यदि संसद में उठी हिमालयी क्षेत्र में वाणिज्यिक गतिविधियाँ रोकी गयी होती तो उत्तराखंड नहीं धंसता

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सपा सांसद के रूप में कुं. रेवती रमण सिंह ने वर्ष 2011 से संसद में नियम 193 के तहत दो बार हिमालयी क्षेत्र में वाणिज्यिक गतिविधियाँ तत्काल बंद करने, अविरल गंगा, उत्तराखंड में बनाये जा रहे अंधाधुंध बाँध और गंगा की सफाई के मुद्दे को उठाया था और इस पर साढ़े चार घंटे तक चर्चा भी हुई थी। कई प्रदेशों के सांसदों ने गंगा को बचाने के समर्थन में अपनी बातें कही भी। राज्यसभा में मार्च 21 में भी राज्यसभा सांसद कुंवर रेवती रमण सिंह ने सदन में शून्य काल में गंगा व हिमालयी पर्यावरण पर चिंता व्यक्त करते हुए विकास के नाम पर गंगा और हिमालय का निर्मम दोहन पर चिंता व्यक्त कर चुके हैं पर न तो केंद्र की तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने न ही वर्तमान भाजपा सरकार ने इस पर ध्यान दिया जिसके परिणामस्वरूप आज जोशी मठ के साथ ही पूरा उत्तराखंड धंसने के कगार पर पहुँच गया है।

राज्यसभा सांसद कुंवर रेवती रमण सिंह ने सदन में शून्य काल में गंगा व हिमालयी पर्यावरण पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि इस महती सभा के माध्यम से सरकार का ध्यान गंगा और उसका हिमालयी भू-भाग जोकि भारत की आत्मा, सनातन संस्कृति का उद्गम रहा है, के संबंध में आकर्षित करता हूँ। यह सर्वोच्च तीर्थ है जहां सदियों से आध्यात्मिक विकास की यात्रा के लिए हम जाते रहे हैं। लेकिन आज विकास के नाम पर गंगा और हिमालय का निर्मम दोहन कर, इन पावन और दिव्य हिमालयी तीर्थों को पर्यटन, शोर-शराबे और बाजार के रूप में बदला जा रहा है। जिसके परिणाम स्वरूप इसके पर्यावरण पर गंभीर दुष्परिणाम हो रहे हैं।

उन्होंने कहा कि ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं। नीति आयोग की रिपोर्ट बताती है कि 60% जल-श्रोत सूखने की कगार पर हैं। गंगा के क्षेत्र में औसत से 3 गुना अधिक मिट्टी का कटाव हो रहा है। जलवायु परिवर्तन का खतरा हिमालय पर वैसे ही मंडरा रहा है। सांसद ने कहा कि हमने 2013 केदारनाथ की आपदा देखी, फिर 2021 में ऋषि गंगा की प्रलय देखी। फिर भी सरकार गंगा और हिमालय को विनष्ट करने पर आमादा है।

उन्होंने कहा कि गंगा और उसकी धाराओं पर 7 बांधों के निर्माण की संस्तुति हाल ही में केंद्र ने की, और भी 24 अन्य बांधों पर केंद्र ने चुप्पी साध रखी है। सांसद ने सदन में कहा कि ‘चार-धामों’ को ‘चार-दामों’ में बदलने की होड़ जारी है। लाखों हिमालयी पेड़ देवदार, बाँझ, बुरांश, चीड़, कैल, पदम् आदि निर्मम रूप से चारधाम सड़क परियोजना के चौडीकरण में काट दिए गए। इसके चलते 200 से ऊपर भूस्खलन संवेदी ज़ोन पूरे चारधाम मार्ग पर सक्रिय हो गए हैं।

उन्होंने कहा कि जब सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को सड़क की चौड़ाई का मानक ठीक करने को कहा तो केंद्र ने रक्षा-मंत्रालय को ढाल बनाकर इस हानिकारक प्रोजेक्ट को आगे बढ़ाया, जब हिमालय टूट कर गिरेगा तो कैसे सेना बॉर्डर तक पहुँच पाएगी। हम यह भूल गए कि स्थायी/स्थिर हिमालय हमारी पहली सुरक्षा-ढाल है। हम हिमालय को ही आज अपूरणीय क्षति पहुंचा रहे हैं।

