जनता के लोकतांत्रिक अभ्युदय और धर्मनिरपेक्ष भारत के पुनर्जागरण का वाहक बनेगा 2023

कॉर्पोरेट हिंदुत्व गठजोड़ के चुनावी फासीवाद का शिकंजा भारतीय लोकतंत्र पर लगातार कसता जा रहा है। जिसके खिलाफ हिंदुस्तान के आवाम का प्रतिरोध पिछले 2 वर्षों में नई-नई बुलंदियों को छूता गया है। वर्ष 2020-21 और 22 में हमारा देश दो आपदाओं के बीच से गुजरा। एक- करोना महामारी की आपदा। जिसने लाखों भारतीयों के जीवन को लील लिया और करोड़ों नागरिकों के स्वास्थ्य को बुरी तरह से प्रभावित किया। दूसरी-आपदा कारपोरेट हितेषी सरकार द्वारा किसानों मजदूरों और व्यापक जन गण के लोकतांत्रिक आधिकारों पर हमले के रूप में सामने आई। जो तीन कृषि कानून और चार श्रम कोड लाने और दिल्ली दंगों में बेगुनाह लोगों को जेल में ठूसने के साथ शुरू हुई थी। इन दोनों के आपदाओं के खिलाफ भारतीय जनगण ने शानदार प्रतिरोध करते हुए जीवन और जीविका बचाने की कोशिश की।

इन दोनों आपदाओं में एक बुनियादी फर्क था। कोविड-19 के समय जब देश के लाखों नागरिकों की जिंदगी दांव पर लगी थी तो सरकार अनुपस्थित रही। यही नहीं मोदी सरकार ने कोविड-19 के नाम पर क्रूर लॉकडाउन थोपकर नागरिकों के जीवन को असहनीय कष्ट के रास्ते पर ठेल दिया था। इस विकट समय में सरकार ‘आपदा में अवसर’ के सिद्धांत के तहत कारपोरेट हितेषी नीतियों को बनाने में मशगूल थी।

जैसे ही महामारी की लहर कमजोर हुई दूसरी आपदा-तीन कृषि कानून- के रूप में किसानों पर थोपी गई। चूंकि यह आपदा सरकार निर्मित थी। इसलिए सरकार पूरी तैयारी के साथ मैदान में उतरी। लेकिन किसानों की जिजीविषा और बहादुराना प्रतिरोध ने 2020 -21 के वर्ष को इतिहास के सबसे रोमांचक जीत उल्लासमय संभावनाओं के वर्ष में बदल दिया।

2021 का अंत जनता की संगठित शक्ति और क्रूर सरकार के अजेयता के गढ़े गए मिथ के ढहने के साथ हुआ। 2022- की शुरुआत सरकार द्वारा षड्यंत्र गढ़ने, सांप्रदायिक उन्माद तेज करने तथा विभाजन कारी नीतियों को पुनः आगे बढ़ाने के साथ हुई। लेकिन अग्निवीर और नीप (नई शिक्षा नीति) की घोषणा के बाद छात्रों नवजवानों के जन विद्रोह के साथ शुरू हुआ संघर्ष अंततोगत्वा व्यापक जनता के सड़कों पर प्रतिरोधी ताकत के रूप में खड़ा हो जाने के साथ आगे बढ़ रहा है।

2022 में रोजगार और भूमि अधिग्रहण जैसे सवाल छात्रों नौजवानों और किसानों के बुनियादी सवाल बने रहे। जगह-जगह पर विश्वविद्यालय कॉलेज विरोध के केंद्र बने हुए हैं। साथ ही एमएसपी, खाद्य सुरक्षा और भूमि बचाओ आंदोलन नए सिरे से खडे हो रहे हैं। पुरानी पेंशन बहाली और मजदूरों के सम्मानजनक जीवन की लड़ाई भी एजेंडा बनकर उभरी है। इन घटनाओं के बीच हुए 3 राज्यों के चुनाव में भाजपा को धक्का लगा है।

