पूर्णकालिक दर्जे के लिए सफाई कर्मचारियों ने रायपुर में किया प्रदर्शन

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रायपुर। “छोटे कर्मचारी हैं इसीलिए शर्म लगता है क्या साहब, हमारे सामने खड़े होने में? ऐसा लगता है तो बताइए क्योंकि हम लोग सफाई कर्मचारी हैं। इनके साथ घृणा है तो बताइए! ये शब्द छत्तीसगढ़ के एक महिला स्कूल सफाई कर्मचारी अनुसूइया सोनवानी के थे, जो छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा किए गए वादे को पूरा करने के लिए हजारों की तादाद में स्कूल सफाई कर्मचारी संघ की रैली का प्रतिनिधित्व कर रही थीं। और यह बात वह अपने विधायक के न मिलने से नाराजगी जाहिर करते हुए कह रही दरअसल अपनी एक सूत्रीय मांग को लेकर पिछले कई दिनों से स्कूल सफाई कर्मी आन्दोलनरत हैं।

स्कूल सफाई कर्मचारियों का आरोप है कि छत्तीसगढ़ सरकार ने सत्ता में आने से पहले वादा किया था कि उन्हें अंशकालिक से पूर्णकालिक किया जाएगा। अब सत्ता में आने के 3 साल बाद इन स्कूल सफाई कर्मचारियों को छत्तीसगढ़ सरकार भूल गई है।

उनका कहना था कि छत्तीसगढ़ की राजधानी से लेकर हर जिला मुख्यालय में सफाई कर्मचारी आन्दोलनरत हैं। लगातार आंदोलन के बाद भी इनकी मांगों पर सुनवाई करने वाला कोई नहीं है।”

स्कूल सफाई कर्मचारी अनुसुइया सोनवानी कहती हैं, प्रदेश कांग्रेस सरकार के अंशकालीन को पूर्ण कालीन करने की मांग को अपने घोषणा पत्र में शामिल किया था। इधर पदाधिकारियों का कहना है कि घोषणा पत्र में आश्वासन दिया था कि कांग्रेस के सरकार बनाते ही 10 दिन में मांग को पूरा कर दिया जाएगा। फिर भी तीन साल होने के बाद इन मांगों को पूरा नहीं किया जा रहा है।

अनुसूइया कहती हैं कि साल 2011 से छत्तीसगढ़ के सभी स्कूलों में 43301 स्कूल सफाई कर्मचारी काम करते आ रहे हैं। वर्तमान में सरकार 2300 प्रतिमाह मानदेय दे रही है। आज के समय में इतने मानदेय में परिवार का भरण-पोषण कर पाना संभव नहीं है।

छत्तीसगढ़ में कांग्रेस सरकार सत्ता में आने के बाद विधायक और मंत्री से मुलाकात कर नियमितीकरण की मांग की गई थी। बजट सत्र 2022 में इसे पूरा करने का आश्वासन भी दिया गया था, लेकिन आज तक मांगों को पूरा नहीं किया गया है। जब तक मांगें पूरी नहीं होंगी, तब तक प्रदेश भर में आंदोलन जारी रहेगा।

स्कूल सफाई कर्मचारी भुनेश्वर मंडावी कहते हैं स्कूल की साफ-सफाई, कक्षाओं की सफाई, पेयजल की व्यवस्था, पालक रजिस्टर में हस्ताक्षर कराना और मध्यान्ह भोजन की व्यवस्था करना आदि कार्य करते आ रहे हैं। वहीं इसके एवज में वर्तमान में महज 2300 रुपये मासिक मेहनताना ही उन्हें दिया जा रहा है। और काम सुबह से शाम तक लिया जाता है। पूर्णकालिक नहीं होने से हमें और हमारे परिवार को आर्थिक मानसिक और शारीरिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। सरकार से कई बार हमने अपनी समस्याओं को अवगत कराया है।

(छत्तीसगढ़ से तामेश्वर सिन्हा की रिपोर्ट।)

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