उन्होंने कहा कि इतने में ही चारधाम को हम नहीं बक्श रहे। सुनने में आ रहा है कि चारधाम को अब रेलवे नेटवर्क से जोड़ने की तैयारी है। यह सब हिमालयी घाटियों की धारण- क्षमता वहन क्षमता के विचार को दरकिनार कर अंधाधुंध किया जा रहा है। सब वैज्ञानिक चेतावनियों और जलवायु परिवर्तन के बढ़ते खतरे और संकेतों को नजरअंदाज कर, यह आत्मघाती कदम हम तेजी से बढ़ा रहे हैं। यदि हिमालय न रहा, यदि गंगा न बची तो फिर हम कौन से देश की बात करेंगे। हमारी सभ्यता, संस्कृति और पहचान की कीमत पर हम कौन सा विकास कर लेंगे।

कुंवर रेवती रमण सिंह ने कहा कि हिमनद क्षेत्रों में कार्बन फुटप्रिंट बढ़ रहा है और इसके परिणामस्वरूप जलवायु परिवर्तन और ऊपरी हिमालयी क्षेत्र में बड़े पैमाने पर हिमनदों का विनाश हुआ है। गंगा और हिमालय न केवल अमूल्य पर्यावरणीय संसाधन अपितु हमारी सांस्कृतिक, आध्यात्मिक राष्ट्रीय धरोहर भी हैं। इनसे व्यावसायिक खिलवाड़ तुरंत बंद होना चाहिए। गंगा के क्षेत्र में पेड़ों/जंगलों का कटान तत्काल रोका जाना चाहिए।

जून 2013 में ऋषिगंगा और केदारनाथ की हाल की बाढ़ का जिक्र करते हुए उन्होंने यह भी कहा कि पिछले महीने चमोली क्षेत्र में अचानक आई बाढ़ के कारण सैकड़ों लोग मारे गए थे और ऋषिगंगा बाढ़ में लगभग 200 लोग मारे गए थे और अभी भी कई शवों का पता नहीं चल पाया है।

इसके पूर्व लोकसभा में वर्ष 2011 में इस मुद्दे को उठाते हुए उन्होंने कहा था कि आज गंगा को पूरी तरह से विनष्ट करने का एक षडयंत्र चल रहा है। इस षडयंत्र का नतीजा यह होगा कि 50 करोड़ की आबादी जो गंगा पर गजर-बसर करती है, गंगा के किनारे जो लोग चार प्रदेशों में निवास करते हैं, उनका जीवन-यापन खत्म हो जाएगा। गंगा के महत्व को समझते हुए प्रधानमंत्री जी ने सन् 2008 में गंगा को राष्ट्रीय नदी घोषित किया था। आज सन् 2011 खत्म होने वाला है लेकिन संभवतः एक बैठक भी नहीं हुई है। गंगा के संरक्षण के लिए कोई कानून भी नहीं बनाया गया है। मुझे अफ़सोस है कि प्रधानमंत्री उसके अध्यक्ष हैं, लेकिन उनको समय नहीं मिल रहा है कि एक बैठक रखें और यह देखें कि गंगा की क्या दुदर्शा हो रही है।

उन्होंने कहा था कि सवाल यह है क गंगा बचेगी कि नहीं, उसका अस्तित्व बचेगा कि नहीं बचेगा? केवल गंगा ही नहीं हमारी जितनी भी नदिया हैं चाहे यमुना हो या अन्य सहायक नदियां जो वहां से निकलती हैं, सब का अस्तित्व खतरे में पड़ गया है। उनका अस्तित्व दो तरह से खतरे में पड़ गया है। एक तो कार्बनडाई अक्साईड की वजह से ग्लेशियर हर साल 20 मीटर खिसक रहे हैं। दूसरा, हमने बांधों की श्रंखला बनाई है, पहले वहां पर तीन बांध बनाए गए थे।

उन्होंने कहा किजब टिहरी बांध बनाया गया तो यह कहा गया कि इससे 2400 मेगावाट बिजली मिलेगी और डेढ़ लाख हैक्टेअर भूमिं की सिंचाई होगी। आज वास्तविकता यह है कि टिहरी से मात्र 400 मेगावाट बिजली मिल रही है और सिंचाई केवल कागजों में नाममात्र की हो रही है।इससे बिहार तक सिंचाई होनी थी।