अकूत कॉर्पोरेट पूंजी के समर्थन से चल रहा सरकार गिराओ, विधायक खरीदो अभियान को धक्का लगा है। महाराष्ट्र में सरकार गिराने के बाद बिहार में बदली हुई परिस्थिति ने सरकार के समक्ष नई चुनौती खड़ी कर दी है। झारखंड और तेलंगाना में खरीद-फरोख्त का षड्यंत्र समय रहते बेनकाब हो जाने से सरकार कटघरे में खड़ी होती दिखी। बिहार में संघ और भाजपा विरोधी व्यापक सामाजिक शक्तियों का गठबंधन नई ताकत के रूप में उभरता हुआ दिख रहा है। जो भाजपा के सबसे मजबूत केंद्र हिंदी पट्टी में बड़ी चुनौती बन सकता है।

काशी विश्वनाथ कॉरिडोर धाम, अयोध्या में राम मंदिर और महाकालेश्वर जैसे हिन्दू धार्मिक केंद्रों को केंद्र कर मोदी की हिंदुत्व उद्धारक छवि को पुनः स्थापित करने की कोशिश हो रही है। क्योंकि किसान आंदोलन, कांग्रेस की भारत जोड़ो यात्रा और लगातार अदानी को सौंपे जा रहे सरकारी प्रतिष्ठानों के कारण मोदी की कारपोरेट भक्ति नंगी हो गयी है।

सीमाओं पर चीन के साथ टकराव और पड़ोसी देशों के साथ बिगड़ते संबंधों के कारण मोदी सरकार की सफल विदेश नीति का भांडा फूट गया है। जिससे मजबूत नेतृत्व वाली छवि तार-तार हो गई है।

इसलिए 2022 में मोदी की हिंदू हृदय सम्राट वाली छवि गढ़ने की कोशिश फिर शुरू हुई। चूंकि ‌2022 में मोदी राज के भ्रष्टाचार की परतों का खुलना जारी है। कॉर्पोरेट परस्ती, सरकारी संस्थानों की बिक्री और अग्निपथ जैसी योजनाओं ने सरकार की देसी विदेशी पूंजी घरानों की समर्थक छवि को जनता के सामने नंगा कर दिया है। इसलिए हिंदी इलाके में हिंदू धर्म उद्धारक की छवि के सहारे जनाधार बचाने की कोशिश हो रही है।

दक्षिण में बिखरती जमीन को बचाने के लिए कर्नाटक में नए सांप्रदायिक मुद्दे उठाये जा रहे हैं। हिजाब के साथ ही कर्नाटक महाराष्ट्र सीमा विवाद और आतंकी घटनाओं की आरोपी भाजपाई सांसद द्वारा खुलेआम नरसंहार की तैयारी के आवाहन को इसी संदर्भ में देखा जाना चाहिए। समग्रता में कहा जाए तो 2022 संघ और भाजपा के लिए अच्छा नहीं रहा।

इस बीच लोकतांत्रिक संस्थानों यहां तक कि न्यायपालिका, चुनाव आयोग पर कब्जा करने की कोशिश हुई। कई संस्थाएं सरकार के हाथ की कठपुतली बन गई हैं। जो विरोधी विचारों संगठनों को दबाने के हथियार के बतौर काम कर रही है। मोदी सरकार में लोकतांत्रिक संस्थाओं और मूल्यों की साख जमीन पर लुढ़क गई है। सरकार लोकतंत्र को समाप्त करके फासीवादी निजाम बनाने की तरफ एक कदम और आगे बढ़ी है। जो उसके अंदर के हताशा और डर को प्रकट कर रहा है।

