  नोटिस बहुत पहले जारी किए गए थे। सरकार ने कहा कि  अलग कानून के तहत ही दंगाइयों के खिलाफ कार्रवाई की जा रही है। सरकार ने अदालत से कहा कि जमीयत पर जुर्माना लगाकर याचिका खारिज की जानी चाहिए। सरकार ने दावा किया कि नियमों के मुताबिक कार्रवाई की गई है और जमीयत उलेमा ए हिन्द ने जो आरोप यूपी सरकार पर लगाये है तो गलत और बेबुनियाद हैं। 

जमीयत उलेमा ए हिन्द की याचिका खारिज करने की मांग करते हुए उत्तर प्रदेश के विशेष सचिव, गृह, राकेश कुमार मालपानी ने सुप्रीम कोर्ट में सबूत संलग्नक सहित 63 पेज का हलफनामा दाखिल किया है। हलफनामे के साथ जावेद अहमद के घर पर लगा राजनीतिक दल का साइन बोर्ड, नोटिस सभी चीजें कोर्ट को भेजी गई हैं।  हलफनामे में कहा गया है कि बुलडोजर चलाकर अवैध रूप से निर्मित संपत्ति ढहाई गई है। ये प्रक्रिया तो काफी पहले से चल रही है, लिहाजा ये आरोप गलत है कि सरकार और प्रशासन हिंसा के आरोपियों से बदले निकाल रही है। 

गौरतलब है कि 16 जून को सुप्रीम कोर्ट ने जमीयत उलमा-ए-हिंद द्वारा दायर एक याचिका पर उत्तर प्रदेश सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा था। सुप्रीम कोर्ट ने तब कहा था कि तोड़फोड़ कानून के अनुसार होना चाहिए। 

प्रयागराज हिंसा के आरोपी जावेद की पत्नी का घर तोड़े जाने के खिलाफ याचिका : 

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने प्रयागराज हिंसा के आरोपी जावेद मोहम्मद की पत्नी द्वारा जिला प्रशासन द्वारा 12 जून को उनका घर गिराए जाने के खिलाफ दायर याचिका पर उत्तर प्रदेश सरकार और प्रयागराज विकास प्राधिकरण (पीडीए) से जवाब मांगा है। जस्टिस अंजनी कुमार मिश्रा और जस्टिस सैयद वाइज मियां की बेंच ने यूपी सरकार और पीडीए को नोटिस जारी कर बुधवार तक जवाब मांगा है। 

इससे पहले सोमवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट की जस्टिस सुनीता अग्रवाल ने इस मामले की सुनवाई से खुद को अलग कर लिया था, जिसके बाद मामले को आज एक अन्य पीठ के समक्ष सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया गया। अपनी याचिका में आरोपी जावेद मोहम्मद की पत्नी फातिमा ने कहा है कि ध्वस्त किया गया घर उनके नाम पर था और उसे उनके पिता ने उपहार में दिया था और उनके पास घर के संबंध में सभी वैध दस्तावेज थे, हालांकि बिना कोई नोटिस दिए मकान को गिरा दिया गया। 

प्रयागराज स्थानीय अधिकारियों ने 12 जून को वेलफेयर पार्टी ऑफ इंडिया के नेता और कार्यकर्ता आफरीन फातिमा के पिता जावेद मोहम्मद के घर को ध्वस्त कर दिया था। जावेद मोहम्मद को उत्तर प्रदेश पुलिस द्वारा एक प्रमुख साजिशकर्ता के रूप में नामित किया गया था, जिसमें आरोप लगाया गया था कि उन्होंने पैगंबर मोहम्मद साहब पर भाजपा नेता के विवादास्पद बयानों के खिलाफ (प्रयागराज में) विरोध का आह्वान किया था। उन्हें 10 जून को गिरफ्तार किया गया था और उसके बाद उनकी पत्नी और बेटी को भी हिरासत में लिया गया था, हालांकि बाद में उन्हें छोड़ दिया गया था। 

इसके अलावा, 11 जून को नगर निगम के अधिकारियों द्वारा एक नोटिस दिया गया था जिसमें कहा गया था कि विचाराधीन घर को गिरा दिया जाएगा और उन्हें घर खाली कर देना चाहिए। नतीजतन, 12 जून को, घर को पूरी तरह से ध्वस्त कर दिया गया। फातिमा ने अपनी याचिका में कहा है कि प्रयागराज विकास प्राधिकरण का यह आरोप कि घर का नक्शा स्वीकृत नहीं किया गया और इसलिए निर्माण अवैध था, सच नहीं है। वास्तव में उन्होंने तर्क दिया है कि उन्हें इस आरोप का जवाब देने का कोई अवसर नहीं दिया गया क्योंकि उन्हें कोई नोटिस नहीं मिला। उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि वह नियमित रूप से घर के सभी हाउस टैक्स, वाटर टैक्स और बिजली के बिलों का भुगतान कर रही हैं और किसी भी समय विभागों द्वारा कोई आपत्ति नहीं की गई है। 

 जिस तरह से उनके घर को तोड़ा गया, उस पर सवाल उठाते हुए उन्होंने अपनी याचिका में कहा है कि याचिकाकर्ता नंबर एक के पति – जावेद मोहम्मद का एफआईआर में उल्लेख किया गया है, अधिकारी उनके नाम पर विध्वंस के लिए नोटिस जारी करते हैं, जबकि वह घर के मालिक नहीं हैं। अधिकारियों के इस कृत्य से पता चलता है कि उन्होंने स्वामित्व के बारे में जांच नहीं की। एफआईआर में जावेद मोहम्मद के नाम के कथित उल्लेख के कारण ही घर को ढहा दिया। यह तथ्य यह भी दर्शाता है कि वास्तविक कारण किसी कानून का उल्लंघन नहीं बल्कि तथाकथित पथराव था। याचिकाकर्ता यह भी आरोप लगाया  हैं कि स्पष्ट रूप से एक अल्पसंख्यक समुदाय यानी मुस्लिमों को यह अवैध कार्य करके निशाना बनाया गया है। 

(वरिष्ठ पत्रकार जेपी सिंह की रिपोर्ट।) 

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