उन्होंने कहा कि पटना में गंगा का बहुत बड़ा पाट था, बनारस में बहुत बड़ा पाट था, इलाहाबाद में गंगा अविरल तरीके से बहती थी, लेकिन आज वह नाले के रूप में बह रही है। कानपुर आदि जितने भी शहर हैं, पटना बता दिया, गंगासागर तक जाते-जाते गंगा की स्थिति यह हो जाती है कि मल-मूत्र से गंदा पानी ही गंगासागर में जाता है। गंगा का शुद्ध जल वहां जाता ही नहीं है।

कुंवर रेवती रमण ने कहा कि इतना ही नहीं, दो बांध और बनाये गये, एक बांध हरिद्वार में बनाया गया और एक नरौरा में बनाया गया। उसके बाद एक बांध मनेरी भाली में और बना दिया गया। इतने पर ही उत्तराखंड की सरकार को संतोष नहीं हुआ। जो गंगा की प्रमुख सहयोगी नदियां हैं, केदारनाथ धाम से निकलने वाली नदियां हैं, मंदाकिनी के ऊपर उत्तराखंड की सरकार के द्वारा इतने बांध बनाये जा रहे हैं कि 115 किलोमीटर तक, जहां से मंदाकिनी बहती है, वह पूरा का पूरा क्षेत्र समाप्त हो गया है।

जो गंगा अविरल धारा से बहती थी, उसमें तमाम औषधि गुण, तमाम उसमें इस तरह के पदार्थ आते थे, जीव-जन्तु उसमें पलते थे, उन सबको समाप्त करने का काम कर दिया है। ऐसा लगता है कि गंगा कहीं दिखाई ही नहीं पड़ेगी। केदारनाथ धाम से मंदाकिनी नदी पर पूरी की पूरी बांध की श्रृंखला बनायी गयी। वहां के लोगों के विरोध करने के बावजूद भी वह बनता ही जा रही है।

राष्ट्रीय नदी प्राधिकरण तो गठित किया गया, लेकिन इसे कानूनी दर्जा अभी तक नहीं दिया गया है। विकास के नाम पर बिजली बनाने के लिए, गंगा के साथ-साथ हिमालय का भी अस्तित्व समाप्त होने वाला है। हिमालय चार-पांच सिस्मिक जोन पर बसा हुआ है, कच्चा पहाड़ है और कभी भी वह टूट जाये। एक बार मदन मोहन मालवीय जी ने कहा था, जब अंग्रेज बांध बनाने लगे तो मदन मोहन मालवीय जी इलाहाबाद से आये और उन्होंने कहा कि हम आमरण अनशन करेंगे, अंग्रेजों ने बंद कर दिया। आज हमारी ही सरकार जो अपने आपको धर्म का रक्षक कहती है, आज उसी पार्टी की सरकार गंगा को विनष्ट रही है, हिमालय को विनष्ट कर रही है।

उन्होंने चेतावनी दी थी कि इतना उसे विनष्ट करने की तैयारी हो रही है कि एक दिन ऐसा आयेगा कि अगर टिहरी का बांध टूटा तो वहां से लेकर पूरे इलाहाबाद तक जलमग्न हो जायेगा। एक भी आदमी नहीं बचेगा। क्या कभी सरकार ने इस संबंध में सोचा है? कभी भारत सरकार ने इस पर विचार किया है? खाली आपने मज़ाक बना दिया।

रेवती रमण सिंह ने कहा कि लोहारी, नाग, पाला मनेरी, और भैरव घाटी के बांधों को निरस्त किया गया लेकिन अभी 150 बांधों का काम चल रहा है। अभी 550 बांधों को चिह्नित किया गया है कि इन पर और काम चलेगा। बिजली कितनी मिल रही है? यदि ये सब परियोजनाएँ तैयार हो जाएँ तो पूरे देश को जो बिजली मिलती है, उसका एक प्रतिशत बिजली ही मिलेगी। मैं भारत सरकार से कहना चाहता हूँ कि तत्काल इसका काम रुकवा दीजिए। अगर आपको गंगा को बचाना है, आपको अलकनंदा को बचाना है, आपको मंदाकिनी को बचाना है तो मेरा आपसे आग्रह है कि तत्काल इस काम को रुकवा दीजिए और गंगा की अविरल धारा को बहने दीजिए, गंगा में जल प्रवाह होने दीजिए और चारों तरफ से जो गंदगी और मल-मूत्र गंगा में जा रहा है, इसको रोकने का काम करने का भी यहाँ से प्रयास होना चाहिए।

(जेपी सिंह वरिष्ठ पत्रकार और कानूनी मामलों के जानकार हैं।)

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