अरबों खरबों खर्च करके मोदी की गढ़ी हुई कागजी तस्वीर जगह-जगह दरक रही है। इसलिए जन प्रतिरोध की ताकतों के हौसले बुलंद हैं और वे सड़कों पर उतर रहे हैं। 2022 के मध्य से शुरू हुई कांग्रेस की भारत जोड़ो यात्रा और लोकतंत्र की आकांक्षाओं के लिए खड़े हो रहे छात्रों, नवजवानों, किसानों, मजदूरों, आदिवासियों के प्रतिरोध की स्वीकार्यता और दायरा बढ़ने लगा है।

2022 ने जनता के सैलाब को सड़कों पर उतरते देखा है। संसद के बाहर सड़कों पर लोकतंत्र आजादी और न्यायपूर्ण जिंदगी जीने की आकांक्षा लिए उठ रहे आंदोलनों की लहरों के कारण 2022 नई उम्मीदों के साथ विदा ले रहा है।

2023 में स्पष्ट दिख रहा है कि लोकतंत्र का प्रश्न महत्वपूर्ण आयाम ग्रहण करेगा। आने वाले समय में जन मुद्दों पर उठने वाले आंदोलन लोकतंत्र की नई इबारत लिख सकते हैं। इसलिए यह भी उम्मीद की जा सकती है कि भाजपा की सरकारें और संघ के अनुषांगिक संगठन ज्यादा आक्रामक और विध्वंसक हो जायें।न्यायपालिका पर डाला जा रहा दबाव इस बात का संकेत दे रहा है कि लोकतंत्र के बच्चे खुचे अवशेषों को भी झाड़ पोंछकर फासीवादी तानाशाही कायम करने की कोशिश तेज हो गई है।

इसलिए आने वाले समय में दलितों पिछड़ों अल्पसंख्यकों तर्कवादी और प्रगतिशील वाम नागरिकों पर (सिविल सोसायटी) हमले बढ़ सकते हैं। उत्तर प्रदेश के नगर निकाय के चुनाव में ओबीसी आरक्षण को जिस तरह से सचेतन ढंग से रद्द किया गया है। वह इस बात का संकेत है कि भाजपा अपने खोए हुए जनाधार को पाने के लिए उन्मत्त प्रयास कर रही है।

इसलिए 2023 लोकतांत्रिक संगठनों और व्यक्तियों से संगठित होकर व्यापक पहल लेने की मांग कर रहा है। निश्चय ही आने वाले समय में फासीवाद के खिलाफ जन प्रतिरोध की बड़ी लहरें उठेंगी। संभवत भारतीय लोकतंत्र के मंच पर 2023 युगांतरकारी घटनाओं का वर्ष होने जा रहा है।

आइए, नववर्ष में उठने वाली जनप्रतिरोध की लहरों का स्वागत करे। हो सकता है भारत में विपक्ष की कई ताकतें इस बीच अपने वर्गीय चरित्र के कारण फासीवाद के साथ खुले या छिपे रिश्ते में चली जाए। लेकिन व्यापक जनता की लोकतांत्रिक आकांक्षा 2023 में नई ऊंचाई ग्रहण करेगी और वह फासीवाद के खिलाफ एक अजेय ताकत के रूप में उभर कर भारत के लोकतंत्र की लड़ाई का नेतृत्व करेगी। इसी संघर्ष के बीच से लोकतांत्रिक जनगण का फासीवाद विरोधी संयुक्त मोर्चा अस्तित्व ग्रहण करेगा।

2023, जनता के लोकतांत्रिक मोर्चा के अभ्युदय और धर्मनिरपेक्ष गणतांत्रिक भारत के पुनर्जागरण का वाहक बनेगा। जो लोकतांत्रिक भारत की अवधारण के परचम और ऊंचाई पर लहराएगा। नये साल के सूरज की लाल किरणों के साथ सभी दोस्तों, सहयोगियों और संघर्ष के मैदान में डटी ताकतों का गर्मजोशी के साथ जोशीला अभिवादन।

(जयप्रकाश नारायण अखिल भारतीय किसान महासभा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हैं।)

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